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Notes
























- 01_Notes



nikkyjain@gmail.com
Date : 17-Nov-2022

Index


अधिकार

कर्म गुणस्थान गति-आगति नियम सामन्य जानकारी
प्रकृति बंध स्थिति बंध अनुभाग बंध प्रदेश बंध
कर्म-उदय-उदीरणा कर्म-सत्व बंध-उदय-सत्त्व त्रिसंयोग आस्रव प्रत्यय
भाव अधिकार गुणस्थानों में आलाप सत्-अनुगम संख्यानुगम
क्षेत्रानुगम स्पर्शानुगम कालानुगम भावानुगम
अन्तरानुगम अल्प-बहुत्व मोहनीय-विभक्ति विविध विषय
अलौकिक गणित आहार-संबंधी







Index


गाथा / सूत्रविषय

कर्म

01-01) कर्म की १४८ प्रकृतियाँ
01-02) कर्म प्रकृतियों में समूह-वाचक शब्द
01-03) प्रकृति बंध संबंधी नियम
01-04) कर्मों में विभाजन
01-05) स्वोदय / परोदय बंधी प्रकृतियाँ
01-06) सांतर / निरन्तर बंधी प्रकृतियाँ

गुणस्थान

02-00) 14 गुणस्थान
02-01) गुणस्थानों में विभाजन
02-02) गुणस्थानों में गमनागमन
02-03) गुणस्थानों में समुद्घात
02-04) गुणस्थानों में कर्म के उदय / उदीरणा
02-05) गुणस्थानों में कर्म के बन्ध
02-06) गुणस्थानों में कर्म की सत्ता
02-07) गुणस्थानों का काल और उनमें जीवों की संख्या
02-09) गुणस्थानों में संभव योग
02-10) गुणस्थानों में कर्म की उदय / बंध व्युच्छिति
02-11) गुणस्थान में मूल-प्रकृतियों में स्थान-समुत्कीर्तन
02-12) गुणस्थानों में करण संबंधी विशेष विचार
02-13) गुणस्थानों में परीषह

गति-आगति नियम

03-01) गति-आगति
03-02) जीव कहाँ तक जा सकता है
03-03) जीव नियमत: कहाँ जाते हैं
03-04) आयु
03-05) संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति

सामन्य जानकारी

04-01) पांचों ज्ञानों का स्‍वामित्‍व
04-02) संसारी जीवों में प्राण
04-03) उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण के संभव प्रकार

प्रकृति बंध

05-01) प्रकृति-बन्ध प्ररूपणा
05-02) नरक में प्रकृति बंध
05-03) तिर्यञ्च-गति में प्रकृति बंध
05-04) मनुष्य-गति में प्रकृति बंध
05-05) देवगति में प्रकृति बंध
05-06) जाति-मार्गणा में प्रकृति बंध
05-07) काय-मार्गणा में प्रकृति बंध
05-08) योग-मार्गणा में प्रकृति बंध
05-09) वेद-मार्गणा में प्रकृति बंध
05-10) लेश्या-मार्गणा में प्रकृति बंध
05-11) कषाय और ज्ञान मार्गणा में कर्म का बंध
05-15) मूल प्रकृति में सादि आदि बंध के भेद
05-16) उत्तर प्रकृति में सादि आदि बंध के भेद
05-17) एक जीव के एक काल में होने वाला प्रकृति-बंध
05-18) मोहनीय के भुजाकार आदि बंध
05-19) नाम-कर्म के बंध-स्थान का यंत्र
05-21) गति के साथ बंधने वाले नाम-कर्म के स्थान
05-22) गति-संयुक्त नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
05-23) नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
05-24) नाम-कर्म बन्ध-स्थान आदेश प्ररूपणा

स्थिति बंध

06-01) जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति बंध का काल और स्वामी
06-02) मार्गणा में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति-बंध
06-03) मूल-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार
06-04) स्थिति-बंधस्थान प्ररूपणा
06-05) संक्लेश-विशुद्धि-स्थान प्ररूपणा
06-06) स्थिति बंध अल्प-बहुत्व
06-07) उत्तर-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार

अनुभाग बंध

07-01) अनुभाग बन्ध के स्वामी
07-02) मूल प्रकृतियों में सादि आदि भेद
07-03) मूल प्रकृतियों के अनुभाग बंध में स्वामित्व प्ररूपणा
07-10) उत्तर प्रकृतियों में सादि आदि भेद
07-15) आठ मूल-प्रकृतियों के जघन्य / उत्कृष्ट अनुभाग बंध में स्वामित्व

प्रदेश बंध

08-01) मूल प्रकृतियों में प्रदेश बंध
08-02) मूल प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान
08-03) उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान
08-04) मूल और उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध स्वामी
08-05) उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी

कर्म-उदय-उदीरणा

09-01) नरक और तिर्यञ्च गति मार्गणा में उदय
09-02) मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय
09-03) इंद्रिय मार्गणा में कर्म का उदय
09-04) काय मार्गणा में कर्म का उदय
09-05) योग मार्गणा में कर्म का उदय
09-06) वेद मार्गणा में कर्म का उदय
09-07) कषाय मार्गणा में कर्म का उदय
09-08) ज्ञान मार्गणा में कर्म का उदय
09-09) संयम मार्गणा में कर्म का उदय
09-10) दर्शन मार्गणा में कर्म का उदय
09-11) लेश्या मार्गणा में कर्म का उदय
09-12) सम्यक्त्व मार्गणा में कर्म का उदय
09-13) संज्ञी मार्गणा में कर्म का उदय
09-14) आहार मार्गणा में कर्म का उदय
09-18) नाम-कर्म अपेक्षा जीव-पद के 41 भेद
09-19) उदय योग्य पाँच काल
09-20) ओघ से एक जीव के एक काल में कर्म-उदय
09-21) योग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी भंग
09-22) योग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-23) उपयोग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-24) लेश्या की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-25) वेद की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-26) संयम की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-27) सम्यक्त्व की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
09-31) एक जीव की अपेक्षा नाम कर्म के उदय-स्थान
09-32) नाम-कर्म उदय-स्थान जीव-समास प्ररूपणा
09-33) नाम-कर्म के उदय-स्थानों का यंत्र
09-34) नाम कर्म के उदय-स्थान में जीव-पद अपेक्षा भंग
09-35) आदेश से एक जीव के एक काल में नाम कर्म-उदय
09-51) मोहनीय की जघन्य/उत्कृष्ट प्रकृति/अनुभाग उदीरणा के स्वामी

कर्म-सत्व

10-01) नरक गति मार्गणा में सत्व
10-02) तिर्यञ्च गति मार्गणा में सत्व
10-03) मनुष्य गति मार्गणा में सत्व
10-04) देव गति मार्गणा में सत्व
10-05) इंद्रिय और काय मार्गणा में सत्व
10-06) उद्वेलना का क्रम
10-07) योग मार्गणा में सत्व
10-08) वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणा में सत्व
10-09) संयम और दर्शन मार्गणा में सत्व
10-10) लेश्या, भव्य और सम्यक्त्व मार्गणा में सत्व
10-11) संज्ञी और आहार मार्गणा में सत्व
10-12) एक जीव के सत्व में स्थान और भंग की संख्या
10-13) मिथ्यादृष्टि के सत्व में 18 स्थान / 50 भंग
10-14) सासादन के सत्व में 4 स्थान / 12 भंग
10-15) मिश्र गुणस्थान के सत्व में स्थान / 36 भंग
10-16) अविरत-सम्यक्त्वी के सत्व में 40 स्थान / 120 भंग
10-17) देशविरती के सत्व में 40 स्थान / 48 भंग
10-18) 6-7 गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान / 40 भंग
10-19) उपशम श्रेणी के सत्व में 24 स्थान और भंग
10-20) अपूर्वकरण क्षपक के 4 सत्त्व स्थान / 4 भंग
10-21) अनिवृत्तिकरण क्षपक के 36 सत्त्व स्थान / 38 भंग
10-22) सूक्ष्मसांपरायिक / क्षीणमोह क्षपक के सत्त्व स्थान / भंग
10-23) सयोग / आयोग केवली के स्थान और भंग
10-30) नाम-कर्म के 13 सत्त्व-स्थान
10-31) चार गति में पाए जाने वाले नाम-कर्म के सत्त्व-स्थान

बंध-उदय-सत्त्व त्रिसंयोग

11-01) मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
11-02) ओघ से मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
11-03) उत्तर-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
11-04) गोत्र कर्म के त्रिसंयोग भंग
11-05) चारों गति में आयु कर्म के त्रिसंयोग भंग
11-06) मोहनीय कर्म के त्रिसंयोग भंग
11-07) मोहनीय के बंध अधिकरण, उदय-सत्त्व आधेय भंग
11-08) मोहनीय के उदय अधिकरण, बंध-सत्त्व आधेय भंग
11-09) मोहनीय के सत्त्व अधिकरण, बंध-उदय आधेय भंग
11-10) नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग
11-11) 14 जीव-समास में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व
11-12) 14 मार्गणा में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व भंग
11-13) नाम कर्म के बंध अधिकरण, उदय, सत्त्व आधेय
11-14) नाम कर्म के उदय आधार, बंध सत्त्व आधेय भंग
11-15) नाम कर्म के सत्त्व आधार, बंध उदय आधेय भंग
11-16) नाम कर्म के बंध / उदय आधार सत्त्व आधेय
11-17) नाम कर्म के बंध / सत्त्व आधार उदय आधेय भंग
11-18) नाम कर्म के उदय / सत्त्व आधार बन्ध आधेय भंग

आस्रव प्रत्यय

12-01) आस्रव के प्रत्यय के मूल और उत्तर-भेद
12-02) गुणस्थान में आस्रवों के मूल-प्रत्यय
12-03) गुणस्थानों में आस्रवों के उत्तर प्रत्यय
12-04) गुणस्थानों में आस्रव के स्थान संख्या और उनके प्रकार
12-05) गुणस्थानों में आस्रव के प्रत्यय के भंगों का प्रमाण
12-06) मार्गणा में आस्रव

भाव अधिकार

13-01) नाना जीवों में पाए जाने वाले भाव
13-02) नाना जीवों में पाए जाने वाले उत्तरभाव
13-03) गुणस्थानों में एक जीव के एक काल में संभव भाव
13-04) गुणस्थानों में उत्तरभावों के भंग

गुणस्थानों में आलाप

14-01) गुणस्थानों में आलाप
14-02) नरक में गुणस्थानों में आलाप
14-03) तिर्यन्चों में गुणस्थानों में आलाप
14-04) मनुष्यों में गुणस्थानों में आलाप

सत्-अनुगम

15-01) मार्गणा में भंग-विचय
15-02) मार्गणा का स्वामित्व

संख्यानुगम

16-01) मार्गणा में द्रव्य-प्रमाणानुगम
16-02) वैमानिक देवों की संख्या
16-03) नारकियों की संख्या

क्षेत्रानुगम

17-01) मार्गणा में क्षेत्रानुगम
17-02) जीवों का वर्तमान निवास-स्थान / अवस्था

स्पर्शानुगम

18-01) गुणस्थानों में स्पर्श
18-02) मार्गणा में स्पर्शानुगम

कालानुगम

19-01) गुणस्थानों में काल
19-02) मार्गणा में कालानुगम

भावानुगम

20-01) मार्गणा में भावानुगम

अन्तरानुगम

21-01) गुणस्थानों में अंतर
21-02) मार्गणा में अन्तरानुगम
21-03) एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-04) गति-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-05) इंद्रिय और काय मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-06) योग-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-07) वेद-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-08) कषाय-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-09) ज्ञान-दर्शन-संयम-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
21-10) लेश्या-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

अल्प-बहुत्व

22-01) जीवों में अल्प-बहुत्व
22-02) अद्धापरिमाण में अल्प-बहुत्व
22-03) योग-स्थान में अल्प-बहुत्व
23-01) योग-स्थान
23-02) योग-स्थान अल्प-बहुत्व
23-03) जीव-समास में योगस्थान

मोहनीय-विभक्ति

27-01) मोहनीय प्रकृति-स्थान विभक्ति -- स्थान आदि
27-02) मोहनीय विभक्ति-स्थान में अल्प-बहुत्व
27-03) एक जीव अपेक्षा मोहनीय-विभक्ति का काल
27-04) मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- समुत्कीर्तन
27-05) मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- कालानुगम

विविध विषय

28-01) मूल संघ पट्टावली
28-02) पुराण-पुरुष
28-03) जीव-समास (98 भेद)
28-04) नरक संबंधी जानकारी
28-05) नरक के 49 पटलों में आयु
28-06) तिर्यञ्च-गति में जघन्य / उत्कृष्ट आयु
28-07) एक अंतर्महुर्त में लब्ध्यपर्याप्तक के संभव निरंतर क्षुद्र भव
28-08) मनुष्य-गति मार्गणा में आयु
28-09) देव-गति में व्यन्तर देव संबंधी आयु
28-10) देव गति में भवनवासी संबंधी आयु
28-11) देव गति में ज्योतिष संबंधी आयु
28-12) देव गति मे सौधर्म-ईशान देव सम्बन्धी आयु
28-13) सानतकुमार / महेंद्र युगल में आयु
28-14) ब्रह्म-कापिष्ठ युगल संबंधी आयु
28-15) शुक्र से अच्युत स्वर्ग सम्बन्धी आयु
28-16) आरण से सर्वार्थ-सिद्धि तक आयु
28-17) वैमानिक परिवार में आयु
28-18) वैमानिक इंद्राणि / देवियों संबंधी आयु
28-19) चौबीस तीर्थंकर निर्देश
28-20) द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
28-21) नव बलदेव निर्देश
28-22) नव नारायण निर्देश
28-23) नव प्रतिनारायण निर्देश
28-24) एकादश रूद्र निर्देश
28-26) चक्रवर्ती के 14 रत्न
28-31) भगवान महावीर के पूर्व भव
28-41) भवनवासी देवों में इंद्र परिवार
28-45) तीर्थकरों का धर्म-तीर्थकाल
28-50) द्वादशाङ्ग निर्देश

अलौकिक गणित

29-01) क्षेत्र प्रमाण
29-02) संख्या प्रमाण

आहार-संबंधी

30-01) आहार संबंधी
30-02) अष्टांग योग
30-03) प्रतिक्रमण
30-04) सम्यक्त्व





कर्म



+ कर्म की १४८ प्रकृतियाँ -
कर्म की 148 प्रकृतियाँ

विशेष :

कर्म की १४८ प्रकृतियाँ
कर्म कुल भेद संख्या प्रकृति
ज्ञानावरणी 5 सर्वघाति 1 केवलज्ञानावरण
देशघाति 4 मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण
दर्शनावरणी 9 सर्वघाति 6 केवलदर्शनावरण, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि
देशघाति 3 चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण
वेदनीय 2 सातावेदनीय और असातावेदनीय
मोहनीय दर्शन 3 सर्वघाति 2 मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व
देशघाति 1 सम्यक्त्वप्रकृति
चारित्र 25 सर्वघाति 12 अनंतानुबंधी-4, अप्रत्याख्यानावरण-4, प्रत्याख्यानावरण-4 [क्रोध, मान, माया, लोभ]
देशघाति 13 संज्वलन-4 (क्रोध, मान, माया लोभ), हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुंवेद और नपुंसकवेद
आयु 4 नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु
नाम 93 पिंड-प्रकृति 14 (65) ४ गति -- नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव
५ जाति -- एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय
१५ शरीर / बंधन / संघात -- औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण
६ संस्थान -- समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, कुब्जक, वामन और हुंडक
३ अंगोपांग -- औदारिक, वैक्रियिक और आहारक
६ संहनन -- वज्रऋषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलक, असंप्राप्तसृपाटिका
८ स्पर्श -- कोमल, कठोर, गुरू, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष
५ रस -- तिक्त (चरपरा), कटुक, (कडुवा), कषाय (कषायला), आम्ल (खट्टा) और मधुर (मीठा)
२ गंध -- सुगंध और दुर्गन्ध
५ वर्ण -- नील, शुक्ल, कृष्ण, रक्त और पीत
४ आनुपूर्वी -- नरकगत्यानुपूर्वी, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी
२ विहायोगति -- प्रशस्त और अप्रशस्त
प्रत्येक-प्रकृति 8 उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, अगुरुलघु, तीर्थंकर, निर्माण
त्रस-दशक 10 त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति
स्थावर-दशक 10 स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और अयशकीर्ति
गोत्र 2 उच्च और नीच
अन्तराय 5 दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य

🏠
+ कर्म प्रकृतियों में समूह-वाचक शब्द -
कर्म प्रकृतियों में समूह-वाचक शब्द

विशेष :
प्रकृतियों में समूह के वाचक शब्द

त्रसबारस -- त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति, निर्माण और तीर्थंकर

त्रसदस -- त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक शरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशस्कीर्ति

त्रसचतुष्क -- त्रस, बादर, पर्याप्त और प्रत्येक शरीर

स्थावरदसक -- स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और अयशकीर्ति

स्थावरचतुष्क -- स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारण

अगुरुलघुषट्क -- अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप और उद्योत

अगुरुलघुचतुष्क -- अगुरुलघु, उपघात, परघात और उच्छ्वास

जातिचतुष्क -- एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय ये चार जाति

वैक्रियकअष्टक -- वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, देवायु, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी और नरकायु

वैक्रियकषष्क -- वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी

नरकचतुष्क -- नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियकशरीर और वैक्रियक अंगोपांग

देवचतुष्क -- देवगति, देवगत्यानुपूर्वी, वैक्रियकशरीर और वैक्रियक अंगोपांग

वर्णचतुष्क -- वर्ण, रस, गंध और स्पर्श

निद्रापंचक -- स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, निद्रा और प्रचला

स्त्यानत्रिक -- स्त्यानगृद्धि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला

तिर्यकचतुष्क -- तिर्यंचगति, तिर्यंचगत्यानुपूर्वी, औदारिकशरीर और औदारिकअंगोपांग

तिर्यक् एकादश -- तिर्यञ्च-द्विक, जाति-चतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, आतप, उद्योत, साधारण

नरचतुष्क -- मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, औदारिक शरीर और औदारिक अंगोपांग

त्रसत्रिक -- त्रस, बादर, पर्याप्त

त्रसत्रिक युगल -- त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त

सुभगचतुष्क -- सुभग, सुस्वर, आदेय और यशस्कीर्ति

दुर्भगचतुष्क -- दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और अयशस्कीर्ति

सुभगचतुष्क युगल -- सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दु:स्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति और अयशकीर्ति

🏠
+ प्रकृति बंध संबंधी नियम -
प्रकृति बंध संबंधी नियम

विशेष :

प्रकृति बंध संबंधी नियम
मूल प्रकृति बंध संबंधी नियम
ज्ञान-दर्शनावरण ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी दोनों युगपत् बँधती है
वेदनीय साता नरकगति के साथ न बँधे, शेष गति के साथ बँधे
असाता चारों गति सहित बँधे
साता, असाता प्रतिपक्षी, एक साथ न बँधे
मोहनीय पुरुष वेद, स्त्री वेद, हास्य, रति नरकगति सहित न बँधे
आयु तिर्यंचायु सप्तम पृथिवी में नियम से बँधे
मनुष्यायु तेज, वात, काय को न बँधे
देवायु भोग-भूमिज को देवायु ही बंधे
आयु सामान्य उस-उस गति सहित ही बँधे
नाम नरक / देवगति अपर्याप्त अवस्था में नहीं बंधती
अपर्याप्त देव / नारकी नहीं बांधते
जाति-चतुष्क नारकी नहीं बांधते
विकलत्रय जाति देव नहीं बांधते
औदारिक व औदारिकमिश्र शरीर देव-नरकगति सहित न बँधे
वैक्रियक शरीर / अंगोपांग देव-नरकगति सहित ही बँधे
तीर्थंकर नरक व तिर्यंचगति के साथ न बँधे, सम्यक्त्वसहित ही बँधे
आहारक द्विक संयमसहित ही बँधे
अंगोपांग सामान्य त्रस पर्याप्त व अपर्याप्त सहित ही बँधे
औदारिक अंगोपांग तिर्यंच-मनुष्यगति सहित ही बँधे
संहनन सामान्य त्रस पर्याप्त व अपर्याप्त प्रकृति सहित ही बँधे, देव / नरक गति सहित न बंधे
हुंडक संस्थान जाति-चतुष्क के साथ हुंडक संस्थान ही बंधे
आनुपूर्वी सामान्य उस-उस गति सहित ही बँधे, अन्य गति सहित नहीं
परघात, उच्छ्वास पर्याप्त सहित ही बँधे
आतप पृथिवीकाय बादर पर्याप्त सहित ही बँधे
उद्योत तेज, वात, साधारण वनस्पति, बादर, सूक्ष्म तथा अन्य सर्व सूक्ष्म नहीं बाँधते
विहायोगति-द्विक, स्वर-द्विक त्रस पर्याप्त सहित ही बँधे
स्थिर, शुभ, यशस्कीर्ति, आदेय, सुभग, सुस्वर, प्रशस्त विहायोगति नरकगति के साथ न बँधे
दुस्वर, अनादेय, दुर्भग, अप्रशस्त विहायोगति देवगति के साथ न बँधे
गोत्र उच्च गोत्र नरक-तिर्यंचगति के साथ न बँधे
नीच गोत्र देव-गति के साथ न बंधे

🏠
+ कर्मों में विभाजन -
कर्मों में विभाजन

विशेष :

कर्मों में विभाजन
सर्वघाति देशघाति
20 (केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, पाँच निद्रा, अनंतानुबंधी-4, अप्रत्याख्यानावरण-4, प्रत्याख्यानावरण-4, मिथ्यात्व) + सम्यग्मिथ्यात्व* 26 (ज्ञानावरण-4 [मति-श्रुत-अवधि-मन:पर्यय], दर्शनावरण-3 [चक्षु-अचक्षु-अवधि], सम्यक्त्वप्रकृति, संज्वलन-4, नोकषाय-9, अंतराय-5)
घातिया कर्मों में ही सर्व-घाति और देश-घाति के विकल्प हैं
प्रशस्त अप्रशस्त
42 (सातावेदनीय, 3 आयु [तिर्यंच-मनुष्य-देव], उच्चगोत्र, मनुष्य-द्विक, देव-द्विक, पंचेन्द्रिय जाति, 5-शरीर, 3-अंगोपांग, 4-वर्ण-चतुष्क, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रऋषभनाराच-संहनन, अगुरुलघु, प्रशस्त विहायोगति, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, पर्याप्तक, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर,आदेय, यशस्कीर्ति, त्रस, बादर, निर्माण, तीर्थंकर) 100 (घाति कर्म की सभी-४७, असातावेदनीय-१, नीच गोत्र-१, नरकायु-१ और नामकर्म-५० [नरक-द्विक-२, तिर्यंच-द्विक-२, जातिचतुष्क-४, अन्त के संस्थान-५, अन्त के संहनन-५, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क-२०, उपघात 1, अप्रशस्त विहायोगति-१, स्थावरचतुष्क-४, अशुभ-१, दुर्भग-चतुष्क-४, अस्थिर-१])
घातिया कर्मों की सभी प्रकृतियाँ अप्रशस्त हैं
ध्रुव अध्रुव
47 (5-ज्ञानावरण, 9-दर्शनावरण, 5-अंतराय, मिथ्यात्व, 16 कषाय, भय-जुगुप्सा, तेजस-कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क) 73 (2-वेदनीय, 7-नोकषाय, 4-आयु, 4-गति, 5-जाति, औदारिक-द्विक, वैक्रियिक-द्विक, आहारक-द्विक, 6-संहनन, 6-संस्थान, 4-आनुपूर्वी, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, 2-विहायोगति, त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, सुभग-दुर्भग, शुभ-अशुभ, सुस्वर-दुस्वर, आदेय-अनादेय, यश्स्कीर्ति-अयश्स्कीर्ति, तीर्थंकर, 2-गोत्र)
जीव-विपाकी पुद्गल-विपाकी क्षेत्र-विपाकी भव-विपाकी
78 (47-घातिया कर्म, 2-वेदनीय, 2-गोत्र, 4 गति, 5 जाति, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, सुस्वर-दु:स्वर, आदेय-अनादेय, यशकीर्ति-अयशकीर्ति, त्रस-स्थावर, 2-विहायोगति, सुभग-दुर्भग, उच्छवास, तीर्थंकर) 62 (शरीर-५, बन्धन-५, संघात-५, संस्थान-६, संहनन-६, आंगोपांग-३, वर्ण-५, गन्ध-२, रस-५, स्पर्श-८, अगुरुलघु, उपघात-परघात, आतप-उद्योत, निर्माण, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ) 4 (नरक गत्यानुपूर्वी, तिर्यक् गत्यानुपूर्वी, मनुष्य गत्यानुपूर्वी और देव गत्यानुपूर्वी) 4 (नरकायु, तिर्यंचायु, मनुष्यायु और देवायु)

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+ स्वोदय / परोदय बंधी प्रकृतियाँ -
स्वोदय / परोदय बंधी प्रकृतियाँ

विशेष :

स्वोदय / परोदय बंधी प्रकृतियाँ
परोदय से बंध स्वोदय से बंध उभयोदय बँधी
11 (तीर्थंकर, वैक्रियिक-अष्टक, आहारक-द्विक) 27 (मिथ्यात्व, ५ ज्ञानावरणी, ४ दर्शनावरणी, ५ अन्तराय, ध्रुवोदयी १२ [तेजस, कार्माण, वर्ण-चतुष्क, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, अगुरुलघु, निर्माण]) 82 (पाँच निद्रा, २ वेदनीय, २५ मोहनीय, तिर्यञ्च-त्रिक, मनुष्य-त्रिक, ५ जाति, औदारिक-द्विक, ६ संहनन, ६ संस्थान, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, विहायोगति-द्विक, त्रस-द्विक, बादर-द्विक, पर्याप्त-द्विक, प्रत्येक, साधारण, सुभग-द्विक, सुस्वर-द्विक, आदेय-द्विक, यशस्कीर्ति-द्विक, गोत्र-द्विक)


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+ सांतर / निरन्तर बंधी प्रकृतियाँ -
सांतर / निरन्तर बंधी प्रकृतियाँ

विशेष :

सांतर / निरन्तर बंधी प्रकृतियाँ
निरन्तर बंध सांतर बंध सांतर / निरन्तर बँधी
54 = ४७ ध्रुव-बंधी (ज्ञानावरणी ५, दर्शनावरणी ९, अंतराय ५, मिथ्यात्व, कषाय १६, भय, जुगुप्सा, शरीर २ [तेजस, कार्माण], अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क) + ७ (तीर्थंकर, आहारक-द्विक, आयु ४) 34 (नरक-द्विक, जाति-चतुष्क, ५ संहनन [वज्रवृषभनाराच बिना], ५ संस्थान [समचतुरस्र बिना], अप्रशस्त-विहायोगति, आतप, उद्योत, स्थावर-दशक, असाता-वेदनीय, स्त्री-वेद, नपुंसक-वेद, अरति, शोक) 32 (देव-द्विक, मनुष्य-द्विक, तिर्यञ्च-द्विक, औदारिक-द्विक, वेक्रियिक-द्विक, प्रशस्त-विहायोगति, वज्रवृषभनाराच संहनन, परघात, उच्छ्वास, समचतुरस्र-संस्थान, पंचेंद्रिय, त्रस-दशक, साता-वेदनीय, हास्य, रति, पुरुष-वेद, गोत्र-द्विक)
जिस प्रकृति का प्रत्यय नियम से सादि एवं अध्रुव तथा अंतर्मुहूर्त आदि काल तक अवस्थित रहने वाला है, वह निरंतर-बंधी प्रकृति है। जिस प्रकृति का कालक्षय से बंध-व्युच्छेद संभव है वह सांतरबंधी प्रकृति है।
अन्य गति का जहाँ बंध पाइये तहां तौ देवगति सप्रतिपक्षी है सो तहाँ कोई समय देव गति का बंध होई, कोइ समय अन्य गति का बंध होई तातै सांतरबंधी है। जहाँ अन्य गति का बंध नाहीं केवल देवगति का बंध है तहाँ देवगति निष्प्रतिपक्षी है सो तहाँ समय समय प्रति देवगति का बंध पाइए तातै निरंतर-बंधी है। तातै देवगति उभयबंधी है।
उभय बंधी प्रकृतियों में निरंतरता संबंधी उदाहरण
मूल प्रकृति निरंतर बंध के स्थान के उदाहरण
वेदनीय साता वेदनीय छठे गुणस्थान से ऊपर
मोहनीय पुरुष वेद पद्म शुक्ल लेश्यावाले तिर्यंच मनुष्य 1-2 गुणस्थान तक; 3 से 9 गुणस्थान के सवेद भाग तक
हास्य, रति 7 से 8 गुणस्थान के बीच
नाम तिर्यंचगति गति / गत्यानुपूर्वी तेज, वात, काय, सप्तम पृथ्वी का मिथ्यादृष्टि नारकी, तेज, वात काय से उत्पन्न हुए, निवृत्यपर्याप्त जीव या अन्य यथायोग्य मार्गणागत जीव
मनुष्य गति / गत्यानुपूर्वी सम्यगदृष्टि देव / नारकी, मिथ्यादृष्टि आनतादि देव, आनतादि से आकर उत्पन्न हुए यथायोग्य पर्याप्त व निवृत्यपर्याप्त आदि कोई जीव।
देव गति / गत्यानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर / अंगोपांग, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय भोग भूमिया, तथा सासादन से ऊपर कर्मभूमिज
पंचेंद्रिय जाति, परघात, उच्छ्वास, प्रत्येक, त्रस, बादर, पर्याप्त सनत्कुमारादि देव, नारकी, भोगभूमिज, सासादन और उससे आगे के जीव
औदारिक शरीर सम्यगदृष्टि देव / नारकी; मिथ्यादृष्टि सनत्कुमारादि देव, नारकी व वहाँ से आकर उत्पन्न हुए यथायोग्य पर्याप्त निवृत्यपर्याप्त जीव। तेज, वात काय।
औदारिक अंगोपांग सम्यगदृष्टि देव / नारकी; मिथ्यादृष्टि सनत्कुमारादि देव, नारकी व वहाँ से आकर उत्पन्न हुए यथायोग्य पर्याप्त निवृत्यपर्याप्त जीव।
वज्रऋषभनाराच संहनन सम्यगदृष्टि देव / नारकी
स्थिर, शुभ 7 से 8 गुणस्थान के बीच
यश:कीर्ति 7 से 10 गुणस्थान से के बीच
गोत्र उच्च गोत्र पद्म / शुक्ल लेश्यावाले तिर्यंच मनुष्य 1-2 गुणस्थान, सम्यकत्वी, भोग-भूमि
नीच गोत्र तेज, वात, काय, सप्तम पृथ्वी का मिथ्यादृष्टि नारकी, तेज, वात काय से उत्पन्न हुए, निवृत्यपर्याप्त जीव या अन्य यथायोग्य मार्गणागत जीव


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गुणस्थान



+ 14 गुणस्थान -
14 गुणस्थान

विशेष :
गुणस्थान : दर्शनमोहनीयादि कर्मों की उदय, उपशम, क्षय, क्षयोपशम आदि अवस्थाओं के होने पर, उत्पन्न होनेवाले जिन भावों से जीव लक्षित किये जाते हैं, उन्हें सर्वदर्शियों ने गुणस्थान इस संज्ञा से निर्देश किया है ।

  1. मिथ्यात्व,
  2. सासादन,
  3. मिश्र (सम्यग्मिथ्यात्व),
  4. अविरतसम्यक्त्व,
  5. देशविरत,
  6. प्रमत्तविरत,
  7. अप्रमत्तविरत,
  8. अपूर्वकरणसंयत,
  9. अनिवृत्तिकरणसंयत,
  10. सूक्ष्मसाम्परायसंयत,
  11. उपशान्तमोह,
  12. क्षीणमोह,
  13. सयोगिकेवलिजिन और
  14. अयोगिकेवली
ये क्रम से चौदह गुणस्थान होते हैं । तथा सिद्धों को गुणस्थानातीत जानना चाहिए ।

मिथ्यात्व : मिथ्यात्व कर्म को वेदन (अनुभव) करनेवाला जीव विपरीतश्रद्धानी होता है । उसे धर्म नहीं रुचता है, जैसे कि ज्वर-युक्त मनुष्य को मधुर (मीठा) रस भी नहीं रुचता है । जो सात तत्वों या नव पदार्थों का अश्रद्धान होता है, उसे मिथ्यात्व कहते हैं । वह तीन प्रकार का है -- संशयित, अभिगृहीत और अनभिगृहीत । मिथ्याष्टि जीव जिन-उपदिष्ट प्रवचन का श्रद्धान नहीं करता है । प्रत्युत अन्य से उपदिष्ट या अनुपदिष्ट असद्भाव (पदार्थ के अयथार्थ स्वरूप) का श्रद्धान करता है ।

सासादन : सम्यक्त्वरूप रत्न-पर्वत के शिखर से च्युत, मिथ्यात्वरूप भूमि के समभिमुख और सम्यक्त्व के नाश को प्राप्त जो जीव है, उसे सासादन नामवाला जानना चाहिए ।

सम्यग्मिथ्यात्व : जिस प्रकार व्यामिश्र (अच्छी तरह से मिला हुआ) दही और गुड़ पृथक्-पृथक् नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार से सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के मिश्रित भाव को सम्यग्मिथ्यात्व जानना चाहिए । यह सम्यक्त्व और मिथ्यात्व का सम्मिश्रण उन दोनों के स्वतंत्र आस्वाद से एक भिन्न-जातीय रूप को धारण कर लेता है, अतएव उसको अपेक्षा से मिश्र-भाव को एक स्वतन्त्र गुणस्थान माना गया है ।

अविरत-सम्यक्त्व : जो पाँचों इन्द्रियों के विषयों से विरत नहीं है और न त्रस तथा स्थावर जीवों के घात से ही विरक्त है, किन्तु केवल जिनोक्त तत्त्व का श्रद्धान करता है, वह चतुर्थ गुणस्थानवर्ती अविरतसम्यग्दृष्टि है । सम्यग्दृष्टि जीव जिन-उपदिष्ट प्रवचन का तो श्रद्धान करता ही है, किन्तु कदाचित् ( सद्भाव को) नहीं जानता हुआ गुरु के नियोग (उपदेश या आदेश) से असद्भाव का भी श्रद्धान कर लेता है ।

देशविरत : जो जीव एकमात्र जिन-भगवान् में ही मति (श्रद्धा) को रखता है, तथा त्रस-जीवों के घात से विरत है और इन्द्रिय-विषयों से एवं स्थावर जीवों के घात से विरक्त नहीं है, वह जीव प्रति-समय विरताविरत है (अपने गुणस्थान के काल के भीतर हर-क्षण विरत और अविरत इन दोनों संज्ञाओं को एक साथ एक समय में धारण करता है)

प्रमत्तसंयत : जो पुरुष सकल मूलगुणों से और शील (उत्तरगुणों) से सहित है, अतएव महाव्रती है; तथा व्यक्त और अव्यक्त प्रमाद में रहता है, अतएव चित्रल-आचरणी है; वह प्रमत्तसंयत कहलाता है। चार विकथा (स्त्रीकथा, भोजनकथा, देशकथा, अवनिपालकथा) चार कषाय ( क्रोध, मान, माया, लोभ) पाँच इन्द्रिय ( स्पर्शन, रसना, नासिका, नयन, श्रवण ) एक निद्रा और एक प्रणय (प्रेम या स्नेह-सम्बन्ध ) ये पन्द्रह (4+4+5+1+1 = 15 ) प्रमाद होते हैं ।

अप्रमत्तसंयत : जो व्यक्त और अव्यक्तरूप समस्त प्रकार के प्रमाद से रहित है, महाव्रत, मूलगुण और और उत्तरगुणों की माला से मंडित है, स्व और पर के ज्ञान से युक्त है, और कषायों का अनुपशमक या अक्षपक होते हुए भी ध्यान में निरन्तर लीन रहता है, वह अप्रमत्तसंयत कहलाता है ।

अपूर्वकरण : इस गुणस्थान में, भिन्न समयवर्ती जीवों में करण अर्थात् परिणामों की अपेक्षा कभी भी सादृश्य नहीं पाया जाता। किन्तु एक समयवर्ती जीवों में सादृश्य और वैसादृश्य दोनों ही पाये जाते हैं । इस गुणस्थान में यतः विभिन्न-समय-स्थित जीवों के पूर्व में अप्राप्त अपूर्व परिणाम होते हैं; अतः उन्हें अपूर्वकरण कहते हैं। इस प्रकार के अपूर्वकरण परिणामों में स्थित जीव मोहकर्म के क्षपण या उपशमन करने में उद्यत होते हैं, ऐसा गलित-तिमिर अर्थात् अज्ञानरूप अन्धकार से रहित वीतरागी जिनों ने कहा है ।

अनिवृत्तिकरण : इस गुणस्थान के अन्तर्मुहूर्त-प्रमित काल में से विवक्षित किसी एक समय में अवस्थित जीव यतः संस्थान (शरीर का आकार) आदि की अपेक्षा जिसप्रकार निवृत्ति या भेद को प्राप्त होते हैं, उस प्रकार परिणामों की अपेक्षा परस्पर निवृत्ति को प्राप्त नहीं होते हैं, अतएव वे अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं। अनिवृत्तिकरण गणस्थानवर्ती जीवों के प्रतिसमय एक ही परिणाम होता है। ऐसे ये जीव अपने अति विमल ध्यानरूप अग्नि की शिखाओं से कर्मरूप वन को सर्वथा जला डालते हैं ।

सूक्ष्मसाम्पराय : जिस प्रकार कुसूमली रंग भीतर से सूक्ष्म रक्त (अत्यन्त कम लालिमा) वाला होता है, उसी प्रकार सूक्ष्म राग-सहित जीव को सुक्ष्मकषाय या सूक्ष्मसाम्पराय जानना चाहिए। लोभाणु (सूक्ष्म लोभ) में स्थित सूक्ष्मसाम्परायसंयत पूर्वस्पर्धक और अपूर्वस्पर्धक के अनुभाग से अनन्तगुणितहीन अनुभागवाला होता है ।

उपशान्तकषाय : कतकफल (निर्मली) से सहित जल, अथवा शरद् काल में सरोवर का पानी जिस प्रकार निर्मल होता है, उसीप्रकार जिसका सम्पूर्ण मोहकर्म सर्वथा उपशान्त हो गया है, ऐसा उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्ती जीव अत्यन्त निर्मल परिणामवाला होता है ।

क्षीणकषाय : मोहकर्म के निःशेष क्षीण हो जाने से जिसका चित्त स्फटिक के विमल भाजन में रक्खे हुए सलिल के समान स्वच्छ हो गया है, ऐसे निर्ग्रन्थ साधु को वीतरागियों ने क्षीणकषायसंयत कहा है । जिसप्रकार निर्मली, फिटकरी आदि से स्वच्छ किया हुआ जल शुद्ध-स्वच्छ स्फटिकमणि के भाजन में नितरा लेने पर सर्वथा निर्मल एवं शुद्ध होता है, उसी प्रकार क्षीणकषायसंयत को भी निर्मल, स्वच्छ एवं शुद्ध परिणामवाला जानना चाहिये ।

सयोगिकेवली : केवलज्ञानरूप दिवाकर (सूर्य) की किरणों के समूह से जिनका अज्ञानान्धकार सर्वथा नष्ट हो गया है, जिन्होंने नौ केवल-लब्धियों के उद्गम से 'परमात्मा' संज्ञा प्राप्त की है और जो पर-सहाय से रहित केवलज्ञान-दर्शन से सहित हैं, ऐसे योग-युक्त केवली भगवान् को अनादिनिधन आर्ष में सयोगिजिन कहा है। केवली भगवान् के यतः राग-द्वेष नहीं होता, इस कारण से उनके नवीन कर्म का बन्ध भी नहीं होता है। जिस प्रकार सूखी भित्ती पर आकर के लगी हुई बालुका तत्क्षण झड़ जाती है, इसीप्रकार योग के सद्भाव से आया हुआ कर्म भी कषाय के न होने से तत्क्षण झड़ जाता है ।

अयोगिकेवली : जो जीव शैलेशी अवस्था (शैल / पर्वत के समान स्थिर परिणाम; अठारह हजार भेदवाले शील के स्वामित्वरूप शीलेशत्व) को प्राप्त हुए हैं; जिनका निःशेष आस्रव सर्वथा रुक गया है, जो कर्म-रज से विप्रमुक्त हैं और योग से रहित हो चुके हैं, ऐसे केवली भगवान् को अयोगिकेवली कहते है ।

गुणस्थानातीत सिद्ध : जो अष्टविध कर्मों से रहित हैं, अत्यन्त शान्तिमय हैं, निरंजन हैं, नित्य हैं, क्षायिक सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से युक्त हैं, कृतकृत्य हैं और लोक के अग्रभाग पर निवास करते हैं, वे सिद्ध कहलाते हैं ।

पंचसंग्रह -- गाथा 3 से 31 तक

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+ गुणस्थानों में विभाजन -
गुणस्थानों में विभाजन

विशेष :

गुणस्थानों के विभिन्न विभाजन
14 अयोगकेवली योग की अपेक्षा विरत केवल ज्ञानी सर्वज्ञ परमगुरु अप्रमत्त वीतरागी अनन्त सुखी परमात्मा शुद्धोपयोग धार्मिक यथाख्यात चारित्र
13 सयोगकेवली
12 क्षीणमोह चारित्र मोहनीय की अपेक्षा ज्ञानी छद्मस्थ अप्रमत्त गुरु क्षपक श्रेणी अतीन्द्रिय सुखी अंतरात्मा
11 उपशान्तमोह उपशम श्रेणी
10सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक श्रेणी मिश्र मिश्र सूक्ष्म-साम्परायिक चारित्र
9 अनिवृतिकरण सामायिक छेदोपस्थापना परिहार-विशुद्धि चारित्र
8 अपूर्वकरण
7 अप्रमत्तसंयत प्रमत्ताप्रमत्त गुरु
6 प्रमत्तसंयत प्रमत्त शुभोपयोग
5 देशविरत विरताविरत संयमासंयम
4 अविरत दर्शन मोहनीय की अपेक्षा अविरत असंयम
3 मिश्र मिश्र रागी दुखी बहिरात्मा अशुभोपयोग अधार्मिक
2 सासादन अज्ञानी
1 मिथ्यात्व


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+ गुणस्थानों में गमनागमन -
गुणस्थानों में गमनागमन

विशेष :

गुणस्थानों में गमनागमन
कहाँ से गुणस्थान कहाँ तक
13→ 14 अयोगकेवली →सिद्ध भगवान
12→ 13 सयोगकेवली →14
10→ 12 क्षीणमोह →13
10→ 11 उपशान्तमोह →10, 4*
9,11→ 10 सूक्ष्मसाम्पराय →9, 11, 12, 4*
8, 10→ 9 अनिवृतिकरण →10, 8, 4*
9, 7→ 8 अपूर्वकरण →9, 7, 4*
8, 6, 5, 4, 1→ 7 अप्रमत्तसंयत →8, 6, 4*
7→ 6 प्रमत्तसंयत →7, 5, 4, 3, 2+, 1
6, 4, 1→ 5 देशविरत →7, 4, 3, 2+, 1
11*, 10*, 9*, 8*, 7*, 6, 5, 3, 1→ 4 अविरत →7, 5, 3, 2+, 1
6, 5, 4, 1→ 3 मिश्र →1, 4
6+, 5+, 4+ 2 सासादन →1
6, 5, 4, 3, 2→ 1 मिथ्यात्व →3!, 4, 5, 7
*मरण की अपेक्षा
!सादि-मिथ्यादृष्टि
+प्रथामोपशम / द्वितीयोपशम सम्यक्त्वी


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+ गुणस्थानों में समुद्घात -
गुणस्थानों में समुद्घात

विशेष :

गुणस्थानों में समुद्घात
गुणस्थान वेदना कषाय मारणान्तिक वैक्रियक तैजस आहारक केवली
मिथ्यादृष्टि हाँ हाँ हाँ हाँ नहीं नहीं नहीं
सासादन
मिश्र नहीं
असंयत हाँ
संयतासंयत
प्रमत्त हाँ हाँ
अप्रमत्त नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं
अपूर्व.क.उप.
अपूर्व.क.क्षपक नहीं
९-११ उप.
९-११ क्षपक
क्षीणकषाय
सयोगी हाँ
अयोगी नहीं


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+ गुणस्थानों में कर्म के उदय / उदीरणा -
गुणस्थानों में कर्म के उदय / उदीरणा

विशेष :

सामान्य से गुणस्थानों में कर्मों के उदय उदीरणा
उदय अनुदय व्युच्छिति व्युच्छिति
14 अयोगकेवली 12 110 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर) 0
13 सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 80 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर) 39 (३०+१२ - ३ [वेदनीय २, मनुष्य आयु])
12 क्षीणमोह 57 65 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
11 उपशान्तमोह 59 63 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
10 सूक्ष्मसाम्पराय 60 62 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
9 अनिवृतिकरण 66 56 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३-[पुरुष, स्त्री, नपुंसक])
8 अपूर्वकरण 72 50 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
7 अप्रमत्तसंयत 76 46 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
6 प्रमत्तसंयत 81 (+आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग) 41 5 (निद्रा ३ [निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धी], आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग) 8 (५+वेदनीय २,मनुष्यायु)
5 देशविरत 87 35 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
4 अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 18 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [नरक, देव] , आयु २ [नरक, देव], आनुपूर्व्य ४ , वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
3 मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व)
22 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
2 सासादन 111 11 (-नरक आनुपूर्व्य) 9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जाति ४ [१,२,३,4 इन्द्रिय])
1 मिथ्यात्व 117 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, साधारण)
*उदय योग्य कुल प्रकृतियाँ = १२२



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+ गुणस्थानों में कर्म के बन्ध -
गुणस्थानों में कर्म के बन्ध

विशेष :

