इस जग में थोड़े दिन की जिन्दगानी है । क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥टेक॥ नहिं सत्य व्रत सम, जग में वरत बखाना नहि झूठ पाप सम, जग में पाप महाना ।तज मिष्ट सुधारस, पियत क्षार पानी हैं ॥क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥१॥जो पगे स्वार्थ में, झूठ वचन बतलातेकोई नहि उन पर, निज विश्वास रमाते ।सच बात कहें पर, झूठी श्रद्धानी हैं ॥क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥२॥जो सत्यामृत का पान, सदा करते हैंवे सब प्रकार के सुख, अनुभव करते हैं ।सत्यार्थ पुरुष की, कीरति फहिरानी है ॥क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥३॥ज्यों पावक का कन, सघन बनी दहता है।त्यों थोड़ा झूठ भी, प्राणों को हरता है ।इसलिये झूठ का, करें त्याग ज्ञानी हैं ॥क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥४॥इस हेतु सत्य के भक्त, बनो नर नारीहै सत्य धर्म अति, पर्म शर्म दातारी ।कहें 'प्रेम' सिन्धु, सत धर्म मुकति दानी है ॥क्यों हुआ दिवाना बके झूठ बानी है ॥५॥