मोक्ष के प्रेमी हमने, कर्मों से लड़ते देखे ।मखमल पर सोनेवाले, भूमि पर बढते देखे ॥सरसों का दाना जिनके, बिस्तर पर चुभता था ।काया की सुध नहीं, गीदड़ तन भखते देखे ॥१॥अर्जुन व भीम जिनके, बल का ना पार था ।आत्मोन्नत्ति के कारण, अग्नि में जलते देखे ॥२॥सेठ सुदर्शन प्यारा, रानी ने फंदा डाला ।शील को नाहीं छोड़ा, सूली पर चढ़ते देखे ॥३॥बौद्धों का जोर था जब, निकलंक देव देखे ।धरमोन्नत्ति के लिए, मस्तक तक कटते देखे ॥४॥हे पारस नाथ स्वामी, तद्भव मोक्षगामी ।कर्मों ने नाहीं बख्शा, पत्थर तक पड़ते देखे ॥३॥भोगों को त्याग चेतन, जीवन है बीता जाए ।तृष्णा न पूरी हुई, अरथी पर चढ़ते देखे ॥५॥