सामान्य से गुणस्थानों में बंध* / अबंध / व्युच्छिति
बंध अबंध व्युच्छिति
14 अयोगकेवली 0 120 0
13 सयोगकेवली 1 119 1 (साता-वेदनीय)
12 क्षीणमोह 1 119 0
11 उपशान्तमोह 1 119 0
10 सूक्ष्मसाम्पराय 17 103 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल], अंतराय ५, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र)
9 अनिवृतिकरण 22 98 5
(संज्ज्वलन ४, पुरुष-वेद)
8 अपूर्वकरण 58 62 36
(निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, शरीर ४ [तेजस, कार्माण, आहारक, वैक्रियिक], अंगोपांग २ [आहारक,वैक्रियिक], समचतुस्र संस्थान, देव गति, देव गत्यानुपूर्व्य, स्पर्श,रस,गंध,वर्ण, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, प्रत्येक, शुभ, सुभग, सुःस्वर, आदेय)
7 अप्रमत्तसंयत 59 (+आहारक द्विक) 61 1 (देव आयु)
6 प्रमत्तसंयत 63 57 6 (असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अशुभ, अस्थिर, अयशःकीर्ति)
5 देशविरत 67 53 4 (प्रत्याख्यानावरण ४)
4 अविरत 77 (+तीर्थंकर, देवायु, मनुष्यआयु) 43 10 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्य ३ [आयु, गति, आनुपूर्व्य], औदारिक शरीर-अंगोपांग, वज्रवृषभनाराच संहनन)
3 मिश्र 74 46 (-देव आयु, मनुष्य आयु) 0
2 सासादन 101 19 25 (अनंतानुबंधी ४, स्त्री-वेद, निद्रा ३ [निद्रा-निद्रा, प्रचला-प्रचला, स्त्यानगृद्धि], संहनन ४ [वज्र-नाराच, नाराच, अर्द्ध नाराच, कीलक], संस्थान ४ [स्वाति, न्याग्रोधपरिमन्डल, कुब्जक, वामन], तिर्यन्च ३ [आयु, आनुपूर्व्य, गति], नीच-गोत्र, अप्रशस्त-विहायोगति, उद्योत, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय)
1 मिथ्यात्व 117 3
(आहारक द्विक, तीर्थंकर)
16
(मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप, सूक्ष्म-त्रय, विकलेन्द्रिय, नरक-द्विक, नरकायु)
*बंध योग्य प्रकृतियाँ = 120


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+ गुणस्थानों में कर्म की सत्ता -
गुणस्थानों में कर्म की सत्ता

विशेष :

गुणस्थानों में सत्त्व
सत्त्व असत्त्व व्युच्छित्ति
अयोगकेवली चरम समय 13 135 13 (१ वेदनीय, मनुष्यत्रिक, पंचेन्द्रिय, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, उच्चगोत्र)
द्विचरम समय 85 63 72 (५ शरीर, ५ बन्धन, ५ संघात, ६ संस्थान, ६ संहनन, ३ अंगोपांग, ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस, ८ स्पर्श, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, स्वरद्वय, देवद्विक, विहायोगतिद्वय, दुर्भग, निर्माण, अयश, अनादेय, प्रत्येक, अपर्याप्त, अगुरुलघुचतुष्क, १ वेदनीय, नीचगोत्र)
सयोगकेवली 85 63 0
क्षपक श्रेणी क्षीणमोह चरम समय 99 49 14 (५ ज्ञानावरणी, ४ दर्शनावरणी, ५ अन्तराय)
द्विचरम समय 101 47 2 (निद्रा, प्रचला)
सूक्ष्मसाम्पराय 102 46 1 (संज्वलन लोभ)
अनिवृतिकरण भाग 9 103 45 1 (संज्वलन माया)
भाग 8 104 44 1 (संज्वलन मान)
भाग 7 105 43 1 (संज्वलन क्रोध)
भाग 6 106 42 1 (पुरुष-वेद)
भाग 5 112 36 6 (६ नोकषाय)
भाग 4 113 35 1 (स्त्री वेद)
भाग 3 114 34 1 (नपुंसक वेद)
भाग 2 122 26 8 (प्रत्याख्यान ४, अप्रत्याख्यान ४)
भाग 1 138 10 16 (नरकद्विक, तिर्यंच-द्विक, जाति-चतुष्क, स्त्यानत्रिक, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर)
अपूर्वकरण 138 10 0
चरम सम्यक्त्वी क्षायिक सम्यक्त्वी 4 से 7 139 2 2 (नरकायु, तिर्यंचायु)
सत्व-योग्य प्रकृति 141 = 148 - 7 (दर्शनमोह ३, अनन्तानुबन्धी ४)
उपशम श्रेणी 8-11 146 2 0
प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत 146 2 0
देशविरत 147 1 1 (तिर्यंचायु)
अविरत 148 0 1 (नरकायु)
मिश्र 147 1 (तीर्थंकर) 0
सासादन 145 3 (तीर्थंकर,आहारक-द्विक) 0
मिथ्यात्व 148 0 0

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+ गुणस्थानों का काल और उनमें जीवों की संख्या -
गुणस्थानों का काल और उनमें जीवों की संख्या

विशेष :

काल जीवों की संख्या
(उत्कृष्ट)

मुक्त होने के लिए अनिवार्य गुणस्थान

जीव सदाकाल पाए जाते हैं

जघन्य उत्कृष्ट मनुष्यों की चारों गतियां
1 मिथ्यात्व अन्तर्मुहूर्त अनादि अनन्त
अनादि सान्त
सादि सान्त - कुछ कम अर्ध पुद्गल परावर्तन
पर्याप्त - २९ अंक प्रमाण
अपर्याप्त - असंख्यात
अनंतानन्त
2 सासादन १ समय ६ आवली ५२ करोड़ असंख्यात
3 मिश्र अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त (ज. से संख्यात गुणा बड़ा) १०४ करोड़ असंख्यात
4 अविरत अन्तर्मुहूर्त 1 समय कम 33 सागर + 9 अन्तर्मुहूर्त कम 1 पूर्व कोटि ७०० करोड़ असंख्यात
5 देशविरत अन्तर्मुहूर्त 3 अन्तर्मुहूर्त कम 1 पूर्वकोटि १३ करोड़ असंख्यात
6 प्रमत्तसंयत १ समय - मरण अपेक्षा
अंतर्मुहूर्त - सामान्य से
अन्तर्मुहूर्त ५,९३,९८,२०६
7 अप्रमत्तसंयत अन्तर्मुहूर्त (६ से आधा) २,९६,९९,१०३
8 अपूर्वकरण यथायोग्य अन्तर्मुहूर्त २९९+५९८=८९७
9 अनिवृतिकरण
10 सूक्ष्मसाम्पराय
11 उपशान्तमोह अन्तर्मुहूर्त (२ क्षुद्र भव ~ १/१२ सेकण्ड) २९९
12 क्षीणमोह अन्तर्मुहूर्त (४ क्षुद्र भव ~ १/६ सेकण्ड) ५९८
13 सयोगकेवली अन्तर्मुहूर्त आठ वर्ष और अन्तर्मुहूर्त कम १ कोटि पूर्व ८,९८,५०२
14 अयोगकेवली अन्तर्मुहूर्त (५ ह्रस्व अक्षरों अ,इ,उ,ऋ,लृ का उच्चारण काल) ५९८


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+ गुणस्थानों में संभव योग -
गुणस्थानों में संभव योग

विशेष :

गुणस्थानों में संभव योग
गुणस्थान सम्भव योग असम्भव योग
मिथ्यादृष्टि 13 2 (आहारक, आहारक-मिश्र)
सासादन
मिश्र 10 5 (आहारक, आहारक-मिश्र, औदारिक-मिश्र, वैक्रियक-मिश्र, कार्मण)
असंयत 13 2 (आहारक व आहारक-मिश्र)
देशविरत 9 6 (औदारिक-मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक-मिश्र, आहारक,आहारक-मिश्र, कार्मण)
प्रमत्त संयत 11 4 (औदारिक-मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक-मिश्र, कार्मण)
अप्रमत्त संयत 9 6 (औदारिक-मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक-मिश्र, आहारक, आहारक-मिश्र, कार्मण)
अपूर्वकरण
अनिवृत्तिकरण
सूक्ष्म साम्पराय
उपशान्त मोह
क्षीणकषाय
सयोग केवली 7 8 (वैक्रियक, वैक्रियक-मिश्र, आहारक, आहारक-मिश्र, असत्य व उभय [मन, वचन])
कुल योग = 15 (४ मन और ४ वचन [सत्य, असत्य, उभय, अनुभय], ७ काय योग [औदारिक, औदारिक-मिश्र, वैक्रियक, वैक्रियक-मिश्र, आहारक,आहारक-मिश्र, कार्मण])

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+ गुणस्थानों में कर्म की उदय / बंध व्युच्छिति -
गुणस्थानों में कर्म की उदय / बंध व्युच्छिति

विशेष :

गुणस्थानों में व्युच्छिति
व्युच्छिति प्रकृतियाँ संख्या बंध उदय
उदय-व्युच्छिति के पश्चात बंध-व्युच्छिति
8 देव-चतुष्क 8 4
आहारक-द्विक 8 6
अयशस्कीर्ति 6 4
देवायु 7 4
युगपत बंध-उदय व्युच्छिति
31 मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण 1 1
स्थावर, जाति-चतुष्क 1* 1*
अनंतानुबंधी ४ 2 2
मनुष्यानुपूर्वी, अप्रत्याख्यानावरणी ४ 4 4
प्रत्याख्यानावरणी ४ 5 5
भय, जुगुप्सा, हास्य, रति 8 8
संज्वलन ३ [क्रोध, मान, माया], पुरुष-वेद 9 9
*महाधवल के अनुसार; धवल के अनुसार सासादन में उदय व्युच्छिती
बंध-व्युच्छिति के पश्चात उदय-व्युच्छिति
81 नरक-त्रिक 1 4
असंप्राप्तासृपाटिका संहनन 7
नपुंसक-वेद 9
हुंडक-संस्थान 13
तिर्यञ्चानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय 2 4
तिर्यञ्च-गति, तिर्यञ्चायु, उद्योत, नीच-गोत्र 5
स्त्यान-त्रिक 6
अर्ध-नाराच, कीलित-संहनन 7
स्त्री-वेद 9
वज्रनाराच, नाराच संहनन 11
4 संस्थान [न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, कुब्जक, वामन], दुस्वर, अप्रशस्त-विहायोगति 13
औदारिक-द्विक, वज्रऋषभनाराच संहनन 4 13
मनुष्य -गति, मनुष्यायु 4 14
अरति, शोक 6 8
अस्थिर, अशुभ 13
असातावेदनीय 14
निद्रा, प्रचला 8 12*
2 शरीर [तेजस, कार्माण], समचतुरस्र-संस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क , प्रशस्त-विहायोगति, प्रत्येक, स्थिर, शुभ, सुस्वर, निर्माण 13
पंचेंद्रिय-जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, तीर्थंकर 14
संज्वलन-लोभ 9 10
5 ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण, 5 अंतराय 10 12
यशस्कीर्ति, उच्च-गोत्र 14
साता-वेदनीय 13
*उपांत्य समय

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+ गुणस्थान में मूल-प्रकृतियों में स्थान-समुत्कीर्तन -
गुणस्थान में मूल-प्रकृतियों में स्थान-समुत्कीर्तन

विशेष :

गुणस्थान में मूल-प्रकृतियों में स्थान-समुत्कीर्तन
गुणस्थान बंध-स्थान उदय-स्थान *उदीरणा सत्त्व
मिथ्यादृष्टि 7 / 8 8 8 8
सासादन
मिश्र 7
असंयत 7 / 8
संयतासंयत
प्रमत्त
अप्रमत्त 6 (8 - आयु,वेदनीय)
अपूर्वकरण 7 (8 - आयु)
अनिवृत्तिकरण
सूक्ष्म साम्पराय 6 (7 - मोहनीय)
उपशान्त मोह 1 (वेदनीय) 7 (8 - मोहनीय) 5 (6 - मोहनीय)
क्षीणकषाय 7 (8 - मोहनीय)
सयोग केवली 4 (अघातिया) 2 (नाम,गोत्र) 4 (अघातिया)
अयोग केवली 0 0
*उदयावलि में उदीरणा का अभाव है

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+ गुणस्थानों में करण संबंधी विशेष विचार -
गुणस्थानों में करण संबंधी विशेष विचार

विशेष :

गुणस्थानों में करण संबंधी विशेष विचार
आयु वेदनीय मोहनीय ज्ञानावरणी,दर्शनावरणी,अंतराय नाम, गोत्र
नरक तिर्यञ्च मनुष्य देव साता असाता
बंध 1 1-2 1 से 4 1 से 6 1 से 13 1 से 6 1 से 9* 1 से 10 1 से 10
उदीरणा 1 से 4 1से 5 1 से 6 1 से 4 1 से 6 1 से 6 1 से 10-(आवली-1 समय) 1 से 12-(आवली-1 समय) 1 से 13
संक्रम - - - - 1 से 6 1 से 10 1 से 9* 1 से 10 1 से 10
उत्कर्षण 1 1-2 1 से 4 1 से 6 1 से 10 1 से 6 1 से 9* 1 से 10 1 से 10
अपकर्षण 1 से 4 1से 5 1 से 13 1 से 11 1 से 13 1 से 13 1 से 10-(आवली-1 समय) 12-(आवली-1 समय) 1 से 13
अप्रशस्त उपशम 1 से 4 1से 5 1 से 8
निधत्ती 1 से 4 1से 5 1 से 8
निकाचना 1 से 4 1से 5 1 से 8
उदय 1 से 4 1से 5 1 से 14 1 से 4 1 से 14 1 से 14 1 से 10 1 से 12 1 से 14
सत्त्व 1 से 4 1से 5 1 से 14 1 से 11 1 से 14 1 से 14 1 से 11 1 से 12 1 से 14
कषाय-पाहुड़ (14) -- प्रस्तावना

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+ गुणस्थानों में परीषह -
गुणस्थानों में परीषह

विशेष :

गुणस्थानों में परीषह
परीषह कारण गुणस्थान
क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण , दंशमशक, चर्या, श्य्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल वेदनीय 1 से 14
अलाभ अंतराय 1 से 12
प्रज्ञा, अज्ञान ज्ञानावरण 1 से 12
नाग्न्य, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना और सत्कारपुरस्कार चारित्रमोह 1 से 9
अदर्शन दर्शन-मोहनीय 1 से 9
एक जीव के एक समय में एक-साथ 19 परीषह हो सकते हैं । (शीत/उष्ण और शैय्या/निशद्या/चर्या में से एक-एक)
तत्त्वार्थ-सूत्र 9.9 से 9.17

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गति-आगति नियम



+ गति-आगति -
गति-आगति

विशेष :

जीवों में गति
देव मनुष्य तिर्यंच नरक
भवनवासी व्यंतर ज्योतिष १-२ स्वर्ग ३-१२ स्वर्ग १३-१६ स्वर्ग नव ग्रैवेयक अनुदिश/अनुत्तर भोगभूमि कर्मभूमि भोगभूमि एकेंद्रिय विकलत्रय पंचेन्द्रिय पहला २-६
देव भवनत्रिक, देवियाँ, १-२ स्वर्ग नहीं हाँ नहीं हाँ+ नहीं हाँ नहीं
३-१२ स्वर्ग नहीं
१३वें स्वर्ग से सर्वार्थ-सिद्धि नहीं
मनुष्य मि. पर्याप्तक कर्मभूमि हाँ हाँ^ नहीं हाँ
मि. अपर्याप्तक नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
मि. भोगभूमि हाँ नहीं
सा. कर्मभूमि हाँ नहीं हाँ नहीं
अ.स. कर्म-भूमि नहीं हाँ हाँ^ नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
संयातासंयत नहीं
संयत हाँ नहीं
पुलाक मुनि हाँ नहीं
बकुश, प्रतिसेवना मुनि हाँ नहीं
कषायकुशील, निर्ग्रन्थ मुनि हाँ नहीं
अ.स. भोगभूमि हाँ नहीं
तिर्यंच मि. संज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रिय कर्मभूमि हाँ नहीं हाँ
असंज्ञी पर्याप्तक पंचेन्द्रिय कर्मभूमि हाँ नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
पंचेन्द्रिय अपर्याप्त, विकलेन्द्रिय, जल, पृथ्वी, वनस्पति नहीं हाँ नहीं
अग्नि / वायुकायिक नहीं
मि. भोगभूमि हाँ नहीं
नित्य / इतर निगोद नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
सा. कर्मभूमि हाँ नहीं हाँ
अ.स. कर्मभूमि नहीं हाँ हाँ* नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
संयातासंयत कर्मभूमि नहीं
अ.स. भोगभूमि हाँ नहीं
नरक १-६ नरक नहीं हाँ नहीं हाँ नहीं
७ नरक नहीं
मि. = मिथ्यादृष्टि सा. = सासादन अ.स. = असंयत सम्यग्दृष्टि * = २ मत हैं ^ = १६ स्वर्ग से ऊपर बाह्य में निर्ग्रन्थ वेष + = देव अग्नि और वायु में पैदा नहीं होते

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+ जीव कहाँ तक जा सकता है -
जीव कहाँ तक जा सकता है

विशेष :

कहाँ से अगले भव में कहाँ तक जा सकते हैं
असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच पहला नरक
सरी सर्प (पेट के बल चलने वाले) दूसरा नरक
गिद्ध पक्षी तीसरा नरक
सर्प, अजगर आदि चौथा नरक
सिंह, क्रूर तिर्यंच पांचवां नरक
स्त्री छठा नरक
मनुष्य, मच्छ सातवां नरक
वैमानिक देव, १-३ नरक तीर्थंकर
चौथा नरक मोक्ष, तीर्थंकर नहीं
पांचवां नरक महाव्रती, मोक्ष नहीं
छठा नरक देशव्रत, महाव्रत नहीं
सभी देव, देवियाँ मोक्ष
१ स्वर्ग से नौ ग्रैवेयिक नारायण, प्रतिनारायण
परिव्राजक पांचवें स्वर्ग
आजीविक सम्प्रदाय के साधु १२वें स्वर्ग
श्रावक १६वें स्वर्ग
निर्ग्रन्थ द्रव्य-लिंगी नौ ग्रैवेयिक
पंचम काल का मनुष्य १६वें स्वर्ग तक


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+ जीव नियमत: कहाँ जाते हैं -
जीव नियमत: कहाँ जाते हैं

विशेष :

कहाँ से कहाँ जाते हैं
चक्रवर्ती मोक्ष, स्वर्ग, नरक
बलभद्र मोक्ष, स्वर्ग
नारायण, प्रतिनारायण नरक
सातवां नरक क्रूर पंचेन्द्रिय संज्ञी गर्भज तिर्यंच
कुलकर वैमानिक स्वर्ग
कामदेव स्वर्ग, मोक्ष
तीर्थंकर के पिता स्वर्ग, मोक्ष
तीर्थंकर की माता स्वर्ग
नारद, रूद्र नरक


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+ आयु -
आयु

विशेष :

देवों में आयु आदि जानकारी
देवदेवियों की आयु
ज.आयुउ.आयुस्वाच्छोश्वासआहारअवगाहनालेश्याप्रविचारअल्प-बहुत्वसंख्याज.आयुउ.आयु
अच्युत २० सागर २२ सागर २२ पक्ष २२,००० वर्ष ३ हाथ शुक्ल मन ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग १ पल्य ५५ पल्य
आरण ४८ पल्य
प्राणत१८ सागर २० सागर २० पक्ष २०,००० वर्ष ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग ४१ पल्य
आनत ३४ पल्य
सहस्रार१६ सागर १८ सागर १८ पक्ष १८,००० वर्ष ३ १/२ हाथ पद्म,शुक्ल शब्द ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 23(जगतश्रेणी) २७ पल्य
शतार २५ पल्य
महाशुक्र१४ सागर १६ सागर १६ पक्ष १६,००० वर्ष ४ हाथ ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 25(जगतश्रेणी) २३ पल्य
शुक्र २१ पल्य
कापिष्ठ१० सागर १४ सागर १४ पक्ष १४,००० वर्ष ५ हाथ पद्म रूप ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 27(जगतश्रेणी) १९ पल्य
लान्तव १७ पल्य
ब्रह्मोत्तर७ सागर १० सागर १० पक्ष १०,००० वर्ष ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 29(जगतश्रेणी) १५ पल्य
ब्रह्म १३ पल्य
माहेन्द्र २ सागर ७ सागर ७ पक्ष ७००० वर्ष ६ हाथ पीत,पद्म स्पर्श ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 211(जगतश्रेणी) ९ पल्य
सानत्कुमार ११ पल्य
ईशान १ पल्य २ सागर २ पक्ष २००० वर्ष ७ हाथ पीत काय ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी x 23(घनांगुल) ७ पल्य
सौधर्म ५ पल्य
अल्प-बहुत्व आधार: श्री कार्तिकेयअनुप्रेक्षा, गाथा: 158, श्री गोम्मटसार, गाथा : 161,162
देवियों की आयु पाँच से लेकर दो-दो मिलाते हुए सत्ताईस पल्य तक करें । पुनः उससे आगे सात-सात बढ़ाते हुए आरण-अच्युत पर्यन्त करना चाहिए ॥मू.चा.११२२॥



नरकों में आयु आदि जानकारी
नामभूमि का नामआयुअल्प-बहुत्वसंख्यालेश्यापुन: पुनर्भव धारण की सीमा
जघन्यउत्कृष्टकितनी बारउत्‍कृष्‍ट अन्‍तर
पहलाधम्मारत्नप्रभादस हजार वर्षएक सागरनीचे से असं. गुणा(जगतश्रेणी x 22(घनांगुल) - शेष नारकीकापोत8 बार24 मुहर्त
दूसरावंशाशर्कराप्रभाएक सागरतीन सागरनीचे से असं. गुणाजगतश्रेणी / 212(जगतश्रेणी)मध्यम कापोत7 बार7 दिन
तीसरामेघाबालुकाप्रभातीन सागरसात सागरनीचे से असं. गुणाजगतश्रेणी / 210(जगतश्रेणी)उत्कृष्ट कापोत, जघन्य नील6 बार1 पक्ष
चौथाअंजनापंकप्रभासात सागरदस सागरनीचे से असं. गुणाजगतश्रेणी / 28(जगतश्रेणी)मध्यम नील5 बार1 माह
पांचवांअरिष्ठाधूम्रप्रभादस सागरसत्रह सागरनीचे से असं. गुणाजगतश्रेणी / 26(जगतश्रेणी)उत्कृष्ट नील, जघन्य कृष्ण4 बार2 माह
छठामघवातमप्रभासत्रह सागरबाईस सागरनीचे से असं. गुणाजगतश्रेणी / 23(जगतश्रेणी)मध्यम कृष्ण3 बार4 माह
सातवाँमाधवीमहातमप्रभाबाईस सागरतैंतीस सागरअसंख्यातजगतश्रेणी / 22(जगतश्रेणी)उत्कृष्ट नील2 बार6 माह
उन नरकों में जीवों की उत्‍कृष्‍ट स्थिति क्रम से एक, तीन, सात, दस, सत्रह, बाईस और तैंतीस सागरोपम है ॥त.सू.३/६॥
अल्प-बहुत्व आधार: श्री कार्तिकेयअनुप्रेक्षा, गाथा: 159, श्री गोम्मटसार, गाथा : 153,154


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+ संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति -
संहनन की अपेक्षा गति प्राप्ति

विशेष :

किस संहनन से मरकर किस गति तक उत्‍पन्न होना सम्‍भव है
संहननप्राप्तव्‍य स्‍वर्गप्राप्तव्‍य नरक
वज्रऋषभनाराचपंच अनुत्तर७ वें नरक
वज्रनाराचनव अनुदिश६ नरक तक
नाराचनव ग्रैवेयक तक
अर्धनाराचअच्‍युत तक
कीलितसहस्रार तक५ वें नरक तक
असंप्राप्तासृपाटिकासौधर्म से कापिष्‍ठ तक३ नरक तक
गो.क./मू./२९-३१/२४ और गो.क./जी.प्र./५४९/७२५/१४


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सामन्य जानकारी



+ पांचों ज्ञानों का स्‍वामित्‍व -
पांचों ज्ञानों का स्‍वामित्‍व

विशेष :

पांचों ज्ञानों का स्‍वामित्‍व
सूत्र ज्ञान जीव समास गुणस्‍थान
११६ कुमति व कुश्रुति सर्व १४ जीवसमास १-२
११७-११८ विभंगावधि  संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त १-२
१२० मति, श्रुति, अवधि संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्‍य पर्या.अपर्या. ४-१२
१२१ मन:पर्यय संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्‍त मनुष्‍य ६-१२
१२२ केवलज्ञान संज्ञी पर्याप्त, अयोगी की अपेक्षा १३, १४, सिद्ध
११९ मति, श्रुत, अवधि ज्ञान अज्ञान मिश्रित संज्ञी पर्याप्त
(ष.खं.१/१०१/सू.११६-१२२/३६१-३६७)

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+ संसारी जीवों में प्राण -
संसारी जीवों में प्राण

विशेष :

प्राण
जीव इंद्रिय बल आयु उच्छ्वास कुल
स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु कर्ण मन वचन काय
पर्याप्त स्थावर 4
दो-इंद्रिय 6
तीन-इंद्रिय 7
चार-इंद्रिय 8
पंचेंद्रिय-असैनी 9
पंचेंद्रिय-सैनी 10
अपर्याप्त स्थावर 3
दो-इंद्रिय 4
तीन-इंद्रिय 5
चार-इंद्रिय 6
पंचेंद्रिय 7
सयोग-केवली सामान्य 4
समुद्घात प्रथम समय दण्ड 3
द्वीतीय समय कपाट 2
तृतीय समय प्रतर 1
चतुर्थ समय लोकपूरण 1
पंचम समय प्रतर 1
षष्टम समय कपाट 2
सप्तम समय दण्ड 3
अष्टम समय शरीर प्रवेश 4
अयोग-केवली 1

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+ उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण के संभव प्रकार -
उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण के संभव प्रकार

विशेष :

उत्तर प्रकृतियों में संक्रमण
संक्रमण
कर्म-प्रकृतियाँ संख्या उद्वेलन विध्यात अध:प्रवृत्त गुणसंक्रमण सर्वसंक्रमण
आहारक-द्विक, वैक्रियक-द्विक, नरक-द्विक, मनुष्य-द्विक, देवद्विक, मिश्र प्रकृति, उच्चगोत्र 12
सम्यक्त्व मोहनीय 1 X
स्त्यानत्रिक, (संज्वलन कषाय के बिना) 12 कषाय, नपुंसक-वेद, स्त्री-वेद, अरति, शोक, और तिर्यक् एकादश (तिर्यञ्च-द्विक, जाति-चतुष्क, स्थावर, सूक्ष्म, आतप, उद्योत, साधारण) 30 X
मिथ्यात्व 1 X X
हास्य, रति, भय और जुगुप्सा 4 X X
असाता-वेदनीय, अप्रशस्त-विहायोगति, 10 (पहले के बिना पाँच संहनन व पाँच संस्थान), नीचगोत्र, अपर्याप्त और अस्थिर, अशुभ, सुभग, दुस्वर, अनादेय, अयश्स्कीर्ति 20 X X
संज्वलन क्रोध, मान, माया तथा पुरुषवेद 4 X X X
निद्रा, प्रचला, अशुभ वर्णादि चार, और उपघात 7 X X X
औदारिक-द्विक, वज्रऋषभनाराच-संहनन, तीर्थंकर 4 X X X
5 ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण, पाँच अंतराय, साता-वेदनीय, संज्वलन-लोभ, पंचेंद्रिय, तेजस, कार्मण, समचतुरस्र संस्थान, 4 वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, 10 त्रस-दस, निर्माण 49 X X X X
कुल प्रकृतियाँ (वर्ण चतुष्क को दो बार लिया है) 132
मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर सम्यक्त्व व मिश्र मोहनीय का अंतर्मुहूर्त पर्यंत तक अध:प्रवृत्त संक्रमण होता है
मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त होने पर सम्यक्त्व व मिश्र मोहनीय का द्विचरम कांडक पर्यंत उद्वेलन संक्रमण होता है
विध्यात संक्रमण - बंध की व्युच्छित्ति होने पर असंयत से लेकर अप्रमत्तपर्यंत; तीर्थंकर प्रकृति का संक्रमण मिथ्यादृष्टि नरक में करता है
अध:प्रवृत्त संक्रमण - प्रकृतियों के बंध होने पर अपनी-अपनी बंध व्युच्छित्ति पर्यंत । मिथ्यात्व प्रकृति के बिना 121 प्रकृतियों का
गुण संक्रमण - अप्रमत्त से आगे उपशांत कषाय पर्यंत बंध रहित अप्रशस्त प्रकृतियों का । उद्वेलन प्रकृतियों का अंत के कांडक में नियम से गुण संक्रमण होता है
सर्व संक्रमण - अंतिम कांडक की उपांत्य फालिपर्यंत गुणसंक्रमण और अंतिम फालि में

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प्रकृति बंध



+ प्रकृति-बन्ध प्ररूपणा -
प्रकृति-बन्ध प्ररूपणा

विशेष :
प्रकृतिबन्ध की अपेक्षा स्वामित्व प्ररूपणा
मूल प्रकृति उत्तर प्रकृति स्वामित्व व गुणस्थान
उत्कृष्ट जघन्य
ज्ञानावरण पाँचों १० सू. ल./च
दर्शनावरण चक्षु, अचक्षु अवधि व केवलदर्शन १० सू. ल./च
निद्रा, प्रचला १० सू. ल./च
निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला सू. ल./च
वेदनीय साता १० सू. ल./च
असाता १-९ सू.ल./च
मोहनीय मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क सू. ल./च
अप्रत्याख्यानावरण चतुष्क सू. ल./च
प्रत्याख्यानावरण चतुष्क सू. ल./च
संज्वलन चतुष्क सू. ल./च
हास्य,रति, अरति, शोक,भय, जुगुप्सा ४-९ सू. ल./च
स्त्री वेद, नपुंसक वेद सू. ल./च
पुरुष वेद १० सू. ल./च
आयु नरक असंज्ञी
तिर्यंच सू. ल./च
मनुष्‍य, देव १-९
नाम गति नरक असंज्ञी
तिर्यंच, मनुष्‍य सू.ल./च
देव १-९ अविरत सम्‍यक्त्वी
जाति एकेन्द्रियादि पाँचों सू.ल./च
शरीर औदारिक, तैजस, कार्मण सू.ल./च
वैक्रियक १-९ अविरत सम्‍यक्त्वी
आहारक अप्रमत्त
अंगोपांग औदारिक
वैक्रियक १-९ अविरति
आहारक अप्रमत्त
निर्माण, बन्‍धन, संघात सू.ल./च
संस्‍थान समचतुरस्र १-९ सू.ल./च
शेष पाँचों सू.ल./च
संहनन वज्र वृषभ नाराच १-९ सू.ल./च
शेष पाँचों सू.ल./च
स्‍पर्श, रस, गन्‍ध, वर्ण सू.ल./च
आनुपूर्वी नरक असंज्ञी
तिर्यंच व मनुष्‍य सू.ल./च
देव १-९ अविरत सम्‍यक्त्वी
अगुरुलघु, उपघात, परघात सू.ल./च
आतप, उद्योत, उच्‍छ्‍वास सू.ल./च
विहायोगति प्रशस्‍त १-९ सू.ल./च
अप्रशस्‍त सू.ल./च
प्रत्‍येक, साधारण, त्रस, स्‍थावर, दुर्भग सू.ल./च
सुभग, आदेय १-९ सू.ल./च
सुस्वर, दु:स्‍वर, शुभ, अशुभ सू.ल./च
सूक्ष्‍म,बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त सू.ल./च
स्थिर, अस्थिर, अनादेय, अयश:कीर्ति सू.ल./च
यश:कीर्ति १० सू.ल./च
तीर्थंकर
गोत्र उच्‍च १० सू.ल./च
नीच सू.ल./च
अन्‍तराय पाँचों १० सू.ल./च
सू.ल./च = चरम भवस्थ तथा तीन विग्रह में से प्रथम विग्रह में स्थित सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्त जीव


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+ नरक में प्रकृति बंध -
नरक में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा-नरक)
बंध अबंध व्युच्छिति
1-3 नरक मिथ्यादृष्टि पर्याप्त 100 1 (तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन)
अपर्याप्त 98 1
सासादन 96 5 25 (गुणस्थानोक्त)
मिश्र 70 31 (मनुष्य-आयु) 0
असंयत पर्याप्त 72 (मनुष्य-आयु, तीर्थंकर) 29
अपर्याप्त 71 28
पर्याप्त के बंध योग्य प्रकृतियाँ 101 = 120 -19 (जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, आताप, वैक्रियकअष्टक, आहारक-द्विक)
अपर्याप्त के बंध योग्य प्रकृतियाँ 99 = 101 - मनुष्यायु,तिर्यञ्चायु
4-6 नरक मिथ्यादृष्टि 100 0 4 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन)
सासादन 96 4 25 (गुणस्थानोक्त)
मिश्र 70 30 (मनुष्य-आयु) 0
असंयत 71 (मनुष्य-आयु) 29
बंध योग्य प्रकृतियाँ 100 = 101 - तीर्थंकर
7 नरक मिथ्यादृष्टि 96 3 (उच्चगोत्र, मनुष्यद्विक) 5 (मिथ्यात्व, हुण्ड संस्थान, नपुंसकवेद, सृपाटिका संहनन, तिर्यञ्चायु)
सासादन 91 8 24 (गुणस्थानोक्त २५-१ तिर्यंचायु)
मिश्र 70 29 (24+5) 0
असंयत 70 29
बंध योग्य प्रकृतियाँ 99 = 101 - तीर्थंकर+मनुष्यायु

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+ तिर्यञ्च-गति में प्रकृति बंध -
तिर्यञ्च-गति में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- तिर्यञ्च-गति)
बंध अबंध व्युच्छिति
तिर्यञ्च पर्याप्त मिथ्यादृष्टि 117 0 16 (गुणस्थानोक्त)
सासादन 101 16 31 (25 गुणस्थानोक्त + वज्रवृषभनाराचसंहनन औदारिकद्विक, मनुष्यद्विक, मनुष्यायु)
मिश्र 69 48 (देवायु) 0
असंयत 70 (देव-आयु) 47 4 (अप्रत्याख्यानावरण)
संयतासंयत 66 51
बंध योग्य प्रकृतियाँ 117 = 120 - 3 (तीर्थंकर, 2-आहारकद्विक)
तिर्यञ्च निवृत्त्यपर्याप्त मिथ्यादृष्टि 107 4 (सुर-चतुष्क) 13 (16-नरकद्विक, नरकायु)
सासादन 94 (107-13) 17 29 (31 - तिर्यंचायु, मनुष्यायु)
असंयत 69 (सुर-चतुष्क) 42 4
बंध योग्य प्रकृतियाँ 111 = 120 - 9 (3 + 4 आयु, नरकद्विक)

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+ मनुष्य-गति में प्रकृति बंध -
मनुष्य-गति में प्रकृति बंध

विशेष :

मनुष्य-गति मार्गणा में प्रकृति बंध
बंध अबंध व्युच्छिति
मनुष्य [सामान्य, पर्याप्त, मनुष्यिनी] मिथ्यादृष्टि 117 3 (तीर्थंकर, आहारकद्विक) 16 (गुणस्थानोक्त)
सासादन 101 19 31 (25 गुणस्थानोक्त + वज्रवृषभनाराचसंहनन औदारिकद्विक, मनुष्यद्विक, मनुष्यायु)
मिश्र 69 51 (31+19+देवायु) 0
असंयत 71 (तीर्थंकर, देवायु) 49 4 (अप्रत्याख्यानावरण)
देशविरत 67 53 4 (प्रत्याख्यानावरण ४)
6 प्रमत्तसंयत 63 57 6 (असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अशुभ, अस्थिर, अयशःकीर्ति)
7 अप्रमत्तसंयत 59 (+आहारक द्विक) 61 1 (देव आयु)
8 अपूर्वकरण 58 62 36
(निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, शरीर ४ [तेजस, कार्माण, आहारक, वैक्रियिक], अंगोपांग २ [आहारक,वैक्रियिक], समचतुस्र संस्थान, देव गति, देव गत्यानुपूर्व्य, स्पर्श,रस,गंध,वर्ण, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, प्रत्येक, शुभ, सुभग, सुःस्वर, आदेय)
9 अनिवृतिकरण 22 98 5
(संज्ज्वलन ४, पुरुष-वेद)
10 सूक्ष्मसाम्पराय 17 103 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल], अंतराय ५, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र)
11 उपशान्तमोह 1 119 0
12 क्षीणमोह 1 119 0
13 सयोगकेवली 1 119 1 (साता-वेदनीय)
14 अयोगकेवली 0 120 0
बंध योग्य प्रकृतियाँ 120
मनुष्य निवृत्त्यपर्याप्त मिथ्यादृष्टि 107 5 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) 13 (16-नरकद्विक, नरकायु)
सासादन 94 (107-13) 18 29 (31 - तिर्यंचायु, मनुष्यायु)
असंयत 70 (तीर्थंकर-सुरचतुष्क) 42 8 (4 प्रत्याख्यान,4 अप्रत्याख्यान)
प्रमत्तविरत 62 50 61
सयोग-केवली 1 111
बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120-8(4 आयु, नरकद्विक, आहारकद्विक)

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+ देवगति में प्रकृति बंध -
देवगति में प्रकृति बंध

विशेष :

देव-गति मार्गणा में प्रकृति बंध
देवों में बंध-योग्य प्रकृतियाँ = 104 (120 - वैक्रियिक-अष्टक, विकलत्रय, सूक्ष्मत्रय, आहारक-द्विक)
बंध अबंध व्युच्छिति
पर्याप्त भवनत्रिक और देवियाँ मिथ्यात्व 103 0 7 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद, आतप, एकेन्द्रीय, स्थावर)
सासादन 96 7 25 (गुणस्थानोक्त)
मिश्र 70 33 (मनुष्यायु) 0
अविरत-सम्यक्त्व 71 (मनुष्यायु) 32
बंध योग्य प्रकृतियाँ 103 = 104 - तीर्थंकर
सौधर्म-ईशान मिथ्यात्व 103 1 (तीर्थंकर) 7 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद, आतप, एकेन्द्रीय, स्थावर)
सासादन 96 8 25 (गुणस्थानोक्त)
मिश्र 70 34 (मनुष्यायु)
अविरत-सम्यक्त्व 72 (मनुष्यायु, तीर्थंकर) 32
बंध योग्य प्रकृतियाँ 104
सनत्कुमार से सहस्रार मिथ्यात्व 100 1 (तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद)
सासादन 96 5 25 (गुणस्थानोक्त)
मिश्र 70 31 (मनुष्यायु) 0
अविरत-सम्यक्त्व 72 (मनुष्यायु, तीर्थंकर) 29
बंध योग्य प्रकृतियाँ 101 = 104 - स्थावर, आतप, एकेन्द्रीय
आनत से नव ग्रैवेयक मिथ्यात्व 96 1 (तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद)
सासादन 92 5 21 (25-तिर्यञ्च-त्रिक, उद्योत)
मिश्र 70 27 (मनुष्यायु) 0
अविरत-सम्यक्त्व 72 (मनुष्यायु, तीर्थंकर) 25
बंध योग्य प्रकृतियाँ 97 = 104 - 7 (स्थावर, आतप, एकेन्द्रीय, तिर्यञ्च-त्रिक, उद्योत)
अनुदिश-अनुत्तर 72 32
निवृत्त्यपर्याप्त भवनत्रिक और देवियाँ मिथ्यात्व 101 0 7 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद, आतप, एकेन्द्रीय, स्थावर)
सासादन 94 7
बंध योग्य प्रकृतियाँ 101 = 104 - 3 (तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, तीर्थंकर)
सौधर्म-ईशान मिथ्यात्व 101 1 (तीर्थंकर) 7 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद, आतप, एकेन्द्रीय, स्थावर)
सासादन 96 8 24 (25 गुणस्थानोक्त - तिर्यञ्चायु)
अविरत-सम्यक्त्व 71 (तीर्थंकर) 31
बंध योग्य प्रकृतियाँ 102 = 104 - 2 (तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु)
सनत्कुमार से सहस्रार मिथ्यात्व 98 1 (तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद)
सासादन 94 5 24 (25 गुणस्थानोक्त - तिर्यञ्चायु)
अविरत-सम्यक्त्व 71 (तीर्थंकर) 28
बंध योग्य प्रकृतियाँ 99 = 104 - 5 (तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, स्थावर, आतप, एकेन्द्रीय)
आनत से नव ग्रैवेयक मिथ्यात्व 95 1 (तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन, नपुंसक-वेद)
सासादन 91 5 21 (25-तिर्यञ्च-त्रिक, उद्योत)
अविरत-सम्यक्त्व 71 (तीर्थंकर) 25
बंध योग्य प्रकृतियाँ 96 = 104 - 8 (तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु, स्थावर, आतप, एकेन्द्रीय, तिर्यञ्च-द्विक, उद्योत)
अनुदिश-अनुत्तर 71 33 (32+मनुष्यायु)

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+ जाति-मार्गणा में प्रकृति बंध -
जाति-मार्गणा में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- जाति)
बंध अबंध व्युच्छिति
1,2,3,4 इंद्रिय मिथ्यात्व 109 0 15 (गुणस्थानोक्त 16 - नरक-त्रिक + मनुष्यायु + तिर्यञ्चायु)
सासादन 94 15 29 (25 गुणस्थानोक्त + वज्रवृषभनाराचसंहनन + औदारिकद्विक, + मनुष्यद्विक - तिर्यञ्चायु)
बंध योग्य प्रकृतियाँ 109 = 120 - 11 (तीर्थंकर, आहारकद्विक, वैक्रियकअष्टक)
पंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्त बंध योग्य प्रकृतियाँ 109 = 120 - 11 (तीर्थंकर, आहारकद्विक, वैक्रियकअष्टक)
पर्याप्त बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, सामान्योक्त, गुणस्थान 1 से 14
पंचेंद्रिय-निवृत्त्यपर्याप्त मिथ्यात्व 107 5 13
सासादन 94 18 24
अविरत-सम्यक्त्व 75 37 13
प्रमत्त-विरत 62 50 61
सायोग-केवली 1 111 1
बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120 - 8 (आहारकद्विक, नरक-द्विक, आयु ४)

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+ काय-मार्गणा में प्रकृति बंध -
काय-मार्गणा में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- काय)
बंध अबंध व्युच्छिति
पृथ्वी, जल, वनस्पति मिथ्यात्व 109 0 15 (13+मनुष्य-तिर्यञ्च आयु)
सासादन 94 15
बंध योग्य प्रकृतियाँ 109 = 120 - 11 (तीर्थंकर, आहारकद्विक, वैक्रियकअष्टक)
वायु, अग्नि बंध योग्य प्रकृतियाँ 105 = 109 - 4 (मनुष्य-त्रिक, उच्च गोत्र), गुणस्थान मिथ्यात्व
त्रस बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, गुणस्थान 1 से 14
त्रस-निवृत्त्यपर्याप्त मिथ्यात्व 107 5 13
सासादन 94 18 24
अविरत-सम्यक्त्व 75 37 13
प्रमत्त-विरत 62 50 61
सयोग-केवली 1 111 1
बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120 - 8 (आहारकद्विक, नरक-द्विक, 4 आयु)

🏠
+ योग-मार्गणा में प्रकृति बंध -
योग-मार्गणा में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- योग)
बंध अबंध व्युच्छिति
मन, वचन सत्य, अनुभय बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, सामान्यवत्, गुणस्थान 1 से 13
असत्य, उभय बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, सामान्यवत्, गुणस्थान 1 से 12
काय औदारिक बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, सामान्यवत्, गुणस्थान 1 से 13
औदारिक-मिश्र मिथ्यात्व 109 5 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) 15 (16 - नरक-त्रिक + 2 आयु [मनुष्य, तिर्यञ्च])
सासादन 94 20 29 (25 - 2 आयु [तिर्यञ्च, मनुष्य] + 6 [मनुष्य-गति, मनुष्य-आनुपूर्व्य, औदारिक-द्विक, वज्रवृषभनाराच संहनन])
अविरत सम्यक्त्व 70 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) 44 69
सयोग-केवली 1 113 1
बंध योग्य प्रकृतियाँ 114 = 120 - 6 (आहारक-द्विक, नरक-द्विक, देव-नरक आयु)
लब्ध्यपर्याप्त में बंध योग्य प्रकृतियाँ 109 = 120 - 11 (आहारक-द्विक, नरक-द्विक, देव-नरक आयु, सुर-चतुष्क, तीर्थंकर), गुणस्थान मिथ्यात्व
वैक्रियिक मिथ्यात्व 103 1 (तीर्थंकर) 7 (16 - सूक्ष्मत्रय, विकलत्रय, नरक-त्रय)
सासादन 96 8 25
मिश्र 70 34 (-मनुष्यायु) 0
अविरत-सम्यक्त्व 72 (+मनुष्यायु, तीर्थंकर) 32 10
बंध योग्य प्रकृतियाँ 104 = 120 - 16 (सूक्ष्मत्रय, विकलत्रय, वैक्रियिक अष्टक, आहारक द्विक)
वैक्रियिक-मिश्र मिथ्यात्व 101 1 (तीर्थंकर) 7 (मिथ्यात्व, हुण्डकसंस्थान, नपुंसकवेद, असंप्राप्तासृपाटिका संहनन, एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप)
सासादन 94 8 24
अविरत-सम्यक्त्व 71 (तीर्थंकर) 31 9
बंध योग्य प्रकृतियाँ 102 = 120 - 18 (सूक्ष्मत्रय, विकलत्रय, वैक्रियिक अष्टक, आहारक द्विक, तिर्यञ्च-मनुष्य आयु)
आहारक 63 57 6
आहारक-मिश्र 62 58 (देवायु)
कार्मण मिथ्यात्व 107 5 (तीर्थंकर, सुर-चतुष्क) 13 (16-नरकत्रिक)
सासादन 94 18 24 (25-तिर्यञ्चायु)
अविरत-सम्यक्त्व 75 (तीर्थंकर, सुरचतुष्क) 37 74
सायोग-केवली 1 111 1
बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120 - 8 (आहारक-द्विक, नरक-द्विक, चारों आयु)

