गाथा / सूत्र | विषय | गाथा / सूत्र | विषय |
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0001) | मंगलाचरण | 001) | प्रथमं सर्ग |
002) | द्वितीयं सर्ग | 003) | तृतीय सर्ग |
004) | चतुर्थ सर्ग | 005) | पंचम सर्ग |
006) | षष्टम सर्ग | 007) | सप्तम सर्ग |
008) | अष्टम सर्ग | 009) | नवम सर्ग |
010) | दसम सर्ग |
सकलकलुषविध्वंसकं, श्रेयसां परिवर्धकं, धर्मसम्बन्धकं, भव्यजीवमन: प्रतिबोधकारकं, पुण्यप्रकाशकं, पापप्रणाशकमिदं शास्त्रं श्री-सुकुमाल-चरित्र नामधेयं, अस्य मूल-ग्रन्थकर्तार: श्री-सर्वज्ञ-देवास्तदुत्तर-ग्रन्थ-कर्तार: श्री-गणधर-देवा: प्रति-गणधर-देवास्तेषां वचनानुसार-मासाद्य श्री-सकलकीर्ति-भट्टारक विरचितं ॥