( तर्ज : धरती धोरा री - राजस्थानी )जगरा देव अनन्ता मनाया,जाणँ कुण कुण रा गुण गाया,पण नही वीतराग ने ध्याया,गलती आपाँ री न जाणी आपाँ री ॥रागी द्वेषी देव मनाया,जाणै कुण-कुण रा जस गाया,पण नही वीतराग ने ध्याया,गलती आपाँ री, कि जाणी आपाँ री ॥१॥जबलौ पर में आपो मान्यो,तब लग आपा पर नहीं जान्यो,आतम नहि निज माँही आण्यो,महिमा आपाँ री, कि जाणी आपाँ री ॥२॥अब मैं जिनवर शरण आयो,जिन दरसन पा मन हरषायो,'तारा' आतम रस सरसायो,गठरी पापाँ री, कि उतरी आपाँ री ॥३॥