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+ वेद-मार्गणा में प्रकृति बंध -
वेद-मार्गणा में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- वेद)
बंध अबंध व्युच्छिति
पर्याप्त स्त्री / नपुंसक बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, गुणस्थान 1 से 9
अपूर्वकरण तक रचना ओघवत, अनिवृत्तिकरण के प्रथम भाग के द्विचरम समय में बंध 22, अबंध 98, व्युच्छिति 1 पुरुष वेद; चरम समय में बंध 21 अबंध 99, व्युच्छिति 0
पुरुष बंध योग्य प्रकृतियाँ 120, गुणस्थान 1 से 9
अपूर्वकरण तक रचना ओघवत, अनिवृत्तिकरण के प्रथम भाग के चरम समय में बंध 22, अबंध 98, व्युच्छिति 1 पुरुष वेद
निवृत्त्यपर्याप्त स्त्री मिथ्यात्व 107 0 13 (16 - नरक-त्रिक)
सासादन 94 13 24 (25-तिर्यञ्चायु)
बंध योग्य प्रकृतियाँ 107 = 120 - 13 (आयु ४, आहारक-द्विक, वैक्रियकषष्क, तीर्थंकर)
नपुंसक मिथ्यात्व 107 1 13 (16 -नरक-त्रिक)
सासादन 94 14 24 (25-तिर्यञ्चायु)
अविरत-सम्यक्त्व 71 (तीर्थंकर) 37 9 (10-मनुष्यायु)
बंध योग्य प्रकृतियाँ 108 = 120 - 12 (आयु ४, आहारक-द्विक, वैक्रियकषष्क)
पुरुष मिथ्यात्व 107 5 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) 13 (16 -नरक-त्रिक)
सासादन 94 18 24 (25-तिर्यञ्चायु)
अविरत-सम्यक्त्व 75 (सुर-चतुष्क, तीर्थंकर) 37 9 (10-मनुष्यायु)
बंध योग्य प्रकृतियाँ 112 = 120 - 8 (आयु ४, आहारक-द्विक, नरक-द्विक)

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+ लेश्या-मार्गणा में प्रकृति बंध -
लेश्या-मार्गणा में प्रकृति बंध

विशेष :

प्रकृति बंध (मार्गणा -- लेश्या)
बंध अबंध गुणस्थान
कृष्ण-नील-कापोत 118 2 (आहारक-द्विक) 1-4
रचना ओघवत
पीत 111 9 (सूक्ष्मत्रय, विकलत्रय, नरकत्रय) 1-7
रचना ओघवत, मिथ्यात्व गुणस्थान में व्युच्छिति 7
पद्म 108 12 (9 + एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप)
1-7
रचना ओघवत, मिथ्यात्व गुणस्थान में व्युच्छिति 4
शुक्ल 104 16 (12 + तिर्यञ्च-त्रिक, उद्योत) 1-13
रचना ओघवत, मिथ्यात्व गुणस्थान में व्युच्छिति 4, सासादन में 21

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+ कषाय और ज्ञान मार्गणा में कर्म का बंध -
कषाय और ज्ञान मार्गणा में कर्म का बंध

विशेष :

मार्गणा कषाय और ज्ञान मार्गणा में कर्म का बंध
कषाय क्रोध, मान, माया गुणस्थान 1 से 9, सामान्यवत्
लोभ गुणस्थान 1 से 10 सामान्यवत्
बन्ध योग्य प्रकृतियाँ 120
बन्ध अबन्ध व्युच्छिति
ज्ञान कुमति, कुश्रुत, विभंग मिथ्यात्व 117 0 16
सासादन 101 16 25
बन्ध योग्य प्रकृतियाँ 117 (120 - आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मति, श्रुत, अवधि अविरत 77 (+तीर्थंकर, देवायु, मनुष्यआयु) 2 10 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्य ३ [आयु, गति, आनुपूर्व्य], औदारिक शरीर-अंगोपांग, वज्रवृषभनाराच संहनन)
संयतासंयत 67 12 4 (प्रत्याख्यानावरण ४)
प्रमत्तसंयत 63 16 6 (असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अशुभ, अस्थिर, अयशःकीर्ति)
अप्रमत्तसंयत 59 (+आहारक द्विक) 20 1 (देव आयु)
अपूर्वकरण 58 21 36 (निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, शरीर ४ [तेजस, कार्माण, आहारक, वैक्रियिक], अंगोपांग २ [आहारक,वैक्रियिक], समचतुस्र संस्थान, देव गति, देव गत्यानुपूर्व्य, स्पर्श,रस,गंध,वर्ण, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, प्रत्येक, शुभ, सुभग, सुःस्वर, आदेय)
अनिवृतिकरण 22 57 5 (संज्ज्वलन ४, पुरुष-वेद)
सूक्ष्मसाम्पराय 17 62 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल], अंतराय ५, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र)
उपशान्तमोह 1 78 0
क्षीणमोह 1 78 0
बन्ध योग्य प्रकृतियाँ 79 (120 -16 - 25)
मन:पर्यय प्रमत्तसंयत 63 2 (-आहारकद्विक) 6 (असाता-वेदनीय, अरति, शोक, अशुभ, अस्थिर, अयशःकीर्ति)
अप्रमत्तसंयत 59 (+आहारक द्विक) 6 1 (देव आयु)
अपूर्वकरण 58 7 36 (निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर, निर्माण, प्रशस्त विहायोगति, पंचेन्द्रिय जाति, शरीर ४ [तेजस, कार्माण, आहारक, वैक्रियिक], अंगोपांग २ [आहारक,वैक्रियिक], समचतुस्र संस्थान, देव गति, देव गत्यानुपूर्व्य, स्पर्श,रस,गंध,वर्ण, हास्य, रति, जुगुप्सा, भय, अगुरुलघुत्व, उपघात, परघात, उच्छवास, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, प्रत्येक, शुभ, सुभग, सुःस्वर, आदेय)
अनिवृतिकरण 22 43 5 (संज्ज्वलन ४, पुरुष-वेद)
सूक्ष्मसाम्पराय 17 48 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ४ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल], अंतराय ५, यशःकीर्ति, उच्च गोत्र)
उपशान्तमोह 1 64 0
क्षीणमोह 1 64 0
बन्ध योग्य प्रकृतियाँ 65 (प्रमत्तसंयत संबंधी 63 + आहारक-द्विक)
केवल सयोगकेवली 1 0 1 (साता-वेदनीय)
अयोगकेवली 0 1 0
बन्ध योग्य प्रकृतियाँ 1 (साता-वेदनीय)

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+ मूल प्रकृति में सादि आदि बंध के भेद -
मूल प्रकृति में सादि / अनादि बंध के भेद

विशेष :

मूल प्रकृति में बंध के भेद
सादि अनादि ध्रुव अध्रुव
ज्ञानावरणी
दर्शनावरणी
वेदनीय X
मोहनीय
आयु X X
नाम
गोत्र
अंतराय
सादि बंध - जिस कर्म के बंध का अभाव होकर फिर वही कर्म बंधे
अनादि बंध - भूतकाल मे जिस बंध का कभी अभाव नहीं हुआ
ध्रुव बंध - जिस बंध का भविष्य में अंत न हो
अध्रुव बंध - जिस बंध का भविष्य में कभी अंत आ जावे

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+ उत्तर प्रकृति में सादि आदि बंध के भेद -
उत्तर प्रकृति में सादि / अनादि बंध के भेद

विशेष :

उत्तर प्रकृति में सादि / अनादि बंध के भेद
सादि अनादि ध्रुव अध्रुव
ज्ञानावरणी (5)
दर्शनावरणी (9)
वेदनीय (2) X
मोहनीय मिथ्यात्व, 16 कषाय, भय, जुगुप्सा
हास्य, शोक, रति, अरति, वेद 3 X X
आयु (4) X X
नाम (67) तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क
शेष 58 प्रकृतियाँ X X
गोत्र (2) X X
अंतराय (5)
ध्रुव बंधी प्रकृतियाँ कुल 47
अध्रुव बंधी प्रकृतियाँ कुल 73 अप्रतिपक्षी 11 (तीर्थंकर, आहारक-द्विक, परघात, आतप, उद्योत, ४ आयु)
शेष 62 (७३-११)

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+ एक जीव के एक काल में होने वाला प्रकृति-बंध -
एक जीव के एक काल में होने वाला प्रकृति-बंध

विशेष :

एक जीव के एक काल में होने वाला प्रकृति कर्म-बंध की संख्या
ज्ञानावरणी दर्शनावरणी वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अंतराय कुल स्थान
स्थान भंग
14 अयोगकेवली 0 0 0 0 0 0 0 0 0 0
13 सयोगकेवली 1 1
12 क्षीणमोह
11 उपशान्तमोह
10 सूक्ष्मसाम्पराय 5 4 1 1 1 5 17
9 अनिवृतिकरण 5|4|3|2|1 1 22|21|20|19|18
8 अपूर्वकरण 6|4 9 28|29|30|31|1 55|56|57|58|26
7 अप्रमत्तसंयत 6 1 28|29|30|31 56|57|58|59
6 प्रमत्तसंयत 2 28|29 56|57
5 देशविरत 13 28|29 60|61
4 अविरत 17 28|29|30 64|65|66
3 मिश्र 28|29 63|64
2 सासादन 9 21 4 28|29|30 71|72|73
1 मिथ्यात्व 22 6 23|25|26|28|29|30 67|69|70|72|73|74
5 9|6|4 1 22|21|17|13|9|5|4|3|2|1 1 23|25|26|28|29|30|31|1 1 5
मिथ्यात्व गुणस्थान में मोह के भंग 6 (3 वेद * 2 [हास्य-रति/शोक-आरति])
सासादन गुणस्थान में मोह के भंग 4 (2 वेद * 2 [हास्य-रति/शोक-आरति])
3 से 6 गुणस्थान में मोह के भंग 2 (1 पुरुष वेद * 2 [हास्य-रति/शोक-आरति])

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+ मोहनीय के भुजाकार आदि बंध -
मोहनीय के भुजाकार आदि बंध

विशेष :

मोहनीय के भुजाकार आदि बंध
पूर्व-बंध से अनंतर-बंध अवस्था संख्या कुल
भुजाकार 1 से 2, 2 से 3, 3 से 4, 4 से 5, 5 से 9 उपशम श्रेणी से क्रमश: उतरने पर 5 20
1,2,3,4,5 से 17 उपशम श्रेणी में मरण होने पर 5
9 से 13,17,21,22 6 गुणस्थान से नीचे गिरने पर 4
13 से 17,21,22 5 गुणस्थान से नीचे गिरने पर 3
17 से 21,22 4 गुणस्थान से नीचे गिरने पर 2
21 से 22 2 गुणस्थान से नीचे गिरने पर 1
अल्पतर 22 से 17,13,9 1 गुणस्थान से 4,5,7 में गमन 3 11
17 से 13,9 4 गुणस्थान से 5,7 में गमन 2
13 से 9 5 गुणस्थान से 7 में गमन 1
9 से 5, 5 से 4, 4 से 3, 3 से 2, 2 से 1 श्रेणी आरोहण के समय 5
अवक्तव्य 0 से 1 11 गुणस्थान से 10 में गमन 1 2
0 से 17 11 गुणस्थान से 4 में गमन, मरण 1
अवस्थित भुजाकार आदि बंध के बाद अवस्थिति 20+11+2 33
भुजाकार बंध : अल्प-प्रकृतियों से अधिक प्रकृतियाँ बांधना । उदाहरण : सासादन में 21 के बंध से मिथ्यात्व में गमन होने से 22 का बंध
अल्पतर बंध : अधिक-प्रकृतियों से अधिक प्रकृति बांधना । उदाहरण : मिथ्यात्व में 22 के बंध से अविरत सम्यक्त्व में गमन होने से 17 का बंध
अवक्तव्य बंध : अबन्ध से प्रकृति बंध प्रारम्भ करना । उदाहरण : 10वें गुणस्थान में मोहनीय का अबन्ध से 9वें में गमन होने से 1 प्रकृति का बंध
अवस्थित बंध : भुजाकार, अल्पतर या अवक्तव्य बंध के पश्चात् वही बंध पुन: करना । उदाहरण : मिथ्यात्व में 22 के बंध से अविरत सम्यक्त्व में गमन होने से 17 का बंध अल्पतर । उसके बाद पुन: 17 का बंध अवस्थित है ।

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+ नाम-कर्म के बंध-स्थान का यंत्र -
नाम-कर्म के बंध-स्थान का यंत्र
नाम-कर्म के बंध-स्थान का यंत्र

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+ गति के साथ बंधने वाले नाम-कर्म के स्थान -
गति के साथ बंधने वाले नाम-कर्म के स्थान और उनकी संख्या

विशेष :

गति के साथ बंधने वाले नाम-कर्म के स्थान और उनकी संख्या
किस गति के बंध के साथ कितने नाम-कर्म के बंध-स्थान स्थान-संख्या
नरक 1 28
तिर्यञ्च 5 23, 25, 26, 29, 30
मनुष्य 3 25, 29, 30
देव 4 31, 30, 29, 28

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+ गति-संयुक्त नाम-कर्म बंध के आठ स्थान -
गति-संयुक्त नाम-कर्म बंध के आठ स्थान

विशेष :

नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
गति-सहित बंध प्रकृति स्थान स्वामी भंग प्रकृतियों का विवरण
x 1 8*, 9, 10 गुणस्थान 1 यश:कीर्ति
नरक-गति सहित 28 मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, नारकद्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, हुंडक, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात
तिर्यञ्च-गति सहित 23 मिथ्यादृष्टि (तिर्यञ्च/मनुष्य) 9308 4 ध्रुव/9, स्थावर, 1 (बादर या सूक्ष्म), 1 (साधारण या प्रत्येक), अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान
25 मिथ्यादृष्टि 20 ध्रुव/9, स्थावर, 1 (बादर या सूक्ष्म), 1 (साधारण या प्रत्येक), पर्याप्त, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात
मिथ्यादृष्टि 4 ध्रुव/9, त्रस, बादर, प्रत्येक, अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, 1 जाति (2-5 इंद्रिय, भंग 4), औदारिक-द्विक, हुंडक-संस्थान, सृपाटिका-संहनन
26 मिथ्यादृष्टि 16 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात, 1 (आतप या उद्योत)
29 मिथ्यादृष्टी 4608 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल (सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (६ संस्‍थानों से ६ भंग), 1 संहनन (६ संहनन से ६ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
सासादन सम्यग्दृष्टि 3200 (पुनरुक्त) ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल (सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (५ संस्‍थानों से ५ भंग), 1 संहनन (५ संहनन से ५ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 24 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-४ इन्द्रिय, ३ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात
30 29 प्रकृतियों के स्वामी के समान 4608 उपरोक्त 29 प्रकृतियाँ + उद्योत
3200 (पुनरुक्त)
24
मनुष्य-गति सहित 30 सम्यग्दृष्टि (देव/नारकी) 4617 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 3 (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), सुभग, सुस्वर, आदेय, मनुष्‍य-द्वय, औदारिक-द्वय, पंचन्द्रिय, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रऋषभ-नाराच संहनन, प्रशस्त-विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर
29 अविरत सम्यग्दृष्टि / मिश्र (देव/नारकी) 8 (पुनरुक्त) उपरोक्त 30 - तीर्थंकर
सासादन सम्यग्दृष्टि 3200 (पुनरुक्त) ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 7 (७ युगल -- स्थिर, शुभ, यश, सुभग, सुस्वर, आदेय, विहायोगति के १२८ भंग), मनुष्‍य-द्वय, औदारिक-द्वय, पंचन्द्रिय, १ संस्थान (हुंडक को छोड़कर, ५ भंग), १ संहनन (सृपाटिका को छोड़कर, ५ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात
मिथ्यादृष्टि 4608 उपरोक्त में संस्थान और संहनन के छहों विकल्प
25 मिथ्यादृष्टि (मनुष्य/तिर्यञ्च) 1 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, मनुष्य-द्विक, पंचेंद्रिय-जाति, औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान
देव-गति सहित 31 अप्रमत्त, अपूर्वकरण 20 1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश, देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर, आहारक-द्विक
30 अप्रमत्त 1 उपरोक्त 31 - तीर्थंकर
29 संयमी 1 (पुनरुक्त) उपरोक्त 31 - आहारक-द्विक
सम्यग्दृष्टि मनुष्य (4,5,6 गु.) 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 (स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर
28 संयमी 1 (पुनरुक्त) उपरोक्त 31 - (तीर्थकर, आहारक-द्विक)
मिथ्यादृष्टि से प्रमत्त-संयत 8 द्वितीय 29 प्रकृति-स्थान - तीर्थंकर
23 सामान्य प्रकृतियाँ 9 ध्रुव-बंधी (ध्रु./9 = तेजस, कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क)
9 युगल (यु./9 = त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश)
5 (गति-४, जाति-५, शरीर-३, संस्थान-६, आनुपूर्वी-४)
त्रस प्रकृति के बंध के साथ ही संहनन व अङ्गोपांग के बंध का नियम है
पर्याप्त प्रकृति के साथ ही उच्छ्वास व परघात के बंध का नियम है
त्रस और पर्याप्त प्रकृति के साथ २ (स्वर-द्विक, विहायोगति-द्विक में से प्रत्येक के अन्यतम) के बंध का नियम है
आतप का बंध पृथ्वीकायिक बादर पर्याप्त के साथ ही होता है
उद्योत का बंध बादर पर्याप्त [पृथ्वी, जल, प्रत्येक-वनस्पति] अथवा त्रस के साथ होता है

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+ नाम-कर्म बंध के आठ स्थान -
नाम-कर्म बंध के आठ स्थान

विशेष :

नाम-कर्म बंध के आठ स्थान
स्थान भंग प्रकृतियों का विवरण स्वामी संख्या स्वामी
1 1 यश:कीर्ति 3 8/7, 9, 10 गुणस्थान
23 3 1 ध्रुव/9, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान 11 5 सूक्ष्म अपर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
1 उपरोक्त 23 - सूक्ष्म + बादर 5 बादर अपर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
1 23 - (सूक्ष्म, साधारण) + (बादर, प्रत्येक) 1 बादर अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पति के बंधक
25 64 4 ध्रुव/9, स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, पर्याप्त, 2 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ] के 4 भंग), दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात 17 5 सूक्ष्म पर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु) + साधारण वनस्पति के बंधक
4 उपरोक्त 25 - सूक्ष्म + बादर 1 बादर पर्याप्त साधारण वनस्पति के बंधक
8 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात 4 आतप रहित बादर, प्रत्येक, पर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु)
8 उपरोक्त 25 - (सूक्ष्म, साधारण) + (बादर, प्रत्येक) 1 बादर पर्याप्त प्रत्येक वनस्पति (उद्योत रहित)
32 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यञ्च-द्विक, १ जाति [२-५ इंद्रिय के ४ भंग], औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान 5 अपर्याप्त त्रस संज्ञी / असंज्ञी तिर्यञ्च (उद्योत-रहित)
8 उपरोक्त 25 - (तिर्यञ्च-द्वय) + (मनुष्य-द्वय) 1 अपर्याप्त मनुष्य के बंधक
26 48 8 ध्रुव/9, स्थावर, बादर, प्रत्येक, पर्याप्त, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), दुर्भग, अनादेय, अयश, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय, औदारिक शरीर, हुंडक-संस्थान, उच्छ्वास, परघात, आतप 8 1 बादर पर्याप्त पृथ्वी (आतप सहित)
8 उपरोक्त 26 - आतप + उद्योत 3 बादर पर्याप्त (पृथ्वी, जल, वनस्पति) (उद्योत सहित)
32 ध्रुव/9, त्रस, अपर्याप्त, बादर, प्रत्येक, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यञ्च-द्विक, १ जाति [२-५ इंद्रिय के ४ भंग], औदारिक-द्विक, सृपाटिका-संहनन, हुंडक-संस्थान, उद्योत 4 बादर विकलत्रय, असंज्ञी पंचेंद्रिय (उद्योत सहित)
28 9 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देवद्वय, पंचेन्द्रिय, वैक्रियक द्वय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त-विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 2 1 देव-गति के बंधक
1 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, अस्थिर, अशुभ, अयश, नारकद्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, हुंडक, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 1 नरक-गति के बंधक, मिथ्यादृष्टि मनुष्य / तिर्यञ्च
29 32 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-५ इन्द्रिय इन ४ में अन्‍यतम से ४ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात 7 4 बादर पर्याप्त 2-4 इंद्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक (उद्योत रहित)
4608 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, 5 युगल ([सुभग, आदेय, स्थिर, शुभ, यश] से ३२ भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, पंचेन्द्रिय, 1 संस्थान (६ संस्‍थानों से ६ भंग), 1 संहनन (६ संहनन से ६ भंग), 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात 1 पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक
4608 उपरोक्त २९ - तिर्यंच द्वय + मनुष्‍य द्वय 1 पर्याप्त मनुष्‍य का बन्‍धक नारकी
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर 1 देवगति व तीर्थंकर के बन्‍धक
30 328 32 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, दुर्भग, अनादेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), तिर्यंच द्वय, औदारिक द्वय, 1 जाति (२-५ इन्द्रिय इन ४ में अन्‍यतम से ४ भंग), हुंडक, सृपाटिका, दुस्‍वर, अप्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, उद्योत 6 4 बादर पर्याप्त 2-4 इंद्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च का बन्‍धक (उद्योत सहित)
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, स्थिर, शुभ, सुभग, यश, आदेय / अनादेय, मनुष्‍य द्वय, औदारिक द्वय, पंचन्द्रिय, समचतुरस्र, वज्रऋषभ-नाराच संहनन, 2 (स्‍वर-द्वय / विहायोगति-द्वय से ४ भंग), उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर 1 मनुष्‍य व तीर्थंकर का बन्‍धक
8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, आहारक-द्विक 1 देव व आहारक का बन्‍धक
31 8 ध्रुव/९, त्रस-चतुष्क, सुभग, आदेय, 3 युगल ([स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, यश-अयश] के 8 भंग), देव द्वय, वैक्रियक द्वय, पंचेन्द्रिय, समचतुरस्र, सुस्‍वर, प्रशस्‍त विहायोगति, उच्‍छ्‍वास, परघात, तीर्थंकर, आहारक-द्विक 1 देवगति, आहारक व तीर्थंकर का बन्‍धक
23 सामान्य प्रकृतियाँ 9 ध्रुव-बंधी (ध्रु./9 = तेजस, कार्माण, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, वर्ण-चतुष्क)
9 युगल (यु./9 = त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-बादर, पर्याप्त-अपर्याप्त, प्रत्येक-साधारण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश)
5 (गति-४, जाति-५, शरीर-३, संस्थान-६, आनुपूर्वी-४)
त्रस प्रकृति के बंध के साथ ही संहनन व अङ्गोपांग के बंध का नियम है
पर्याप्त प्रकृति के साथ ही उच्छ्वास व परघात के बंध का नियम है
त्रस और पर्याप्त प्रकृति के साथ २ (स्वर-द्विक, विहायोगति-द्विक में से प्रत्येक के अन्यतम) के बंध का नियम है
आतप का बंध पृथ्वीकायिक बादर पर्याप्त के साथ ही होता है
उद्योत का बंध बादर पर्याप्त [पृथ्वी, जल, प्रत्येक-वनस्पति] अथवा त्रस के साथ होता है

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+ नाम-कर्म बन्ध-स्थान आदेश प्ररूपणा -
नाम-कर्म बन्ध-स्थान आदेश प्ररूपणा

विशेष :

नाम-कर्म बन्ध-स्थान आदेश प्ररूपणा
मार्गणा बन्ध-स्थान संख्या
गति नरक 29, 30 2
तिर्यञ्च 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
मनुष्य 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
देव 25, 26, 29, 30 4
इंद्रिय एकेन्द्रिय 23, 25, 26, 29, 30 6
विकलत्रय 23, 25, 26, 29, 30 6
पंचेंद्रिय 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
काय पृथ्वी, जल, वनस्पति 23, 25, 26, 29, 30 6
तेज, वायु 23, 25, 26, 29, 30 6
त्रस 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
योग मन, वचन 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
औदारिक-काय 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
औदारिक-मिश्र 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
वैक्रियिक 25, 26, 29, 30 4
वैक्रियिक-मिश्र 25, 26, 29, 30 4
आहारक 28, 29 2
आहारक-मिश्र 28, 29 2
कार्मण 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
वेद स्त्री 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
नपुंसक 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
पुरुष 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
कषाय (यथा योग्‍य) 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
ज्ञान कुमति-कुश्रुत 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
विभंग 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
मति, श्रुत, अवधि 28, 29, 30, 31, 1 5
मन:पर्यय 28, 29, 30, 31, 1 5
केवल × ×
संयम सामायिक / छेदोपस्थापना 28, 29, 30, 31, 1 5
परिहारविशुद्धि 28, 29, 30, 31 4
सूक्ष्मसाम्पराय 1 1
यथाख्यात × ×
देशविरत 28, 29 2
असंयम 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
दर्शन चक्षु 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
अचक्षु 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
अवधि 28, 29, 30, 31, 1 5
केवल × x
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
पीत, पद्म 25, 26, 28, 29, 30, 31 6
शुक्ल 28, 29, 30, 31 4
शुक्ल (केवली समुद्घात) 28, 29, 30, 31, 1 5
भव्य भव्य 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
अभव्य 23, 25, 26, 28, 29, उद्योत सहित के 20 6
सम्यक्त्व क्षायिक 28, 29, 30, 31, 1 5
वेदक 28, 29, 30, 31 4
उपशम 28, 29, 30, 31, 1 5
मिश्र 28, 29 2
सासादन 28, 29, 30 3
मिथ्यात्व 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
संज्ञी संज्ञी 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
असंज्ञी 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
आहारक आहारक 23, 25, 26, 28, 29, 30, 31, 1 8
अनाहारक 23, 25, 26, 28, 29, 30 6
अनाहारक (अयोगी) × x

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स्थिति बंध



+ जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति बंध का काल और स्वामी -
जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति बंध का काल और स्वामी

विशेष :

स्थिति बंध
जघन्य बंध उत्कृष्ट बंध
काल स्वामी काल (कोडा-कोडी सागर) स्वामी
ज्ञानावरणी - 5 अंतर्मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 30 चारों गति के उत्कृष्ट व मध्यम संकलेश मिथ्यादृष्टि
दर्शनावरणी चक्षु, अचक्षु, अवधी, केवल अंतर्मुहूर्त 30
5 निद्रा 3/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 30
वेदनीय साता 12 मुहर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 15
असाता 3/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 30
अंतराय - 5 अंतर्मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 30
मोहनीय दर्शन 1 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 70
चारित्र अनंतानुबंधी 4/7 सागर 40
अप्रत्याख्यानावरणी 4/7 सागर
प्रत्याख्यानावरणी 4/7 सागर
संज्वलन क्रोध 2 मास अनिवृत्तिकरण क्षपक
संज्वलन मान 1 मास
संज्वलन माया 15 दिन
संज्वलन लोभ अंतर्मुहूर्त
हास्य, रति 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 10
अरती, शोक, भय, जुगुप्सा 20
वेद नपुंसक 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20
पुरुष 8 वर्ष अनिवृत्तिकरण क्षपक 10
स्त्री 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 15
आयु मनुष्य क्षुद्र-भव कर्मभूमि संकलेश-युक्त मि. तिर्यञ्च / मनुष्य 3 पल्य कर्मभूमि विशुद्धि-युक्त मि. संज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य
तिर्यञ्च
नरक 10000 वर्ष मि. संज्ञी पंचे. ति. संक्लेश परिणत या सर्व-विशुद्ध संज्ञी पंचे. पर्याप्त 33 सागर कर्मभूमि संक्लेश-युक्त मि. संज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य
देव संज्ञी-असंज्ञी तिर्यञ्च / मनुष्य अप्रमत्त को सन्मुख प्रमत्त-विरत
नाम गति/आनुपूर्वी देव 2000/7 सागर सर्व विशुद्ध असंज्ञी पंचेंद्रिय 10 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
मनुष्य 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 15 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
तिर्यञ्च 20 मि. देव / नारकी
नरक 2000/7 सागर संक्लेश-युक्त असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
जाति एकेन्द्रिय 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 मि. ईशान देव
विकलेंद्रिय 18 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
पंचेंद्रिय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
शरीर/अंगोपांग औदारिक 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 मि. देव / नारकी
वैक्रियक 2000/7 सागर सर्व-विशुद्ध असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
आहारक अंत: कोडा-कोडी सागर अप्रमत्त अंत: कोडा-कोडी सागर अपूर्वकरण क्षपक के 1-7 भाग तक
शरीर तैजस 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
कार्मण
निर्माण, वर्ण-चतुष्क
संहनन, संस्थान वज्र-ऋषभनाराच, समचतुरस्र 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
वज्र-नाराच, न्यग्रोध 12
नाराच, स्वाति 14
अर्ध-नाराच, कुब्जक 16
कीलक, वामन 18
हुंडक संस्थान 20
सृपाटिका संहनन मि. देव / नारकी
अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रत्येक, त्रस, बादर, पर्याप्त, अशुभ, अस्थिर, दुर्भग, दु:स्वर, अनादेय 20 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
आतप, स्थावर मिथ्यादृष्टि ईशान देव
उद्योत मि. देव नारकी
विहायोगति प्रशस्त 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
अप्रशस्त 20
सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त 18 मि. संज्ञी पर्याप्त तिर्यञ्च / मनुष्य
सुभग, सुस्वर, शुभ, स्थिर, आदेय 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
अयश:कीर्ति 20
यश:कीर्ति 8 मुहूर्त सूक्ष्म-सांपरायिक क्षपक चरम समय 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
तीर्थंकर अंत: कोडा-कोडी सागर अपूर्वकरण क्षपक 1-5 भाग तक अंत: कोडा-कोडी सागर अविरत सम्यगदृष्टि
गोत्र उच्च 8 मुहूर्त सूक्ष्म साम्पराय क्षपक 10 चारों गति के उत्तम-मध्यम संक्लेश-युक्त मि.
नीच 2/7 सागर सर्व-विशुद्ध बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय 20
जघन्य स्थिति में एकेन्द्रिय स्वामी हो तो काल को पल्य के असंख्यातवें भाग से घटाएँ
जघन्य स्थिति में असंज्ञी पंचेंद्रिय स्वामी हो तो काल को पल्य के संख्यातवें भाग से घटाएँ
गोम्मटसार कर्मकांड - बंधोदय-सत्त्व अधिकार गाथा 127 से


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+ मार्गणा में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति-बंध -
मार्गणा में जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति-बंध

विशेष :

आदेश से आठ कर्मों में स्थिति बंध
ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय वेदनीय मोहनीय नाम-गोत्र आयु
ज. स्थिति उ. स्थिति ज. स्थिति उ. स्थिति ज. स्थिति उ. स्थिति ज. स्थिति उ. स्थिति ज. स्थिति उ. स्थिति आबाधा
गति नरक 1 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 30 को.को.सा. 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 30 को.को.सा. 1000 सा. - प./सं. 70 को.को.सा. 1000 * 2/7 सा. - प./सं. 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि 6 मास
2-7 अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा.
तिर्यञ्च 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. - (प./असं.) 1 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. - (प./असं.) 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
मनुष्य अंतर्मुहूर्त 12 मुहूर्त अंतर्मुहूर्त 8 मुहूर्त
देव भवनवासी, व्यंतर 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 1000 सा. - प./सं. 1000 * 2/7 सा. - प./सं. पूर्व-कोटि 6 मास
ज्योतिष से ईशान अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा.
सनतकुमार, माहेन्द्र पृथ्क्त्व मुहूर्त
ब्रह्म से कापिष्ठ पृथ्क्त्व दिवस
शुक्र से सहस्रार पृथ्क्त्व पक्ष
आनत से अच्युत अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास
ग्रैवेयिक से सर्वार्थसिद्धि पृथ्क्त्व वर्ष
इंद्रिय एकेन्द्रीय बादर-पर्याप्त 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. 1 सा. - (प./असं.) 1 सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 2/7 अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि साधिक 7000 वर्ष
बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. - (प./असं.) 1 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. - (प./असं.) अंतर्मुहूर्त
द्विन्द्रिय पर्याप्त 25 * 3/7 सा. - (प./सं.) 25 * 3/7 सा. 25 * 3/7 सा. - (प./सं.) 25 * 3/7 सा. 25 सा. - (प./सं.) 25 सा. 25 * 2/7 सा. - (प./सं.) 25 * 2/7 4 वर्ष
अपर्याप्त 25 * 3/7 सा. - (प./सं.) 25 * 3/7 सा. - (प./सं.) 25 सा. - (प./सं.) 25 * 2/7 सा. - (प./सं.) अंतर्मुहूर्त
त्रिंद्रिय पर्याप्त 50 * 3/7 सा. - (प./सं.) 50 * 3/7 सा.
50 * 3/7 सा. - (प./सं.) 50 * 3/7 सा. 50 सा. - (प./सं.) 50 सा. 50 * 2/7 सा. - (प./सं.) 50 * 2/7 साधिक 16 दिन
अपर्याप्त 50 * 3/7 सा. - (प./सं.) 50 * 3/7 सा. - (प./सं.) 50 सा. - (प./सं.) 50 * 2/7 सा. - (प./सं.) अंतर्मुहूर्त
चतुरिंद्रिय पर्याप्त 100 * 3/7 सा. - (प./सं.) 100 * 3/7 सा. 100 * 3/7 सा. - (प./सं.) 100 * 3/7 सा. 100 सा. - (प./सं.) 100 सा. 100 * 2/7 सा. - (प./सं.) 100 * 2/7 2 महीना
अपर्याप्त 100 * 3/7 सा. - (प./सं.) 100 * 3/7 सा. - (प./सं.) 100 सा. - (प./सं.) 100 * 2/7 सा. - (प./सं.) अंतर्मुहूर्त
पंचेंद्रिय पर्याप्त अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त 20 को.को.सा. 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
अपर्याप्तक 1000 * 3/7 सा. - (प./सं.) अंत: को.को.सा. 1000 * 3/7 सा. - (प./सं.) अंत: को.को.सा. 1000 सा. - (प./सं.) अंत: को.को.सा. 1000 * 2/7 सा. - (प./सं.) अंत: को.को.सा. पूर्व-कोटि अंतर्मुहूर्त
काय पृथ्वी 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. 1 सा. - (प./असं.) 1 सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि साधिक 7000 वर्ष
जल साधिक 2000 वर्ष
अग्नि 1 दिन-रात
वायु 1000 वर्ष
वनस्पति साधिक 3000 वर्ष
त्रस अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त 20 को.को.सा. 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
योग 5 मन, 5 वचन, औदारिक काय 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) 70 को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
वैक्रियिक-काय 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 1000 * 3/7 सा. - प./सं. 1000 सा. - प./सं. 2000 * 3/7 सा. - प./सं. पूर्व-कोटि 6 मास
आहारक, आहारक-मिश्र^ अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व पल्य 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
औदारिक-मिश्र 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. - (प./असं.) 1 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. - (प./असं.) पूर्व-कोटि अंतर्मुहूर्त
वैक्रियिक-मिश्र अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. -
कार्मण 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. - (प./असं.) 1 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. - (प./असं.)
वेद स्त्री, नपुंसक संख्यात हजार वर्ष 30 को.को.सा. पल्य / असंख्यात 30 को.को.सा. संख्यात सौ वर्ष 70 को.को.सा. पल्य / असंख्यात 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
पुरुष संख्यात हजार/सौ* वर्ष संख्यात हजार वर्ष सोलह वर्ष संख्यात हजार वर्ष
अपगत संख्यात हजार वर्ष पल्य / असंख्यात संख्यात सौ वर्ष पल्य / असंख्यात -
कषाय क्रोध संख्यात हजार/सौ* वर्ष 30 को.को.सा. संख्यात हजार वर्ष 30 को.को.सा. 2 मास 70 को.को.सा. संख्यात हजार वर्ष 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
मान संख्यात हजार/पृथ्क्त्व* वर्ष संख्यात हजार/सौ* वर्ष 1 मास संख्यात हजार/सौ* वर्ष
माया संख्यात हजार वर्ष/पृथ्क्त्व मास* संख्यात हजार/पृथ्क्त्व* वर्ष 1 पक्ष संख्यात हजार/पृथ्क्त्व* वर्ष
लोभ अंतर्मुहूर्त 12 मुहूर्त अंतर्मुहूर्त 8 मुहूर्त
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) 70 को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 20 को.को.सा.
विभंगावधि अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त
मन:पर्यय पृथ्क्त्व मुहूर्त अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व पल्य
आभिनिबोधिक, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी अंतर्मुहूर्त 12 मुहूर्त अंतर्मुहूर्त 8 मुहूर्त पृथ्क्त्व वर्ष
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना पृथ्क्त्व मुहूर्त अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व पल्य 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
परिहार-विशुद्धि अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व पल्य
सूक्ष्म-सांपरायिक अंतर्मुहूर्त पृथ्क्त्व मुहूर्त 12 मुहूर्त पृथ्क्त्व मास - 8 मुहूर्त पृथ्क्त्व मास -
संयमासंयम अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व पल्य 22 सा. पूर्व-कोटि / 3
असंयत 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) 70 को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 33 सा.
दर्शन चक्षु, अचक्षु अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त पृथ्क्त्व वर्ष 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
अवधि अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा.
लेश्या कृष्ण 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) 70 को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 20 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
नील 17 सा.
कापोत 7 सा.
पीत अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त साधिक 2 सा.
पद्म पृथ्क्त्व मुहूर्त साधिक 18 सा.
शुक्ल अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. 12 मुहूर्त अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. 8 मुहूर्त अंत: को.को.सा. पृथ्क्त्व मास 33 सा.
भव्य भव्य अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त 20 को.को.सा. पृथ्क्त्व मास 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
अभव्य 3/7 सा. - (प./असं.) 3/7 सा. - (प./असं.) 1 सा. - (प./असं.) 2/7 सा. - (प./असं.) अंतर्मुहूर्त
सम्यक्त्व औपशमिक 2 अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. 24 मुहूर्त अंत: को.को.सा. अंतर्मुहूर्त अंत: को.को.सा. 16 मुहूर्त अंत: को.को.सा. -
क्षायिक अंतर्मुहूर्त 12 मुहूर्त अंतर्मुहूर्त 8 मुहूर्त पृथ्क्त्व वर्ष 33 सा. पूर्व-कोटि / 3
वेदक अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा. अंत: को.को.सा.
सम्यग्मिथ्यादृष्टि -
सासादन अंतर्मुहूर्त 31 सा. पूर्व-कोटि / 3
मिथ्यादृष्टि 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) 30 को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) 70 को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) 20 को.को.सा. 33 सा.
संज्ञी संज्ञी अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त 20 को.को.सा. 33 सा.
असंज्ञी 1000 * 3/7 सा. - (प./असं.) 1000 * 3/7 सा. 1000 * 3/7 सा. - (प./असं.) 1000 * 3/7 सा. 1000 सा. - (प./असं.) 1000 सा. 1000 * 2/7 सा. - (प./असं.) 1000 * 2/7 सा. पल्य / असंख्यात
आहार आहारक अंतर्मुहूर्त 30 को.को.सा. 12 मुहूर्त 30 को.को.सा. अंतर्मुहूर्त 70 को.को.सा. 8 मुहूर्त 20 को.को.सा. 33 सा.
अनाहारक 3/7 सा. - (प./असं.) अंत: को.को.सा. 3/7 सा. - (प./असं.) अंत: को.को.सा. 1 सा. - (प./असं.) अंत: को.को.सा. 2/7 सा. - (प./असं.) अंत: को.को.सा. -
*कषाय के बंध में महाबन्ध में दोनों को ग्रहण किया है
^आहारक-मिश्र काय योग में आयु का बंध गोम्मटसार के अनुसार नहीं होता, महाबन्ध के अनुसार होता है ।
निगोद जीवों के 7 कर्मों का स्थिति-बंध पृथ्वीकायिक जीवों के समान है और आयु-कर्म का स्थिति-बंध सूक्ष्म-एकेन्द्रिय के समान है
को.को.सा.=कोडा-कोडी सागर; प.=पल्य; सं.=संख्यात; असं.=असंख्यात

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+ मूल-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार -
मूल-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार

विशेष :

जघन्य आदि स्थिति बंध के प्रकार (सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव)
अजघन्य जघन्य उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट
ज्ञानावरणी - 5 चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
दर्शनावरणी चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
वेदनीय चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
मोहनीय चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
आयु सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
नाम चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
गोत्र चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
अंतराय चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव

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+ स्थिति-बंधस्थान प्ररूपणा -
स्थिति-बंधस्थान प्ररूपणा

विशेष :
सूक्ष्म अपर्याप्त < बादर अपर्याप्त < सूक्ष्म पर्याप्त < बादर पर्याप्त << द्विन्द्रिय अपर्याप्त < द्विन्द्रिय पर्याप्त < त्रिन्द्रिय अपर्याप्त < त्रिन्द्रिय पर्याप्त < चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त < चतुरिन्द्रिय पर्याप्त < असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्त < असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त < संज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्त < संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त

'<' = संख्यात अधिक
'<<' = असंख्यात अधिक

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+ संक्लेश-विशुद्धि-स्थान प्ररूपणा -
संक्लेश-विशुद्धि-स्थान प्ररूपणा

विशेष :
सूक्ष्म अपर्याप्त << बादर अपर्याप्त << सूक्ष्म पर्याप्त << बादर पर्याप्त << द्विन्द्रिय अपर्याप्त << द्विन्द्रिय पर्याप्त << त्रिन्द्रिय अपर्याप्त << त्रिन्द्रिय पर्याप्त << चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त << चतुरिन्द्रिय पर्याप्त < असंज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्त << असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त << संज्ञी पंचेंद्रिय अपर्याप्त << संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त

'<<' = असंख्यात अधिक

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+ स्थिति बंध अल्प-बहुत्व -
स्थिति बंध अल्प-बहुत्व

विशेष :
संयत (ज) << बादर पर्याप्त (ज) < सूक्ष्म पर्याप्त (ज) < बादर अपर्याप्त (ज) < सूक्ष्म अपर्याप्त (ज) < सूक्ष्म अपर्याप्त (उ) < बादर अपर्याप्त (उ) < सूक्ष्म पर्याप्त (उ) < बादर पर्याप्त (उ) < द्विन्द्रिय पर्याप्त (ज) < द्विन्द्रिय अपर्याप्त (ज) < द्विन्द्रिय अपर्याप्त (उ) < द्विन्द्रिय पर्याप्त (उ) < त्रिन्द्रिय पर्याप्त (ज) < त्रिन्द्रिय अपर्याप्त (ज) < त्रिन्द्रिय अपर्याप्त (उ) < त्रिन्द्रिय पर्याप्त (उ) < चतुरिन्द्रिय पर्याप्त (ज) < चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त (ज) < चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त (उ) < चतुरिन्द्रिय पर्याप्त (उ) < असंज्ञी पंचेंन्द्रिय पर्याप्त (ज) < असंज्ञी पंचेंन्द्रिय अपर्याप्त (ज) < असंज्ञी पंचेंन्द्रिय अपर्याप्त (उ) < असंज्ञी पंचेंन्द्रिय पर्याप्त (उ) < संयत (उ) < संयतासंयत (ज) < संयतासंयत (उ) < असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त (ज) < असंयत सम्यग्दृष्टि निर्वृत्यपर्याप्त (ज) < असंयत सम्यग्दृष्टि निर्वृत्यपर्याप्त (उ) < असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त (उ) < संज्ञी पंचेंद्रिय मिथ्यादृष्टि पर्याप्त (ज) < संज्ञी पंचेंद्रिय मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त (ज) < संज्ञी पंचेंद्रिय मिथ्यादृष्टि अपर्याप्त (उ) < संज्ञी पंचेंद्रिय मिथ्यादृष्टि पर्याप्त (उ)


'<' = संख्यात अधिक
'<<' = असंख्यात अधिक
(ज) = जघन्य स्थिति बंध
(उ) = उत्कृष्ट स्थिति बंध

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+ उत्तर-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार -
उत्तर-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति के प्रकार

विशेष :

उत्तर-प्रकृतियों में अजघन्य आदि स्थिति बंध
अजघन्य जघन्य उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट
संज्वलन-4 चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
ज्ञानावरणी चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
दर्शनावरणी चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
अंतराय चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
शेष 102 प्रकृतियाँ सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव

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अनुभाग बंध



+ अनुभाग बन्ध के स्वामी -
अनुभाग बन्ध के स्वामी

विशेष :

अनुभाग बंध के स्वामी
उत्कृष्ट अनुभाग के स्वामी जघन्य अनुभाग के स्वामी
ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ४, अन्तराय ५ चारों गति के उत्कृष्ट संक्लिष्ट मिथ्या. सूक्ष्मसाम्पराय क्षपक का चरम समय
निद्रा, प्रचला, हास्य, रति, भय, जुगुप्सा अपूर्वकरण में बन्धव्युच्छित्ति से पहले
स्त्यानत्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अप्रमत्तसंयत सन्मुख सातिशय मिथ्यादृष्टि
अप्रत्याख्यान 4 अप्रमत्तसंयत सन्मुख अविरतसम्यग्दृष्टि
प्रत्याख्यान 4 अप्रमत्तसंयत सन्मुख देशसंयत
संज्वलन ४, पुरुष वेद अनिवृत्तिकरण क्षपक के बन्धव्युच्छित्ति से पहले
अरति, शोक अप्रमत्तसंयत सन्मुख प्रमत्तसंयत
स्त्री, नपुंसक वेद चारों गति के विशुद्ध मिथ्या.
साता क्षपक श्रेणी सूक्ष्म-सांपराय चरम समय अपरिवर्तमान मध्य मिथ्यादृष्टि / सम्यग्दृष्टि
असाता चारों गति के उत्कृष्ट संक्लिष्ट मिथ्या.
नरकायु संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच
तिर्यंचायु, मनुष्यायु विशुद्ध मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच
देवायु अप्रमत्तसंयत
उच्च गोत्र क्षपक श्रेणी सूक्ष्म-सांपराय चरम समय परिवर्तमान मध्य मिथ्यादृष्टि
नीच गोत्र चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या. उपशम सम्यक्त्व सन्मुख सप्तम पृथ्वी नारकी विशुद्ध मिथ्यादृष्टि
तिर्यञ्च-द्विक संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव नारकी
मनुष्य द्वि. अनंतानुबंधी विसंयोजक सम्यग्दृष्टि देव नारकी परिवर्तमान मध्य मिथ्यादृष्टि
औदारिक द्वि. संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव / नारकी
एकेन्द्रिय जाति, स्थावर आयु के छह माह शेष रहने पर संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव मध्यम परिणामी देव मनुष्य तिर्यंच
आतप संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि भवनत्रिक से ईशान.
नरक द्वि., सूक्ष्म-त्रय, विकलत्रय उत्कृष्ट संक्लेश वाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच मिथ्यादृष्टि मनुष्य तिर्यंच
देव द्वि., वैक्रियक द्वि. क्षपक श्रेणी अपूर्वकरण का छठा भाग
आहारक द्वि. प्रमत्तसंयत सन्मुख अप्रमत्तसंयत
पंचेन्द्रिय जाति, तैजस, कार्माण, निर्माण, प्रशस्त वर्णादि ४, अगुरुलघु, परघात, प्रत्येक, त्रस, बादर, पर्याप्त, उच्छ्वास चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या.
अप्रशस्त वर्णादि ४, उपघात चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या. क्षपक श्रेणी अपूर्वकरण का छठा भाग
सुभग, सुस्वर, आदेय, समचतुरस्र संस्थान क्षपक श्रेणी अपूर्वकरण का छठा भाग परिवर्तमान मध्य मिथ्यादृष्टि
पाँच अप्रशस्त संस्थान चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या.
वज्र ऋषभ नाराच अनंतानुबंधी विसंयोजक सम्यग्दृष्टि देव नारकी
वज्र नाराच आदि ४ चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या.
असंप्राप्त सृपाटिका संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव नारकी
अप्रशस्त विहायोगति चारों गति के संक्लिष्ट मिथ्या.
दुर्भग, दुस्वर, अनादेय
अयश:कीर्ति, अशुभ, अस्थिर अपरिवर्तमान मध्य मिथ्यादृष्टि / सम्यग्दृष्टि
यश:कीर्ति क्षपक श्रेणी सूक्ष्म-सांपराय चरम समय
स्थिर, शुभ, प्रशस्त विहायोगति क्षपक श्रेणी अपूर्वकरण का छठा भाग
उद्योत सातवें नरक में उपशम सम्यक्त्व के सन्मुख विशुद्ध मिथ्यादृष्टि नारकी संक्लिष्ट मिथ्यादृष्टि देव / नारकी
तीर्थंकर क्षपक श्रेणी अपूर्वकरण का छठा भाग नरक और मिथ्यात्व सन्मुख अविरत सम्यग्दृष्टि
संक्लिष्ट मिथ्या. = तीव्र कषाययुक्त मिथ्यादृष्टि जीव


