ज्ञाता दृष्टा राही हूं, अतुल सुखों का ग्राही हूं,बोलो मेरे संग, आनंदघन आनंदघन आनंदघन ॥आत्मा में रमूंगा मैं क्षण क्षण में, चाहे मेरा ज्ञान जाने निज पर को,अपने को जाने बिना लूंगा नहीं दम, आगम की आगम बढाऊंगा कदम,सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल ॥धूप हो या गर्मी बरसात हो जहां,अनुभव की धारा बहाऊंगा वहां,विषयों का फ़िर नहीं होगा जनम,आगम की आगम बढाऊंगा कदम,सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल॥गुण अनंत का स्वामी हूं मैं मुझमें ये रतन,गणधर भी हार गये कर वर्णन,अनुपम और अद्भुत है मेरा ये चमन,आगम की आगम बढाऊंगा कदम,सुख में दुख में, दुख में सुख में, एक राह पर चल ॥