तू तो समझ समझ रे भाई !निशिदिन विषय भोग लपटाना, धरम वचन न सुहाई ॥टेक॥कर मनका लै आसन माड्यो, वाहिज लोक रिझाई ।कहा भयो बक-ध्यान धरेतैं, जो मन थिर न रहाई ॥तू तो समझ समझ रे भाई ॥१॥मास मास उपवास किये तैं, काया बहुत सुखाई ।क्रोध मान छल लोभ न जीत्या, कारज कौन सराई ॥तू तो समझ समझ रे भाई ॥२॥मन वच काय जोग थिर करकैं, त्यागो विषयकषाई ।'द्यानत' सुरग मोख सुखदाई, सद्गुरु सीख बताई ॥तू तो समझ समझ रे भाई ॥३॥