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+ मूल प्रकृतियों में सादि आदि भेद -
मूल प्रकृतियों के अनुभाग बंध में सादि आदि भेद

विशेष :

मूल-प्रकृतियों के अनुभाग बंध में सादि-अनादि / उत्कृष्टादि प्ररूपणा
प्ररूपणा कर्म उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट जघन्य अजघन्य
संज्ञा घाति घातिया सर्वघाती सर्वघाती, देशघाती देशघाती देशघाती, सर्वघाती
स्थान घातिया चतुःस्थानीय चतुःस्थानीय, त्रिस्थानीय, द्विस्थानीय, एकस्थानीय एकस्थानीय एकस्थानीय, द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, चतुःस्थानीय
अघातिया चतुःस्थानीय चतुःस्थानीय, त्रिस्थानीय, द्विस्थानीय द्विस्थानीय द्विस्थानीय, त्रिस्थानीय, चतुःस्थानीय
सर्व-नोसर्व बंध आठों कर्म सर्व, नोसर्व सर्व, नोसर्व सर्व, नोसर्व सर्व, नोसर्व
सब अनुभाग का बन्ध होता है, इसलिए सर्वबन्ध होता है। और उससे न्यून अनुभाग का बन्ध होता है, इसलिए नोसर्वबन्ध होता है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए ।
सादि-अनादि-ध्रुव-अध्रुवबन्ध घातिया सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव
अघातिया वेदनीय सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव
नाम सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव
गोत्र सादि, अध्रुव सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अनादि, ध्रुव, अध्रुव
आयु सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
इसी प्रकार ओघ के समान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य और मिथ्यादृष्टि जीवों के जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि भव्यजीवों में ध्रुवबन्ध नहीं होता है । शेष मार्गणाओं में सादि और अध्रुवबन्ध होता है । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए ।
महबंधो - 1 (अनुभाग-बंध, 24 अनुयोग-द्वार प्ररूपणा)

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+ मूल प्रकृतियों के अनुभाग बंध में स्वामित्व प्ररूपणा -
मूल प्रकृतियों के अनुभाग बंध में स्वामित्व प्ररूपणा

विशेष :

मूल-प्रकृतियों के अनुभाग बंध में स्वामित्व प्ररूपणा
मिथ्यात्व असंयम कषाय योग
स्वामित्व प्रत्यय 6 कर्म X
वेदनीय
जीव-विपाकी भव-विपाकी पुद्गल-विपाकी क्षेत्र-विपाकी
विपाकदेश 6 कर्म X X X
आयु X X X
नाम X
प्रशस्ताप्रशस्त चार घातिकर्म अप्रशस्त होते हैं। अघाति-कर्म प्रशस्त और अप्रशस्त दोनों प्रकार के होते हैं ।
महबंधो - 1 (अनुभाग-बंध, 24 अनुयोग-द्वार प्ररूपणा)

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+ उत्तर प्रकृतियों में सादि आदि भेद -
उत्तर प्रकृतियों के अनुभाग बंध में सादि आदि भेद

विशेष :

उत्तर प्रकृतियों के अनुभाग बंध में सादि आदि भेद
जघन्य अजघन्य उत्कृष्ट अनुत्कृष्ट
ध्रुव बंधी तैजस, कार्माण, निर्माण, प्रशस्त वर्ण चतुष्क, अगुरुलघु सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव चारों
ज्ञानावरणीय ५, दर्शनावरणीय ९, अन्तराय ५, मिथ्यात्व, कषाय १६, भय, जुगुप्सा, उपघात, अप्रशस्त वर्ण चतुष्क सादि, अध्रुव चारों सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव
७३ अध्रुव बंधी प्रकृतियाँ सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव सादि, अध्रुव

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+ आठ मूल-प्रकृतियों के जघन्य / उत्कृष्ट अनुभाग बंध में स्वामित्व -
आठ मूल-प्रकृतियों के जघन्य / उत्कृष्ट अनुभाग बंध में स्वामित्व

विशेष :

आठ मूल-प्रकृतियों के जघन्य / उत्कृष्ट अनुभाग बंध में स्वामित्व
मूल-प्रकृति ओघ / आदेश उत्कृष्ट-अनुभाग-बंध जघन्य-अनुभाग-बंध
घातिया कर्म ओघ से ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी, अंतराय पंचेंद्रिय, संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत नियम से उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव अन्तिम अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक सूक्ष्मसांपरायिक जीव
मोहनीय अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव
गति नरकगति सब पर्याप्तियों से पर्याप्त साकार जागृत संक्लेश-युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभाग-बन्ध में अवस्थित अन्यतर असंयत-सम्यग्दृष्टि जीव
तिर्यञ्च सामान्य, पंचेंद्रिय, तिर्यंचिनी, पर्याप्त संज्ञी मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत सर्वसंक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय साकार-जागृत, सर्व-विशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर संयतासंयत
सर्व लब्ध्यपर्याप्त साकार जागत उत्कृष्ट संक्लेश युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर संज्ञी साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर जीव
मनुष्य मनुष्य-त्रिक साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
देव सामान्य देवों से उपरिम ग्रेवेयक सब पर्याप्तियों से पर्याप्त साकार जागृत संक्लेश-युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि दूसरी पृथिवी के समान
अनुदिश से सर्वार्थसिद्धि साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर जीव सामान्य देवों के समान
इंद्रिय एकेन्द्रिय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर सब पर्याप्तियों से पर्याप्त साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर एकेन्द्रिय जीव
विकलत्रय संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत नियम से उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित
पंचेंद्रिय संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत नियम से उत्कृष्ट संक्लेश परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव ओघ के समान
काय पृथ्वी, जल, वनस्पति, निगोद (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) (सब पर्याप्तियों से पर्याप्त), साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, [बादर अपर्याप्त], सूक्ष्म) साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादरपर्याप्त उक्त जीव
अग्निकायिक, वायुकायिक (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) (सब पर्याप्तियों से पर्याप्त), साकार-जागृत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, [बादर अपर्याप्त], सूक्ष्म) साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादरपर्याप्त जीव
त्रस, त्रस पर्याप्त ओघ के समान ओघ के समान
योग पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी ओघ के समान ओघ के समान
काय औदारिक ओघ के समान
औदारिकमिश्र संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, तिर्यञ्च या मनुष्य, साकार-जागृत और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पंचेंद्रिय सकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को ग्रहण करेगा ऐसा अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य असंयत-सम्यग्दृष्टि जीव
वैक्रियिक साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव या नारकी मिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव
वैक्रियिक-मिश्र तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को पूर्ण करेगा, ऐसा साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी असंयतसम्यग्दृष्टि जीव
आहारक साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर जीव
आहारक-मिश्र साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर जीव; तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को पूर्ण करेगा
कार्मण साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का संज्ञी मिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का असंयतसम्यदृष्टि जीव
वेद स्त्री, पुरुष साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित तीन गति (नरक को छोड़कर) का संज्ञी मिथ्यादृष्टि अन्तिम जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव
नपुंसक उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गति (देव को छोड़कर) का मिथ्यादृष्टि
अपगत-वेदी अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक ओघ के समान
कषाय क्रोध, मान, माया संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का पंचेन्द्रिय नपुंसकवेदी के समान
लोभ ओघ के समान ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, साकार-जाग्रत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गति का पंचेन्द्रिय साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, संयम के अभिमुख और अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मनुष्य
आभिनिबोधिक, श्रुत, और अवधि सर्व पयाप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित, अन्यतर चार गति का असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
मनःपर्यय उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, असंयम के अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत
दर्शन चक्षु, अचक्षु ओघ के समान ओघ के समान
अवधिदर्शनी सर्व पयाप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित, अन्यतर चार गति का असंयत सम्यग्दृष्टि
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागवन्धम अवस्थित और मिथ्यात्वके अभिमुखसंयत अन्यतर अनिवृत्तिकरण क्षपक
परिहारविशुद्धि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, सामायिक और छेदोपस्थापना संयम के अभिमुख और अन्तिम अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत साकार-जागृत, और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत
सूक्ष्मसांपरायिक अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक ओघ के समान
संयतासंयत मिथ्यात्व के अभिमुख, साकार जागृत, उत्कृष्ट संकेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य सर्वविशुद्ध और संयम के अभिमुख अन्यतर मनुष्य सम्यग्दृष्टि जीव
असंयत संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, साकार-जाग्रत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर चार गति का पंचेन्द्रिय साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, संयम के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर मनुष्य
लेश्या कृष्ण साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्शलेयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गति (देव को छोड़कर) का जीव सर्वविशुद्ध अन्यतर नारकी सम्यग्दृष्टि जीव
नील, कापोत साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्शलेयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर नरक का जीव
पीत साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव मिथ्याष्टि सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव
पद्म सहस्रारकल्प के समान
शुक्ल उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव ओघ के समान
भव्य भव्य ओघ के समान ओघ के समान
अभव्य मिथ्यादृष्टि / मत्याज्ञानी जीवों के समान साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, संयम के अभिमुख और अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर द्रव्यलिंगी
सम्यक्त्व वेदक साकार-जागृत, उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का असंयतसम्यग्दृष्टि सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत जीव
क्षायिक साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का असंयतसम्यग्दृष्टि ओघ के समान
उपशम तीन घातिया कर्म साकार-जाग्रत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का असंयतसम्यग्दृष्टि अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर उपशामक सूक्ष्मसांपरायिक जीव
मोहनीय अन्यतर उपशामक अनिवृत्तिकरण जीव
सासादनसम्यग्दृष्टि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गति का जीव
सम्यमिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट मिथ्यात्व के अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव सर्वविशुद्ध और सम्यक्त्व के अभिमुख अन्यतर चार गति का जीव
मिथ्यादृष्टि अभव्य / मत्याज्ञानी जीवों के समान मत्याज्ञानी के समान
संज्ञी असंज्ञी साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव एकन्द्रियों के समान
संज्ञी ओघ के समान ओघ के समान
आहारक आहारक ओघ के समान ओघ के समान
अनाहारक कार्मणकाययोगी जीवों के समान कार्मणकाययोगी जीवों के समान
वेदनीय, नाम ओघ से सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अन्यतर सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला जीव
गति नरकगति साकार जागृत सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
तिर्यञ्च सामान्य, पंचेंद्रिय, तिर्यंचिनी, पर्याप्त साकार जागृत, सर्व विशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर संयतासंयत ओघ के समान
सर्व लब्ध्यपर्याप्त संज्ञी, साकार, जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर जीव मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर जीव
मनुष्य मनुष्य-त्रिक ओघ के समान ओघ के समान
देव सामान्य देवों से उपरिम ग्रेवेयक साकार जागृत सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि दूसरी पृथिवी के समान
अनुदिश से सर्वार्थसिद्धि सामान्य देवों के समान
इंद्रिय एकेन्द्रिय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग-बन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर सामान्य तिर्यञ्चों के समान
विकलत्रय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग-बन्ध में अवस्थित अन्यतर
पंचेंद्रिय सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक ओघ के समान
काय अग्निकायिक, वायुकायिक (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) पृथिवीकायिक जीवों के समान
पृथ्वी, जल, वनस्पति, निगोद (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) अन्यतर परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला उक्त जीव
त्रस, त्रस पर्याप्त ओघ के समान ओघ के समान
योग पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी ओघ के समान ओघ के समान
काय औदारिक ओघ के समान
औदारिकमिश्र सम्यग्दृष्टि, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च या मनुष्य ओघ के समान
वैक्रियिक साकार-जागृत, नियम से सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि सामान्य नारकियों के समान
वैक्रियिक-मिश्र उपशमश्रेणि से गिरकर प्रथम समय में देव हुआ अन्यतर जीव ओघ के समान
आहारक साकार-जागृत,सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर अनुदिश के समान
आहारक-मिश्र अनुदिश के समान; तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को ग्रहण करेगा
कार्मण साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का सम्यग्दृष्टि / अथवा जो उपशामक जीव मर कर प्रथम समयवर्ती देव हुआ है परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टि जीव
वेद स्त्री, पुरुष उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर तीन गति का जीव
नपुंसक अन्यतर तीन गति का जीव
अपगत-वेदी ओघ के समान अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक
कषाय क्रोध, मान, माया उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक अनिवृत्तिकरण जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामना और जघन्य अनभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर चार गति का जीव
लोभ ओघ के समान ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि संयम के अभिमुख, सर्वविशुद्ध और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मनुष्य ओघ के समान
आभिनिबोधिक, श्रुत, और अवधि ओघ के समान अन्यतर चार गति का जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला
मनःपर्यय ओघ के समान साकारजागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, असंयम के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर जीव
दर्शन चक्षु, अचक्षु ओघ के समान ओघ के समान
अवधिदर्शनी ओघ के समान
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना अनिवृत्तिक्षपक ओघ के समान
परिहारविशुद्धि साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर जीव
सूक्ष्मसांपरायिक अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक उपशमश्रेणी से गिरनेवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित जीव
संयतासंयत साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, संयम के अभिमुख और अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मनुष्य परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर जीव
असंयत संयम के अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मनुष्य असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर नारकी असंयत-सम्यग्दृष्टि सामान्य नारकियों के समान
पीत, पद्म साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत सौधर्म कल्प के समान
शुक्ल ओघ के समान आनत कल्प के समान
भव्य भव्य ओघ के समान ओघ के समान
अभव्य संज्ञी, पंचेन्द्रिय, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव अथवा द्रव्यसंयत मनुष्य
सम्यक्त्व वेदक साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अप्रमत्तसंयत अवधिज्ञानी जीवों के समान
क्षायिक ओघ के समान
उपशम अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर उपशामक, सूक्ष्मसांपरायिक
सासादनसम्यग्दृष्टि साकार-जागृत और नियम से सर्वविशुद्ध अन्यतर चार गति का जीव परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला चार गति का जीव
सम्यमिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्व के अभिमुख और उत्कृष्ट अनुभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव
मिथ्यादृष्टि अभव्य / मत्याज्ञानी जीवों के समान अभव्य / मत्याज्ञानी जीवों के समान
संज्ञी असंज्ञी साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त एकन्द्रियों के समान
संज्ञी ओघ के समान ओघ के समान
आहारक आहारक ओघ के समान ओघ के समान
अनाहारक कार्मणकाययोगी जीवों के समान कार्मणकाययोगी जीवों के समान
गोत्र ओघ से सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध, सम्यक्त्व के अभिमुख और अन्तिम जघन्य अनभाग बन्ध में अवस्थित अन्यतर सातवीं पृथिवी का नारकी मिथ्यादृष्टि जीव
गति नरकगति वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
तिर्यञ्च सामान्य सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर अग्निकायिक और बादर वायुकायिक
पंचेंद्रिय, पंचेंद्रिय-पर्याप्त, तिर्यंचिनी परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय मिथ्यादृष्टि
सर्व लब्ध्यपर्याप्त मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर जीव
मनुष्य मनुष्य-त्रिक परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव
देव सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संलशयुक्त और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर जीव
इंद्रिय एकेन्द्रिय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर पृथिवी / जल / वनस्पति कायिक सामान्य तिर्यञ्चों के समान
विकलत्रय सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर
पंचेंद्रिय सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थान के अन्तिम उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर क्षपक
काय अग्निकायिक, वायुकायिक (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) (सब पर्याप्तियों से पर्याप्त), साकार-जागृत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, [बादर अपर्याप्त], सूक्ष्म) साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर बादरपर्याप्त जीव
पृथ्वी, जल, वनस्पति, निगोद (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) वेदनीय, नाम के समान अन्यतर परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला उक्त जीव
त्रस, त्रस पर्याप्त
योग पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
काय औदारिक साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर बादर अग्निकायिक और वायुकायिक जीव
औदारिकमिश्र एकेन्द्रियों के समान; इतनी विशेषता है कि तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को ग्रहण करेगा, ऐसा कहना चाहिये
वैक्रियिक ओघ के समान
वैक्रियिक-मिश्र साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को पूर्ण करेगा,ऐसा अन्यतर सातवीं पृथ्वी का नारकी मिथ्यादृष्टि जीव
आहारक अनुदिश के समान
आहारक-मिश्र अनुदिश के समान; तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को ग्रहण करेगा
कार्मण साकार-जागृत,सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर सातवीं पृथिवी का मिथ्यादृष्टि नारकी
वेद स्त्री, पुरुष वेदनीय, नाम के समान परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तीन गति का मिथ्यादृष्टि जीव
नपुंसक ओघ के समान
अपगत-वेदी अन्तिम जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर गिरनेवाला उपशामक
कषाय क्रोध, मान, माया वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
लोभ ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
आभिनिबोधिक, श्रुत, और अवधि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव
मनःपर्यय
दर्शन चक्षु, अचक्षु वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
अवधिदर्शनी
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना वेदनीय, नाम के समान मिथ्यात्व के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान
परिहारविशुद्धि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, सामायिक और छेदोपस्थापना संयम के अभिमुख तथा जघन्य अनभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव
सूक्ष्मसांपरायिक उपशमश्रेणी से गिरनेवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित जीव
संयतासंयत साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त, मिथ्यात्व के अभिमुख और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य
असंयत ओघ के समान
लेश्या कृष्ण वेदनीय, नाम के समान सामान्य नारकियों के समान
नील सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अग्निकायिक और वायुकायिक जीव; तत्प्रायोग्य विशुद्ध जीव
कापोत सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर अग्निकायिक और वायुकायिक जीव
पीत, पद्म सौधर्म कल्प के समान
शुक्ल आनत कल्प के समान
भव्य भव्य वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
अभव्य
सम्यक्त्व वेदक वेदनीय, नाम के समान अवधिज्ञानी जीवों के समान
क्षायिक साकार-जागृत और नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त चार गति का असंयतसम्यग्दृष्टि जीव
उपशम अवधिज्ञानी जीवों के समान
सासादनसम्यग्दृष्टि साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध सातवीं पृथिवी का नारकी जीव
सम्यमिथ्यादृष्टि साकार-जागृत, नियम से उत्कृष्ट संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्व अभिमुख अन्यतर चार गति का जीव
मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
संज्ञी असंज्ञी वेदनीय, नाम के समान एकन्द्रियों के समान
संज्ञी ओघ के समान
आहारक आहारक वेदनीय, नाम के समान ओघ के समान
अनाहारक कार्मणकाययोगी जीवों के समान
आयु ओघ से साकार जागृत तत्प्रायोग्य विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अप्रमत्त संयत अन्यतर जघन्य अपर्याप्त निवृत्ति से निवृत्तमान, मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभाग-बन्ध में अवस्थित जीव
गति नरकगति 1-6 नरक साकार जागृत तत्प्रायोग विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि जघन्य पर्याप्त निवृत्ति से निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि
7 नरक सर्व पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर मिथ्यादृष्टि
तिर्यञ्च सामान्य, पंचेंद्रिय, तिर्यंचिनी, पर्याप्त संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, सब पर्याप्तियों से पर्याप्त, साकार, जागृत तत्प्रायोग्य संक्लेश-युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय ओघ के समान
सर्व लब्ध्यपर्याप्त संज्ञी, साकार-जागृत, तत्प्रायोग्यविशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर जीव जघन्य अपर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला अन्यतर जीव
मनुष्य मनुष्य-त्रिक ओघ के समान ओघ के समान
देव सामान्य देवों से उपरिम ग्रेवेयक साकार जागृत तत्प्रायोग विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर सम्यग्दृष्टि दूसरी पृथिवी के समान
अनुदिश से सर्वार्थसिद्धि सामान्य देवों के समान
इंद्रिय एकेन्द्रिय साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग-बन्ध में अवस्थित अन्यतर बादर सामान्य तिर्यञ्चों के समान
विकलत्रय साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग-बन्ध में अवस्थित अन्यतर
पंचेंद्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त ओघ के समान
काय पृथ्वी, जल, वनस्पति, निगोद (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) अपर्याप्त निवृत्ति से निवृत्तिमान, मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर उक्त जीव
अग्निकायिक, वायुकायिक (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर (बादर, बादरपर्याप्त, बादर अपर्याप्त, सूक्ष्म) पृथिवीकायिक जीवों के समान
त्रस, त्रस पर्याप्त ओघ के समान
योग पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, काययोगी ओघ के समान ओघ के समान
काय औदारिक ओघ के समान
औदारिकमिश्र संज्ञी, मिथ्यादृष्टि, तिर्यञ्च या मनुष्य, साकारजागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पञ्चेन्द्रिय ओघ के समान
वैक्रियिक साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धि युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर देव और नारकी सम्यग्दृष्टि सामान्य नारकियों के समान
आहारक साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्धियुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर; आहारक-मिश्र में शरीर-पर्याप्ति का ग्राहक अनुदिश के समान
आहारक-मिश्र अनुदिश के समान; तदनन्तर समय में शरीर पर्याप्ति को ग्रहण करेगा
वेद स्त्री, पुरुष, नपुंसक ओघ के समान ओघ के समान
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ ओघ के समान ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि पंचेन्द्रिय, संज्ञी, साकार-जागृत तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य ओघ के समान
आभिनिबोधिक, श्रुत, और अवधि ओघ के समान जघन्य पर्याप्तनिवृत्ति से निवर्तमान और जघन्य अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर चार गति का जीव
मनःपर्यय ओघ के समान
दर्शन चक्षु, अचक्षु ओघ के समान ओघ के समान
अवधिदर्शन ओघ के समान
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना ओघ के समान मन:पर्यय जीवों के समान
परिहारविशुद्धि ओघ के समान परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर जीव
संयतासंयत तटप्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्ध में विद्यमान अन्यतर जीव
असंयत पंचेन्द्रिय, संज्ञी, साकार-जागृत तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य ओघ के समान
लेश्या कृष्ण साकार-जाग्रत, तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर तिर्यञ्च और मनुष्य मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
नील, कापोत साकार-जाग्रत, तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर नारकी मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
पीत, पद्म ओघ के समान सौधर्म कल्प के समान
शुक्ल आनत कल्प के समान
भव्य भव्य ओघ के समान ओघ के समान
अभव्य मिथ्यादृष्टि / मत्याज्ञानी जीवों के समान
सम्यक्त्व वेदक ओघ के समान अवधिज्ञानी जीवों के समान
क्षायिक ओघ के समान
सासादनसम्यग्दृष्टि साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर मनुष्य नारकियों के समान
मिथ्यादृष्टि अभव्य / मत्याज्ञानी जीवों के समान
संज्ञी असंज्ञी तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध में अवस्थित अन्यतर पंचेन्द्रिय पर्याप्त
संज्ञी ओघ के समान ओघ के समान
आहारक आहारक ओघ के समान ओघ के समान
महबंधो - 4 (अनुभाग-बंध, स्वामित्व प्ररूपणा)

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प्रदेश बंध



+ मूल प्रकृतियों में प्रदेश बंध -
मूल प्रकृतियों में प्रदेश बंध
उदाहरण के लिए --
समयप्रबद्ध = 75000
आवली/असंख्यात = 5

विशेष :


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+ मूल प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान -
मूल प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान

विशेष :

मूल प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान
कर्म गुणस्थान
आयु 7
मोहनीय 9
शेष 6 कर्म 10
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 211

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+ उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान -
उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान

विशेष :

उत्तर प्रकृतियों में उत्कृष्ट प्रदेशबंध के गुणस्थान
उत्तर प्रकुतियाँ कुल गुणस्थान
5 ज्ञानावरण, 4 दर्शनावरण, 5 अंतराय, यश:कीर्ति, उच्च गोत्र, सातावेदनीय 17 10
पुरुषवेद, 4 संज्वलन कषाय 5 9
4 प्रत्याख्यानावरण कषाय 4 5
4 अप्रत्याख्यानावरण कषाय 4 4
3 वेद छोड़कर 6 नोकषाय, निद्रा, प्रचला, तीर्थंकर प्रकृति 9 सम्यग्दृष्टि
मनुष्यायु, देवायु, असातावेदनीय, देवचतुष्क(4), वज्रऋषभनाराच संहनन, समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभगत्रिक 13 सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों
आहारकद्विक 2
उपरोक्त 54 छोड़कर शेष प्रकृतियाँ 66 मिथ्यादृष्टि
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 212-214

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+ मूल और उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध स्वामी -
मूल और उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध स्वामी

विशेष :

मूल और उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध स्वामी
कर्म स्वामी
आयु सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीव के आयु बंध के समय
शेष 7 कर्म सूक्ष्मनिगोद लब्ध्यपर्याप्तक पर्याय के पहले समय में जघन्य योग द्वारा
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 215

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+ उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी -
उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी

विशेष :

उत्तर प्रकृतियों में जघन्य प्रदेशबंध के स्वामी
उत्तर प्रकुतियाँ कुल गुणस्थान
नरकगतिद्विक, देवायु, नरकायु 4 घोटमान योगस्थान का धारक असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव
आहारकद्विक 2 अप्रमत्तगुणस्थानवर्ती जीव
तीर्थंकर प्रकृति, देवचतुष्क 4 पर्याय के प्रथम समय में जघन्य उपपाद योग का धारक असंयत सम्यग्दृष्टि जीव
शेष सभी 109 अंतिम क्षुद्र भव के पहले मोड़ में स्थित सूक्ष्मनिगोदिया जीव
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 216-217

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कर्म-उदय-उदीरणा



+ नरक और तिर्यञ्च गति मार्गणा में उदय -
नरक और तिर्यञ्च गति मार्गणा में उदय

विशेष :

नरक और तिर्यञ्च गति मार्गणा में उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
नरक 1 मिथ्यात्व 74 2 (सम्यक-मिथ्यात्व, सम्यक्त्व) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 72 4 (नरक आनुपूर्वी) 4 (अनंतानुबंधी 4)
मिश्र 69 (सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यक-मिथ्यात्व)
अविरत 70 (सम्यक्त्व, नरकानुपूर्वी) 6 12
2-7 मिथ्यात्व 74 2 (सम्यक-मिथ्यात्व, सम्यक्त्व) 2 (मिथ्यात्व, नरकानुपूर्वी)
सासादन 72 4 4 (अनंतानुबंधी 4)
मिश्र 69 (सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यक-मिथ्यात्व)
अविरत 69 (सम्यक्त्व) 7 11
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 76 = 42 घातिया (47 - स्त्यानत्रिक, वेद 2 [पुरुष, स्त्री]) + नरक आयु + नीच-गोत्र + वेदनीय 2 + 29 नाम (वैक्रियिक-द्विक, तेजस, कार्माण, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, अप्रशस्तविहायोगति, हुंडकसंस्थान, निर्माण, पंचेन्द्रिय जाति, नरक 2 [गति, आनुपूर्वी], दुर्भग-चतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, वर्णचतुष्क)
तिर्यञ्च सामान्य मिथ्यात्व 105 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप)
सासादन 100 7 9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क)
मिश्र 91 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 16 (तिर्यंचानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 92 (सम्यक प्रकृति, तिर्यंचानुपूर्वी) 15 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, तिर्यंचानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 84 23 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 107 = 122 - 15 (मनुष्य-त्रिक, वैक्रियकअष्टक, उच्च-गोत्र, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
पंचेंद्रिय मिथ्यात्व 97 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 95 4 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 91 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 8 (तिर्यंचानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 92 (+सम्यक प्रकृति, तिर्यंचानुपूर्वी) 7 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, तिर्यंचानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 84 15 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 99 = 107 - 8 (सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, आतप, जातिचतुष्क)
पंचेंद्रिय पर्याप्त मिथ्यात्व 95 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 94 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 90 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (तिर्यंचानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 91 (+सम्यक प्रकृति, तिर्यंचानुपूर्वी) 6 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, तिर्यंचानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 83 14 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 97 = 107 - 10 (सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, आतप, जातिचतुष्क, स्त्रीवेद, अपर्याप्त)
योनिमती पर्याप्त मिथ्यात्व 94 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 93 3 5 (अनंतानुबंधी ४, तिर्यंचानुपूर्वी)
मिश्र 89 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 89 (+सम्यक प्रकृति) 7 7 (अप्रत्याख्यानावरण ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 82 14 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 96 = 107 - 11 (सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, आतप, जातिचतुष्क, वेद 2 [पुरुष, नपुंसक], अपर्याप्त)
पंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्त उदय-योग्य प्रकृतियाँ 71 = 107 - 36 (सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, आतप, उद्योत, जातिचतुष्क, वेद 2 [पुरुष, स्त्री], स्त्यानत्रिक, पर्याप्त, परघात, उच्छ्वास, सुस्वर-दुस्वर, विहायोगति 2, यशस्कीर्ति, आदेय, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सम्यक्त्व, मिश्र)
भोगभूमि तिर्यञ्च मिथ्यात्व 77 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 76 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 72 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (-तिर्यञ्चानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 73 (+सम्यक्त्वप्रकृति) 6 5 (अप्रत्याख्यानावरण ४, तिर्यञ्चानुपूर्वी)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 79 = 107 - 28 (स्त्यानत्रिक, नपुंसक-वेद, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर, आतप, जातिचतुष्क, अपर्याप्त, संहनन 5, संस्थान 5, दुर्भगचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति)

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+ मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय -
मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय

विशेष :

मनुष्य और देव गति मार्गणा में उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
मनुष्य सामान्य मिथ्यात्व 97 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर, आहारक-द्विक) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 95 7 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 91 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 11 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 92 (सम्यक प्रकृति, मनुष्यानुपूर्वी) 10 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 84 18 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 21 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 26 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 30 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 36 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 42 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 43 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 45 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 60 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 90 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 102 = 122 - 20 (वैक्रियकअष्टक, तिर्यञ्च-त्रिक, जातिचतुष्क, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर, आतप, उद्योत)
पर्याप्त मिथ्यात्व 95 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर, आहारक-द्विक) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 94 6 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 90 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 10 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 91 (+सम्यक प्रकृति, मनुष्यानुपूर्वी) 9 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 83 17 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 80 (+आहारकद्विक) 20 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 75 25 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 71 29 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 35 5 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद २-[पुरुष, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 40 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 41 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 43 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 58 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 88 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 100 = 102 - 2 (स्त्रीवेद, अपर्याप्त)
मनुष्यनी मिथ्यात्व 94 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 93 3 5 (अनंतानुबंधी ४, मनुष्यानुपूर्वी)
मिश्र 89 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 89 (+सम्यक प्रकृति) 7 7 (अप्रत्याख्यानावरण ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 82 14 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 77 19 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 22 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 26 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 32 4 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], स्त्रीवेद)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 36 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 37 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 39 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 41 55 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 11 85 11 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 96 = 102 - 6 (वेद 2 [पुरुष, नपुंसक], अपर्याप्त, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
लब्ध्यपर्याप्त उदय-योग्य प्रकृतियाँ 71 = 102 - 31 (वेद 2 [पुरुष, स्त्री], स्त्यानत्रिक, उच्च-गोत्र, पर्याप्त, परघात, उच्छ्वास, सुस्वर-दुस्वर, विहायोगति 2, यशस्कीर्ति, आदेय, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सम्यक्त्व, मिश्र, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
भोगभूमि मनुष्य मिथ्यात्व 76 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 75 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 71 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (मनुष्यानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 72 (+सम्यक प्रकृति) 6 5 (अप्रत्याख्यानावरण ४, मनुष्यानुपूर्वी)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 78 = 102 - 24 (स्त्यानत्रिक, नपुंसक-वेद, नीच-गोत्र, संहनन 5, संस्थान 5, दुर्भगचतुष्क, अप्रशस्त विहायोगति, अपर्याप्त, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
देव सामान्य मिथ्यात्व 75 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 74 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 70 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (देवानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 71 (+सम्यक प्रकृति, देवानुपूर्वी) 6 9 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवचतुष्क, देवायु)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = 122 - 45 (नरक-त्रिक, तिर्यञ्च-त्रिक, मनुष्य-त्रिक, जातिचतुष्क, दुर्भगचतुष्क, स्थावरचतुष्क, औदारिक 2 [शरीर, अंगोपांग], स्त्यानत्रिक, नपुंसक-वेद, नीच-गोत्र, संहनन 6, संस्थान 5, अप्रशस्त विहायोगति, आतप, उद्योत, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
सौधर्म से ग्रैवेयक देव मिथ्यात्व 74 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 73 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 69 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 (देवानुपूर्वी) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 70 (+सम्यक प्रकृति, देवानुपूर्वी) 6 9 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवचतुष्क, देवायु)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 76 = 77 - स्त्री-वेद
अनुदिश / अनुत्तर उदय-योग्य प्रकृतियाँ 70 = 77 - 7 (स्त्री-वेद, सम्यक-मिथ्यात्व, मिथ्यात्व, अनंतानुबंधी ४)
भवनत्रिक देव अथवा देवी मिथ्यात्व 74 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 73 3 5 (अनंतानुबंधी ४, देवानुपूर्वी)
मिश्र 69 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 7 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 69 (+सम्यक प्रकृति) 7 8 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव २ [गति, आयु], वैक्रियक २)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 76 = 77 - 1 (वेद [स्त्री अथवा पुरुष])

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+ इंद्रिय मार्गणा में कर्म का उदय -
इंद्रिय मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

इंद्रिय मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
एकेन्द्रीय मिथ्यात्व 80 0 11 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, साधारण, स्त्यान-त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास)
सासादन 69 11 6 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 80 = 122 - 42 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, वेद 2 [पुरुष, स्त्री], उच्च-गोत्र, मनुष्य-त्रिक, वैक्रियकअष्टक, औदारिक-अंगोपांग, संहनन 6, संस्थान 5, जाति 4, त्रस, सुभग, सुस्वर, दूस्वर, आदेय, विहायोगति 2, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
विकलत्रय मिथ्यात्व 81 0 10 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त, स्त्यान-त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, दूस्वर, अप्रशस्त-विहायोगति)
सासादन 71 10 5 (अनंतानुबंधी ४, जाति 1)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 81 = 122 - 41 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, वेद 2 [पुरुष, स्त्री], उच्च-गोत्र, मनुष्य-त्रिक, वैक्रियकअष्टक, स्थावर, सूक्ष्म, आतप, साधारण, जाति 4, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सुस्वर, आदेय, प्रशस्त विहायोगति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
पंचेंद्रिय मिथ्यात्व 109 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 106 8 (-नरक आनुपूर्व्य) 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 100 (सम्यकमिथ्यात्व) 14 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+सम्यक प्रकृति, आनुपूर्व्य ४) 10 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [नरक, देव] , आयु २ [नरक, देव], आनुपूर्व्य ४ [नरक, मनुष्य, तिर्यंच, देव], वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 27 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 33 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 38 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 42 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 48 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 54 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 55 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 57 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 72 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 12 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 114 = 122 - 8 (स्थावर, सूक्ष्म, आतप, साधारण, जाति-चतुष्क)

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+ काय मार्गणा में कर्म का उदय -
काय मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

काय मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
स्थावर पृथ्वी मिथ्यात्व 79 0 10 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, स्त्यान-त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास)
सासादन 69 10 6 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 79 = एकेन्द्रिय में उदय-योग्य प्रकृतियाँ 80 - साधारण
अप (जल) मिथ्यात्व 78 0 9 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त, स्त्यान-त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास)
सासादन 69 9 6 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 78 = एकेन्द्रिय में उदय-योग्य प्रकृतियाँ 80 - (साधारण, आतप)
अग्नि / वायु मिथ्यात्व उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = एकेन्द्रिय में उदय-योग्य प्रकृतियाँ 80 - (साधारण, आतप, उद्योत)
वनस्पति मिथ्यात्व 79 0 10 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, साधारण, अपर्याप्त, स्त्यान-त्रिक, परघात, उद्योत, उच्छ्वास)
सासादन 69 10 6 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, एकेन्द्रिय जाति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 79 = एकेन्द्रिय में उदय-योग्य प्रकृतियाँ 80 - आतप
त्रस मिथ्यात्व 112 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 109 8 (-नरक आनुपूर्व्य) 7 (अनंतानुबंधी ४, जाति 3 [2,3,4 इंद्रिय])
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 17 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 13 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्व्य 2 [मनुष्य, तिर्यञ्च], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 30 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 36 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 41 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 45 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 51 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३-[पुरुष, स्त्री, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 57 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 58 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 60 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 75 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 105 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 117 = 122 - 5 (एकेन्द्रीय जाति, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर, आतप)

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+ योग मार्गणा में कर्म का उदय -
योग मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

योग मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
4 मन, 3 वचन [सत्य,असत्य,उभय]* मिथ्यात्व 104 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 103 6 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 9 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 100 (+सम्यक-प्रकृति) 9 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [देव, नरक], आयु २ [देव, नरक], वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 22 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारक-द्विक) 28 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 33 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 37 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 43 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३-[पुरुष, स्त्री, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 49 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 50 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 52 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 67 42 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, उच्च गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय जाति, वर्णचतुष्क,
अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, सुभगचतुष्क, दुस्वर, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 109 = 122 - 13 (जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, आतप, आनुपूर्वी 4)
[*असत्य / उभय मन-वचन योग के गुणस्थान 1 से 12 ही हैं]
अनुभय वचन मिथ्यात्व 107 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 106 6 7 (अनंतानुबंधी ४, विकलत्रय जाति)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 12 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 100 (+सम्यक-प्रकृति) 12 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [देव, नरक], आयु २ [देव, नरक], वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 25 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारक-द्विक) 31 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 36 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 40 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 46 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३-[पुरुष, स्त्री, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 52 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 53 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 55 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 70 42 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, उच्च गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय जाति, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, सुभगचतुष्क, दुस्वर, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 112 = 122 - 10 (स्थावरचतुष्क, आतप, आनुपूर्वी 4, एकेन्द्रिय-जाति)
औदारिक मिथ्यात्व 106 3 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, साधारण, आतप)
सासादन 102 7 9 (अनंतानुबंधी ४, जाति-चतुष्क, साधारण)
मिश्र 94 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 15 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 94 (+सम्यक-प्रकृति) 15 7 (अप्रत्याख्यानावरण ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 22 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 79 30 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 33 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 37 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 43 6 (संज्वलन ३-[क्रोध, मान, माया], वेद ३-[पुरुष, स्त्री, नपुंसक])
सूक्ष्मसाम्पराय 60 49 1 (संज्वलन सूक्ष्म लोभ)
उपशान्तमोह 59 50 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 52 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 67 42 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, उच्च गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय जाति, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, सुभगचतुष्क, दुस्वर, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 109 = 122 - 13 (आहारक-द्विक, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्वी 2 [मनुष्य, तिर्यञ्च], अपर्याप्त)
औदारिक-मिश्र मिथ्यात्व 96 2 (-सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर) 4 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण)
सासादन 92 6 14 (अनंतानुबंधी ४, विकलत्रय जाति, स्थावर, एकेन्द्रिय, अनादेय, अयशस्कीर्ती, दुर्भग, वेद २ [नपुंसक, स्त्री])
अविरत 79 (+सम्यक-प्रकृति) 19 44 (कषाय १२, नीच-गोत्र, तिर्यञ्च-गति, तिर्यञ्च-आयु, संहनन ५, सम्यक प्रकृति, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, पुरुष-वेद, ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 36 (+तीर्थंकर) 62 36 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 98 = 122 - 24 (आहारक-द्विक, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्वी 2 [मनुष्य, तिर्यञ्च], सम्यक-मिथ्यात्व, स्त्यानत्रिक, स्वर-द्विक, विहायोगति-द्विक, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास)
वैक्रियिक मिथ्यात्व 84 2 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 83 3 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 80 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 6 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 80 (+सम्यक-प्रकृति) 6 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [देव, नरक], आयु २ [देव, नरक], वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 86 = 122 - 36 (तिर्यञ्च २ [आयु, गति], मनुष्य २ [आयु, गति], आनुपूर्वी ४, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, औदारिक-द्विक, स्त्यानत्रिक, संहनन 6, संस्थान 4, आतप, उद्योत, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
वैक्रियिक-मिश्र मिथ्यात्व 78 1 (सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 69 10 (हुंडक-संस्थान, नपुंसक-वेद, दुर्भग-त्रय, नरक [गति, आयु], नीच-गोत्र) 5 (अनंतानुबंधी ४, स्त्री-वेद)
अविरत 73 (+सम्यक-प्रकृति, हुंडक-संस्थान, नपुंसक-वेद, दुर्भग-त्रय, नरक [गति, आयु], नीच-गोत्र) 6 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, गति २ [देव, नरक], आयु २ [देव, नरक], वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 79 = 122 - 43 (सम्यक-मिथ्यात्व, परघात , उच्छ्वास, स्वर-द्विक, विहायोगति २, तिर्यञ्च २ [आयु, गति], मनुष्य २ [आयु, गति], आनुपूर्वी ४, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, औदारिक-द्विक, स्त्यानत्रिक, संहनन 6, संस्थान 4, आतप, उद्योत, तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
आहारक प्रमत्तसंयत उदय-योग्य प्रकृतियाँ 61 = ६ गुणस्थान की 81 - 20 (स्त्यानत्रिक, वेद २ [नपुंसक, स्त्री], अप्रशस्त-विहायोगति, दुस्वर, संहनन ६, औदारिक-द्विक, संस्थान ५)
आहारक-मिश्र प्रमत्तसंयत उदय-योग्य प्रकृतियाँ 57 = आहारक योग की 61 - 4 (सुस्वर, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, परघात)
कार्मण मिथ्यात्व 87 2 (-तीर्थंकर, सम्यक्त्व) 3 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त)
सासादन 81 8 (-नरकत्रिक) 10 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर, स्त्री-वेद)
अविरत 75 (+नरकत्रिक, सम्यक्त्व) 14 51 (कषाय १२, नोकषाय ८ [स्त्री-वेद छोड़कर], गति ३ [नरक, देव, तिर्यञ्च] , आयु ३ [नरक, देव, तिर्यञ्च], आनुपूर्व्य ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग, नीच गोत्र, सम्यक-प्रकृति, ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 25 (+तीर्थंकर) 64 25 (वेदनीय २, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 89 = 122 - 33 (स्वर-द्विक, विहायोगति २, प्रत्येक, साधारण, आहारक-द्विक, औदारिक-द्विक, वैक्रियिक-द्विक, सम्यक-मिथ्यात्व, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, स्त्यानत्रिक, संहनन ६, संस्थान ६)

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+ वेद मार्गणा में कर्म का उदय -
वेद मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

वेद मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
पुरुष मिथ्यात्व 103 4 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 102 5 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 11 (आनुपूर्वी ३) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 99 (+सम्यक-प्रकृति, आनुपूर्वी ३) 8 14 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव-त्रिक, वैक्रियिक-द्विक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 85 22 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 79 (+आहारक-द्विक) 28 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 74 33 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 37 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 43 64 (संज्वलन ४, पुरुषवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 107 = 122 - 15 (स्थावरचतुष्क, नरक-त्रिक, वेद २ [स्त्री, नपुंसक], जातिचतुष्क, आतप, तीर्थंकर)
स्त्री मिथ्यात्व 103 2 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 102 3 7 (अनंतानुबंधी ४, आनुपूर्वी ३ [देव, मनुष्य, तिर्यञ्च])
मिश्र 96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 9 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 96 (+सम्यक-प्रकृति) 9 11 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देवगति, देवायु, वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 85 20 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 77 28 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 31 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 35 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 41 64 (संज्वलन ४, स्त्रीवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 105 = 122 - 17 (स्थावरचतुष्क, नरक-त्रिक, वेद २ [पुरुष, नपुंसक], जातिचतुष्क, आतप, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
नपुंसक मिथ्यात्व 112 2 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप)
सासादन 106 8 (-नरक आनुपूर्वी) 11 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर, आनुपूर्वी २ [मनुष्य, तिर्यञ्च])
मिश्र 96 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 18 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 97 (+सम्यक-प्रकृति, नरक आनुपूर्वी) 17 12 (अप्रत्याख्यानावरण ४, नरक-त्रिक, वैक्रियिक-द्विक, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 85 29 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच-गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्चायु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 77 37 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 40 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 44 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 50 64 (संज्वलन ४, नपुंसकवेद, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 114 = 122 - 8 (आहारक-द्विक, देव-त्रिक, वेद २ [पुरुष, स्त्री], तीर्थंकर)

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+ कषाय मार्गणा में कर्म का उदय -
कषाय मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

