पास अनादि अविद्या मेरी, हरन पास परमेशा है ।चिद्विलास सुखराशप्रकाशवितरन त्रिभोन - दिनेशा है ॥दुर्निवार कंदर्प सर्प को दर्पविदरन खगेशा है ।दुठ-शठ-कमठ-उपद्रव प्रलयसमीर - सुवर्णनगेशा है ॥१॥ज्ञान अनन्त अनन्त दर्श बल, सुख अनन्त पदमेशा है ।स्वानुभूति-रमनी-बर भवि-भव-गिर-पवि शिव-सदमेशा है ॥२॥ऋषि मुनि यति अनगार सदा तिस, सेवत पादकुशेसा है ।वदनचन्द्र झरै गिरामृत, नाशन जन्म-कलेशा है ॥३॥नाम मंत्र जे जपैं भव्य तिन, अघअहि नशत अशेषा है ।सुर अहमिन्द्र खगेन्द्र चन्द्र ह्वै, अनुक्रम होहिं जिनेशा है ॥४॥लोक-अलोक-ज्ञेय-ज्ञायक पै, रति निजभावचिदेशा है ।रागविना सेवकजन-तारक, मारक मोह न द्वेषा है ॥५॥भद्रसमुद्र-विवर्द्धन अद्भुत, पूरनचन्द्र सुवेशा है ।'दौल' नमै पद तासु, जासु, शिवथल समेद अचलेशा है ॥६॥