चेतन नरभव ने तू पाकर, उत्तम मानुष भव में आकर, जीवन विरथा यूँ ही गमाकर, बन रह्यो कैसे सैलानी ॥टेक॥माँ के पेट अधो मुख लटक्यो, मूरख नौ महिना ताईं, ज्यों-ज्यों दुःख सहया छा भारी, सारा भूल गयो काँईं, पूरब पुण्य उदय से भाई, अब तू सभी संपदा पाई, करले जिनवर भजन कमाई, जो है सच्ची शिवदानी ॥चेतन...१॥बचपन थारो सारो प्यारो, खेलन कूदन में बीत्यो, हो रह्यो विषयन में अलमस्त जवानी कीनो मन चित्यो, प्रभू को नाम कदै नहीं लीनो, निश्चय जिनवाणी नहीं कीनो, कुछ नहीं सुकृत कारज कीनो, जो है सच्ची सुख दानी ॥चेतन...२॥थारो जदाँ बुढ़ापो आसी, इन्द्रियाँ शीथिल पड़ जासी, देह सूँ कुछ नहीं होसी काम, पलंग थारो पोल्याँ ढल जासी, बेटा बहू भतीजा दासी, थारी एक साथ नहीं जासी, आ है मोह जाल की फाँसी, फँस रह्यो कैसे अज्ञानी ॥चेतन...३॥अब तो चेतो चेतन प्यारे, बीती बाताँ न छोड़ो, छोड़ो दंत कथा अब सारी, नातो जिन जी से जोड़ो, थारा भव भव दुख टल जासी, उत्तम मन चीत्याँ फल पासी, उन्नत हो जासी 'सौभाग्य', वरसी मोक्ष की रानी,चेतन नरभव ने तू पाकर, उत्तम मानुष भव में आकर,जीवन विरथा यूं ही गमाकर, बन रह्यो कैसे सैलानी ॥चेतन...४॥