भगवंत भजन क्यों भूला रे ।यह संसार रैन का सुपना, तन धन वारि बबूला रे ॥टेक॥इस जीवन का कौन भरोसा, पावक में तृण पूला रे ।काल कुदार लिए सिर ठाड़ा, क्या समुझै मन फूला रे ॥भगवंत भजन क्यों भूला रे ॥१॥स्वारथ साधै पांच पांव तू , परमारथ को लूला रे ।कहूं कैसे सुख पावे प्राणी, काम करे दुख मूला रे ॥भगवंत भजन क्यों भूला रे ॥२॥मोह-पिशाच छल्यो मति मारै, निज कर-कंधवसूला रे ।भज श्री राजमतीवर 'भूधर', दो दुर्मति सिर धूला रे ॥भगवंत भजन क्यों भूला रे ॥३॥