कषाय मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
क्रोध मिथ्यात्व* 105 4 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, साधारण)
सासादन 99 10 (-नरक आनुपूर्वी) 6 (अनंतानुबंधी क्रोध, स्थावर, जातिचतुष्क)
मिश्र 91 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 18 (आनुपूर्वी ३) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 95 (+सम्यक-प्रकृति, आनुपूर्वी ४) 14 14 (अप्रत्याख्यानावरण क्रोध, वैक्रियिक-अष्टक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 81 28 5 (प्रत्याख्यानावरण क्रोध, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 78 (+आहारक-द्विक) 31 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 73 36 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 69 40 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 63 46 63 (संज्वलन क्रोध, वेद ३, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 109 = 122 - 13 (12 कषाय [मान, माया और लोभ], तीर्थकर)
क्रोध के समान मान, माया और लोभ में भी उदय योग्य प्रकृतियाँ 109 । लोभ में गुणस्थान सूक्ष्म-सांपरायिक तक
*अनन्तानुबंधी क्रोध रहित मिथ्यात्व गुणस्थान में उदय-योग्य प्रकृतियाँ 91 = 122 - 31 (अनंतानुबंधी क्रोध, 12 कषाय [मान, माया और लोभ], स्थावरचतुष्क, आनुपूर्वी 4, जातिचतुष्क, आतप, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थकर)
लोभ अनिवृतिकरण 63 46 3 वेद
सूक्ष्म-सांपरायिक 60 49 60 (संज्वलन लोभ, संहनन ३ [नाराच, वज्रनाराच, वज्रवृषभनाराच], ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५, वेदनीय २, संस्थान ६, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, स्वर-द्विक, उच्च-गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय-जाति, त्रसत्रिक, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति)

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+ ज्ञान मार्गणा में कर्म का उदय -
ज्ञान मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

ज्ञान मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
कुमति / कुश्रुत मिथ्यात्व 117 0 6 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, आतप, अपर्याप्त, साधारण, नरक आनुपूर्वी)
सासादन 111 6 9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 117 = 122 - 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थकर)
विभंगावधि मिथ्यात्व 104 0 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 103 1 4 (अनंतानुबंधी ४)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 104 = 122 - 18 (आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, आनुपूर्वी ४, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मति / श्रुत / अवधि अविरत 104 2 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियिक-अष्टक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयतासंयत 87 19 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारक-द्विक) 25 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 30 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 34 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 40 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 46 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 47 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 49 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 106 = 122 - 16 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, अनंतानुबंधी ४, तीर्थंकर)
मन:पर्यय प्रमत्तसंयत 77 0 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 3 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 70 7 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 64 13 4 (संज्वलन ३, पुरुष-वेद)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 17 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 18 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 20 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = 122 - 45 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, उद्योत, जातिचतुष्क, वैक्रियकअष्टक, स्थावरचतुष्क, कषाय १२, आनुपूर्वी २ [तिर्यञ्च, मनुष्य], वेद २ [स्त्री, नपुंसक], तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग, नीच-गोत्र, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
केवलज्ञान सयोगकेवली 42 0 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 30 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 42

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+ संयम मार्गणा में कर्म का उदय -
संयम मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

संयम मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
सामायिक / छेदोपस्थापना प्रमत्तसंयत 81 0 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 5 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 9 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 15 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 81 = 122 - 41 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, उद्योत, जातिचतुष्क, वैक्रियकअष्टक, स्थावरचतुष्क, कषाय १२, आनुपूर्वी २ [तिर्यञ्च, मनुष्य], तिर्यञ्च गति, तिर्यञ्च आयु, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग, नीच-गोत्र, तीर्थंकर)
परिहारविशुद्धि प्रमत्तसंयत 77 0 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 74 3 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 77 = 81 - 4 (वेद २ [स्त्री, नपुंसक], आहारक-द्विक)
सूक्ष्मसाम्पराय सूक्ष्मसाम्पराय 60 0 1 (संज्वलन लोभ)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 60 (गुणस्थानवत्)
यथाख्यात उपशान्तमोह 59 1 (तीर्थंकर) 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 3 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (तीर्थंकर) 18 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 48 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 60
देशविरत संयमासंयम 87 0 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 87 (गुणस्थानवत्)
असंयम मिथ्यात्व 117 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 5 (मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्मत्रय)
सासादन 111 8 (-नरक आनुपूर्व्य) 9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 19 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 15 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्व्य [मनुष्य, तिर्यंच], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 119 = 122 - (तीर्थंकर, आहारक-द्विक)

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+ दर्शन मार्गणा में कर्म का उदय -
दर्शन मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

दर्शन मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
चक्षु मिथ्यात्व 110 4 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 107 7 (-नरक आनुपूर्व्य) 5 (अनंतानुबंधी ४, ४ इंद्रिय जाति)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 14 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 10 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियिक-अष्टक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 27 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 33 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 38 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 42 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 48 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 54 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 55 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 57 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 114 = 122 - 8 (आतप, जाति ३ [१,२,३ इंद्रिय], स्थावर, सूक्ष्म, साधारण, तीर्थंकर)
अचक्षु मिथ्यात्व 117 4 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 5 (मिथ्यात्व, आतप, सूक्ष्मत्रय)
सासादन 111 10 (-नरक आनुपूर्व्य) 9 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 21 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 17 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियिक-अष्टक, मनुष्यानुपूर्वी, तिर्यञ्चानुपूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 34 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 40 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 45 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 42 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 49 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 55 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 61 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 64 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 121 = 122 - तीर्थंकर
अवधि उदय-योग्य प्रकृतियाँ 106 = 122 - 16 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, अनंतानुबंधी ४, तीर्थंकर) [अवधिज्ञानवत्, गुणस्थान 4 से 12]
केवल उदय-योग्य प्रकृतियाँ 42 [केवलज्ञानवत्, गुणस्थान 13,14]

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+ लेश्या मार्गणा में कर्म का उदय -
लेश्या मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

लेश्या मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
कृष्ण / नील मिथ्यात्व 117 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 6 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप, नरकानुपूर्वी)
सासादन 111 8 13 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क, देव-त्रिक, तिर्यञ्चानुपूर्वी)
मिश्र 98 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 21 (-मनुष्यानुपूर्व्य) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 99 (+मनुष्यानुपूर्व्य, सम्यक्त्व-प्रकृति) 20 12 (अप्रत्याख्यानावरण ४, नरक गति, नरक आयु, वैक्रियिक-द्विक, मनुष्यानुपूर्व्य, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 119 = 122 - 3 (आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
कापोत मिथ्यात्व 117 2 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप)
सासादन 111 8 (-नरक आनुपूर्व्य) 12 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क, देव-त्रिक)
मिश्र 98 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 21 (-आनुपूर्व्य २ [मनुष्य, तिर्यञ्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 101 (+आनुपूर्व्य ३ [मनुष्य, तिर्यञ्च, नरक], सम्यक-प्रकृति) 18 14 (अप्रत्याख्यानावरण ४, नरक-त्रिक, वैक्रियिक-द्विक, आनुपूर्व्य २, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 119 = 122 - 3 (आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
पीत / पद्म मिथ्यात्व 103 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, मनुष्यानुपूर्वी) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 102 6 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 98 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 10 (-आनुपूर्व्य १ [देव]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 100 (+आनुपूर्व्य २ [देव, मनुष्य], सम्यक-प्रकृति) 8 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव-द्विक, वैक्रियिक द्विक, आनुपूर्वी २ [मनुष्य, देव], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 21 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 27 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 32 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 108 = 122 - 14 (आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, नरकत्रिक, तिर्यञ्चानुपूर्वी, तीर्थंकर)
शुक्ल मिथ्यात्व 103 6 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, तीर्थंकर, आहारक-द्विक, मनुष्यानुपूर्वी) 1 (मिथ्यात्व)
सासादन 102 7 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 98 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 11[-देवानुपूर्वी] 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 100 (+आनुपूर्व्य २, सम्यक-प्रकृति) 9 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव-त्रिक, वैक्रियिक द्विक, मनुष्यापूर्वी, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 22 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 28 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 33 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 37 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 43 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 49 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 50 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 52 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (तीर्थंकर) 67 42 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, उच्च गोत्र, मनुष्य २ [गति, आयु], पंचेन्द्रिय जाति, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, सुभगचतुष्क, दुस्वर, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 109 = 122 - 13 (आतप, जातिचतुष्क, स्थावरचतुष्क, नरकत्रिक, तिर्यञ्चानुपूर्वी)

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+ सम्यक्त्व मार्गणा में कर्म का उदय -
सम्यक्त्व मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

सम्यक्त्व मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
उपशम अविरत 100 0 14 (अप्रत्याख्यानावरण ४, देव-त्रिक, वैक्रियिक द्विक, नरकायु, नरक-गति, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 86 14 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 78 22 3 (स्त्यान-त्रिक)
अप्रमत्तसंयत 75 25 3 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच])
अपूर्वकरण 72 28 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 34 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 40 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 41 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 100 = 122 - 22 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक्त्व, आतप, स्थावरचतुष्क, अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, आनुपूर्व्य ३ [नरक, मनुष्य, तिर्यञ्च], आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
वेदक अविरत 104 2 (आहारक-द्विक) 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्वी २ [तिर्यञ्च, मनुष्य], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 19 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (आहारक-द्विक) 25 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 30 76
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 106 = 122 - 16 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, अनंतानुबंधी ४, आतप, स्थावरचतुष्क, जातिचतुष्क, तीर्थंकर)
क्षायिक अविरत 103 3 (तीर्थंकर, आहारक-द्विक) 20 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्वी २ [तिर्यञ्च, मनुष्य], तिर्यञ्चायु, उद्योत, तिर्यञ्चगति, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 83 23 5 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र)
प्रमत्तसंयत 80 (आहारक-द्विक) 26 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारक-द्विक)
अप्रमत्तसंयत 75 31 3 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच])
अपूर्वकरण 72 34 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 40 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 46 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 47 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 49 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (तीर्थंकर) 64 30 (वेदनीय [कोइ १], वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक शरीर-अंगोपांग, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, अगुरुलघु, उपघात-परघात, उच्छवास, प्रत्येक, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, प्रशस्त-अप्रशस्त विहायोगति, सुस्वर-दुस्वर)
अयोगकेवली 12 94 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 106 = 122 - 16 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक्त्व, अनंतानुबंधी ४,आतप, स्थावरचतुष्क, जातिचतुष्क)
मिश्र उदय-योग्य प्रकृतियाँ 100 = 122 - 22 (मिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, अनंतानुबंधी ४, स्थावरचतुष्क, जातिचतुष्क, आतप, आनुपूर्व्य ४, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
सासादन उदय-योग्य प्रकृतियाँ 111 = 122 - 11 (मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, सूक्ष्मत्रय, आतप, नरकानुपूर्व्य, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मिथ्यात्व उदय-योग्य प्रकृतियाँ 117 = 122 - 5 (सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर)

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+ संज्ञी मार्गणा में कर्म का उदय -
संज्ञी मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

संज्ञी मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
संज्ञी मिथ्यात्व 109 4 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक) 2 (मिथ्यात्व, अपर्याप्त)
सासादन 106 7 (-नरक आनुपूर्व्य) 4 (अनंतानुबंधी ४)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 13 (-आनुपूर्व्य ३ [देव, मनुष्य, तिर्यन्च]) 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 104 (+आनुपूर्व्य ४, सम्यक-प्रकृति) 9 17 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियकअष्टक, आनुपूर्व्य 2 [मनुष्य, तिर्यञ्च], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 26 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 32 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 37 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक्त्व-प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 41 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 47 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 53 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 54 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 56 57
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 113 = 122 - 9 (आतप, स्थावर, साधारण, सूक्ष्म, जातिचतुष्क, तीर्थंकर)
असंज्ञी मिथ्यात्व 91 0 13 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप, उद्योत, स्त्यान-त्रिक, परघात, उच्छ्वास, दुस्वर, अप्रशस्त विहायोगति)
सासादन 78 13 9 (अनंतानुबंधी ४, स्थावर, जातिचतुष्क)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 91 = 122 - 31 (सम्यक-प्रकृति, सम्यकमिथ्यात्व, मनुष्य-त्रिक, वैक्रियकअष्टक, उच्च-गोत्र, संहनन 5, संस्थान 5, सुभग, सुस्वर, आदेय, प्रशस्त विहायोगति, आहारकद्विक, तीर्थंकर)

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+ आहार मार्गणा में कर्म का उदय -
आहार मार्गणा में कर्म का उदय

विशेष :

आहार मार्गणा में कर्म का उदय
उदय अनुदय व्युच्छिति
आहारक मिथ्यात्व 113 5 (-सम्यकमिथ्यात्व, सम्यक प्रकृति, आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 5 (मिथ्यात्व, सूक्ष्मत्रय, आतप)
सासादन 108 10 9 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर)
मिश्र 100 (+सम्यक-मिथ्यात्व) 18 1 (सम्यकमिथ्यात्व)
अविरत 100 (+सम्यक-प्रकृति) 18 13 (अप्रत्याख्यानावरण ४, वैक्रियक-द्विक, गति २ [देव, नरक], आयु २ [देव, नरक], अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग)
संयमासंयम 87 31 8 (प्रत्याख्यानावरण ४, नीच गोत्र, तिर्यन्च गति, तिर्यन्च आयु, उद्योत)
प्रमत्तसंयत 81 (+आहारकद्विक) 37 5 (स्त्यान-त्रिक, आहारकद्विक)
अप्रमत्तसंयत 76 42 4 (संहनन ३ [असंप्राप्तासृपाटिका, कीलक, अर्द्धनाराच], सम्यक्त्व-प्रकृति)
अपूर्वकरण 72 46 6 (हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा)
अनिवृतिकरण 66 52 6 (संज्वलन ३, वेद ३)
सूक्ष्मसाम्पराय 60 58 1 (संज्वलन लोभ)
उपशान्तमोह 59 59 2 (संहनन २ [नाराच, वज्रनाराच])
क्षीणमोह 57 61 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 42 (+तीर्थंकर) 76 42 (वेदनीय २, वज्रवृषभनाराच संहनन, ६ संस्थान, औदारिक-द्विक, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर, विहायोगति २, उच्च गोत्र, मनुष्य २
[गति, आयु], पंचेन्द्रिय जाति, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, त्रसचतुष्क, सुभगचतुष्क, दुस्वर, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 118 = 122 - 4 आनुपूर्व्य
अनाहारक मिथ्यात्व 87 2 (तीर्थंकर, सम्यक्त्व) 3 (मिथ्यात्व, सूक्ष्म, अपर्याप्त)
सासादन 81 8 (-नरकत्रिक) 10 (अनंतानुबंधी ४, जातिचतुष्क, स्थावर, स्त्री-वेद)
अविरत 75 (+नरकत्रिक) 14 51 (कषाय १२, नोकषाय ८ [स्त्री-वेद छोड़कर], गति 3 [नरक, देव, तिर्यञ्च] , आयु ३ [नरक, देव, तिर्यञ्च], आनुपूर्व्य ४, अनादेय, अयशःकीर्ति, दुर्भग, नीच गोत्र, सम्यक-प्रकृति, ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला, चक्षु, अचक्षु], अंतराय ५)
सयोगकेवली 25 (+तीर्थंकर) 64 13 (वेदनीय १, तैजस-कर्माण शरीर, निर्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, शुभ-अशुभ, स्थिर-अस्थिर)
अयोगकेवली 12 77 12 (वेदनीय [कोइ १], उच्च गोत्र, मनुष्य गति, मनुष्य आयु, पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, सुभग, आदेय, यशःकीर्ति, तीर्थंकर)
उदय-योग्य प्रकृतियाँ 89 = 122 - 33 (स्वर-द्विक, विहायोगति २, प्रत्येक, साधारण, आहारक-द्विक, औदारिक-द्विक, वैक्रियिक-द्विक, सम्यक-मिथ्यात्व, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, स्त्यानत्रिक, संहनन ६, संस्थान ६)

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+ नाम-कर्म अपेक्षा जीव-पद के 41 भेद -
नाम-कर्म अपेक्षा जीव-पद के 41 भेद

विशेष :



2 भेद = पर्याप्त और अपर्याप्त

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+ उदय योग्य पाँच काल -
उदय योग्य पाँच काल

विशेष :

उदय योग्य पाँच काल
विग्रह गति काल पूर्वभव के शरीर को छोड़कर उत्तरभव ग्रहण करने के अर्थ गमन करने में लगने वाला समय (1 से 4 समय)
मिश्र शरीर काल आहार ग्रहण करने से शरीर पर्याप्ति की पूर्णता तक
शरीर पर्याप्ति काल शरीर पर्याप्ति के पश्चात् श्वाच्छोस्वास पर्याप्ति की पूर्णता तक
आनपान पर्याप्ति काल श्वाच्छोस्वास पर्याप्ति के पश्चात् भाषा पर्याप्ति की पूर्णता तक
भाषा पर्याप्ति काल पूर्ण पर्याप्त होने के पश्चात् आयु के अन्त तक

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+ ओघ से एक जीव के एक काल में कर्म-उदय -
ओघ से एक जीव के एक काल में होने वाला कर्म-उदय

विशेष :

ओघ से एक जीव के एक काल में होने वाला प्रकृति कर्म-उदय के स्थान / भंग
ज्ञानावरणी दर्शनावरणी वेदनीय मोहनीय आयु नाम गोत्र अंतराय
प्रकृति प्रकृति प्रकृति स्थान-संख्या प्रकृति स्थान भंग प्रकृति स्थान-संख्या प्रकृति प्रकृति प्रकृति
अयोगकेवली 0 0 1 0 0 0 0 1 2 8,9 1 0
सयोगकेवली 8 20,21,26,27,28,29,30,31
क्षीणमोह 5 4, 5 1 30 5
उपशान्तमोह
सूक्ष्मसाम्पराय 1 1 1 1
अनिवृतिकरण 2 2, 1 1,1 24,10
अपूर्वकरण 3 6, 5, 4 1,2,1 प्रत्येक स्थान के 24 (4 कषाय * 3 वेद * 2 [हास्य-रति/शोक-अरती])
अप्रमत्तसंयत 4 7, 6, 5, 4 1,3,3,1
प्रमत्तसंयत 4 7, 6, 5, 4 1,3,3,1 5 25,27,28,29,30
देशसंयत 4 8, 7, 6, 5 1,3,3,1 2 30,31
असंयत 4 9, 8, 7, 6 1,3,3,1 8 21,25,26,27,28,29,30,31
मिश्र 3 9,8,7 1,2,1 3 29,30,31
सासादन 3 9, 8, 7 1,2,1 7 21,24,25,26,29,30,31
मिथ्यात्व 4 10,9,8,7 1,3,3,1 9 21,24,25,26,27,28,29,30,31
54 1283

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+ योग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी भंग -
योग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी भंग

विशेष :

योग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी भंग
गुणस्थान योग मोहनीय उदय-भंग कुल भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 9 1 9
अनिवृत्तिकरण सवेद 9 12 108
अवेद 9 4 36
अपूर्वकरण 9 4 * 24 36*24
अप्रमत्त संयत 9 8 * 24 72*24
प्रमत्त संयत 11 8 * 24 88*24
देशविरत 9 8 * 24 72*24
असंयत सम्यक्त्व पर्याप्त 10 8 * 24 80*24
अपर्याप्त 2 8 * 16 16*16
1 (औ.मि.) 8 * 8 64
वैक्रियिक-मिश्र और कार्मण काय योग में स्त्री वेद का उदय नहीं
औदारिक मिश्र योग मे एक पुरुष वेद ही संभव
पर्याप्त अवस्था में मोहनीय के उदय भंग = 8 (सम्यक्त्व के उदय/अनुदय * भय/जुगुप्सा के भजनीय उदय से) * 24 (4 कषाय * 3 वेद * 2 हास्य-रति / शोक-अरति)
मिश्र 10 4 * 24 40*24
सासादन 12 4 * 24 48*24
1 (वै.मि.) 4 * 16 64
वेक्रियिक मिश्र योग के साथ नपुंसक वेद का उदय नहीं
मिथ्यादृष्टि पर्याप्त 10 8 * 24 80*24
अपर्याप्त 3 4 * 24 12*24
पर्याप्त अवस्था में मोहनीय के उदय भंग = 8 (2 अनंतानुबंधी के उदय/अनुदय * 4 भय/जुगुप्सा के भजनीय उदय / अनुदय से) * 24 (4 कषाय * 3 वेद * 2 हास्य-रति / शोक-अरति)
अपर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी का उदय अवश्य है
सर्व भंग 13,209
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 329 से 343

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+ योग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
योग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

योग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
योग मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 9 1 9 1 9
अनिवृत्तिकरण सवेद 9 1 (2) 9 * 2 12 216
अवेद 9 1 (1) 9 * 1 4 36
अपूर्वकरण 9 20 (6,5,5,4) 20 * 9 24 4320
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 9 24 (7,6,6,5) 24 * 9 24 5184
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4) 20 * 9 24 4320
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 11 24 (7,6,6,5) 24 * 11 24 6336
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4) 20 * 11 24 5280
देशविरत सम्यक्त्व सहित 9 28 (8,7,7,6) 28 * 9 24 6048
सम्यक्त्व रहित 24 (7,6,6,5) 24 * 9 24 5184
असंयत सम्यक्त्व पर्याप्त सम्यक्त्व सहित 10 32 (9,8,8,7) 32 * 10 24 7680
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6) 28 * 10 24 6720
अपर्याप्त सम्यक्त्व सहित 2 32 (9,8,8,7) 32 * 2 16 1024
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6) 28 * 2 16 896
सम्यक्त्व सहित 1 (औ.मि.) 32 (9,8,8,7) 32 * 1 8 256
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6) 28 * 1 8 224
वेक्रियिक-मिश्र और कार्मण काय योग में स्त्री वेद का उदय नहीं
औदारिक मिश्र योग मे एक पुरुष वेद ही संभव
मिश्र 10 32 (9,8,8,7) 32 * 10 24 7680
सासादन 12 32 (9,8,8,7) 32 * 12 24 9216
1 (वै.मि.) 32 * 1 16 512
मिथ्यादृष्टि पर्याप्त अनं. सहित 10 36 (10,9,9,8) 36 * 10 24 8640
अनं. रहित 32 (9,8,8,7) 32 * 10 24 7680
अपर्याप्त 3 36 36 * 3 24 2592
पर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी सहित मोहनीय के उदय स्थान = 10 (1 मिथ्यात्व + 4 कषाय + 2 हास्य-रति/शोक-अरति + 1 वेद + भय + जुगुप्सा), 9 (भय/जुगुप्सा में से कोई एक), 8 (भय/जुगुप्सा रहित)
अपर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी का उदय अवश्य है
सर्व पदवृंद भंग 90053
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 345 से 360

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+ उपयोग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
उपयोग की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

उपयोग की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
उपयोग मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 7 1 7 * 1 1 7
अनिवृत्तिकरण सवेद 7 1 (2) 7 * 2 12 168
अवेद 7 1 (1) 7 * 1 4 28
अपूर्वकरण 7 20 (6,5,5,4) 20 * 7 24 3660
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 7 24 (7,6,6,5) 44 * 7 24 7392
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 7 24 (7,6,6,5) 44 * 7 24 7392
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
देशविरत सम्यक्त्व सहित 6 28 (8,7,7,6) 52 * 6 24 7488
सम्यक्त्व रहित 24 (7,6,6,5)
असंयत सम्यक्त्व सम्यक्त्व सहित 6 32 (9,8,8,7) 60 * 6 24 8640
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6)
वेक्रियिक-मिश्र और कार्मण काय योग में स्त्री वेद का उदय नहीं
औदारिक मिश्र योग मे एक पुरुष वेद ही संभव
मिश्र 6 32 (9,8,8,7) 32 * 6 24 4608
सासादन 5 32 (9,8,8,7) 32 * 5 24 3840
मिथ्यादृष्टि अनं. सहित 5 36 (10,9,9,8) 68 * 5 24 8160
अनं. रहित 32 (9,8,8,7)
पर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी सहित मोहनीय के उदय स्थान = 10 (1 मिथ्यात्व + 4 कषाय + 2 हास्य-रति/शोक-अरति + 1 वेद + भय + जुगुप्सा), 9 (भय/जुगुप्सा में से कोई एक), 8 (भय/जुगुप्सा रहित)
अपर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी का उदय अवश्य है
सर्व पदवृंद भंग 51,083
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 361 से 371

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+ लेश्या की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
लेश्या की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

लेश्या की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
लेश्या मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 1 1 1 1 1
अनिवृत्तिकरण सवेद 1 1 (2) 2 * 1 12 44
अवेद 1 1 (1) 1 4 4
अपूर्वकरण 1 20 (6,5,5,4) 20 * 1 24 480
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
देशविरत सम्यक्त्व सहित 3 28 (8,7,7,6) 52 * 3 24 3744
सम्यक्त्व रहित 24 (7,6,6,5)
असंयत सम्यक्त्व सम्यक्त्व सहित 6 32 (9,8,8,7) 60 * 6 24 8640
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6)
मिश्र 6 32 (9,8,8,7) 32 * 6 24 4608
सासादन 6 32 (9,8,8,7) 32 * 6 24 4608
मिथ्यादृष्टि अनं. सहित 6 36 (10,9,9,8) 68 * 6 24 9792
अनं. रहित 32 (9,8,8,7)
पर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी सहित मोहनीय के उदय स्थान = 10 (1 मिथ्यात्व + 4 कषाय + 2 हास्य-रति/शोक-अरति + 1 वेद + भय + जुगुप्सा), 9 (भय/जुगुप्सा में से कोई एक), 8 (भय/जुगुप्सा रहित)
अपर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी का उदय अवश्य है
सर्व पदवृंद भंग 38,237
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 372 से 386

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+ वेद की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
वेद की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

वेद की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
वेद मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
अनिवृत्तिकरण सवेद 3 4 4 * 3 2 24
अपूर्वकरण 3 20 (6,5,5,4) 20 * 3 24 1440
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
देशविरत सम्यक्त्व सहित 3 28 (8,7,7,6) 52 * 3 24 3744
सम्यक्त्व रहित 24 (7,6,6,5)
असंयत सम्यक्त्व सम्यक्त्व सहित 3 32 (9,8,8,7) 60 * 3 24 4320
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6)
मिश्र 3 32 (9,8,8,7) 32 * 3 24 2304
सासादन 3 32 (9,8,8,7) 32 * 3 24 2304
मिथ्यादृष्टि अनं. सहित 3 36 (10,9,9,8) 68 * 3 24 4896
अनं. रहित 32 (9,8,8,7)
पर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी सहित मोहनीय के उदय स्थान = 10 (1 मिथ्यात्व + 4 कषाय + 2 हास्य-रति/शोक-अरति + 1 वेद + भय + जुगुप्सा), 9 (भय/जुगुप्सा में से कोई एक), 8 (भय/जुगुप्सा रहित)
अपर्याप्त अवस्था में अनंतानुबंधी का उदय अवश्य है
सर्व पदवृंद भंग 25,368
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 387 से 388

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+ संयम की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
संयम की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

संयम की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
संयम मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 1 1 1 1 1
अनिवृत्तिकरण सवेद 2 2 1 * 2 12 48
अवेद 2 1 1 4 8
अपूर्वकरण 2 20 (6,5,5,4) 20 * 2 24 960
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
सर्व पदवृंद भंग 7,353
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 389 से 390

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+ सम्यक्त्व की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग -
सम्यक्त्व की अपेक्षा मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग

विशेष :

सम्यक्त्व की अपेक्षा गुणस्थानों में मोहनीय के उदय संबंधी पदवृंद भंग
सम्यक्त्व मोहनीय स्व-स्व उदय-स्थानगत भंग पदवृंद गुणा कुल पदवृंद भंग
सूक्ष्मसाम्पराय 2 1 1 * 2 1 2
अनिवृत्तिकरण सवेद 2 12 12 * 2 2 48
अवेद 2 1 1 * 2 4 8
अपूर्वकरण 2 20 (6,5,5,4) 20 * 2 24 960
अप्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
प्रमत्त संयत सम्यक्त्व सहित 3 24 (7,6,6,5) 44 * 3 24 3168
सम्यक्त्व रहित 20 (6,5,5,4)
देशविरत सम्यक्त्व सहित 3 28 (8,7,7,6) 52 * 3 24 3744
सम्यक्त्व रहित 24 (7,6,6,5)
असंयत सम्यक्त्व सम्यक्त्व सहित 3 32 (9,8,8,7) 60 * 3 24 4320
सम्यक्त्व रहित 28 (8,7,7,6)
सर्व पदवृंद भंग 15,418
पंचसंग्रह -- सप्ततिका अधिकार गाथा 391 से 392

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+ एक जीव की अपेक्षा नाम कर्म के उदय-स्थान -
एक जीव की अपेक्षा नाम कर्म के उदय-स्थान

विशेष :

एक जीव की अपेक्षा नाम कर्म के उदय-स्थान
उदय संख्या स्थान प्रकृतियों का विवरण स्वामी
20 1 ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस-बादर-सुभग-आदेय-यश]   समुद्घात सामान्य केवली [प्रतर व लोकपूरण]
21 2 ध्रु/12, यु/8, आनु/1 चारों गति के विग्रह-गति में जीव
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस-बादर-सुभग-आदेय-यश], तीर्थंकर समुद्घात तीर्थंकर केवली [प्रतर व लोकपूरण]
24 1 ध्रु/12, यु/8 [अपर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, *उपघात एकेन्द्रिय के मिश्र शरीर का काल
25 3 ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात एकेंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-मनुष्य-त्रस,बादर], श/3, उपघात, आहारक-अङ्गोपांग आहारक-शरीर का मिश्र-काल
ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-पंचेंद्रिय-*देव/नारकी-त्रस], श/3, उपघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग देव-नारकी के शरीर का मिश्र-काल
26 9 2 ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात, आतप / उद्योत एकेंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल
1 ध्रु/12, यु/8 [पर्याप्त-एकेन्द्रिय-तिर्यञ्च-स्थावर], श/3, उपघात, परघात, उच्छ्वास एकेंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
6 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, औदारिक-अङ्गोपांग, एक संहनन औदारिक-मिश्र काल [2 से 5 इंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य / सामान्य केवली]
27 6 1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, प्रशस्त-विहायोगति आहारक शरीर पर्याप्ति-काल
1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन तीर्थंकर समुधात केवली का औदारिक-मिश्र काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, विहायोगति [प्र./अप्र.] देव-नारकी का शरीर-पर्याप्ति काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप / उद्योत एकेंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
28 17 12 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, संहनन [कोई एक], विहायोगति [प्र./अप्र.] सामान्य मनुष्य और मूल शरीर में प्रवेश करता सामान्य-केवली का शरीर पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.] 2-5 इंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल
1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, प्र. विहायोगति आहारक का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, विहायोगति [प्र./अप्र.] देव-नारकी का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
29 20 12 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, संहनन [कोई एक], विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास सामान्य मनुष्य और मूल शरीर में प्रवेश करता सामान्य-केवली का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.] 2-5 इंद्रिय का शरीर पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास 2-5 इंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, तीर्थंकर समुद्घात तीर्थंकर-केवली का शरीर पर्याप्ति-काल
1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, आहारक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, प्र. विहायोगति, सुस्वर आहारक का भाषा पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, वैक्रियिक-अङ्गोपांग, उच्छ्वास, विहायोगति [प्र./अप्र.], सुस्वर/दु:स्वर देव-नारकी का भाषा पर्याप्ति-काल
30 9 2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास 2-5 इंद्रिय का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
4 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, सृपाटिका संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर त्रस उद्योत-रहित तिर्यञ्च व सामान्य मनुष्य का भाषा-पर्याप्ति काल
1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, तीर्थंकर समुद्घात तीर्थंकर केवली का उच्छ्वास पर्याप्ति-काल
2 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर सामान्य समुद्घात केवली का भाषा पर्याप्ति-काल
31 5 1 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, औदारिक-अङ्गोपांग, वज्रऋषभनाराच-संहनन, प्र. विहायोगति, उच्छ्वास, तीर्थंकर, सुस्वर तीर्थंकर-केवली का भाषा पर्याप्ति-काल
4 ध्रु/12, यु/8, श/3, उपघात, परघात, उद्योत, औदारिक-अङ्गोपांग, १ संहनन, विहायोगति [प्र./अप्र.], उच्छ्वास, सुस्वर/दु:स्वर त्रस उद्योत-सहित तिर्यञ्च का भाषा-पर्याप्ति काल
8 1 मनुष्य-गति, पंचेंद्रिय-जाति, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, त्रस, बादर, पर्याप्त अयोग-केवली
9 1 मनुष्य-गति, पंचेंद्रिय-जाति, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, त्रस, बादर, पर्याप्त, तीर्थंकर अयोग-केवली तीर्थंकर
ध्रु/12 = ध्रुवोदयी 12 (तेजस, कार्माण, वर्ण-चतुष्क, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ, अगुरुलघु, निर्माण)
यु/8 = युगल 8 (४ गति, ५ जाति, त्रस-स्थावर, बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त-अपर्याप्त, सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश) [इन ८ योगलों की कुल २१ प्रकृतियों में से प्रत्येक-युगल में से १, इसप्रकार युगपत ८ का ही उदय होता है]
श/३ = शरीर आदि की 3 (३ शरीर [औदारिक, वैक्रियिक, आहारक], ६ संस्थान, प्रत्येक-साधारण में से युगपत ३ का ही उदय होता है)

नाम-कर्म की ६७ प्रकृतियों में उदय संबंधी नियम


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+ नाम-कर्म उदय-स्थान जीव-समास प्ररूपणा -
नाम-कर्म उदय-स्थान जीव-समास प्ररूपणा

विशेष :

नाम-कर्म उदय-स्थान जीव-समास प्ररूपणा
स्थान उदय-स्थान विशेष स्वामी
लब्ध्यपर्याप्त 2 21, 24 सूक्ष्म बादर एकेन्द्रिय
2 21, 26 विकलेंद्रिय
2 21, 26 संज्ञी असंज्ञी पंचेंद्रिय
पर्याप्त 4 21, 24, 25, 26 सूक्ष्म एकेन्द्रिय
5 21, 24, 25, 26, 27 बादर एकेन्द्रिय
5 21, 26, 28, 29, 31 विकलेंद्रिय
5 21, 26, 28, 29, 31 असंज्ञी पंचेंद्रिय
8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31 संज्ञी पंचेंद्रिय

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+ नाम-कर्म के उदय-स्थानों का यंत्र -
नाम-कर्म के उदय-स्थानों का यंत्र

विशेष :

गतियों में नाम-कर्म के उदय-स्थानों का यंत्र
कार्माण काल शरीर-मिश्र काल शरीर-पर्याप्ति काल उच्छ्वास-पर्याप्ति काल भाषा-पर्याप्ति काल
तिर्यञ्च स्थावर स्थान 21 (20 +तिर्यञ्चानुपूर्वी) 24 (20 + औदारिक-शरीर + हुंडक-संस्थान + प्रत्येक/साधारण + उपघात) 25/26 (24 + परघात [+आतप/उद्योत]) 26/27 (25/26 + उच्छ्वास) -na-
भंग 5 (यश [बा.,प.]; अयश [बा./सू.,प./अप.]) 9 (यश [बा.,प्र.,प.]; अयश [बा./सू.,प./अप.,प्र./सा.]) 9 = (1 यश [बा.,प्र.]) + 4 अयश [बा./सू.,प्र./सा.]) + (2 [यश/अयश] * 2 [आतप/उद्योत]) 9 -na-
विकलत्रय स्थान 21 (20 +तिर्यञ्चानुपूर्वी) 26 (20 + 6 औदारिक-शरीर व अंगोपांग + हुंडक-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + सृपाटिका-संहनन) 28/29 (26 + परघात + अप्र.विहायोगति [+उद्योत]) 29/30 (28/29 + उच्छ्वास) 30/31 (+दुस्वर)
भंग 9 (यश / अयश [प./अप.] * 3 जाति) 9 (यश / अयश [प./अप.] * 3 जाति) 12 (यश/अयश * 3 जाति * 2) 12 12
संज्ञी-पंचेंद्रिय स्थान 21 (20 +तिर्यञ्चानुपूर्वी) 26 (20 + 6 औदारिक-शरीर व अंगोपांग + १-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + १-संहनन) 28/29 (26 + परघात + विहायोगति [+उद्योत]) 29/30 (28/29 + उच्छ्वास) 30/31 (+स्वर)
भंग 9 (प. 8 [सुभग/दुर्भग, आदेय/अनादेय, यश/अयश] + अप.11) 289 (प. 288 [8 * 6-संहनन * 6-संस्थान] + अप. 1) 1152 (288 * 2 विहायोगति * 2) 1152 (288 * 2 * 2) 2304 (576 * 2 स्वर * 2)
कुल भंग 23 307 1173 1173 2316 4992
सूक्ष्म / साधारण / अपर्याप्त के अप्रशस्त की प्रकृतियों का ही उदय होने से एक ही भंग है
एकेन्द्रियों में हुंडक-संस्थान, दुर्भग, अनादेय का की उदय है । यहाँ संहनन / विहायोगति / स्वर नहीं है ।
देव स्थान 21 (20 +देवानुपूर्वी) 25 (20 + वैक्रियिक-शरीर व अंगोपांग + समचतुरस्र-संस्थान + प्रत्येक + उपघात) 27 (25 + परघात + प्रशस्त-विहायोगति) 28 (27 + उच्छ्वास) 29 (28 + सुस्वर)
भंग 1 1 1 1 1 5
देवों में समचतुरस्र-संस्थान, प्रशस्त-विहायोगति, सुभग, आदेय, सुस्वर, यशस्कीर्ति का ही उदय है । यहाँ संहनन नहीं है ।
नारकी स्थान 21 (20 +नरकानुपूर्वी) 25 (20 + वैक्रियिक-शरीर व अंगोपांग + हुंडक-संस्थान + प्रत्येक + उपघात) 27 (25 + परघात + अप्रशस्त-विहायोगति) 28 (27 + उच्छ्वास) 29 (28 + दुस्वर)
भंग 1 1 1 1 1 5
नरकों में हुंडक-संस्थान, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, अनादेय, दुस्वर, अयशस्कीर्ति का ही उदय है । यहाँ संहनन नहीं है ।
मनुष्य अपर्याप्त स्थान 21 (20 +मनुष्यानुपूर्वी) 26 (20 + औदारिक-शरीर व अंगोपांग + हुंडक-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + सृपाटिका-संहनन) -na- -na- -na-
भंग 1 1 -na- -na- -na-
सामान्य-पर्याप्त स्थान 21 (20 +मनुष्यानुपूर्वी) 26 (20 + औदारिक-शरीर व अंगोपांग + १-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + १-संहनन) 28 (26 + परघात + विहायोगति) 29 (+उच्छ्वास) 30 (29 + स्वर)
भंग 8 (सुभग-दुर्भग, आदेय-अनादेय, यश-अयश) 288 (8 * 6-संहनन * 6-संस्थान) 576 (288 * 2 विहायोगति) 576 1152 (576 * 2 स्वर)
आहारक-शरीरी स्थान -na- 25 (20 + आहारक-शरीर व अंगोपांग + समचतुरस्र-संस्थान + प्रत्येक + उपघात) 27 (25 + परघात + प्रशस्त-विहायोगति) 28 (27 + उच्छ्वास) 29 (28 + सुस्वर)
भंग -na- 1 1 1 1
सामान्य-केवली स्थान 20 26 (20 + औदारिक-शरीर व अंगोपांग + १-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + वज्रऋषभनाराच-संहनन) पुनरुक्त 28 (26 + परघात + विहायोगति) पुनरुक्त 29 (28 + उच्छ्वास) पुनरुक्त 30 (29 + स्वर) पुनरुक्त
भंग 1 6 (6-संस्थान) 12 (6 * 2 विहायोगति) 12 24 (12 * 2 स्वर)
तीर्थंकर-केवली स्थान 21 (20 + तीर्थंकर) 27 (21 + औदारिक-शरीर व अंगोपांग + समचतुरस्र-संस्थान + प्रत्येक + उपघात + वज्रऋषभ-नाराच-संहनन) 29 (27+ परघात + प्रशस्त-विहायोगति) 30 (29 + उच्छ्वास) 31 (30 + सुस्वर)
भंग 1 1 1 1 1
सामान्य आयोग-केवली स्थान -na- -na- -na- -na- 8
भंग -na- -na- -na- -na- 1
तीर्थंकर आयोग-केवली स्थान -na- -na- -na- -na- 9 (8 + तीर्थंकर)
भंग -na- -na- -na- -na- 1
कुल भंग 11 291 578 578 1156 2668
सामान्य केवलियों में वज्र-ऋषभनाराच संहनन, सुभग, आदेय, यशस्कीर्ति का ही उदय है ।
सामान्य आयोग केवलियों में मनुष्य-गति, पंचेंद्रिय-जाति, सुभग, आदेय, यश:कीर्ति, त्रस, बादर, पर्याप्त का ही उदय है ।
तीर्थंकरों में समचतुरस्र-संस्थान, वज्र-ऋषभनाराच संहनन, प्रशस्त-विहायोगति, सुभग, आदेय, सुस्वर, यशस्कीर्ति का ही उदय है ।
आहारक शरीरियों में समचतुरस्र-संस्थान, प्रशस्त-विहायोगति, सुभग, आदेय, सुस्वर, यशस्कीर्ति का ही उदय है । यहाँ संहनन नहीं है ।
सामान्य केवली का कार्मण को छोड़कर बाकी के समयों के भंग (54) पुनरुक्त हैं ??
ध्रुवोदयी 12 + युगल 8 = 20 प्रकृतियों का उदय सामन्य (ऊपर सभी को) है
पंचसंग्रह सप्ततिका अधिकार गाथा 96 से 190

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+ नाम कर्म के उदय-स्थान में जीव-पद अपेक्षा भंग -
नाम कर्म के उदय-स्थान में जीव-पद अपेक्षा भंग

विशेष :

नाम कर्म के उदय-स्थान में जीव-पद अपेक्षा भंग
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
20 कार्मण *समुद्घात सामान्य केवली 1 1 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- 1 1
21 कार्मण देव-गति 1 60 1 59 1 31 -na- -na- 1 4 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- 1
नरक-गति 1 1 -na- 1
मनुष्य-गति 8 8 8 1
संज्ञी तिर्यञ्च 8 8 8 1
विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 8 -na-
बादर -- पृथ्वी, अप तेज, वायु, प्र. वनस्पति 10 10 6
सूक्ष्म 5*, बादर साधारण वनस्पति 6 6 -na-
लब्ध्यपर्याप्त 17 (पृथ्वीकायादि) 17 17
*समुद्घात तीर्थंकर केवली 1 -na- 1
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
24 मिश्र शरीर बादर -- पृथ्वी, अप तेज, वायु, प्र. वनस्पति 10 27 10 27 6 6 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na-
सूक्ष्म 5*, बादर साधारण वनस्पति 6 6 -na-
लब्ध्यपर्याप्त 11 (एकेन्द्रिय) 11 11
25 मिश्र-शरीर देव, नारकी, आहारक-शरीरी 3 19 2 18 1 1 -na- -na- 2 2 -na- -na- 1 1 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na-
शरीर-पर्याप्ति बादर -- पृथ्वी, अप तेज, वायु, प्र. वनस्पति 10 10 -na- -na- -na-
सूक्ष्म 5, बादर साधारण वनस्पति 6 6
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
26 शरीर-मिश्र विकलत्रय और असंज्ञी 8 620 8 614 8 584 -na- -na- -na- 37 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- 6
संज्ञी तिर्यञ्च 288 288 288 1
मनुष्य 288 288 288 36
सामान्य समुद्घात केवली 6 -na- -na- -na- 6
लब्ध्यपर्याप्त 6 (त्रस) 6 6 -na-
शरीर-पर्याप्ति बादर पृथ्वीकायिक आतप 2 2
उद्योत 3 (पृथ्वी, अप, वनस्पति) 6 6
उच्छ्वास-पर्याप्ति बादर -- पृथ्वी, अप तेज, वायु, प्र. वनस्पति 10 10
सूक्ष्म 5, बादर साधारण वनस्पति 6 6
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
27 शरीर-मिश्र तीर्थंकर समुद्घात केवली 1 12 -na- 10 -na- -na- -na- -na- -na- 2 -na- -na- -na- 1 -na- -na- -na- -na- -na- -na- 1 1
शरीर-पर्याप्ति देव, नारकी, आहारक-शरीरी 3 2 2 1 -na-
उच्छ्वास-पर्याप्ति बादर पृथ्वीकायिक आतप 2 2 0 -na-
उद्योत 3 (पृथ्वी, अप, वनस्पति) 6 6 -na-
28 शरीर-पर्याप्ति सामान्य समुद्घात केवली 12 1175 -na- 1162 -na- -na- -na- -na- -na- 75 -na- -na- -na- 1 -na- -na- -na- -na- -na- -na- 12 12
मनुष्य 576 576 72 -na-
संज्ञी तिर्यञ्च 576 576 1
विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 -na-
उच्छ्वास-पर्याप्ति देव, नारकी, आहारक-शरीरी 3 2 2 1
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
29 शरीर-पर्याप्ति तीर्थंकर समुद्घात केवली 1 1760 -na- 1746 -na- 2 -na- 2 -na- 76 -na- -na- -na- 1 -na- -na- -na- -na- -na- -na- 1 13
संज्ञी तिर्यञ्च उद्योत 576 576 1 -na-
उद्योत-युक्त विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 -na-
उच्छ्वास-पर्याप्ति सामान्य समुद्घात केवली 12 -na- 12
मनुष्य 576 576 72 -na-
संज्ञी तिर्यञ्च 576 576 1
विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 0
भाषा-पर्याप्ति देव, नारकी, आहारक-शरीरी 3 2 2 2 2 1
उदय-स्थान काल स्वामी सामान्य मिथ्यात्व सासादन मिश्र अविरत स. देशविरत प्रमत्तविरत अप्रमत्तविरत उपशम-श्रेणी क्षपक-श्रेणी सयोग-केवली
भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग भंग कुल-भंग
30 उच्छ्वास-पर्याप्ति तीर्थंकर समुद्घात केवली 1 2921 -na- 2896 -na- 2304 -na- 2304 -na- 2305 -na- 288 -na- 144 -na- 144 -na- 72 -na- 24 1 25
संज्ञी तिर्यञ्च उद्योत 576 576 1 -na-
उद्योत-युक्त विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 -na-
भाषा-पर्याप्ति सामान्य केवली 24 -na- 24
मनुष्य 1152 1152 1152 1152 1152 144 144 144 72 24 -na-
संज्ञी तिर्यञ्च 1152 1152 1152 1152 1152 144 -na- -na- -na- -na-
विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 -na- -na- -na- -na-
31 भाषा-पर्याप्ति तीर्थंकर केवली 1 1161 -na- 1160 -na- 1152 -na- 1152 -na- 1152 -na- 144 -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- -na- 1 1
संज्ञी तिर्यञ्च उद्योत 1152 1152 1152 1152 1152 144 -na-
उद्योत-युक्त विकलत्रय और असंज्ञी 8 8 -na- -na- -na- -na-
कुल भंग 7758 7692 4080 3458 3653 432 148 144 72 24 60
*सूक्ष्म 5 = पृथ्वी, अप तेज, वायु, वनस्पति
केवली में कार्मण-काल प्रतर और लोकपूरण समुद्घात के 3 समय का काल है ।
केवली समुद्घात में उदयस्थान -- दंड (30/31) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> प्रतर+लोकपूरण (20/21) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> शरीर-पर्याप्ति (28/29) -> उच्छ्वास पर्याप्ति (29/30) -> भाषा-पर्याप्ति (30/31)

