क्रोध कषाय न मैं
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क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ।
गरमी व्यापै देह में, गुनसमूह जलि जाय हो ॥टेक॥
गारी दै मार्यो नहीं, मारि कियो नहिं दोय हो ।
दो करि समता ना हरी, या सम मीत न कोय हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥१॥
नासै अपने पुन्य को, काटै मेरो पाप हो ।
ता प्रीतमसों रूसिकै, कौन सहै सन्ताप हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥२॥
हम खोटे खोटे कहैं, सांचेसों न बिगार हो ।
गुन लखि निन्दा जो करै, क्या लाबरसों रार हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥३॥
जो दुरजन दुख दै नहीं, छिमा न ह्वै परकास हो ।
गुन परगट करि सुख करै, क्रोध न कीजे तास हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥४॥
क्रोध कियेसों कोपिये, हमें उसे क्या फेर हो ।
सज्जन दुरजन एकसे, मन थिर कीजे मेर हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥५॥
बहुत कालसों साधिया, जप तप संजम ध्यान हो ।
तासु परीक्षा लैनको, आयो समझो ज्ञान हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥६॥
आप कमायो भोगिये, पर दुख दीनों झूठ हो ।
'द्यानत' परमानन्द मय, तू जगसों क्यों रूठ हो ॥
क्रोध कषाय न मैं करौं, इह परभव दुखदाय हो ॥७॥