शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी,या में दाम न कोडि लागे, नाना विध सुखदाय जी ॥टेक॥सुन्दर आभूषण ये पहर्या कंचन जडय जडाव जी,शील बिना सब फीका लागे, बिना पुरुष की नारी जी ॥शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी ॥१॥कुल कलंक रावण के लाग्यो, जग में अपयश छायजी,सीता सती शीलव्रत पाल्यो, देवकरी जयकार जी ॥शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी ॥२॥सेठ सुदर्शन शूली ऊपर पड्यो सु परवश जाय जी,देव आय सिंहासन रचियो, पुष्प वृष्टि बरसाय जी ॥शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी ॥३॥सती द्वोपदी शील व्रत पाल्यो बढ्यो चीर अधिकायजी,धात खंड को राजा हरियो हर कीना अपकारजी ॥शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी ॥४॥इस जग में आभूषण दूजो दीखत नाय लुभायजी,शील बिना सब फीका लागे, तजो पराई नार जी ॥शील शिरोमणी रतन जगत में, सो पहरो नरनार जी ॥५॥