धर्म मार्दव को सब मिल
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तर्ज : ऐसे मुनिवर देखे वन में
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना ॥टेक॥
मान मानव का गुण बन गया है,
जब कि अवगुण ही उसको कहा है ।
अवगुणों को हृदय से हटाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना ॥
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना ॥१॥
इस अहं ने ही सबको ठगा है,
इन्द्रिय विषयों में ही मन लगा है ।
सोच अब मन को विनयी बनाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना ॥
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना ॥२॥
ज्ञानियों की विनय करना सीखो,
संयमी की विनय करना सीखो,
संयमी बनके संयम निभाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना ॥
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना ॥३॥
फल सहित वृक्ष झुकता सदा है,
ऐसे ही गुण सहित मन कहा है।
मन का उपवन गुणों से सजाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना ॥
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना ॥४॥
विनय विद्या प्रदाता कही है,
ऋद्धि सिद्धी की दाता वही है।
'चन्दनामति' हृदय मृदु बनाना,
धर्म का रूप जग को दिखाना
धर्म मार्दव को सब मिल निभाना ॥५॥