मैं करूँ वंदना तेरी ओ मेरे परसनाथमुझपर तो किरपा कर दो ओ मेरे पारसनाथ ॥टेक॥चरणों में तुमको शीश नवाऊँ, नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ।दरश बिना व्याकुल रहता हूँ, पल भर चैन नहीं पाऊँ ।मेरे जीवन में कर दे, तू किरपा की बरसात ॥१॥दुख की तो परवाह नहीं है, सुख की कोई चाह नहीं ।सच्चा तो शिवपद है प्रभुजी, और कोई मेरी राह नहीं ।मेरे जनम मरण को मेटो, बस इतनी सी है बात ॥२॥डोल रही भव-भव में नैया, अब तो पार लगा दे तू ।छाए हैं संकट के बादल, संकट मेरा मिटा दे तू ।इक तुझसे आस है मेरी, मैं जपूँ तुम्हें दिन-रात ॥३॥अश्वसेन के राजदुलारे, वामा-देवी के प्यारे ।नाग-नागिनी तारने वाले, पारस तुम सबसे न्यारे ।मुझे महामंत्र सिखला दो मैं जपूँ मंत्र दिन-रात ॥४॥