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+ आदेश से एक जीव के एक काल में नाम कर्म-उदय -
आदेश से एक जीव के एक काल में होने वाला नाम कर्म-उदय

विशेष :

नाम-कर्म उदय-स्थान आदेश प्ररूपणा
मार्गणा स्थान उदय-स्थान
गति नरक 5 21, 25, 27, 28, 29
तिर्यञ्च 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
मनुष्य 11 20, 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 8, 9
देव 5 21, 25, 27, 28, 29
इंद्रिय एकेन्द्रिय 5 21, 24, 25, 26, 27
विकलत्रय 6 21, 26, 28, 29, 30, 31
पंचेंद्रिय 10 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
काय पृथ्वी, जल, वनस्पति 5 21, 24, 25, 26, 27
तेज, वायु 4 21, 24, 25, 26
त्रस 10 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
योग 4 मन 3 29, 30, 31 (पंचेंद्रिय संज्ञी पर्याप्त वत्)
3 वचन (- अनुभय) 3 29, 30, 31 (पंचेंद्रिय संज्ञी पर्याप्त वत्)
अनुभय-वचन 3 29, 30, 31 (त्रस-पर्याप्त वत्)
औदारिक-काय 7 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31 (त्रस-पर्याप्त वत्)
औदारिक-मिश्र 3 24, 26, 27 (सातों अपर्याप्त वत्)
कार्मण 2 20, 21
वैक्रियिक 3 27, 28, 29
वैक्रियिक-मिश्र 1 25
आहारक 3 27, 28, 29
आहारक-मिश्र 1 25
वेद स्त्री 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
पुरुष 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
नपुंसक 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
कषाय 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
ज्ञान कुमति-कुश्रुत 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
विभंग 3 29, 30, 31
मति, श्रुत, अवधि 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
मन:पर्यय 1 30
केवल 10 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
संयम सामायिक / छेदोपस्थापना 5 25, 27, 28, 29, 30
परिहारविशुद्धि 1 30
सूक्ष्मसाम्पराय 1 30
यथाख्यात 4 30, 31, 9, 8
10 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
देशविरत 2 30, 31
असंयम 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
दर्शन चक्षु 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
अचक्षु 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
अवधि 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
केवल 10 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
पीत, पद्म 7 21, 25, 27, 28, 29, 30, 31
शुक्ल 7 21, 25, 27, 28, 29, 30, 31
शुक्ल (केवली समुद्घात) 8 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 31
भव्य भव्य 12 20, 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
अभव्य 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
सम्यक्त्व क्षायिक 11 20, 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31, 9, 8
वेदक 8 20, 21, 26, 27, 28, 29, 30, 31
उपशम 5 21, 25, 29, 30, 31
मिश्र 3 29, 30, 31
सासादन 7 21, 24, 25, 26, 29, 30, 31
मिथ्यात्व 9 21, 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
संज्ञी संज्ञी 8 21, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
असंज्ञी 7 21, 24, 26, 28, 29, 30, 31
आहारक आहारक 8 24, 25, 26, 27, 28, 29, 30, 31
अनाहारक (सयोगी) 2 20, 21
अनाहारक (अयोगी) 2 9, 8

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+ मोहनीय की जघन्य/उत्कृष्ट प्रकृति/अनुभाग उदीरणा के स्वामी -
मोहनीय की जघन्य/उत्कृष्ट प्रकृति/अनुभाग उदीरणा के स्वामी

विशेष :

मोहनीय की जघन्य / उत्कृष्ट प्रकृति / अनुभाग उदीरणा के स्वामी
प्रकृति जघन्य प्रदेश उदीरणा उत्कृष्ट अनुभाग उदीरणा उत्कृष्ट प्रदेश उदीरणा जघन्य अनुभाग उदीरणा
मिथ्यात्व उत्कृष्ट संक्लिष्ट या ईषत मध्यम परिणाम वाला संज्ञी मिथ्यादृष्टि उत्कृष्ट संक्लिष्ट संज्ञी पर्याप्त मिथ्यादृष्टि संयम के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टि
अनंतानुबंधी 4 संयम के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध मिथ्यादृष्टि
अप्रत्याख्यानावरणी 4 संयम के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध असंयतसम्यग्दृष्टि
प्रत्याख्यानावरणी 4 संयम के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध या ईषत् मध्यम परिणामवाला संयतासंयत संयम के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध संयतासंयत
संजवलन 4 अपने-अपने वेदककाल में एक समय अधिक एक अवलिकाल शेष रहने पर क्षपक के
स्त्री / पुरुष वेद सर्व-सक्लिष्ट आठ वर्ष का ऊँट
नपुंसक-वेद सर्व संक्लिष्ट सातवें नरक का नारकी
अरति, शोक, भय, जुगुप्सा क्षपक अपूर्वकरण के अन्तिम समय में
हास्य, रति सर्व संक्लिष्ट शतार-सहस्रार कल्प का देव
समयक्त्व सर्व संक्लिष्ट या ईषत् मध्यमपरिणाम वाला मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सम्यग्दृष्टि सर्व संक्लिष्ट मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती असंयत सम्यग्दृष्टि जिसके दर्शनमोहनीय की क्षपणा में एक समय अधिक एक आवलिकाल शेष है वह
सम्यकमिथ्यात्व सर्व संक्लिष्ट या ईषत् मध्यम परिणाम वाला मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टि सर्व संक्लिष्ट मिथ्यात्व के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्यक्त्व के अभिमुख हुआ अन्तिम समयवर्ती सर्वविशुद्ध सम्यग्मिथ्यादृष्टि
कसायपाहुड़ पुस्तक 11 के पृष्ठ 11-12 से

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कर्म-सत्व



+ नरक गति मार्गणा में सत्व -
नरक गति मार्गणा में सत्व

विशेष :

नरक गति मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
1-3 मिथ्यात्व 147 0
सासादन 144 3 (तीर्थंकर, आहारक-द्विक)
मिश्र 146 1 (तीर्थंकर)
अविरत क्षायोपशमिक / औपशमिक 147 0
क्षायिक* (प्रथम नरक) 140 7 (अनतानुबंधी ४, दर्शन-मोहनीय ३)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ = 147 (148 - देवायु)
सत्व असत्व
4-6 मिथ्यात्व 146 0
सासादन 144 2 (आहारक-द्विक)
मिश्र 146 0
अविरत 146 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ = 146 (148 - देवायु, तीर्थंकर)
सत्व असत्व
7 मिथ्यात्व 145 0
सासादन 143 2 (आहारक-द्विक)
मिश्र 145 0
अविरत 145 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ = 145 (148 - देवायु, मनुष्यायु, तीर्थंकर)

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+ तिर्यञ्च गति मार्गणा में सत्व -
तिर्यञ्च गति मार्गणा में सत्व

विशेष :

तिर्यञ्च गति मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व व्युच्छिति
सामान्य, पंचेंद्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त, योनिमति मिथ्यात्व 147 0 0
सासादन 145 2 (आहारक-द्विक) 0
मिश्र 147 0 0
अविरत क्षायोपशमिक / औपशमिक 147 0 2 (नरकायु, मनुष्यायु)
क्षायिक* (भोग-भूमि) 140 7 (अनंतानुबंधी ४, दर्शन-मोहनीय ३)
संयमासंयम 145 2
सत्व योग्य प्रकृतियाँ = 147 (148 - तीर्थंकर)
सत्व असत्व
लब्ध्यपर्याप्त मिथ्यात्व 145 3 (तीर्थंकर, देवायु, नरकायु)

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+ मनुष्य गति मार्गणा में सत्व -
मनुष्य गति मार्गणा में सत्व

विशेष :

मनुष्य गति मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व व्युच्छिति
सामान्य, पर्याप्त, योनिमति* मिथ्यात्व 148 0 0
सासादन 145 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर) 0
मिश्र 147 1 (-तीर्थंकर) 0
अविरत 148 0 2 (आयु [नरक, तिर्यञ्च])
संयमासंयम 146 2 0
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत 4 *(अनंतानुबंधी ४)
अपूर्वकरण 146/*142 2/*6 0
अनिवृतिकरण
सूक्ष्मसाम्पराय
उपशान्तमोह 41 (देवायु, मोहनीय २४, जातिचतुष्क, सूक्ष्म, स्थावर, साधारण, आतप, उद्योत, गति [नरक, तिर्यन्च], गत्यानुपूर्व्य [नरक, तिर्यन्च], स्त्यानत्रिक)
क्षीणमोह 101 47 16 (ज्ञानावरण ५, दर्शनावरण ६ [चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल, निद्रा, प्रचला], अंतराय ५)
सयोगकेवली 85 63 0
अयोगकेवली 85 63 85
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148
क्षपक-श्रेणी के अपूर्वकरण गुणस्थान में देवायु और मोहनीय की सात प्रकृतियों की सत्ता नहीं है
क्षपक-श्रेणी के अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में 36 प्रकृतियों की सत्ता नष्ट होती है
*द्वितियोपशम सम्यक्त्व के लिए अनंतानुबंधी की विसंयोजना का नियम है
*योनिमति के क्षपक-श्रेणी के अपूर्वकरण गुणस्थान में तीर्थंकर की सत्ता नहीं है
सत्व असत्व
लब्ध्यपर्याप्त मिथ्यात्व 145 3 (तीर्थंकर, देवायु, नरकायु)

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+ देव गति मार्गणा में सत्व -
देव गति मार्गणा में सत्व

विशेष :

देव गति मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
भवनवासी देव, देवियाँ मिथ्यात्व 146 0
सासादन 144 2 (-आहारक-द्विक)
मिश्र 146 0
अविरत 146 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (तीर्थंकर, नरकायु)
सत्व असत्व
सौधर्म से सहस्रार मिथ्यात्व 146 1 (-तीर्थंकर)
सासादन 144 2 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मिश्र 146 1 (-तीर्थंकर)
अविरत 147 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 147 = 148 - 1 (नरकायु)
सत्व असत्व
आनत से 9 ग्रेवैयिक मिथ्यात्व 145 1 (-तीर्थंकर)
सासादन 143 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मिश्र 145 1 (-तीर्थंकर)
अविरत 146 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (नरकायु, तिर्यञ्चायु)
सत्व असत्व
9 अनुदिश, 5 अनुत्तर अविरत 146 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (नरकायु, तिर्यञ्चायु)

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+ इंद्रिय और काय मार्गणा में सत्व -
इंद्रिय और काय मार्गणा में सत्व

विशेष :

इंद्रिय और काय मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
इंद्रिय 1,2,3,4 इंद्रिय मिथ्यात्व 145 0
सासादन 143 2 (-आहारक-द्विक)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 145 = 148 - 3 (तीर्थंकर, नरकायु, देवायु)
पंचेंद्रिय सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 14, सामान्यवत्
लब्ध्यपर्याप्त सत्व योग्य प्रकृतियाँ 145 = 148 - 3 (तीर्थंकर, नरकायु, देवायु)
सत्व असत्व
काय अग्नि, वायु मिथ्यात्व 144 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 144 = 148 - 4 (तीर्थंकर, नरकायु, देवायु, मनुष्यायु)
पृथ्वी, जल, वनस्पति मिथ्यात्व 145 0
सासादन 143 2 (-आहारक-द्विक)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 145 = 148 - 3 (तीर्थंकर, नरकायु, देवायु)
त्रस सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 14, सामान्यवत्

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+ उद्वेलना का क्रम -
उद्वेलना का क्रम
आहारक-द्विक -> सम्यक्त्व-प्रकृति -> सम्यकमिथ्यात्व -> देव-गति / देव-गत्यानुपूर्वी -> नरक-गति / नरक-गत्यानुपूर्वी / वैक्रियिक-शरीर / वैक्रियिक-अंगोपांग -> उच्च-गोत्र -> मनुष्य-गति / मनुष्य-गत्यानुपूर्वी

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+ योग मार्गणा में सत्व -
योग मार्गणा में सत्व

विशेष :

योग मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
सत्य और अनुभय मन / वचन सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148 गुणस्थान 1 से 13, सामान्यवत्
असत्य और उभय मन / वचन सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148 गुणस्थान 1 से 12, सामान्यवत्
औदारिक सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 13, सामान्यवत्
आहारक / आहारक-मिश्र सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (नरकायु, तिर्यञ्चायु), गुणस्थान 1 (प्रमत्तसंयत)
सत्व असत्व
वैक्रियिक मिथ्यात्व 148 0
सासादन 145 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मिश्र 147 1 (-तीर्थंकर)
अविरत 148 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148
वैक्रियिक मिश्र मिथ्यात्व 146 0
सासादन 142 4 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर, नरकायु)
अविरत 146 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु)
सत्व असत्व
औदारिक-मिश्र मिथ्यात्व 145 1 (तीर्थंकर)
सासादन 143 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
अविरत 146 0
सयोग-केवली 85 61
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (देवायु, नरकायु)
सत्व असत्व
कार्मण मिथ्यात्व 148 0
सासादन 144 4 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर, नरकायु)
अविरत 148 0
सयोग-केवली 85 63
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148

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+ वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणा में सत्व -
वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणा में सत्व

विशेष :

वेद, कषाय और ज्ञान मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
वेद पुरुष सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148 गुणस्थान 1 से 9, सामान्यवत्
स्त्री, नपुंसक सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148 गुणस्थान 1 से 9, क्षपक-श्रेणी में तीर्थकर का सत्व नहीं
कषाय क्रोध, मान, माया सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 9, सामान्यवत्
लोभ सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 10, सामान्यवत्
सत्व असत्व
ज्ञान कुमति, कुश्रुत, विभंगावधि मिथ्यात्व 148 0
सासादन 145 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148
मति, श्रुत, अवधि सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 4 से 12, सामान्यवत्
मन:पर्यय सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 = 148 - 2 (नरकायु, तिर्यञ्चायु), गुणस्थान 6 से 12, सामान्यवत्
केवल सयोगकेवली 85 0
अयोगकेवली 85 0, 72 (चरम-समय)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 85, सामान्यवत्

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+ संयम और दर्शन मार्गणा में सत्व -
संयम और दर्शन मार्गणा में सत्व

विशेष :

संयम और दर्शन मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
संयम असंयम सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 4, सामान्यवत्
संयमासंयम सत्व योग्य प्रकृतियाँ 147, नरकायु का सत्व नहीं, सामान्यवत्
सामायिक / छेदोपस्थापना सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146, नरकायु और तिर्यञ्चायु का सत्व नहीं, गुणस्थान 6 से 9, सामान्यवत्
परिहारविशुद्धि सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146, नरकायु और तिर्यञ्चायु का सत्व नहीं, गुणस्थान 6 से 7, सामान्यवत्
सूक्ष्मसाम्पराय सत्व योग्य प्रकृतियाँ 146 (उपशम-श्रेणी -- नरकायु और तिर्यञ्चायु का सत्व नहीं) / 102 (क्षपक-श्रेणी)
यथाख्यात उपशांत-मोह 146 (द्वितियोपशम) / 139/138 (क्षायिक) 2 / 9
क्षीण-मोह 101 47
सयोगकेवली 85 0
अयोगकेवली 85 0, 72 (चरम-समय)
सत्व असत्व
दर्शन चक्षु / अचक्षु सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 12, सामान्यवत्
अवधि सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 4 से 12, सामान्यवत्
केवल सत्व योग्य प्रकृतियाँ 85, केवलज्ञानवत्

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+ लेश्या, भव्य और सम्यक्त्व मार्गणा में सत्व -
लेश्या, भव्य और सम्यक्त्व मार्गणा में सत्व

विशेष :

लेश्या, भव्य और सम्यक्त्व मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
लेश्या कृष्ण, नील मिथ्यात्व 147 1 (तीर्थंकर)
सासादन 145 3 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर)
मिश्र 147 1 (तीर्थंकर)
अविरत 148 0
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 4
कापोत सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 4, सामान्यवत्
पीत-पद्म सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 7, मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थकर का सत्व नहीं, शेष सामान्यवत्
शुक्ल सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 13, मिथ्यात्व गुणस्थान में तीर्थकर का सत्व नहीं, शेष सामान्यवत्
भव्य भव्य सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 14, सामान्यवत्
अभव्य सत्व योग्य प्रकृतियाँ 141 = 148 - 7 (तीर्थंकर, आहारक ४ [शरीर, बंधन, संघात, अंगोपांग], सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय), गुणस्थान मिथ्यात्व
सत्व असत्व
सम्यक्त्व औपशमिक अविरत 148 0
देशसंयत 147 1 (नरकायु)
प्रमत्त-विरत से उपशांतमोह 146 2 (तिर्यञ्चायु, नरकायु)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 4 से 11, सामान्यवत्
क्षायोपशमिक सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 4 से 7, सामान्यवत्
क्षायिक अविरत 141 0
देशसंयत से अप्रमत्तसंयत 139 2 (तिर्यञ्चायु, नरकायु)
अपूर्वकरण* से उपशान्तमोह 139 2
क्षीणमोह 101 40 (2+36 [अनिवृत्तिकरण में व्युच्छिन्न]+संज्वलन लोभ+देवायु)
सयोगकेवली 85 56
अयोगकेवली 85*,72,13 56,69,128
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 141 = 148 - 7 (दर्शनमोहनीय ३ और अनंतानुबंधी ४), गुणस्थान 4 से 14,
*अपूर्वकरण गुणस्थान से उपशांत-मोह में अबद्धायुष्क के देवायु का सत्व नहीं पाया जाता
*आयोगकेवली गुणस्थान में द्विचरम समय में सत्व 72, चरम समय में सत्व 13
मिश्र सत्व योग्य प्रकृतियाँ 147, तीर्थंकर सत्व नहीं, गुणस्थान मिश्र
सासादन सत्व योग्य प्रकृतियाँ 145, तीर्थंकर और आहारक द्विक का सत्व नहीं, गुणस्थान सासादन
मिथ्यात्व सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान मिथ्यात्व

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+ संज्ञी और आहार मार्गणा में सत्व -
संज्ञी और आहार मार्गणा में सत्व

विशेष :

संज्ञी, और आहार मार्गणा में सत्व
सत्व असत्व
संज्ञी असंज्ञी मिथ्यात्व 147 0
सासादन 145 2 (आहारक-द्विक)
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 147, तीर्थंकर बिना
संज्ञी सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 12, सामान्यवत्
आहार आहारक सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148, गुणस्थान 1 से 13, सामान्यवत्
अनाहारक मिथ्यात्व 148 0
सासादन 144 4 (-आहारक-द्विक, तीर्थंकर, नरकायु)
अविरत 148 0
सयोग-केवली 85 63
अयोग-केवली 85*,85,13 63,63,135
सत्व योग्य प्रकृतियाँ 148
*आयोगकेवली गुणस्थान में द्विचरम समय में सत्व 72, चरम समय में सत्व 13

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+ एक जीव के सत्व में स्थान और भंग की संख्या -
एक जीव के सत्व में स्थान और भंग की संख्या

विशेष :

एक जीव के सत्व में स्थान और भंग
स्थान भंग
मिथ्यात्व 18 50
सासादन 4 12
मिश्र 8 36
अविरत 40 120
देशविरत 40 48
प्रमत्तसंयत 40 40
अप्रमत्तसंयत
स्थान भंग
उपशम-श्रेणी क्षपक श्रेणी
अपूर्वकरण 24 4 28
अनिवृतिकरण 24 36 62
सूक्ष्मसाम्पराय 24 4 28
उपशान्तमोह 24 - 24
क्षीणमोह - 8 8
सयोगकेवली 4 4
अयोगकेवली 6 8

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+ मिथ्यादृष्टि के सत्व में 18 स्थान / 50 भंग -
मिथ्यात्व गुणस्थान के सत्व में 18 स्थान और उनके 50 भंग

विशेष :

मिथ्यात्व गुणस्थान के सत्व में 18 स्थान और उनके 50 भंग
बद्धायुष्क अबद्धायुष्क
स्थान भंग असत्व विशेष स्थान भंग असत्व विशेष
146 1 2 (आयु २ [देव,तिर्यञ्च]) तीर्थंकर और आहारक चतुष्क की सत्ता वाला नरक की ओर जाता हुआ मनुष्य 145 1 3 (आयु ३ [देव,तिर्यञ्च,मनुष्य]) २-३ नरक में तीर्थंकर और आहारक चतुष्क की सत्ता वाला निर्वृत्तिअपर्याप्तक नारकी
145 5 3 (तीर्थंकर, २ आयु) चारों गति के बद्धायुष्क (तिर्यञ्चायु+३[नरकायु,मनुष्यायु,देवायु], मनुष्यायु+२[नरकायु,देवायु]) 144 4 4 (तीर्थंकर, ३ आयु) चारों गति के अबद्धायुष्क
142 1 6 (आयु २ [देव,तिर्यञ्च], आहारक-चतुष्क) तीर्थंकर की सत्ता वाला नरक की ओर जाता हुआ मनुष्य 141 1 7 (आयु ३ [देव,तिर्यञ्च,मनुष्य], आहारक-चतुष्क) २-३ नरक में तीर्थंकर की सत्ता वाला निर्वृत्तिअपर्याप्तक नारकी
141 5 7 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, २ आयु) चारों गति के बद्धायुष्क (तिर्यञ्चायु+३[नरकायु,मनुष्यायु,देवायु], मनुष्यायु+२[नरकायु,देवायु]) 140 4 8 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, ३ आयु) चारों गति के अबद्धायुष्क
140 5 8 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, २ आयु, सम्यक्त्व) सम्यक्त्व मोहनीय की उद्वेलना करने वाले चारों गति के बद्धायुष्क 139 4 9 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, ३ आयु, सम्यक्त्व) सम्यक्त्व मोहनीय की उद्वेलना करने वाले चारों गति के अबद्धायुष्क
139 5 9 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, २ आयु, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व) सम्यग्मिथ्यात्व की उद्वेलना करने वाले चारों गति के बद्धायुष्क 138 4 10 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, ३ आयु, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व) सम्यग्मिथ्यात्व की उद्वेलना करने वाले चारों गति के अबद्धायुष्क
137 1 11 (९ + देव-द्विक) देव-द्विक की उद्वेलना सहित मनुष्यायु की सत्ता वाला एकेन्द्रिय या विकलेंद्रिय 136 4 12 (10 + देव-द्विक) एकेन्द्रीय या विकलेंद्रिय
12 (10 + देव-द्विक) अपर्याप्त मनुष्य
12 (10 + नरक-द्विक) सुर-षटक् का बंधक पंचेंद्रिय पर्याप्त तिर्यञ्च
12 (10 + नरक-द्विक) सुर-षटक् का बंधक पर्याप्त मनुष्य
131 1 17 (११ + नरक षटक्) नरक-षटक् की उद्वेलना सहित मनुष्यायु की सत्ता वाला एकेन्द्रिय या विकलेंद्रिय 130 2 18 (12 + नरक-षटक्) नरक-षटक् की उद्वेलना सहित एकेन्द्रिय या विकलेंद्रिय
18 (12 + नरक-षटक्) नरक-षटक् की उद्वेलना सहित निर्वृत्तिअपर्याप्तक मनुष्य
129 1 19 (17 + उच्च-गोत्र + मनुष्यायु) उच्च-गोत्र की उद्वेलना करने वाले अग्नि / वायुकायिक
127 1 21 (19 + मनुष्य-द्विक) मनुष्य-द्विक की उद्वेलना करने वाले अग्नि / वायुकायिक

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+ सासादन के सत्व में 4 स्थान / 12 भंग -
सासादन के सत्व में 4 स्थान और 12 भंग

विशेष :

सासादन गुणस्थान के सत्व में 4 स्थान और उनके 12 भंग
बद्धायुष्क अबद्धायुष्क
स्थान भंग असत्व विशेष स्थान भंग असत्व विशेष
141 5 7 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, आयु २) चारों गति के बद्धायुष्क (तिर्यञ्चायु+३ [नरकायु,मनुष्यायु,देवायु], मनुष्य+२[नरकायु,देवायु]) 140 4 8 (तीर्थंकर, आहारक-चतुष्क, आयु ३) चारों गति के अबद्धायुष्क
145 1 3 (तीर्थंकर, २ आयु) देवायु की सत्व वाला मनुष्य 144 2 4 (तीर्थंकर, ३ आयु) अबद्धायुष्क मनुष्य
अबद्धायुष्क देव

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+ मिश्र गुणस्थान के सत्व में स्थान / 36 भंग -
सम्यग्मिथ्यात्व के सत्व में स्थान और उनके 36 भंग

विशेष :

सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान के सत्व में स्थान और उनके 36 भंग
बद्धायुष्क अबद्धायुष्क
स्थान भंग असत्व विशेष स्थान भंग असत्व विशेष
145 5 3 (तीर्थंकर, २ आयु) चारों गति के बद्धायुष्क (तिर्यञ्चायु+३[नरकायु,मनुष्यायु,देवायु], मनुष्य+२[नरकायु,देवायु]) 144 4 4 (तीर्थंकर, ३ आयु) चारों गति के अबद्धायुष्क
141 5 7 (तीर्थंकर, आयु २, अनंतानुबंधी ४) 140 4 8 (तीर्थंकर, आयु ३, अनंतानुबंधी ४)
5 7 (तीर्थंकर, आयु २, आहारक ४) 4 8 (तीर्थंकर, आयु ३, आहारक ४)
137 5 11 (तीर्थंकर, आयु २, आहारक ४, अनंतानुबंधी ४) 136 4 12 (तीर्थंकर, आयु ३, आहारक ४, अनंतानुबंधी ४)

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+ अविरत-सम्यक्त्वी के सत्व में 40 स्थान / 120 भंग -
अविरत-सम्यक्त्वी के सत्व में 40 स्थान और उनके 120 भंग

विशेष :

अविरत-सम्यक्त्वी गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान और उनके 120 भंग कुल
अनंतानुबंधी के सत्व सहित अनंतानुबंधी विसंयोजक क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक कृतकृत्य वेदक क्षायिक सम्यक्त्वी
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित बद्धायुष्क स्थान 146 (-तिर्यञ्च-1 आयु) 142 (-अनंतानुबंधी ४) 141 (-मिथ्यात्व) 140 (-मिश्रमोहनीय) 139 (-सम्यक्त्व)
भंग 2 (मनु.<->देव, मनु.<->नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (मनु.<->देव, मनु.<->नरक) 10
अबद्धायुष्क स्थान 145 141 140 139 138
भंग 3 (भु. मनु./देव/नरक) 3 (भु. मनु./देव/नरक) 1 (भु. मनु.) 3 (भु. मनु./देव/नरक) 3 (मनु.<->देव, मनु.<->नरक) 13
तीर्थंकर रहित बद्धायुष्क स्थान 145 (चारों गति के बद्धायुष्क) 141 (चारों गति के बद्धायुष्क) 140 139 (-मिश्रमोहनीय) 138 (क्षायिक सम्यक्त्वी)
भंग 5 (तिर्यञ्च+३[नरक,मनु.,देव], मनुष्य+२[नरक,देव]) 5 (तिर्यञ्च+३[नरक,मनु.,देव], मनुष्य+२[नरक,देव]) 3 (भु. मनु., ब. तीनों) 3 (भु. मनु., ब. तीनों) 4 (नरक<->मनुष्य, देव<->मनुष्य, तिर्यञ्च->देव, मनुष्य->तिर्यञ्च) 20
अबद्धायुष्क स्थान 144 140 139 138 137
भंग 4 (चारों गति के अबद्धायुष्क) 4 (चारों गति के अबद्धायुष्क) 1 (भु. मनु.) 4 (चारों गति के प्रतिष्ठापक) 4 (चारों गति के क्षायिक सम्यक्त्वी) 17
आहारक चतुष्क रहित बद्धायुष्क स्थान 142 138 137 136 135
भंग 2 (मनु.<->देव, मनु.<->नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (भु. मनु. ब. देव/नरक) 2 (मनु.<->देव, मनु.<->नरक) 10
अबद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 3 (भु. मनु./देव/नरक) 3 (भु. मनु./देव/नरक) 1 (भु. मनु.) 3 (भु. मनु./देव/नरक) 3 (भु. मनु./देव/नरक) 13
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित बद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 5 (तिर्यञ्च+३[नरक,मनु.,देव], मनुष्य+२[नरक,देव]) 5 (तिर्यञ्च+३[नरक,मनु.,देव], मनुष्य+२[नरक,देव]) 3 (भु. मनु., ब. तीनों) 3 (भु. मनु., ब. तीनों) 4 (नरक<->मनुष्य, देव<->मनुष्य, तिर्यञ्च->देव, मनुष्य->तिर्यञ्च) 20
अबद्धायुष्क स्थान 140 136 135 134 133
भंग 4 (चारों गति के अबद्धायुष्क) 4 (चारों गति के अबद्धायुष्क) 1 (भु. मनु.) 4 (चारों गति के प्रतिष्ठापक) 4 (चारों गति के क्षायिक सम्यक्त्वी) 17
भु.=भुज्यमान, ब.=बध्यमान, मनु.=मनुष्यायु

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+ देशविरती के सत्व में 40 स्थान / 48 भंग -
देशविरत गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान और उनके 48 भंग

विशेष :

देशविरत गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान और उनके 48 भंग कुल
अनंतानुबंधी के सत्व सहित अनंतानुबंधी विसंयोजक क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक कृतकृत्य वेदक क्षायिक सम्यक्त्वी
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित बद्धायुष्क स्थान 146 (-2 आयु [तिर्यञ्च, नरक]) 142 (-अनंतानुबंधी ४) 141 (-मिथ्यात्व) 140 (-मिश्रमोहनीय) 139 (-सम्यक्त्व)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 145 141 140 139 138
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5
तीर्थंकर रहित बद्धायुष्क स्थान 145 (148-2 आयु [नरक, तिर्यञ्च | मनुष्य]-तीर्थंकर) 141 (145-4 अनंतानुबंधी) 140 (141-मिथ्यात्व) 139 (140-मिश्रमोहनीय) 138 (139-सम्यक्त्व)
भंग 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु ब. देवायु) 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 7
अबद्धायुष्क स्थान 144 140 139 138 137
भंग 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु) 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 7
आहारक चतुष्क रहित बद्धायुष्क स्थान 142 138 137 136 135
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित बद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु ब. देवायु) 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 7
अबद्धायुष्क स्थान 140 136 135 134 133
भंग 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु) 2 (भु. मनुष्यायु / तिर्यञ्चायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 7

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+ 6-7 गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान / 40 भंग -
6-7 गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान और उनके 40 भंग

विशेष :

6-7 गुणस्थान के सत्व में 40 स्थान और उनके 40 भंग कुल
अनंतानुबंधी के सत्व सहित अनंतानुबंधी विसंयोजक क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक कृतकृत्य वेदक क्षायिक सम्यक्त्वी
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित बद्धायुष्क स्थान 146 (148-2 आयु [तिर्यञ्च-नरक]) 142 (146-अनंतानुबंधी ४) 141 (142-मिथ्यात्व) 140 (141-मिश्रमोहनीय) 139 (140-सम्यक्त्व)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 145 141 140 139 138
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5
तीर्थंकर रहित बद्धायुष्क स्थान 145 (-2 आयु [तिर्यञ्च-नरक], तीर्थंकर) 141 (145-अनंतानुबंधी ४) 140 (141-मिथ्यात्व) 139 (140-मिश्रमोहनीय) 138 (139-सम्यक्त्व)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 144 140 139 138 137
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5
आहारक चतुष्क रहित बद्धायुष्क स्थान 142 138 137 136 135
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित बद्धायुष्क स्थान 141 137 136 135 134
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 5
अबद्धायुष्क स्थान 140 136 135 134 133
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 5

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+ उपशम श्रेणी के सत्व में 24 स्थान और भंग -
उपशम श्रेणी के सत्व में 24 स्थान और भंग

विशेष :

उपशम श्रेणी के सत्व में 24 स्थान और भंग कुल
अनंतानुबंधी के सत्व सहित अनंतानुबंधी विसंयोजक क्षायिक सम्यक्त्वी
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित बद्धायुष्क स्थान 146 142 (-अनंतानुबंधी ४) 139 (-३ दर्शन-मोहनीय)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 3
अबद्धायुष्क स्थान 145 141 138
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 3
तीर्थंकर रहित, आहारक चतुष्क सहित बद्धायुष्क स्थान 145 (-2 आयु [तिर्यञ्च-नरक], तीर्थंकर) 141 (145-अनंतानुबंधी ४) 138 (141-३ दर्शन-मोहनीय)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 3
अबद्धायुष्क स्थान 144 140 137
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 3
तीर्थंकर सहित, आहारक चतुष्क रहित बद्धायुष्क स्थान 142 (-2 आयु [तिर्यञ्च-नरक], आहारक ४) 138 (142-अनंतानुबंधी ४) 135 (138-३ दर्शनमोहनीय)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 3
अबद्धायुष्क स्थान 141 (-3 आयु [तिर्यञ्च-नरक,देव], आहारक ४) 137 (141-अनंतानुबंधी ४) 134 (137-३ दर्शनमोहनीय)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 3
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित बद्धायुष्क स्थान 141 (-2 आयु [तिर्यञ्च-नरक], आहारक ४, तीर्थंकर) 137 (141-अनंतानुबंधी ४) 134 (137-३ दर्शन-मोहनीय)
भंग 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 1 (भु. मनुष्यायु ब. देवायु) 3
अबद्धायुष्क स्थान 140 136 133
भंग 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 1 (भु. मनुष्यायु) 3
उपशम श्रेणी के सभी गुणस्थानों के लिए भंग समान हैं

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+ अपूर्वकरण क्षपक के 4 सत्त्व स्थान / 4 भंग -
अपूर्वकरण क्षपक के 4 सत्त्व स्थान / 4 भंग

विशेष :

अपूर्वकरण क्षपक के 4 सत्त्व स्थान / 4 भंग
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित 138
तीर्थंकर रहित, आहारक-४ सहित 137
तीर्थंकर सहित, आहारक-४ रहित 134
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित 133

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+ अनिवृत्तिकरण क्षपक के 36 सत्त्व स्थान / 38 भंग -
अनिवृत्तिकरण क्षपक के 36 सत्त्व स्थान / 38 भंग

विशेष :

अनिवृत्तिकरण क्षपक के 36 सत्त्व स्थान / 38 भंग
1 2 3 4 5 6 7 8 9
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित 138 122 114 113 112 106 105 104 103
तीर्थंकर रहित, आहारक-४ सहित 137 121 113 *112 111 105 104 103 102
तीर्थंकर सहित, आहारक-४ रहित 134 118 110 109 108 102 101 100 99
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित 133 117 109 *108 107 101 100 99 98
*यहाँ दो भंग हैं
दूसरे स्थान में क्षीण होने वाली प्रकृतियाँ = 16 (नरकद्विक, तिर्यंच-द्विक, जाति-चतुष्क, स्त्यानत्रिक, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर)
तीसरे स्थान में क्षीण होने वाली प्रकृतियाँ = 8 (प्रत्याख्यान ४, अप्रत्याख्यान ४)

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+ सूक्ष्मसांपरायिक / क्षीणमोह क्षपक के सत्त्व स्थान / भंग -
सूक्ष्म-सांपरायिक / क्षीण मोह क्षपक के सत्त्व स्थान / भंग

विशेष :

सूक्ष्म-सांपरायिक और क्षीण मोह क्षपक के सत्त्व स्थान और भंग
सूक्ष्म-सांपरायिक क्षीण मोह
उपांत्य अंत-समय
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित 102 101 99
तीर्थंकर रहित, आहारक-४ सहित 101 100 98
तीर्थकर सहित, आहारक-४ रहित 98 97 95
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित 97 96 94
क्षीण-मोह उपांत्य समय में व्युच्छिन्न 2 प्रकृतियाँ = निद्रा, प्रचला

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+ सयोग / आयोग केवली के स्थान और भंग -
सयोग / आयोग केवली के स्थान और भंग

विशेष :

सयोग / आयोग केवली के स्थान और भंग
सयोग-केवली अयोग-केवली
द्विचरम-समय चरम-समय
तीर्थंकर, आहारक-४ सहित 85 85 13
तीर्थंकर रहित, आहारक-४ सहित 84 84 12
तीर्थंकर साहित, आहारक-४ रहित 81 81 13
तीर्थंकर, आहारक-४ रहित 80 80 12

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+ नाम-कर्म के 13 सत्त्व-स्थान -
नाम-कर्म के 13 सत्त्व-स्थान

विशेष :

नाम-कर्म के 13 सत्त्व-स्थान
सत्त्व-स्थान प्रकृति विशेष
93 सर्व-प्रकृति सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव, सम्यग्दृष्टि मनुष्य
92 93 - तीर्थंकर सासादन रहित चारों गति के जीव
91 93 - आहारक-द्विक सम्यग्दृष्टि वैमानिक देव, सम्यग्दृष्टि या मिथ्यादृष्टी मनुष्य या नारकी
90 91 - तीर्थंकर चारों-गतियों के जीव, सभी सासादन गुणस्थान वाले
88 90 - देव-द्विक मिथ्यादृष्टी मनुष्य या तिर्यञ्च
84 88 - (नरक-द्विक + वेक्रियिक-द्विक) मिथ्यादृष्टी मनुष्य या तिर्यञ्च
82 84 - मनुष्य-द्विक मिथ्यादृष्टी तिर्यञ्च
80 93 -13 (नरकद्विक, तिर्यंच-द्विक, जाति-चतुष्क, आतप, उद्योत, सूक्ष्म, साधारण, स्थावर) क्षपक श्रेणी के अनिवृत्तिकरण से अयोग-केवली के द्विचरम-समय तक
79 80 - तीर्थंकर
78 80 - आहारक-द्विक
77 80 - (तीर्थंकर + आहारक-द्विक)
10 मनुष्य-द्विक, पंचेन्द्रिय, सुभग, त्रस, बादर, पर्याप्त, आदेय, यश, तीर्थंकर, उच्चगोत्र आयोग-केवली चरम-समय
9 10 - तीर्थंकर

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+ चार गति में पाए जाने वाले नाम-कर्म के सत्त्व-स्थान -
चार गति में पाए जाने वाले नाम-कर्म के सत्त्व-स्थान

विशेष :

चार गति में पाए जाने वाले नाम-कर्म के सत्त्व-स्थान
जीव-पद नाम-कर्म के स्थान
नारकी सामान्य 92, 91, 90
4-7 नरक 92, 90
तिर्यञ्च सामान्य 92, 90, 88, 84, 82
भोग-भूमि 92, 90
मनुष्य सामान्य 93, 92, 91, 90, 88, 84, 80, 79, 78, 77, 10, 9
सयोग-केवली 80, 79, 78 77
*अयोग-केवली 80, 79, 78 77, 10, 9
आहारक-शरीरी 93, 92
भोग-भूमि 92, 90
*9-14 गुणस्थान 80, 79, 78 77
देव वैमानिक 93, 92, 91, 90
भवनत्रिक 92, 90
*10 और 9 का स्थान अयोग-केवली के चरम समय में है
80, 79, 78, 77 का स्थान क्षपक श्रेणी के अनिवृत्तिकरण से अयोग-केवली के द्विचरम-समय तक है
88, 84 का स्थान मनुष्य / तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टी के ही पाया जाता है
82 का स्थान मिथ्यादृष्टी तिर्यञ्च में ही पाया जाता है
93 का स्थान असंयत सम्यग्दृष्टी देव और सम्यग्दृष्टि मनुष्य के ही पाया जाता है
92 का स्थान सासादन रहित चारों गति के जीवों में पाया जाता है

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बंध-उदय-सत्त्व त्रिसंयोग



+ मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान -
मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान

विशेष :

मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
बंध उदय सत्त्व
8 8 8
7 8 8
6 8 8
1 7 8
1 7 7
1 4 4
0 4 4

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+ ओघ से मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान -
ओघ से मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान

विशेष :

ओघ से मूल-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
गुणस्थान बंध उदय सत्त्व
14 अयोगकेवली 0 4 4
13 सयोगकेवली 1 4 4
12 क्षीणमोह 1 7 7
11 उपशान्तमोह 1 7 8
10 सूक्ष्मसाम्पराय 6 8 8
9 अनिवृतिकरण 7 8 8
8 अपूर्वकरण 7 8 8
7 अप्रमत्तसंयत 8 / 7 8 8
6 प्रमत्तसंयत 8 / 7 8 8
5 देशविरत 8 / 7 8 8
4 अविरत 8 / 7 8 8
3 मिश्र 7 8 8
2 सासादन 8 / 7 8 8
1 मिथ्यात्व 8 / 7 8 8
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा 629

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+ उत्तर-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान -
उत्तर-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान

विशेष :

ओघ (गुणस्थान) से उत्तर-प्रकृतियों में त्रिसंयोग में स्थान
गुणस्थान 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14
उ.श्रे. क्ष.श्रे. उ.श्रे. क्ष.श्रे. उ.श्रे. क्ष.श्रे.
ज्ञानावरण, अंतराय बंध 5 -na-
उदय 5 -na-
सत्त्व 5 -na-
दर्शनावरण बंध 9 6 6 / 4 4 0
उदय 4 / 5 4 / 5 4 -na-
सत्त्व 9 9 9 / 6 9 6 9 6 4 -na-
वेदनीय बंध साता / असाता साता -na-
उदय साता / असाता साता / असाता
सत्त्व 2
अयोग-केवली के चरम-समय में दोनों में से एक का ही उदय और उसी की सत्ता है
प्रमत्त-संयत तक साता / असाता के उदय / बंध से 4 भंग हैं, उसके आगे सायोग-केवली तक साता / असाता के उदय से दो भंग हैं
गोत्र बंध नीच / उच्च नीच / उच्च उच्च उच्च -na-
उदय नीच / उच्च नीच / उच्च नीच / उच्च उच्च उच्च उच्च
सत्त्व 2 / *नीच 2 2 2 2 2 / *उच्च
मिथ्यात्व गुणस्थान में उच्च गोत्र की उद्वेलना करने वाले अग्नि / वायुकायिक के नीच-गोत्र का ही बंध-उदय-सत्त्व पाया जाता है, वहाँ से निकलकर तिर्यञ्च होकर पहले अंतर्मुहूर्त तक यही भंग पाया जाता है
अयोग-केवली के दोनों की या उच्च-गोत्र की ही सत्ता है

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+ गोत्र कर्म के त्रिसंयोग भंग -
गोत्र कर्म के त्रिसंयोग भंग

विशेष :

गोत्र कर्म के त्रिसंयोग भंग
बंध नीच नीच उच्च उच्च नीच 0 0
उदय नीच उच्च उच्च नीच नीच उच्च उच्च
सत्त्व 2 (नीच / उच्च) 2 (नीच / उच्च) 2 (नीच / उच्च) 2 (नीच / उच्च) 1 (नीच) 2 (नीच / उच्च) 1 (उच्च)
भंग 1 2 3 4 5 6 7

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+ चारों गति में आयु कर्म के त्रिसंयोग भंग -
चारों गति में आयु कर्म के त्रिसंयोग भंग

विशेष :

आयु कर्म के त्रिसंयोग भंग गुणस्थान
गति कुल-भंग भंग आयु बंध उदय सत्त्व 1 2 3 4 5 6 / 7 उ.श्रे. क्ष.श्रे.
नरक 5 1 अबंध -na- नरक नरक -na- -na- -na- -na-
2 बंध मनुष्य नरक नरक, मनुष्य X
तिर्यञ्च नरक नरक, तिर्यञ्च X X
2 उपरतबंध -na- नरक नरक, मनुष्य
-na- नरक नरक, तिर्यञ्च
तिर्यञ्च 9 1 अबंध -na- तिर्यञ्च तिर्यञ्च
4 बंध नरक तिर्यञ्च तिर्यञ्च, नरक X X X X
तिर्यञ्च तिर्यञ्च तिर्यञ्च, तिर्यञ्च X X X
मनुष्य तिर्यञ्च तिर्यञ्च, मनुष्य X X X
देव तिर्यञ्च तिर्यञ्च, देव X
4 उपरतबंध -na- तिर्यञ्च तिर्यञ्च, नरक X
-na- तिर्यञ्च तिर्यञ्च, तिर्यञ्च X
-na- तिर्यञ्च तिर्यञ्च, मनुष्य X
-na- तिर्यञ्च तिर्यञ्च, देव
मनुष्य 9 1 अबंध -na- मनुष्य मनुष्य
4 बंध नरक मनुष्य मनुष्य, नरक X X X X X X X
तिर्यञ्च मनुष्य मनुष्य, तिर्यञ्च X X X X X X
मनुष्य मनुष्य मनुष्य, मनुष्य X X X X X X
देव मनुष्य मनुष्य, देव X X X
4 उपरतबंध -na- मनुष्य मनुष्य, नरक X X X X
-na- मनुष्य मनुष्य, तिर्यञ्च X X X X
-na- मनुष्य मनुष्य, मनुष्य X X X X
-na- मनुष्य मनुष्य, देव X
देव 5 1 अबंध -na- देव देव -na- -na- -na- -na-
2 बंध मनुष्य देव देव, मनुष्य X
तिर्यञ्च देव देव, तिर्यञ्च X X
2 उपरतबंध -na- देव देव, मनुष्य
-na- देव देव, तिर्यञ्च
कुल 28 26 16 20 6 3 2 1
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 645

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+ मोहनीय कर्म के त्रिसंयोग भंग -
एक जीव की अपेक्षा मोहनीय कर्म के त्रिसंयोग भंग

विशेष :

एक जीव की अपेक्षा मोहनीय कर्म के त्रिसंयोग भंग
बंध उदय सत्त्व
संख्या स्थान संख्या स्थान संख्या स्थान
मिथ्यात्व 1 22 4 10,9,8,7 3 28,27,26
सासादन 1 21 3 9,8,7 1 28
मिश्र 1 17 3 9,8,7 2 28,24
असंयत स. 1 17 4 9,8,7,6 5 28,24,23,22,21
देशविरत 1 13 4 8,7,6,5 5 28,24,23,22,21
प्रमत्तसंयत 1 9 4 7,6,5,4 5 28,24,23,22,21
अप्रमत्तसंयत
अपूर्वकरण उ.श्रे. 1 9 3 6,5,4 3 28,24,21
क्ष.श्रे. 1 9 3 6,5,4 1 21
अनिवृत्तिकरण उ.श्रे. 5 5,4,3,2,1 2 2,1 3 28,24,21
क्ष.श्रे. 5 5,4,3,2,1 2 2,1 8 13,12,11,5,4,3,2,1
सूक्ष्मसाम्पराय उ.श्रे. -na- 1 1 3 28,24,21
क्ष.श्रे. -na- 1 1 1 1
उपशान्तमोह -na- 3 28,24,21
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 653-659

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+ मोहनीय के बंध अधिकरण, उदय-सत्त्व आधेय भंग -
मोहनीय कर्म के बंध अधिकरण, उदय-सत्त्व आधेय भंग

विशेष :

मोहनीय कर्म के बंध अधिकरण, उदय-सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान विशेष
मिथ्यात्व 22 10,9,8 28 सादि मिथ्यादृष्टि
7 अनंतानुबंधी के उदय रहित
10,9,8 27 सम्यक्त्व प्रकृति की उद्वेलना वाले
26 अनादि मिथ्यादृष्टी / मिश्र-प्रकृति की उद्वेलना वाले
सासादन 21 9,8,7 28 चारों गति के सासादन
मिश्र 17 9,8,7 28,24 चारों गति के सम्यक्मिथ्यात्वी
असंयत स. 9,8,7,6 28,24 क्षायोपशमिक / औपशमिक सम्यक्त्वी
9,8,7 23,22 क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक
8,7,6 21 क्षायिक सम्यक्त्वी
देशविरत 13 8,7,6,5 28,24 क्षायोपशमिक / औपशमिक सम्यक्त्वी
8,7,6 23,22 क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक
7,6,5 21 क्षायिक सम्यक्त्वी
प्रमत्त / अप्रमत्त संयत 9 7,6,5,4 28,24 क्षायोपशमिक / औपशमिक सम्यक्त्वी
7,6,5 23,22 क्षायिक-सम्यक्त्व प्रस्थापक
6,5,4 21 क्षायिक सम्यक्त्वी
अपूर्वकरण उ.श्रे. 6,5,4 28,24,21 उपशम-श्रेणी
क्ष.श्रे. 21 क्षपक श्रेणी
अनिवृतिकरण उ.श्रे. 5 2 28,24,21 सवेद, पुरुष-वेद सहित श्रेणी आरोहण
क्ष.श्रे. 13,12,11
उ.श्रे. 4 2 28,24,21 सवेद, स्त्री/नपुंसक वेद सहित श्रेणी आरोहण
1 अवेद
क्ष.श्रे. 2 13,12,11 सवेद, स्त्री/नपुंसक वेद सहित श्रेणी आरोहण
1 11,5,4 अवेद
उ.श्रे. 3 1 28,24,21 अवेद
क्ष.श्रे. 4,3 नवक समयप्रबद्ध की विवक्षा / अविवक्षा
उ.श्रे. 2 1 28,24,21 अवेद
क्ष.श्रे. 3,2 नवक समयप्रबद्ध की विवक्षा / अविवक्षा
उ.श्रे. 1 1 28,24,21 अवेद
क्ष.श्रे. 2,1 नवक समयप्रबद्ध की विवक्षा / अविवक्षा
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 662-664, 674-679

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+ मोहनीय के उदय अधिकरण, बंध-सत्त्व आधेय भंग -
मोहनीय कर्म के उदय अधिकरण, बंध-सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग

विशेष :

मोहनीय कर्म के उदय अधिकरण, बंध-सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग
उदयस्थान बंधस्थान सत्वस्थान
10 22 28,27,26
9 22,21,17 28,27,26,24,23,22
8 22,21,17,13 28,27,26,24,23,22,21
7 22,21,17,13,9 28,24,23,22,21
6 17,13,9
5 13,9
4 9 28,24,21
2 5,4 28,24,21,13,12,11
1 4,3,2,1 28,24,21,11,5,4,3,2,1
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 665-668

🏠
+ मोहनीय के सत्त्व अधिकरण, बंध-उदय आधेय भंग -
मोहनीय कर्म के सत्त्व अधिकरण, बंध-उदय आधेय त्रिसंयोग भंग

विशेष :

मोहनीय कर्म के सत्त्व अधिकरण, बंध-उदय आधेय त्रिसंयोग भंग
सत्वस्थान बंधस्थान उदयस्थान गुणस्थान
28 10 (22,21,17,13,9,5,4,3,2,1) 9 (10,9,8,7,6,5,4,2,1) 1 से 11
27 1 (22) 3 (10,9,8) 1
26
24 8 (17,13,9,5,4,3,2,1) 8 (9,8,7,6,5,4,2,1) 3 से 11
23 3 (17,13,9) 5 (9,8,7,6,5) 4 से 7
22
21 8 (17,13,9,5,4,3,2,1) 7 (8,7,6,5,4,2,1) 4 से 11 (क्षायिक स.)
13 2 (5,4) 1 (2) 9 (क्ष. श्रे.)
12
11 2 (2,1)
5 1 (4) 1 (1)
4 2 (4,3)
3 2 (3,2)
2 2 (2,1)
1 1 / 0 9,10 (क्ष. श्रे.)
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 669-672

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+ नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग -
नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग

विशेष :

नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान
मिथ्यात्व 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 6 (92,91,90,88,84,82)
सासादन 3 (28,29,30) 7 (21,24,25,26,29,30,31) 1 (90)
मिश्र 2 (28,29) 3 (29,30,31) 2 (92,90)
असंयत स. 3 (28,29,30) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 4 (93,92,91,90)
देशविरत 2 (28,29) 2 (30,31) 4 (93,92,91,90)
प्रमत्त संयत 2 (28,29) 5 (25,27,28,29,30) 4 (93,92,91,90)
अप्रमत्त संयत 4 (28,29,30,31) 1 (30) 4 (93,92,91,90)
अपूर्वकरण 4 (28,29,30,31,1) 1 (30) 4 (93,92,91,90)
अनिवृतिकरण उ.श्रे. 1 (1) 1 (30) 4 (93,92,91,90)
क्ष.श्रे. 4 (80,79,78,77)
सूक्ष्मसाम्पराय उ.श्रे. 1 (1) 1 (30) 4 (93,92,91,90)
क्ष.श्रे. 4 (80,79,78,77)
उपशान्तमोह 0 1 (30) 4 (93,92,91,90)
क्षीणमोह 0 1 (30) 4 (80,79,78,77)
सयोगकेवली 0 2 (30,31) 4 (80,79,78,77)
अयोगकेवली 0 2 (9,8) 6 (80,79,78,77,10,9)
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 693-703
केवली समुद्घात में उदयस्थान -- दंड (30/31) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> प्रतर+लोकपूरण (20/21) -> कपाट/मिश्र (26/27) -> शरीर-पर्याप्ति (28/29) -> उच्छ्वास पर्याप्ति (29/30) -> भाषा-पर्याप्ति (30/31)

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+ 14 जीव-समास में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व -
14 जीव-समास में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग

विशेष :

14 जीव-समास में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान
अपर्याप्त स्थावर 5 (23,25,26,29,30) 2 (21,24) 5 (92,90,88,84,82)
त्रस 2 (21,26)
सूक्ष्म 4 (21,24,25,26)
बादर 5 (21,24,25,26,27)
विकलत्रय 6 (21,26,28,29,30,31)
असंज्ञी 6 (23,25,26,28,29,30)
संज्ञी 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 704-709

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+ 14 मार्गणा में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व भंग -
14 मार्गणा में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग

विशेष :

14 मार्गणा में नाम कर्म के बंध, उदय, सत्त्व त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान
गति नरक 2 (29,30) 5 (21,25,27,28,29) 3 (92,91,90)
तिर्यञ्च 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82)
मनुष्य 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 11 (20,21,25,26,27,28,29,30,31,8,9) 12 (93,92,91,90,88,84,80,79,78,77,10,9)
देव 4 (25,26,29,30) 5 (21,25,27,28,29) 4 (93,92,91,90)
इंद्रिय एकेन्द्रीय 5 (23,25,26,29,30) 5 (21,24,25,26,27) 5 (92,90,88,84,82)
विकलेंद्रिय 6 (21,26,28,29,30,31)
पंचेंद्रिय 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 11 (20,21,25,26,27,28,29,30,31,8,9) 13 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77,10,9)
काय पृथ्वी, जल, वनस्पति 5 (23,25,26,29,30) 5 (21,24,25,26,27) 5 (92,90,88,84,82)
तेज, वायु 4 (21,24,25,26)
त्रस 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 11 (20,21,25,26,27,28,29,30,31,8,9) 13 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77,10,9)
योग मन, वचन 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 3 (29,30,31) 10 (93,92,91,90,88,84,80,79,78,77)
औदारिक-काय 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 7 (25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
औदारिक-मिश्र 6 (23,25,26,28,29,30) 3 (24,26,27)
वैक्रियिक 4 (25,26,29,30) 3 (27,28,29) 4 (93,92,91,90)
वैक्रियिक-मिश्र 1 (25)
आहारक 2 (28,29) 3 (27,28,29) 2 (93,92)
आहारक-मिश्र 1 (25)
कार्मण 6 (23,25,26,28,29,30) 2 (20,21) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
वेद पुरुष 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
स्त्री 9 (93,92,91,90,88,84,82,79,77)
नपुंसक 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31)
कषाय 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
ज्ञान कुमति-कुश्रुत 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 6 (92,91,90,88,84,82)
विभंग 3 (29,30,31) 3 (92,91,90)
मति, श्रुत, अवधि 5 (28,29,30,31,1) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
मन:पर्यय 1 (30)
केवल 0 10 (20,21,26,27,28,29,30,31,9,8) 6 (80,79,78,77,10,9)
संयम सामायिक / छेदोपस्थापना 5 (28,29,30,31,1) 5 (25,27,28,29,30) 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
परिहारविशुद्धि 4 (28,29,30,31) 1 (30) 4 (93,92,91,90)
सूक्ष्मसाम्पराय 1 (1) 1 (30) 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
यथाख्यात 0 9 (20,21,26,27,28,29,30,31,9,8) 10 (93,92,91,90,80,79,78,77,10,9)
देशविरत 2 (28,29) 2 (30,31) 4 (93,92,91,90)
असंयम 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 7 (93,92,91,90,88,84,82)
दर्शन चक्षु 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
अचक्षु 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31)
अवधि 5 (28,29,30,31,1) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
केवल 0 10 (20,21,26,27,28,29,30,31,9,8) 6 (80,79,78,77,10,9)
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 7 (93,92,91,90,88,84,82)
पीत 6 (25,26,28,29,30,31) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) 4 (93,92,91,90)
पद्म 4 (28,29,30,31)
शुक्ल 5 (28,29,30,31,1) 8 (20,21,25,26,27,28,29,30,31) 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
भव्य भव्य 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 12 (20,21,24,25,26,27,28,29,30,31,8,9) 13 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77,10,9)
अभव्य 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 4 (90,88,84,82)
सम्यक्त्व उपशम 5 (28,29,30,31,1) 5 (21,25,29,30,31) 4 (93,92,91,90)
वेदक 4 (28,29,30,31) 8 (21,25,26,27,28,29,30,31)
क्षायिक 5 (28,29,30,31,1) 11 (20,21,25,26,27,28,29,30,31,9,8) 10 (93,92,91,90,80,79,78,77,10,9)
मिश्र 2 (28,29) 3 (29,20,31) 2 (92,90)
सासादन 3 (28,29,30) 7 (21,24,25,26,29,30,31) 1 (90)
मिथ्यात्व 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 6 (92,91,90,88,84,82)
आहार आहारक 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 8 (24,25,26,27,28,29,30,31) 11 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77)
अनाहारक 6 (23,25,26,28,29,30) 4 (20,21,9,8) 13 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77,10,9)
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 710-738

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+ नाम कर्म के बंध अधिकरण, उदय, सत्त्व आधेय -
नाम कर्म के बंध अधिकरण, उदय, सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग

विशेष :

नाम कर्म के बंध अधिकरण, उदय, सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान बंध स्वामी
23 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82) एकेन्द्रिय अपर्याप्त तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि त्रस/स्थावर
5 (21,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य कर्म-भूमि, मिथ्यादृष्टि
25 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82) एकेन्द्रिय पर्याप्त / त्रस अपर्याप्त तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि त्रस/स्थावर
5 (21,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य कर्म-भूमि, मिथ्यादृष्टि
5 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) एकेन्द्रिय पर्याप्त देव भवनत्रिक से सौधर्म-द्विक, मिथ्यादृष्टि
26 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82) एकेन्द्रिय पर्याप्त, उद्योत / आतप तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि त्रस/स्थावर
5 (21,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य कर्म-भूमि, मिथ्यादृष्टि
5 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) देव भवनत्रिक से सौधर्म-द्विक, मिथ्यादृष्टि
28 4 (28,29,30,31) 3 (92,90,88) नरक / देव गति संज्ञी / असंज्ञी तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
2 (30,31) 1 (90) देव गति संज्ञी तिर्यञ्च सासादन
2 (92,90) सम्यग्मिथ्यादृष्टि
6 (21,26,28,29,30,31) असंयत सम्यग्दृष्टि
2 (30,31) देशसंयत
3 (28,29,30) 4 (92,91,90,88) नरक / देव गति मनुष्य मिथ्यादृष्टि
1 (30) 1 (90) देव गति सासादन
2 (92,90) सम्यग्मिथ्यादृष्टि
5 (21,26,28,29,30) असंयत सम्यग्दृष्टि
1 (30) देशसंयत
5 (25,27,28,29,30) प्रमत्त-संयत
1 (30) अप्रमत्त-संयत
अपूर्वकरण
29 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 7 (93,92,91,90,88,84,82) त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य, देव-तीर्थंकर सामान्य
5 (21,25,27,28,29) 3 (92,91,90) पंचेंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य नरक मिथ्यादृष्टि, नरक सामान्य
2 (21,25) 1 (91) मिथ्यादृष्टि, 1-3 नरक, तीर्थंकर सत्त्व सहित
3 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, 1-6 नरक, तीर्थंकर सत्त्व रहित
पंचेंद्रिय तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि, 7 नरक
1 (29) 1 (90) पंचेंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य सासादन
1 (29) 2 (92,90) मनुष्य-गति सम्यग्मिथ्यादृष्टि
5 (21,25,27,28,29) 3 (92,91,90) असंयत सम्यग्दृष्टि, 1 नरक
1 (29) असंयत सम्यग्दृष्टि, 2-3 नरक
2 (92,90) असंयत सम्यग्दृष्टि, 4-7 नरक
9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82) त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
5 (21,24,26,30,31) 1 (90) पंचेंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य सासादन
5 (21,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य मनुष्य मिथ्यादृष्टि
1 (30) 1 (91) मनुष्य-गति मिथ्यादृष्टि, तीर्थंकर के सत्त्व युक्त
5 (21,26,30) 1 (90) पंचेंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य सासादन
5 (21,26,28,29,30) 3 (93,91) देवगति,तीर्थंकर असंयत सम्यग्दृष्टि
1 (30) देशसंयत
5 (25,27,28,29,30) प्रमत्त-संयत
1 (30) अप्रमत्त-संयत,अपूर्वकरण
5 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) संज्ञी पंचेंद्रिय, मनुष्य देव मिथ्यादृष्टि, भवनत्रिक से सहस्रार
मनुष्य-गति मिथ्यादृष्टि, ग्रैवेयिक
3 (21,25,29) 1 (90) संज्ञी पंचेंद्रिय, मनुष्य सासादन, भवनत्रिक से सहस्रार
मनुष्य-गति सासादन, ग्रैवेयिक
1 (29) 2 (92,90) सम्यग्मिथ्यादृष्टि
1 (29) असंयत सम्यग्दृष्टि, भवनत्रिक
5 (21,25,27,28,29) असंयत सम्यग्दृष्टि, वैमानिक
30 5 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) पंचेंद्रिय-उद्योत-तिर्यञ्च नरक मिथ्यादृष्टि
1 (29) 1 (90) पंचेंद्रिय-उद्योत-तिर्यञ्च सासादन
5 (21,25,27,28,29) 1 (91) मनुष्य,तीर्थंकर असंयत सम्यग्दृष्टि, 1 नरक
1 (29) असंयत सम्यग्दृष्टि, 2-3 नरक
9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) 5 (92,90,88,84,82) त्रस,पर्याप्त,उद्योत,तिर्यञ्चगति तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि, सामान्य
1 30 4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, उच्छ्वास पर्याप्ति, उद्योत
4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, भाषा-पर्याप्ति, विकलत्रय
2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, भाषा-पर्याप्ति, पंचेंद्रिय
1 31 4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, भाषा-पर्याप्ति, विकलत्रय, उद्योत
2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, भाषा-पर्याप्ति, पंचेंद्रिय, उद्योत
5 (21,24,26,30,31) 1 (90) पंचेंद्रिय-उद्योत-तिर्यञ्च सासादन
5 (21,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) त्रस,पर्याप्त,उद्योत,तिर्यञ्चगति मनुष्य मिथ्यादृष्टि
3 (21,26,30) 1 (90) पंचेंद्रिय-उद्योत-तिर्यञ्च सासादन
1 (30) 1 (92) देवगति,आहारक-द्विक अप्रमत्त, अपूर्वकरण
5 (21,25,27,28,29) 2 (92,90) पंचेंद्रिय-उद्योत-तिर्यञ्च देव मिथ्यादृष्टि, भवनत्रिक से सहस्रार
3 (21,25,29) 1 (90) सासादन
5 (21,25,27,28,29) 2 (93,91) मनुष्य,तीर्थंकर असंयत सम्यग्दृष्टि, वैमानिक
31 1 (30) 1 (93) देवगति,आहारक-द्विक,तीर्थंकर मनुष्य अप्रमत्त, अपूर्वकरण
1 1 (30) 4 (93,92,91,90) यश:कीर्ती मनुष्य अपूर्वकरण
8 (93,92,91,90,80,79,78,77) अनिवृतिकरण
सूक्ष्मसाम्पराय
0 1 (30) 4 (93,92,91,90) -na- मनुष्य उपशान्तमोह
1 (30) 4 (80,79,78,77) क्षीणमोह
1 (30) सयोगकेवली
5 (21,27,29,30,31) 2 (80,78) समुद्घात-केवली तीर्थंकर-केवली
21 तीर्थंकर-केवली, कार्मण काल
27 तीर्थंकर-केवली, मिश्र शरीर काल
29 तीर्थंकर-केवली, शरीर पर्याप्ति काल
30 तीर्थंकर-केवली, उच्छ्वास पर्याप्ति
31 तीर्थंकर-केवली, भाषा पर्याप्ति
5 (20,26,28,29,30) 2 (79,77) सामान्य-केवली
20 सामान्य-केवली, कार्मण काल
26 सामान्य-केवली, मिश्र शरीर काल
28 सामान्य-केवली, शरीर पर्याप्ति काल
29 सामान्य-केवली, उच्छ्वास पर्याप्ति
30 सामान्य-केवली, भाषा पर्याप्ति
1 (9) 3 (80,78,10) अयोगकेवली तीर्थंकर-केवली
10 तीर्थंकर-केवली, चरम समय
1 (8) 3 (79,77,9) सामान्य-केवली
9 सामान्य-केवली, चरम समय

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+ नाम कर्म के उदय आधार, बंध सत्त्व आधेय भंग -
नाम कर्म के उदय आधार, बंध सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग

विशेष :

नाम कर्म के उदय आधार, बंध सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग
उदयस्थान बंधस्थान सत्त्वस्थान स्वामी
20 0 2 (79,77) सामान्य केवली, समुद्घात, कार्माण काल
21 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (93,92,91,90,88,84,82,80,78) चारों गति के जीव, कार्माण काल
0 2 (80,78) तीर्थंकर केवली
2 (29,30) 3 (92,91,90) नरक 1 से 3 नरक, मिथ्यात्व
1 नरक, असंयत स.
3 (92,90) 4 से 7 नरक, मिथ्यात्व
5 (23,25,26,29,30) 5 (92,90,88,84,82) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
2 (29,30) 1 (90) सासादन
1 (28) 2 (92,90) असंयत स.
5 (23,25,26,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य मिथ्यादृष्टि
2 (29,30) 1 (90) सासादन
2 (28,29) 4 (93,92,91,90) असंयत स.
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) देव भवनत्रिक / देवियाँ, मिथ्यादृष्टि
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, सौधर्म-द्विक
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सानत्कुमार से सहसार
1 (29) मिथ्यादृष्टि, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 1 (90) सासादन, सहस्रार तक
1 (29) सासादन, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 4 (93,92,91,90) असंयत स.
24 5 (23,25,26,29,30) 5 (92,90,88,84,82) लब्द्यपर्याप्त एकेन्द्रीय
3 (23,25,29) 5 (92,90,88,84,82) तेज, वायुकायिक
25 6 (23,25,26,28,29,30) 7 (93,92,91,90,88,84,82) चारों गति के जीव के अपर्याप्त अवस्था, एकेन्द्रिय पर्याप्त
2 (29,30) 3 (92,91,90) नरक 1 से 3 नरक, मिथ्यात्व, शरीर-मिश्र
2 (29,30) 3 (92,90) 4 से 7 नरक, मिथ्यात्व, शरीर-मिश्र
2 (29,30) 3 (92,91,90) 1 नरक, असंयत स., शरीर-मिश्र
5 (23,25,26,29,30) 5 (92,90,88,84,82) तिर्यञ्च एकेन्द्रिय
2 (28,29) 2 (93,92) मनुष्य आहारक, शरीर-मिश्र
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) देव भवनत्रिक / देवियाँ, मिथ्यादृष्टि
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, सौधर्म-द्विक
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सानत्कुमार से सहसार
1 (29) मिथ्यादृष्टि, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 1 (90) सासादन, सहस्रार तक
1 (29) सासादन, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 4 (93,92,91,90) असंयत स.
26 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (93,92,91,90,88,84,82,79,77) तिर्यञ्च, मनुष्य / सामान्य-केवली औदारीक-मिश्र
5 (23,25,26,29,30) 5 (92,90,88,84,82) तिर्यञ्च त्रस लब्ध्यपर्याप्त / निवृत्ति-अपर्याप्त, शरीर-मिश्र, मिथ्यादृष्टि
5 (23,25,26,29,30) 5 (92,90,88,84,82) एकेन्द्रिय, आतप/उद्योत शरीर-पर्याप्ति, उच्छ्वास-पर्याप्ति, मिथ्यादृष्टि
2 (29,30) 1 (90) पंचेंद्रिय, सासादन
1 (28) 2 (92,90) असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य मिथ्यादृष्टि, शरीर-मिश्र
2 (29,30) 1 (90) सासादन
2 (28,29) 4 (93,92,91,90) असंयत स.
0 2 (79,77) सामान्य-केवली, कपाट समुद्घात
27 6 (23,25,26,28,29,30) 8 (93,92,91,90,88,84,80,78) देव / नारकी / तीर्थंकर / आहारक-शरीरी शरीर-पर्याप्ति, एकेन्द्रिय उच्छ्वास-पर्याप्ति
2 (29,30) 2 (92,90) नरक नरक, मिथ्यादृष्टि, शरीर पर्याप्ति
1 (29,30) 1 (92,91,90) 1 नरक, असंयत स.
1 (30) 1 (91) 2-3 नरक, असंयत स., तीर्थंकर सत्त्व सहित
5 (23,25,26,29,30) 4 (92,90,88,84) तिर्यञ्च एकेन्द्रीय, उच्छ्वास पर्याप्ति, तेज / वायु बिना
5 (92,90,88,84,82) एकेन्द्रीय, उच्छ्वास पर्याप्ति, तेज / वायु कायिक
2 (28,29) 2 (93,92) मनुष्य आहारक शरीर, शरीर पर्याप्ति
0 2 (80,78) तीर्थंकर केवली, कपाट समुद्घात, शरीर-मिश्र
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) देव भवनत्रिक देव / देवियाँ / सौधर्म-द्विक, मिथ्यात्व, शरीर पर्याप्ति
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सानत्कुमार से सहस्रार
1 (29) मिथ्यादृष्टि, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 4 (93,92,91,90) असंयत, वैमानिक, शरीर पर्याप्ति
28 6 (23,25,26,28,29,30) 8 (93,92,91,90,88,84,79,77) तिर्यञ्च / मनुष्य -- शरीर पर्याप्ति, देव / नारकी -- उच्छ्वास पर्याप्ति
2 (29,30) 2 (92,90) नरक नरक, मिथ्यादृष्टि, उच्छ्वास पर्याप्ति
2 (29,30) 3 (92,91,90) 1 नरक, असंयत स.
1 (30) 1 (91) 2-3 नरक, असंयत स., तीर्थंकर सत्त्व सहित
6 (23,25,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) तिर्यञ्च मिथ्यात्व, त्रस, शरीर पर्याप्ति
1 (28) 2 (92,90) असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य मिथ्यात्व, शरीर पर्याप्ति
2 (28,29) 4 (93,92,91,90) असंयत स., शरीर पर्याप्ति
2 (93,92) आहारक, उच्छ्वास पर्याप्ति
0 2 (79,77) सामान्य केवली, दण्ड समुद्घात, औदारीक काय-योग, शरीर पर्याप्ति
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) देव भवनत्रिक देव / देवियाँ / सौधर्म-द्विक, मिथ्यात्व, उच्छ्वास पर्याप्ति
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सानत्कुमार से सहसार
1 (29) मिथ्यादृष्टि, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 4 (93,92,91,90) असंयत स., वैमानिक, उच्छ्वास पर्याप्ति
29 6 (23,25,26,28,29,30) 10 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77) चारों गति के जीव
2 (29,30) 2 (92,90) नरक मिथ्यादृष्टि, भाषा पर्याप्ति
1 (90) सासादन
1 (29) 2 (92,90) मिश्र
2 (29,30) 3 (92,91,90) 1-3 नरक, असंयत स.
1 (29) 1 (92,90) 4-7 नरक, असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) तिर्यञ्च मिथ्यात्व, त्रस, उच्छवास पर्याप्ति (उद्योत रहित), शरीर पर्याप्ति (उद्योत सहित)
1 (28) 2 (92,90) असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 4 (92,90,88,84) मनुष्य मिथ्यात्व, उच्छ्वास पर्याप्ति
2 (28,29) 4 (93,92,91,90) असंयत स.
2 (28,29) 2 (93,92) आहारक, भाषा पर्याप्ति
0 2 (80,78) तीर्थंकर केवली, दण्ड समुद्घात, शरीर पर्याप्ति
0 2 (79,77) सामान्य केवली, मूल शरीर में प्रवेश, उच्छ्वास पर्याप्ति
4 (25,26,29,30) 2 (92,90) देव मिथ्यादृष्टि भवनत्रिक देव / देवियाँ / सौधर्म-द्विक, भाषा पर्याप्ति
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सानत्कुमार से सहसार
1 (29) मिथ्यादृष्टि, आनत से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 1 (90) सासादन, भवनत्रिक देव / देवियाँ / सौधर्म से सहस्रार, भाषा पर्याप्ति
1 (29) सासादन, आनत से ग्रैवेयिक तक, भाषा पर्याप्ति
2 (92,90) मिश्र
1 (29) 2 (92,90) असंयत स., भवनत्रिक / देवियाँ
2 (29,30) 4 (93,92,91,90) असंयत स., वैमानिक
30 8 (23,25,26,28,29,30,31,1) 10 (93,92,91,90,88,84,82,80,79,78,77) तिर्यञ्च / मनुष्य
6 (23,25,26,28,29,30) 2 (92,90) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि, त्रस, उच्छ्वास पर्याप्ति, उद्योत सहित, पचेंद्रिय
5 (23,25,26,29,30) 4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, त्रस, उच्छ्वास पर्याप्ति, उद्योत सहित, विकलत्रय
1 (28) 2 (92,90) असंयत स., उच्छवास पर्याप्ति
6 (23,25,26,28,29,30) 2 (92,90) मिथ्यादृष्टि, त्रस, भाषा पर्याप्ति, उद्योत रहित, पंचेंद्रिय
5 (23,25,26,29,30) 4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, त्रस, भाषा पर्याप्ति, उद्योत रहित, विकलत्रय
3 (28,29,30) 1 (90) सासादन, भाषा-पर्याप्ति
1 (28) 2 (92,90) मिश्र, असंयत स., देश-संयत
0 2 (80,78) मनुष्य तीर्थंकर, समुद्घात, उच्छ्वास पर्याप्ति
6 (23,25,26,28,29,30) 3 (92,91,90) मिथ्यात्व, भाषा-पर्याप्ति
3 (28,29,30) 1 (90) सासादन, भाषा-पर्याप्ति
1 (28) 2 (92,90) मिश्र
2 (29,28) 4 (93,92,91,90) असंयत स. से प्रमत्त
2 (29,28,30,31) अप्रमत्त से अपूर्वकरण के 6 भाग तक
1 (1) 4 (93,92,91,90) अपूर्वकरण 7वें भाग, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म-सांपराय, अपशम श्रेणी
1 (1) 4 (80,79,78,77) अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्म-सांपराय, क्षपक श्रेणी
0 4 (93,92,91,90) उपशांत-मोह
0 4 (80,79,78,77) क्षीण मोह, सयोग केवली  
31 6 (23,25,26,28,29,30) 6 (92,90,88,84,80,78) तिर्यञ्च / मनुष्य
6 (23,25,26,28,29,30) 2 (92,90) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि, त्रस, भाषा पर्याप्ति, उद्योत सहित, पंचेंद्रिय
5 (23,25,26,29,30) 4 (92,90,88,84) मिथ्यादृष्टि, त्रस, भाषा पर्याप्ति, उद्योत सहित, विकलत्रय
3 (28,29,30) 1 (90) सासादन, भाषा-पर्याप्ति, उद्योत-सहित
1 (28) 2 (92,90) मिश्र, असंयत स., देश-संयत, उद्योत-सहित
0 2 (80,78) मनुष्य तीर्थंकर, भाषा-पर्याप्ति
9 0 3 (80,78,10) आयोग-केवली, तीर्थंकर
8 0 3 (79,77,9) आयोग-केवली, सामान्य
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 746 से 752

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+ नाम कर्म के सत्त्व आधार, बंध उदय आधेय भंग -
नाम कर्म के सत्त्व आधार, बंध उदय आधेय भंग

विशेष :

नाम कर्म के सत्त्व आधार, बंध उदय आधेय त्रिसंयोग भंग
सत्वस्थान बंधस्थान उदयस्थान स्वामी
93 4 (29,30,31,1) 7 (21,25,26,27,28,29,30) पर्याप्त / निवृत्तिअपर्याप्त कर्मभूमि-मनुष्य / देव
1 (29) 5 (21,26,28,29,30) मनुष्य असंयत स.
1 (30) देशसंयत
5 (25,27,28,29,30) प्रमत्तसंयत
2 (29,31) 1 (30) अप्रमत्तसंयत / अपूर्वकरण
1 (1) उपशमक अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 उपशांतमोह
1 (30) 5 (21,25,27,28,29) देव असंयत स.
92 7 (23,25,26,28,29,30,1) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) चारों-गति के जीव
2 (29,30) 5 (21,25,27,28,29) नरक मिथ्यादृष्टि
1 (29) 1 (29) मिश्र
5 (21,25,27,28,29) 1 नरक, असंयत स.
1 (29) 2-7 नरक, असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
1 (28) 2 (30,31) मिश्र
6 (21,26,28,29,30,31) असंयत स.
2 (30,31) देशसंयत
6 (23,25,26,28,29,30) 5 (21,26,28,29,30) मनुष्य मिथ्यादृष्टि
1 (28) 1 (30) मिश्र
5 (21,26,28,29,30) असंयत स.
1 (30) देशसंयत
5 (25,27,28,29,30) प्रमत्तसंयत
2 (28,30) 1 (30) अप्रमत्तसंयत / अपूर्वकरण
1 (1) उपशमक अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 उपशांतमोह
4 (25,26,29,30) 5 (21,25,27,28,29) देव मिथ्यादृष्टि, भवनत्रिक से सौधर्म-द्विक
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सनत्कुमार से सहस्रार तक
1 (29) मिथ्यादृष्टि, सहस्रार से ग्रैवेयिक तक
1 (29) मिश्र
असंयत स., भवनत्रिक
5 (21,25,27,28,29) असंयत स., वैमानिक
91 3 (28,29,30,1) 7 (21,25,26,27,28,29,30) नारकी, मनुष्य, देव
1 (29) 2 (21,25) नरक 1 से 3 नरक, मिथ्यादृष्टि
1 (30) 5 (21,25,27,28,29) 1 नरक, असंयत स.
3 (27,28,29) 2-3 नरक, असंयत स.
2 (28,29) 1 (30) मनुष्य मिथ्यादृष्टि
1 (29) 5 (21,26,28,29,30) असंयत स.
1 (30) देशसंयत
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत / अपूर्वकरण छ्ठा भाग
1 (1) उपशमक अपूर्वकरण 7वां भाग से, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 उपशांतमोह
1 (30) 5 (21,25,27,28,29) देव असंयत स.
90 7 (23,25,26,28,29,30,1) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) चारों-गति के जीव
2 (29,30) 5 (21,25,27,28,29) नरक मिथ्यादृष्टि
2 (29,30) 1 (29) सासादन
1 (29) मिश्र
5 (21,25,27,28,29) 1 नरक, असंयत स.
1 (29) 2-7 नरक, असंयत स.
6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
3 (28,29,30) 5 (21,24,26,30,31) सासादन
1 (28) 2 (30,31) मिश्र
6 (21,26,28,29,30,31) असंयत स.
2 (30,31) देशसंयत
6 (23,25,26,28,29,30) 5 (21,26,28,29,30) मनुष्य मिथ्यादृष्टि
3 (28,29,30) 3 (21,26,30) सासादन
1 (28) 1 (30) मिश्र
5 (21,26,28,29,30) असंयत स.
1 (30) देशसंयत
प्रमत्तसंयत
अप्रमत्तसंयत / अपूर्वकरण छ्ठा भाग
1 (1) उपशमक अपूर्वकरण 7वां भाग से, अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 उपशांतमोह
4 (25,26,29,30) 5 (21,25,27,28,29) देव मिथ्यादृष्टि, भवनत्रिक से सौधर्म-द्विक
2 (29,30) मिथ्यादृष्टि, सनत्कुमार से सहस्रार तक
1 (29) मिथ्यादृष्टि, सहस्रार से ग्रैवेयिक तक
2 (29,30) 3 (21,25,29) सासादन, भवनत्रिक से सहस्रार तक
1 (29) सासादन, सहस्रार से ग्रैवेयिक तक
1 (29) मिश्र
असंयत स., भवनत्रिक
5 (21,25,27,28,29) असंयत स., वैमानिक
88 6 (23,25,26,28,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) एकेन्द्रिय, विकलत्रय, पंचेंद्रिय (जन्म की अपेक्षा)
9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
4 (21,26,28,29) मनुष्य
84 5 (23,25,26,29,30) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) एकेन्द्रिय, विकलत्रय, पंचेंद्रिय (जन्म की अपेक्षा)
9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) तिर्यञ्च मिथ्यादृष्टि
4 (21,26,28,29) मनुष्य
82 5 (23,25,26,29,30) 4 (21,24,25,26) एकेन्द्रिय के, विकलत्रय व पंचेंद्रिय (जन्म की अपेक्षा) तिर्यञ्च, मिथ्यादृष्टि
80 / 78 1 (1) 6 (21,27,29,30,31,9) मनुष्य क्षपक श्रेणी / तीर्थंकर केवली
1 (1) 1 (30) क्षपक अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 क्षीणमोह
1 (31) सयोग-केवली, स्वस्थान
5 (21,27,29,30,31) सयोग-केवली, समुद्घात
1 (9) अयोग-केवली
79 / 77 1 (1) 6 (20,26,28,29,30,8) मनुष्य क्षपक श्रेणी / सामान्य केवली
1 (1) 1 (30) क्षपक अनिवृत्तिकरण, सूक्ष्मसाम्पराय
0 क्षीणमोह
सयोग-केवली, स्वस्थान
5 (21,26,28,29,30) सयोग-केवली, समुद्घात
1 (8) अयोग-केवली
10 0 1 (9) अयोग-केवली, चरम समय, तीर्थंकर
9 0 1 (8) अयोग-केवली, चरम समय, सामान्य
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- 753-759

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+ नाम कर्म के बंध / उदय आधार सत्त्व आधेय -
नाम कर्म के बंध / उदय आधार सत्त्व आधेय

विशेष :

नाम कर्म के बंध / उदय आधार सत्त्व आधेय त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान उदयस्थान सत्वस्थान
23,25,26 21,24,25,26 5 (92,90,88,84,82)
27,28,29,30,31 4 (92,90,88,84)
28 21,25,26,27,28,29 2 (92,90)
30 4 (92,91,90,88)
31 3 (92,90,88)
29 21,25,26 7 (93,92,91,90,88,84,82)
24,31 4 (92,90,88,84)
27,28,29,30 6 (93,92,91,90,88,84)
30 21,25 7 (93,92,91,90,88,84,82)
27,28,29 6 (93,92,91,90,88,84)
24,26 5 (92,90,88,84,82)
30,31 4 (92,90,88,84)
31 30 1 (93)
1 30 8 (93,92,91,90,80,79,78,77)
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 760-768

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+ नाम कर्म के बंध / सत्त्व आधार उदय आधेय भंग -
नाम कर्म के बंध / सत्त्व आधार उदय आधेय त्रिसंयोग भंग

विशेष :

नाम कर्म के बंध / सत्त्व आधार उदय आधेय त्रिसंयोग भंग
बंधस्थान सत्वस्थान उदयस्थान बंध स्वामी
23,25,26 92,90,88,84 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) एकेन्द्रिय देव / तिर्यञ्च / मनुष्य
82 9 (21,24,25,26) एकेन्द्रिय एकेन्द्रिय / त्रस तिर्यञ्च (शरीर-मिश्र तक)
28 92 8 (21,25,26,27,28,29,30,31) देव / नरक मनुष्य / पंचेंद्रिय तिर्यञ्च
5 (21,26,28,29,30) सामान्य मनुष्य
4 (25,27,28,29) आहारक शरीरी
7 (21,26,27,28,29,30,31) पंचेंद्रिय तिर्यञ्च / मनुष्य
91 1 (30) मिथ्यादृष्टि मनुष्य, तीर्थंकर सत्त्व सहित
90 7 (21,26,27,28,29,30,31) मनुष्य / तिर्यञ्च
88 2 (30,31)
29 7 (93,92,91,90,88,84,82) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) चारों गति के जीव
93 5 (21,26,28,29,30) देवगति-तीर्थंकर सामान्य मनुष्य
4 (25,27,28,29) आहारक समुद्घात
92,90,88,84 5 (21,25,27,28,29) त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य देव / नारकी
5 (21,24,25,26,27) एकेन्द्रिय
7 (21,26,27,28,29,30,31) त्रस-तिर्यञ्च
5 (21,26,28,29,30) मनुष्य
91 2 (21,25) मनुष्य-गति नारकी मिथ्यादृष्टि
5 (21,26,28,29,30) देवगति-तीर्थंकर मनुष्य
4 (25,27,28,29) आहारक-समुद्घात
82 4 (21,24,25,26) त्रस-तिर्यञ्च एकेन्द्रिय
30 7 (93,92,91,90,88,84,82) 9 (21,24,25,26,27,28,29,30,31) चारों गति के जीव
93,91 5 (21,25,27,28,29) मनुष्य, तीर्थंकर देव
92,90,88,84 5 (21,25,27,28,29) त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य देव / नारकी
5 (21,24,25,26,27) एकेन्द्रिय
7 (21,26,27,28,29,30,31) त्रस-तिर्यञ्च
5 (21,26,28,29,30) मनुष्य
82 4 (21,24,25,26) त्रस-तिर्यञ्च एकेन्द्रिय
31 93 30 देव,तीर्थंकर,आहारक-द्विक अप्रमत्त-संयत / अपूर्वकरण
1 8 (93,92,91,90,80,79,78,77) 30 यश:कीर्ति श्रेणी आरोहण के समय
4 (93,92,91,90) उपशम श्रेणी, अनिवृत्तिकरण / सूक्ष्म-साम्पराय
4 (80,79,78,77) क्षपक-श्रेणी, अनिवृत्तिकरण / सूक्ष्म-साम्पराय
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 769-774

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+ नाम कर्म के उदय / सत्त्व आधार बन्ध आधेय भंग -
नाम कर्म के उदय / सत्त्व आधार बन्ध आधेय भंग

विशेष :

नाम कर्म के उदय / सत्त्व आधार बन्ध आधेय त्रिसंयोग भंग
उदयस्थान सत्वस्थान बंधस्थान बंध स्वामी
21 93 30 मनुष्य / तीर्थंकर देव, अविरत स., कार्मण काल
29 देव / तीर्थंकर मनुष्य, अविरत स., कार्मण काल
92,90 6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति चारों-गति के कार्मण-काल के जीव
88,84,82 5 (23,25,26,29,30) तिर्यञ्च / मनुष्य उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च / मनुष्य
24 92,90,88,84,82 5 (23,25,26,29,30) तिर्यञ्च / मनुष्य एकेन्द्रिय, शरीर-मिश्र काल
25 93 30 मनुष्य / तीर्थंकर देव, अविरत स., शरीर-मिश्र काल
29 देव / तीर्थंकर आहारक-शरीरी, शरीर-मिश्र काल
91 30 मनुष्य / तीर्थंकर देव / नारकी (1 नरक), असंयत स., शरीर-मिश्र काल
29 मनुष्य नारकी मिथ्यादृष्टि, शरीर-मिश्र, 1 से 3 नरक
92 6 (23,25,26,28,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च / देव देव / नारकी / आहारक-शरीरी -- शरीर-मिश्र काल; एकेन्द्रिय -- शरीर-पर्याप्ति काल
90 5 (23,25,26,29,30) तिर्यञ्च / मनुष्य देव / नारकी -- शरीर-मिश्र काल; एकेन्द्रिय -- शरीर-पर्याप्ति काल
88,84,82 तिर्यञ्च / मनुष्य उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि तिर्यञ्च एकेन्द्रिय शरीर-पर्याप्ति काल
26 93,91 1 (29) देव / तीर्थंकर मनुष्य, अविरत स., शरीर-मिश्र काल
92,90 6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति मनुष्य / तिर्यञ्च
88,84 5 (23,25,26,29,30) तिर्यञ्च / मनुष्य उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि -- एकेन्द्रिय उच्छ्वास-पर्याप्ति; एकेन्द्रिय आतप-उद्योत सहित शरीर-पर्याप्ति काल; त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य शरीर-मिश्र काल
82 तिर्यञ्च उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि -- एकेन्द्रिय उच्छ्वास-पर्याप्ति; एकेन्द्रिय आतप-उद्योत सहित शरीर-पर्याप्ति काल
27 93 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव, शरीर-पर्याप्ति
29 देव, तीर्थंकर आहारक शरीरी, शरीर-पर्याप्ति
91 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव, शरीर-पर्याप्ति
मनुष्य, तीर्थंकर नारकी, 1-3 नरक, शरीर-पर्याप्ति
92 6 (23,25,26,28,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च देव, नारकी, आहारक-शरीरी -- शरीर-पर्याप्ति काल; एकेन्द्रिय आतप / उद्योत सहित उच्छ्वास पर्याप्ति काल
90 5 (23,25,26,29,30) देव, नारकी -- शरीर-पर्याप्ति काल; एकेन्द्रिय आतप / उद्योत सहित उच्छ्वास पर्याप्ति काल
88,84 5 (23,25,26,29,30) उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि एकेन्द्रिय आतप / उद्योत सहित उच्छ्वास पर्याप्ति काल
28 93 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव, उच्छ्वास-पर्याप्ति
29 देव, तीर्थंकर मनुष्य, शरीर पर्याप्ति काल; आहारक शरीरी उच्छ्वास पर्याप्ति
91 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव / नारकी (1-3 नरक), उच्छ्वास-पर्याप्ति
29 देव, तीर्थंकर मनुष्य, शरीर पर्याप्ति काल
92,90 4 (25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च देव, उच्छ्वास-पर्याप्ति
29,30 नारकी, उच्छ्वास-पर्याप्ति
28 देव आहारक शरीरी, उच्छ्वास पर्याप्ति
6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति सामान्य मनुष्य / पंचेंद्रिय तिर्यञ्च, शरीर पर्याप्ति
5 (23,25,26,29,30) विकलेंद्रिय तिर्यञ्च, शरीर पर्याप्ति काल
88,84 5 (23,25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि विकलेंद्रिय, शरीर पर्याप्ति काल ?
29 93 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव, भाषा-पर्याप्ति
29 देव, तीर्थंकर मनुष्य, उच्छ्वास पर्याप्ति काल; आहारक शरीरी भाषा पर्याप्ति
91 30 मनुष्य, तीर्थंकर देव / नारकी (1-3 नरक), भाषा-पर्याप्ति
29 देव, तीर्थंकर मनुष्य, उच्छ्वास पर्याप्ति काल
92,90 4 (25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च देव, भाषा-पर्याप्ति
29,30 नारकी, भाषा-पर्याप्ति
28 देव आहारक शरीरी, भाषा पर्याप्ति
6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति सामान्य मनुष्य / पंचेंद्रिय तिर्यञ्च, उच्छ्वास पर्याप्ति
5 (23,25,26,29,30) विकलेंद्रिय तिर्यञ्च उद्योत रहित, उच्छ्वास पर्याप्ति काल; विकलेंद्रिय तिर्यञ्च उद्योत सहित शरीर पर्याप्ति
88,84 5 (23,25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि विकलेंद्रिय, शरीर पर्याप्ति काल ?
30 93 29 देव, तीर्थंकर मनुष्य, भाषा पर्याप्ति काल
31 देव, तीर्थंकर, आहारक-द्विक
91 29 देव, तीर्थंकर मनुष्य सम्यक्त्वी
28,29 नरक / मनुष्य मनुष्य मिथ्यादृष्टि
92,90,88 6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति त्रस तिर्यञ्च / मनुष्य
84 5 (23,25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च उद्वेलना सहित मिथ्यादृष्टि विकलेंद्रिय, उच्छ्वास / भाषा पर्याप्ति ?
31 92,90,88 6 (23,25,26,28,29,30) चारों-गति त्रस तिर्यञ्च, उद्योत सहित, भाषा पर्याप्ति
84 5 (23,25,26,29,30) मनुष्य / तिर्यञ्च विकलत्रय तिर्यञ्च, उद्योत सहित
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 775 से 784

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आस्रव प्रत्यय



+ आस्रव के प्रत्यय के मूल और उत्तर-भेद -
आस्रव के प्रत्यय के मूल और उत्तर-भेद
आस्रव के प्रत्यय के मूल और उत्तर-भेद

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+ गुणस्थान में आस्रवों के मूल-प्रत्यय -
गुणस्थान में आस्रवों के मूल-प्रत्यय

विशेष :

गुणस्थान में आस्रव के मूल-प्रत्यय
गुणस्थान बंध-प्रत्यय मिथ्यात्व (5) अविरत (12) कषाय (25) योग (15)
मिथ्यादृष्टि 4
सासादन 3 X
सम्यग्मिथ्यादृष्टि 3 X
असंयत सम्यग्दृष्टि 3 X
संयतासंयत 3 X
प्रमत्तसंयत 2 X X
अप्रमत्तसंयत 2 X X
अपूर्वकरण 2 X X
अनिवृत्तिकरण 2 X X
सूक्ष्मसाम्पराय 2 X X
उपशान्त / क्षीण कषाय 1 X X X
सयोग केवली 1 X X X
गोम्मटसार कर्मकांड गाथा -- गाथा -- 786 से 788

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+ गुणस्थानों में आस्रवों के उत्तर प्रत्यय -
गुणस्थानों में आस्रवों के उत्तर प्रत्यय

विशेष :

गुणस्थानों में आस्रव के उत्तर प्रत्यय
नाना जीवों की अपेक्षा एक जीव की अपेक्षा
गुणस्थान प्रत्यय जघन्य उत्कृष्ट
संख्या अनुदय व्युच्छित्ति संख्या प्रत्यय संख्या प्रत्यय
मिथ्यादृष्टि 55 2 (आहारक,आहारक-मिश्र योग) 5 (५ मिथ्यात्व) 10 १ मिथ्यात्व, २ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 18 १ मिथ्यात्व, ७ असंयम, ४ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
सासादन 50 7 4 (अनंतानुबंधी ४) 10 २ असंयम, ७ (४ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति), १ योग 17 ७ असंयम, ९ (४ कषाय, १ वेद, ४ (हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि 43 14 (औदारिक-मिश्र,वैक्रियिक-मिश्र,कार्मण) 0 9 २ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 16 ७ असंयम, ३ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
असंयत सम्यग्दृष्टि 46 (+ औदारिक-मिश्र,वेक्रियिक-मिश्र,कार्मण) 11 7 (४ अप्रत्याख्यान, औदारिक-मिश्र, वैक्रियिक, वैक्रियिक-मिश्र, कार्मण, १ असंयम)
संयतासंयत 37 20 (औदारिक-मिश्र,कार्मण) 15 (४ प्रत्याख्यान, शेष ११ असंयम) 8 २ असंयम, २ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 14 ६ असंयम, २ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
प्रमत्तसंयत 24 (+ आहारक,आहारक-मिश्र) 33 2 (आहारक,आहारक-मिश्र) 5 १ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, १ योग 7 १ कषाय, १ वेद, हास्य-रति / शोक-अरति, भय, जुगुप्सा, १ योग
अप्रमत्तसंयत 22 35 0
अपूर्वकरण 22 35 6 (६ नोकषाय)
अनिवृत्तिकरण प्रथम भाग 16 41 1 (नपुंसक-वेद) 2 १ कषाय, १ योग 3 १ कषाय, १ वेद, १ योग
द्वितीय भाग 15 42 1 (स्त्री-वेद)
तृतीय भाग 14 43 1 (पुरुष-वेद)
चतुर्थ भाग 13 44 1 (संज्वलन क्रोध)
पंचम भाग 12 45 1 (संज्वलन मान)
छठा भाग 11 46 1 (संज्वलन माया)
सातवाँ भाग 10 47 0
सूक्ष्मसाम्पराय 10 47 1 (सूक्ष्म-लोभ) 2 १ कषाय, १ योग 2 १ कषाय, १ योग
उपशान्त कषाय 9 48 0 1 १ योग 1 १ योग
क्षीण कषाय 9 48 4 (असत्य मन / वचन, उभय मन / वचन योग)
सयोग केवली 7 (+ औदारिक मिश्र / कार्मण काय योग) 50 7 (औदारिक,औदारिक-मिश्र,सत्य-२ [मन और वचन],अनुभय-२ [मन और वचन],कार्मण)
कुल बंध प्रत्यय = 57 (५ मिथ्यात्व, १२ असंयम, २५ कषाय, १५ योग)

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+ गुणस्थानों में आस्रव के स्थान संख्या और उनके प्रकार -
गुणस्थानों में आस्रव के स्थान संख्या और उनके प्रकार

विशेष :

गुणस्थानों में आस्रव के स्थान संख्या और उनके प्रकार
गुणस्थान स्थान-संख्या स्थान (ऊपर) और उनके प्रकार (स्थान के नीचे)
मिथ्यादृष्टि 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18
1 3 5 6 6 6 5 3 1
सासादन 8 10 11 12 13 14 15 16 17
1 2 3 3 3 3 2 1
मिश्र 8 9 10 11 12 13 14 15 16
1 2 3 3 3 3 2 1
असंयत सम्यग्दृष्टि 8 9 10 11 12 13 14 15 16
1 2 3 3 3 3 2 1
संयतासंयत 7 8 9 10 11 12 13 14
1 2 3 3 3 2 1
प्रमत्तसंयत 3 5 6 7
1 1 1
अप्रमत्तसंयत 3 5 6 7
1 1 1
अपूर्वकरण 3 5 6 7
1 1 1
अनिवृत्तिकरण 2 2 3
1 1
सूक्ष्मसाम्पराय 1 2
1
उपशान्त कषाय 1 1
क्षीण कषाय 1 1
सयोग केवली 1 1
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 793

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+ गुणस्थानों में आस्रव के प्रत्यय के भंगों का प्रमाण -
गुणस्थानों में आस्रव के प्रत्यय के भंगों का प्रमाण

विशेष :

गुणस्थानों में आस्रव के प्रत्यय के भंगों का प्रमाण
गुणस्थान विशेष प्रत्यय भंगों का प्रमाण
5 मिथ्यात्व 12 अविरति 25 कषाय 15 योग
6 प्राणी 6 इंद्रिय कषाय हास्य-रति / शोक-
अरती
भय जुगुप्सा वेद
मिथ्यादृष्टि अनंतानुबंधी-रहित 5 *63 6 4 2 ^2 ^2 3 #10 18,14,400
सामान्य 5 63 6 4 2 2 2 3 13 23,58,720
*प्राणी असंयम में 1 से 6 तक सभी combinations, 6C1+6C2+6C3+6C4+6C5+6C6=6+15+20+15+6+1=63 कुल 41,73,120
^भय या जुगुप्सा का उदय हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है (अध्रुव) इसलिए दोनों के 2-2 भंग हैं ।
#अनंतानुबंधी से रहित पर्याप्त अवस्था में ही होते हैं । इसलिए औदारिक-मिश्र / वेक्रियिक-मिश्र / कार्मण काय योग यहाँ नहीं है
सासादन वैक्रियिक-मिश्र बिना - 63 6 4 2 2 2 3 *12 4,35,456
वैक्रियिक-मिश्र में - 63 6 4 2 2 2 #2 1 24,192
*वैक्रियिक-मिश्र बिना बारह योग कुल 4,59,648
#वैक्रियिक-मिश्र में नपुंसक वेद नहीं
मिश्र - 63 6 4 2 2 2 3 *10 कुल 3,62,880
*5 योग का मिश्र अवस्था में अभाव -- आहारक द्विक, औदारिक-मिश्र, वैक्रियिक-मिश्र, कार्मण
असंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त अवस्था - 63 6 4 2 2 2 3 10 3,62,880
वैक्रियिक-मिश्र / कार्मण - 63 6 4 2 2 2 2 *2 48,384
औदारिक-मिश्र - 63 6 4 2 2 2 1 *1 12,096
*वैक्रियिक-मिश्र के साथ स्त्री वेद और औदारीक-मिश्र के साथ स्त्री / नपुंसक वेद यहाँ नहीं है कुल 4,23,360
संयतासंयत - ^31 6 4 2 2 2 3 *9 कुल 1,60,704
^त्रस-हिंसा का अभाव, भंग = 5C1+5C2+5C3+5C4+5C5=5+10+10+5+1=31
*त्रस-हिंसा और वैक्रियिक योग यहाँ नहीं है
प्रमत्तसंयत सामान्य - - - 4 2 2 2 3 *9 864
आहारक-योग - - - 4 2 2 2 #1 2 64
*असंयम प्रत्यय का अभाव, वैक्रियिक और मिश्र योग का अभाव कुल 928
#आहारक / आहारक-मिश्र योग में पुरुष वेद का ही सद्भाव
अप्रमत्तसंयत - - - 4 2 2 2 3 9 कुल 864
अपूर्वकरण - - - 4 2 2 2 3 9 कुल 864
अनिवृत्तिकरण वेद-सहित - - - 4 - - - 3 9 108
नपुंसक-वेद-रहित - - - 4 - - - 2 9 72
वेद-रहित - - - 4 - - - - 9 36
क्रोध-रहित - - - 3 - - - - 9 27
मान-रहित - - - 2 - - - - 9 18
माया-रहित - - - 1 - - - - 9 9
कुल 270
सूक्ष्मसाम्पराय - - - 1 - - - - 9 कुल 9
उपशान्त कषाय - - - - - - - - 9 कुल 9
क्षीण कषाय - - - - - - - - 9 कुल 9
सयोग केवली - - - - - - - - 7 कुल 7
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 795-796

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+ मार्गणा में आस्रव -
मार्गणा में आस्रव

विशेष :

मार्गणा में आस्रव
मार्गणा गुणस्थान कुल 5 मिथ्यात्व 12 अविरति 25 कषाय 15 योग
गति नरक 1 से 7 1 51 5 12 23 (-२ वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,औदा.द्वि.)
2 44 0 12 23 9 (11-वै.मि.,कार्मण)
3 40 0 12 19 (अनं.-४) 9
पहला 4 42 0 12 19 11 (9+वै.मि.,कार्मण)
2 से 7 4 40 0 12 19 9
तिर्यञ्च कर्मभूमि 1 53 5 12 25 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
2 48 0 12 25 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
3 42 0 12 21 (25-अनं.-४) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
4 44 0 12 21 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
5 37 0 11 17 (21-अप्र.-४) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भोगभूमि 1 52 5 12 24 (25-नपुंसक वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
2 47 0 12 24 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
3 41 0 12 20 (24-अनं. ४) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
4 43 0 12 20 (24-अनं. ४) 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
लब्ध्यपर्याप्तक 1 42 5 12 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
मनुष्य कर्मभूमि सामान्य 55 5 12 25 13 (15-वै.द्वि.)
1 53 5 12 25 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
2 48 0 12 25 11
3 42 0 12 21 (25-अनं. ४) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
4 44 0 12 21 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
5 37 0 11 (12-त्रसहिंसा अविरति) 17 (21-4 अप्र.) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
6 24 0 0 13 (17-4 प्र.) 11 (15-वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
7-8 22 0 0 13 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
9 भाग 1 16 0 0 7 (13-6 नोकषाय) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 2 15 0 0 6 (7-नपुं. वेद) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 3 14 0 0 5 (6-स्त्री वेद) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 4 13 0 0 4 (5-पुरुष वेद) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 5 12 0 0 3 (4-क्रोध कषाय) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 6 11 0 0 2 (3-मान कषाय) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
भाग 7 10 0 0 1 (2-माया कषाय) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
10 10 0 0 1 9
11-12 9 0 0 0 9
13 7 0 0 0 7 (औदा.द्वि.,कार्मण,सत्य-अनुभय मन-वचन योग)
भोगभूमि 1 52 5 12 24 (25-नपुं.वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
2 47 0 12 24 (25-नपुं.वेद) 11
3 41 0 12 20 (25-अनं. ४,नपुं.वेद) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
4 43 0 12 20 (25-अनं. ४,नपुं.वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.)
लब्ध्यपर्याप्तक 1 42 5 12 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
देव भवनत्रिक, देवियाँ 1 52 5 12 24 (25-नपुं. वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,औदा.द्वि.)
2 47 0 12 24 11
3,4 41 0 12 20 (24-अनं. ४) 9 (15-आ.द्वि.,औदा.द्वि.,वै.मि.,कार्मण)
सौधर्म से ग्रैवेयिक 1 51 5 12 23 (25-२ वेद) 11 (15-आहा.द्वि.,औदा.द्वि.)
2 46 0 12 23 (25-२ वेद) 11
3 40 0 12 19 (23-अनं. ४) 9 (15-आ.द्वि.,औदा.द्वि.,वै.मि.,कार्मण)
4 42 0 12 19 (23-अनं. ४) 11 (15-आ.द्वि.,औदा.द्वि.)
अनुदिश, अनुत्तर 4 42 0 12 19 (23-अनं. ४) 11 (15-आ.द्वि.,औदा.द्वि.)
इंद्रिय एकेन्द्रिय 1 38 5 7 (12-४इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 3 (कार्मण, औदा.द्वि.)
2 32 0 7 (12-४इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
दो इंद्रिय 1 40 5 8 (12-३इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 4 (अनु. वचनयोग,कार्मण,औदा.द्वि.)
2 33 0 8 (12-३इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
तीन इंद्रिय 1 41 5 9 (12-२इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 4 (अनु. वचनयोग,कार्मण,औदा.द्वि.)
2 34 0 9 (12-२इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
चार इंद्रिय 1 42 5 10 (12-1इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 4 (अनु. वचनयोग,कार्मण,औदा.द्वि.)
2 35 0 10 (12-1इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
पंचेंद्रिय 57 5 12 25 15
काय पृथ्वी,जल,वनस्पति 1 38 5 7 (12-४इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 3 (कार्मण, औदा.द्वि.)
2 32 0 7 (12-४इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 2 (कार्मण, औदा.मि.)
अग्नि,वायु 1 38 5 7 (12-४इंद्रिय और मन) 23 (25-२ वेद) 3 (कार्मण, औदा.द्वि.)
त्रस 57 5 12 25 15
योग 10 (४ मन,४ वचन,वैक्रियिक,औदारिक) 1 43 5 12 25 1 (कोई 1 योग)
2 38 0 12 25
3 34 0 12 21 (25-अनं. ४)
4 34 0 12 21 (25-अनं. ४)
9 (४ मन,४ वचन,औदारिक) 5 29 0 11 17 (21-अप्र.-४) 1 (कोई 1 योग)
6,7,8 14 0 0 13 (17-4 प्र.)
9 भाग 1 8 0 0 7 (13-6 नोकषाय)
भाग 2 7 0 0 6 (7-नपुं. वेद)
भाग 3 6 0 0 5 (6-स्त्री वेद)
भाग 4 5 0 0 4 (5-पुरुष वेद)
भाग 5 4 0 0 3 (4-क्रोध कषाय)
भाग 6 3 0 0 2 (3-मान कषाय)
भाग 7 2 0 0 1 (2-माया कषाय)
10 2 0 0 1
11-12 1 0 0 0
5 (2 मन,2 वचन,औदारिक) 13 1 0 0 0 1 (कोई 1 योग)
वैक्रियिक मिश्र 1 43 5 12 25 1 (वैक्रियिक मिश्र)
2 37 0 12 24 (25-नपुं.वेद)
4 33 0 12 20 (25-अनं. ४,स्त्री वेद)
औदारिक मिश्र 1 43 5 12 25 1 (औदारिक मिश्र)
2 38 0 12 25
4 32 0 12 19 (25-अनं. ४,२ वेद)
13 1 0 0 0
आहारक 6 12 0 0 11 (25-कषाय १२,२ वेद) 1 (आहारक या आहारक-मिश्र)
वेद तीनों वेद 1 53 5 12 23 (25-२ वेद) 13 (15-आहारक द्विक)
स्त्री / पुरुष 2 48 0 12 23 13
नपुंसक 47 0 12 23 12 (13-वैक्रियिक मिश्र)
तीनों वेद 3 41 0 12 19 (23-अनं.४) 10 (12-औदा.मिश्र,कार्मण)
पुरुष 4 44 0 12 19 (23-अनं.४) 13
स्त्री 41 0 12 19 (23-अनं.४) 10 (12-औदा.मिश्र,कार्मण)
नपुंसक 43 0 12 19 (23-अनं.४) 12 (13-औदा.मिश्र)
तीनों वेद 5 35 0 11 15 (23-अनं.४,अप्र.४) 9 (13-वैक्रि.द्वि.,औदा.मिश्र,कार्मण)
पुरुष 6 22 0 0 11 (23-12 कषाय) 11 (15-वैक्रि.द्वि.,औदा.मिश्र,कार्मण)
स्त्री / नपुंसक 20 0 0 11 9 (11-आहा.द्विक)
तीनों वेद 7,8 20 0 0 11 9 (11-आहा.द्विक)
तीनों वेद 9 (भाग १) 14 0 0 5 (11-6 नोकषाय) 9 (11-आहा.द्विक)
स्त्री / पुरुष वेद 9 (भाग २)
पुरुष वेद 9 (भाग ३)
कषाय चारों 1 43 5 12 13 (25-१२ कषाय) 13 (15-आहा. द्विक)
2 38 0 12 13 13
3 34 12 12 (13-अनं. १) 10 (13-औदा.मिश्र,वै.मिश्र,कार्मण)
4 37 12 12 (13-अनं. १) 13 (15-आहा.द्वि.)
5 31 11 11 (12-अप्र. १) 9 (13-औदा.मिश्र,वै.द्विक,कार्मण)
6 21 0 10 (11-प्र. १) 11 (15-औदा.मिश्र,वै.द्विक,कार्मण)
7-8 19 10 (11-प्र. १) 9 (15-आहा.द्वि.,औदा.मिश्र,वै.द्विक,कार्मण)
9 भाग 1 13 4 (10-नोकषाय ६)
भाग 2 12 3 (4-नपुं.वेद)
भाग 3 11 2 (3-स्त्री वेद)
भाग 4 10 1 (2-पुरुष वेद)
मान,माया,लोभ भाग 5 10 0 0 1 (३ कषाय में से एक)
माया,लोभ भाग 6 10 0 0 1 (२ कषाय में से एक)
लोभ भाग 7 10 0 0 1 (लोभ कषाय)
10 10 1 (लोभ कषाय)
ज्ञान कुमति / कुश्रुत 1 55 5 12 25 13 (15-आहा.द्वि.)
2 50 0
विभंगावधि 1 52 5 12 25 10 (15-वै.मिश्र,आहा.द्विक,औदा.मिश्र,कार्मण)
2 47 0
मति / श्रुत / अवधि 4 से 12 46 गुणस्थान अनुसार
मन:पर्यय 6 20 0 0 11 (17-प्र. ४,२ वेद) 9
7-8 20 11
9 भाग 1,2,3 14 5 (11-6 नोकषाय)
भाग 4 13 4 (5-पुरुष वेद)
भाग 5 12 3 (4-क्रोध कषाय)
भाग 6 11 2 (3-मान कषाय)
भाग 7 10 1 (लोभ कषाय)
10 10 1 (लोभ कषाय)
11-12 9 0
केवल 13 7 0 7 (औदा.द्वि.,कार्मण,सत्य-अनुभय मन-वचन)
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना 6 24 0 0 13 (17-4 प्र.) 11 (15-वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
7-8 22 13 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
9 भाग 1 16 7 (13-6 नोकषाय)
भाग 2 15 6 (7-नपुं. वेद)
भाग 3 14 5 (6-स्त्री वेद)
भाग 4 13 4 (5-पुरुष वेद)
भाग 5 12 3 (4-क्रोध कषाय)
भाग 6 11 2 (3-मान कषाय)
भाग 7 10 1 (लोभ-कषाय)
परिहारविशुद्धि 6,7 20 0 0 11 (४ कषाय,६ नोकषाय,१ वेद) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
सूक्ष्मसाम्पराय 10 10 0 0 1 (लोभ) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
यथाख्यात 11,12 9 0 0 0 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
13 7 7 (औदा.द्वि.,कार्मण,सत्य-अनुभय मन-वचन)
देशसंयम 5 37 0 11 (12-त्रसहिंसा अविरति) 17 (21-4 अप्र.) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
असंयम 1 55 5 12 25 13 (15-आहा.द्वि.)
2 50 0
3 43 21 (25-अनं. ४) 10 (13-औदा.मिश्र,वै.मिश्र,कार्मण)
4 46 13 (15-आहा.द्वि.)
दर्शन चक्षु / अचक्षु 1 से 12 57 गुणस्थान अनुसार
अवधिदर्शन 4 से 12 48 अवधि-ज्ञान के समान
केवल 13 7 0 0 0 7 (औदा.द्वि.,कार्मण,सत्य-अनुभय मन-वचन)
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत 1 55 5 12 25 13 (15-आहा.द्वि.)
पीत, पद्म, शुक्ल 54 12 (15-आहा.द्वि.,औदा.मिश्र)
कृष्ण, नील, कापोत 2 50 0 13 (15-आहा.द्वि.)
पीत, पद्म, शुक्ल 49 12 (15-आहा.द्वि.,औदा.मिश्र)
छहों 3 43 0 21 (25-अनं. ४) 10 (13-औदा.मिश्र,वै.मिश्र,कार्मण)
कृष्ण, नील 4 45 0 12 (15-आहा.द्वि.,वै.मिश्र)
कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल 46 13 (15-आहा.द्वि.)
पीत, पद्म, शुक्ल 5 37 0 11 (12-त्रसहिंसा अविरति) 17 (21-4 अप्र.) 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
6 24 0 13 (17-4 प्र.) 11 (15-वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
7 22 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
शुक्ल 8 22 0 0 13 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
9 भाग 1 16 7 (13-6 नोकषाय)
भाग 2 15 6 (7-नपुं. वेद)
भाग 3 14 5 (6-स्त्री वेद)
भाग 4 13 4 (5-पुरुष वेद)
भाग 5 12 3 (4-क्रोध कषाय)
भाग 6 11 2 (3-मान कषाय)
भाग 7 10 1 (2-माया कषाय)
10 10 1
11,12 9 0
13 7 0 7 (औदा.द्वि.,कार्मण,सत्य-अनुभय मन-वचन)
भव्य अभव्य 1 55 5 12 25 13 (15-आहा. द्विक)
भव्य 1 से 14 57 गुणस्थान अनुसार
सम्यक्त्व उपशम 4 45 0 12 21 12 (15-आहा.द्विक,औदा.मिश्र)
5 37 11 17 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
6 से 8 22 0 13
9 भाग 1 16 7 (13-6 नोकषाय)
भाग 2 15 6 (7-नपुं. वेद)
भाग 3 14 5 (6-स्त्री वेद)
भाग 4 13 4 (5-पुरुष वेद)
भाग 5 12 3 (4-क्रोध कषाय)
भाग 6 11 2 (3-मान कषाय)
भाग 7 10 1 (2-माया कषाय)
10 10 1
11 9 0
वेदक 4 46 0 12 21 13 (15-आहा.द्विक)
5 37 11 17 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
6 24 0 13 11 (15-वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
7 22 9 (15-आहा.द्वि.,वै.द्वि.,औदा.मि.,कार्मण)
क्षायिक 4 से 14 48 गुणस्थान अनुसार
मिश्र 3 43
सासादन 2 50
मिथ्यात्व 1 55
संज्ञी संज्ञी 1 से 12 57 गुणस्थान अनुसार
असंज्ञी 1 45 5 11 25 4 (अनु. वचनयोग,कार्मण,औदा.द्वि.)
2 38 0 2 (कार्मण,औदा.मिश्र.)
आहारक आहारक 1 54 5 12 25 12 (15-आहा.द्विक,कार्मण)
2 49 0
3 43 21 (25-अनं. ४) 10 (15-आहा.द्वि.,वै.मि.,औदा.मि.,कार्मण)
4 45 12 (15-आहा.द्वि.,कार्मण)
5 से 13 37 गुणस्थान अनुसार
अनाहारक 1 43 5 12 25 1 (कार्मण)
2 38 0
4 34 21
13 1 0 0
आस्रव त्रिभंगी -- गाथा 24 से 60

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भाव अधिकार



+ नाना जीवों में पाए जाने वाले भाव -
नाना जीवों में पाए जाने वाले भाव

विशेष :

नाना जीवों में पाए जाने वाले मूलभाव
गुणस्थान सिद्ध
1 से 3 4 से 11 12 13 - 14
भाव औदयिक -
क्षायोपशमिक - -
औपशमिक - - - -
क्षायिक -
पारिणामिक
कुल 3 5 4 3 2
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 820

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+ नाना जीवों में पाए जाने वाले उत्तरभाव -
नाना जीवों में पाए जाने वाले उत्तरभाव

विशेष :

नाना जीवों में पाए जाने वाले उत्तरभाव
गुणस्थान सिद्ध
1 2 3 4 5 6/7 8/9 10 11 12 13 14
औदयिक (21) गति (4) मनुष्य -
तिर्यञ्च - - - - - - - -
देव,नारकी - - - - - - - - -
वेद (3) - - - - - -
कषाय (4) क्रोध,मान,माया - - - - - -
लोभ - - - - -
मिथ्यात्व - - - - - - - - - - - -
लेश्या (6) कृष्ण,नील,कापोत - - - - - - - - -
पीत,पद्म - - - - - - -
शुक्ल - -
असिद्धत्व -
असंयम - - - - - - - - -
अज्ञान - - -
क्षायोपशमिक (18) ज्ञान (4) मति,श्रुत,अवधि - - - - - -
मन:पर्यय - - - - - - - -
दर्शन (3) चक्षु,अचक्षु - - -
अवधि - - - - - -
कुमति,कुश्रुत,विभंग - - - - - - - - - -
दान,लाभ,भोग,उपभोग,वीर्य - - -
वेदक सम्यक्त्व - - - - - - - - - -
सराग-चारित्र - - - - - - - - - - - -
संयमासंयम - - - - - - - - - - - -
औपशमिक (2) सम्यक्त्व - - - - - - -
चारित्र - - - - - - - - - -
क्षायिक (9) ज्ञान, दर्शन - - - - - - - - - -
सम्यक्त्व - - -
चारित्र - - - - - - -
दान,लाभ,भोग,उपभोग,वीर्य - - - - - - - - - -
पारिणामिक (3) जीवत्व
भव्यत्व -
अभव्यत्व - - - - - - - - - - - -
कुल 34 32 32 36 31 31 29 23 21 20 14 13 10
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 820

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+ गुणस्थानों में एक जीव के एक काल में संभव भाव -
गुणस्थानों में एक जीव के एक काल में संभव भाव

विशेष :

गुणस्थानों में एक जीव के एक काल में संभव भाव
गुणस्थान मूल भाव स्थान-संख्या पर-संयोग स्व-संयोग
प्रत्येक द्विसंयोगी त्रिसंयोगी चतु:संयोगी पंच-संयोगी
1 से 3 3 (औद./क्षायो./पा.) 10 3 3 1 3
4 से 7 5 (औद./क्षायो./पा./औप./क्षायि.) 26 5 *9 *7 *2 #3
*यहाँ औपशमिक-क्षायिक का संयोग भंग संभव नहीं है
#औपशमिक सम्यक्त्व और चारित्र का भंग संभव नहीं; इसी प्रकार क्षायिक में भी स्व-संयोगी भंग यहाँ संभव नहीं
उपशम-श्रेणी 5 (औद./क्षायो./पा./औप./क्षायि.) 35 5 10 10 5 1 *4
*क्षायिक-सम्यक्त्व के साथ क्षायिक चारित्र का स्व-संयोगी भंग यहाँ संभव नहीं
क्षपक-श्रेणी 4 (औद./क्षायो./पा./क्षायि.) 19 4 6 4 1 4
13, 14 3 (औद./पा./क्षायि.) 10 3 3 1 3
सिद्ध 2 (पा./क्षायि.) 5 2 1 2
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 820-822

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+ गुणस्थानों में उत्तरभावों के भंग -
गुणस्थानों में उत्तरभावों के भंग

विशेष :

गुणस्थानों में उत्तरभावों के भंग
गुणस्थान मूल भाव
क्षायोपशमिक औदायिक औपशमिक क्षायिक पारिणामिक
स्थान विशेष स्थान विशेष गुण्य
1 3 (10, 9,8) 10 (3 अज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि)
9 (2 अज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि)
8 (2 अज्ञान, अचक्षु-दर्शन, 5 दानादि)
1 (8) 8 (1 गति, 1 वेद, 1 कषाय, 1 लेश्या, मिथ्यात्व, असिद्धत्व, असंयम, अज्ञान) 216 (12 [नरक-गति*4 कषाय*3 लेश्या] +
48 [देव-गति*2 वेद*4 कषाय*6 लेश्या] +
144 [2 गति*3 वेद*4 कषाय*6 लेश्या] +
12 [तिर्यञ्च-गति*1 वेद*4 कषाय*3 लेश्या*अचक्षु-दर्शन])
2 (भव्य, अभव्य)
2 1 (7) 7 (1 गति, 1 वेद, 1 कषाय, 1 लेश्या, असिद्धत्व, असंयम, अज्ञान) 1
3 2 (11,9) 11 (3 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि)
9 (2 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि)
180 (12 [नरक-गति*4 कषाय*3 लेश्या] +
24 [देव-गति*2 वेद*4 कषाय*3 लेश्या] +
144 [2 गति*3 वेद*4 कषाय*6 लेश्या])
4 2 (12,10) 12 (3 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स.)
10 (2 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स.)
180 (12 [नरक-गति*4 कषाय*3 लेश्या] +
24 [देव-गति*2 वेद*4 कषाय*3 लेश्या] +
144 [2 गति*3 वेद*4 कषाय*6 लेश्या])
104 (4 [नरक-गति*4 कषाय*कापोत-लेश्या]+
16 [तिर्यञ्च-गति*4 कषाय*4 लेश्या]+
72 [मनुष्य-गति*3 वेद*4 कषाय*6 लेश्या]+
12 [देव-गति*4 कषाय*3 लेश्या])
5 2 (13,11) 13 (3 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., देशसंयम)
11 (2 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., देशसंयम)
1 (6) 6 (1 गति, 1 वेद, 1 कषाय, 1 लेश्या, असिद्धत्व, अज्ञान) 72 (2 गति*3 वेद*4 कषाय*3 लेश्या) 36 (3 वेद*4 कषाय *3 लेश्या)
6,7 4 (14,13,12,11) 14 (4 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., सराग-चारित्र)
13 (3 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., सराग-चारित्र)
12 (3 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., सराग-चारित्र)
11 (2 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि, वेदक स., सराग-चारित्र)
36 (3 वेद*4 कषाय*3 लेश्या)
8,9(सवेद) 4 (12,11,10,9) 12 (4 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि)
11 (3 ज्ञान, 3 दर्शन, 5 दानादि)
10 (3 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि)
9 (2 ज्ञान, 2 दर्शन, 5 दानादि)
12 (3 वेद*4 कषाय)
9 (अवेद) 1 (5) 5 (मनुष्य-गति, 1 कषाय, 1 लेश्या, असिद्धत्व, अज्ञान) 4 (4 कषाय)
9 (क्रोध-रहित) 3 (3 कषाय)
9 (मान-रहित) 2 (2 कषाय)
9 (माया-रहित) 1
10 1
11,12 1 (4) 4 (मनुष्य-गति, 1 लेश्या, असिद्धत्व, अज्ञान) 1
13 1 (3) 4 (मनुष्य-गति, 1 लेश्या, असिद्धत्व) 1
14 1 (2) 4 (मनुष्य-गति, असिद्धत्व) 1
गोम्मटसार कर्मकाण्ड -- गाथा 823

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गुणस्थानों में आलाप



+ गुणस्थानों में आलाप -
गुणस्थानों में आलाप

विशेष :

गुणस्थानों में आलाप
गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति प्राण संज्ञा गति इन्द्रिय काय योग वेद कषाय ज्ञान संयम दर्शन लेश्या भव्य सम्यक्त्व संज्ञी आहारक उपयोग
पर्याप्त १४ ६,५,४ १०|९,८|७,६|४ ११ (-३ मिश्र,का.) ३ + अप. ४, अक. द्रव्य ६, भाव ६
पर्याप्त (१,२,४,६,१३) ६,५,४ ७,७,६,५,४,३
अ.सं.
(३ मिश्र,का.) ३ + अप. ४, अक. (-मन:, विभं.) (सा.,छे.यथा., असं.) द्रव्य २ (का. शु.), भाव ६ (-स.मि.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य १४ ६,५,४, १०|७,९|७,८|६,७|५,६|४,४|३ १३ (-२ आ.द्विक) (अज्ञा.) (असं.) (च.अच.) ६,६ (मि.)
पर्याप्त ६,५,४ १०,९,८,७,६,४ १० (-३ मिश्र,आ.,का.) ६, ६
अपर्याप्त ६,५,४ ७,७,६,५,४,३ (२ मिश्र, का.) द्रव्य २ (का. शु.), भाव ६
सासादन सामान्य २ सं.पं.,सं.अ. ६|६ १०|७ १३ (-२ आ.द्विक) (अज्ञा.) (असं.) (च.अच.) ६,६
पर्याप्त (सं.प.) १० १० (-३ मिश्र,का.,आ.) (अज्ञा.) (असं.) (च.अच.) ६,६
अपर्याप्त (सं.अ.) (-नरक) (२ मिश्र,का.) (अज्ञा.) (असं.) (च.अच.) द्रव्य २ (का. शु.), भाव ६
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) १० १० (-३ मिश्र,का.,आ.) (मिश्र) (असं.) (च.अच.) ६,६
असंयत सम्यग्दृष्टि सामान्य (सं.प.,सं.अ.) ६|६ १०|७ १३ (-२ आ.द्विक) ६,६
पर्याप्त (सं.प.) १० १० (-३ मिश्र,का.,आ.) ६,६
अपर्याप्त (सं.अ.) (२ मिश्र,का.) (-स्त्री) द्रव्य २ (का. शु.), भाव ६
संयतासंयत (सं.प.) १० (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) ६,३
प्रमत्तसंयत (सं.प.,सं.अ.) ६|६ १०|७ ११ (-२ मिश्र,वै.,का.) ६,३
अप्रमत्तसंयत (सं.प.) १० (-आ.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) ६,३
अपूर्वकरण (सं.प.) १० (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) ६,१
अनिवृतिकरण प्रथम-भाग (सं.प.) १० (-आ.,भ.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) ६,१
द्वीतिय-भाग (सं.प.) १० (प.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) ६,१
तृतीय-भाग (सं.प.) १० (प.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (-क्रो.) ६,१
चतुर्थ-भाग (सं.प.) १० (प.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (-क्रो.,मा.) ६,१
पंचम-भाग (सं.प.) १० (प.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (लो.) ६,१
सूक्ष्मसाम्पराय (सं.प.) १० (सू.प.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (सू.लो.) ६,१
उपशान्तकषाय (सं.प.) १० (अ.सं) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (अक.) ६,१
क्षीणमोह (सं.प.) १० (क्षी.) (-३ मिश्र,वै.,का.,आ.) (अ.) (अक.) ६,१
सयोग-केवली (सं.प.) ४|२ (क्षी.) (२ मन,२ व.,२ औ.,का.) (अ.) (अक.) ६,१
अयोग-केवली (सं.प.) (क्षी.) (अयोग) (अ.) (अक.) ६,०
सिद्ध-परमेष्ठी (क्षी.) (सिद्ध) (अयोग) (अ.) (अक.)


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+ नरक में गुणस्थानों में आलाप -
नरक में गुणस्थानों में आलाप

विशेष :

गति मार्गणा के अनुवाद से नरकों में गुणस्थानों में आलाप
गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति प्राण संज्ञा गति इन्द्रिय काय योग वेद कषाय ज्ञान संयम दर्शन लेश्या भव्य सम्यक्त्व संज्ञी आहारक उपयोग
द्रव्य भाव
नारक सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
सासादन (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (स.मि.)
असंयत सम्यग्दृष्टि सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.)
(वै.मि.,का.)
प्रथम सामान्य
६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
सासादन (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (स.मि.)
असंयत सम्यग्दृष्टि सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
द्वीतीय सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य ६|६ १०|७ ११ (-२ औ.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.)
अपर्याप्त (सं.अ.) (अ.) (वै.मि.,का.)
सासादन (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) (प.) १० (४ म.,४ व.,वै.) (स.मि.)
असंयत सम्यग्दृष्टि १० ११ (-२ औ.,२ आ.)


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+ तिर्यन्चों में गुणस्थानों में आलाप -
तिर्यन्चों में गुणस्थानों में आलाप

विशेष :

गति मार्गणा के अनुवाद से तिर्यन्चों में गुणस्थानों में आलाप
गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति प्राण संज्ञा गति इन्द्रिय काय योग वेद कषाय ज्ञान संयम दर्शन लेश्या भव्य सम्यक्त्व संज्ञी आहारक उपयोग
प. अ. प. अ. द्रव्य भाव
सामान्य १४ ६,५,४ ६,५,४ १०,९,८,७,६,४ ७,७,६,५,४,३ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५,४ - १०,९,८,७,६,४ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५,४ - ७,७,६,५,४,३ (औ.मि., का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य १४ ६,५,४ ६,५,४ १०,९,८,७,६,४ ७,७,६,५,४,३ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५,४ - १०,९,८,७,६,४ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५,४ - ७,७,६,५,४,३ (औ.मि., का.)
सासादन सामान्य (सं.प.,सं.अ.) १० (पं.) (त्र.) ११ (-२ वै.,२ आ.) (सा.)
पर्याप्त (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.) (सा.)
अपर्याप्त (सं.अ.) - - (पं.) (त्र.) (औ.मि., का.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.) (सम्.)
असंयत सम्यग्दृष्टि सामान्य (सं.प.,सं.अ.) १० (पं.) (त्र.) ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त (सं.अ.) - - (पं.) (त्र.) (औ.मि., का.) (का.)
संयतासंयत (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.)
पंचेन्द्रिय सामान्य ६,५ ६,५ १०,९ ७,७ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५ - १०,९ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५ - ७,७ (औ.मि., का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य ६,५ ६,५ १०,९ ७,७ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५ - १०,९ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५ - ७,७ (औ.मि., का.)
लब्ध्यपर्याप्त (सं.अ.,अ.अ.) - ६,५ - ७,७ (पं.) (त्र.) (औ.मि., का.) (न.)
पं. योनिमती सामान्य ६,५ ६,५ १०,९ ७,७ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५ - १०,९ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५ - ७,७ (औ.मि., का.)
मिथ्यादृष्टि सामान्य ६,५ ६,५ १०,९ ७,७ ११ (-२ वै.,२ आ.)
पर्याप्त ६,५ - १०,९ - (४ म., ४ व. औ.)
अपर्याप्त - ६,५ - ७,७ (औ.मि., का.)
सासादन सामान्य (सं.प.,सं.अ.) १० (पं.) (त्र.) ११ (-२ वै.,२ आ.) (सा.)
पर्याप्त (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.) (सा.)
अपर्याप्त (सं.अ.) - - (पं.) (त्र.) (औ.मि., का.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.) (सम्.)
असंयत सम्यग्दृष्टि (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.)
संयतासंयत (सं.प.) - १० - (पं.) (त्र.) (४ म., ४ व. औ.)


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+ मनुष्यों में गुणस्थानों में आलाप -
मनुष्यों में गुणस्थानों में आलाप

विशेष :

गति मार्गणा के अनुवाद से मनुष्यों में गुणस्थानों में आलाप
गुणस्थान जीवसमास पर्याप्ति प्राण संज्ञा गति इन्द्रिय काय योग वेद कषाय ज्ञान संयम दर्शन लेश्या भव्य सम्यक्त्व संज्ञी आहारक उपयोग
प. अ. प. अ. द्रव्य भाव
सामान्य १४ १० ४, क्षी. १३ (-२ वै.) ३, अ. ४, अ. ६,अ. २, यु.
पर्याप्त १४ - १० - ४, क्षी. १३ (-२ वै.), १० (४ म., ४ व. औ., आ.) ३, अ. ४, अ. ६,अ.
अपर्याप्त (मि.,सा.,स.,प्र.,सयो.) - - ४, क्षी. (औ.मि., आ.मि., का.) ३, अ. ४, अ. (-वि.,मन:) २, यु.
मिथ्यादृष्टि सामान्य १० ११ (-२ वै., २ आ.)
पर्याप्त - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अपर्याप्त - - (औ.मि., का.)
सासादन सामान्य १० ११ (-२ वै., २ आ.) (सा.)
पर्याप्त - १० - (४ म., ४ व., औ.) (सा.)
अपर्याप्त - - (औ.मि., का.) (सा.)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि - १० - (४ म., ४ व., औ.) (सम्)
असंयत सम्यग्दृष्टि सामान्य १० ११ (-२ वै., २ आ.)
पर्याप्त - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अपर्याप्त - - (औ.मि., का.)
संयतासंयत - १० - (४ म., ४ व., औ.)
मनुष्यिनी सामान्य १४ १० ४, क्षी. ११ (-२ वै., २ आ.) १, अ. ४, अ. (-मन:) (-प.वि.) ६,अ. २, यु.
पर्याप्त १४ - १० - ४, क्षी. (४ म., ४ व., औ.) १, अ. ४, अ. (-मन:) (-प.वि.) ६,अ. २, यु.
अपर्याप्त (मि.,सा.,सयो.) - - (औ.मि., का.) (कुम.,कुश्रु.,के) २, यु.
मिथ्यादृष्टि सामान्य १० ११ (-२ वै., २ आ.)
पर्याप्त - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अपर्याप्त - - (औ.मि., का.) (कुम.,कुश्रु)
सासादन सामान्य १० ११ (-२ वै., २ आ.)
पर्याप्त - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अपर्याप्त - - (औ.मि., का.) (कुम.,कुश्रु)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि - १० - (४ म., ४ व., औ.)
असंयत सम्यग्दृष्टि - १० - (४ म., ४ व., औ.)
संयतासंयत - १० - (४ म., ४ व., औ.)
प्रमत्तसंयत - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अप्रमत्तसंयत - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अपूर्वकरण - १० - (४ म., ४ व., औ.)
अनिवृतिकरण प्रथम-भाग - १० - (४ म., ४ व., औ.)
द्वीतिय-भाग - १० - (४ म., ४ व., औ.)
तृतीय-भाग - १० - (४ म., ४ व., औ.) (-क्रो.)
चतुर्थ-भाग - १० - (४ म., ४ व., औ.) (मा.,लो.)
पंचम-भाग - १० - (४ म., ४ व., औ.) (लो.)
सूक्ष्मसाम्पराय - १० - (४ म., ४ व., औ.) (सू.लो.)
उपशान्तकषाय - १० - (४ म., ४ व., औ.)
क्षीणमोह - १० - (४ म., ४ व., औ.)
सयोग-केवली (२ म., २ व., २ औ., का.) २ यु.
अयोग-केवली - - (अना.) २ यु.
लब्ध्यपर्याप्त - - (औ.मि., का.)


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सत्-अनुगम



+ मार्गणा में भंग-विचय -
मार्गणा में भंग-विचय

विशेष :

नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय
मार्गणा प्रति-समय अस्तित्व
गति नारकी, तिर्यंच, देव नियम से हैं
मनुष्य पर्याप्त नियम से हैं
अपर्याप्त कथंचित हैं कथंचित नहीं
इन्द्रिय एकेंद्रिय सूक्ष्म-बादर, दो, तीन, चार, पंच इन्द्रिय पर्याप्त अपर्याप्त नियम से हैं
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, निगोद बादर-सूक्ष्म, पर्याप्त अपर्याप्त नियम से हैं
योग पांच मनोयोगी, पांच वचनयोगी, काययोगी, औदारिक, औदारिक-मिश्र, वैक्रियिक और कार्मण काययोगी नियम से हैं
वैक्रियिक-मिश्र, आहारक, आहारक-मिश्र कथंचित हैं कथंचित नहीं
वेद स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेदी और अपगत वेदी नियम से हैं
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ और अकषायी नियम से हैं
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्यय और केवलज्ञानी नियम से हैं
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार-विशुद्धि, यथाख्यात, संयता-संयत और असंयत नियम से हैं
सूक्ष्म-साम्परायिक कथंचित हैं कथंचित नहीं
दर्शन चक्षु, अचक्षु, अवधि और केवल नियम से हैं
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल नियम से हैं
भव्य भव्य-सिद्धिक, अभव्य-सिद्धिक नियम से हैं
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि, क्षायिक सम्यग्दृष्टि, वेदक सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि नियम से हैं
औपशमिक सम्यग्दृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि कथंचित हैं कथंचित नहीं
संज्ञी संज्ञी, असंज्ञी नियम से हैं
आहार आहारक, अनाहारक नियम से हैं


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+ मार्गणा का स्वामित्व -
मार्गणा का स्वामित्व

विशेष :

एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व
मार्गणा कारण
गति नरक नरक-गति नाम-कर्म का उदय
तिर्यंच तिर्यंच-गति नाम-कर्म का उदय
मनुष्य तिर्यंच-गति नाम-कर्म का उदय
देव देव-गति नाम-कर्म का उदय
सिद्ध क्षायिक लब्धि
इन्द्रिय एक, दो, तीन, चार, पंच इन्द्रिय क्षयोपशम लब्धि
अनिन्द्रिय क्षायिक लब्धि
काय पृथ्वीकायिक पृथ्वीकायिक (एकेंद्रिय जाति) नाम-कर्म का उदय
जलकायिक जलकायिक (एकेंद्रिय जाति) नाम-कर्म का उदय
अग्निकायिक अग्निकायिक (एकेंद्रिय जाति) नाम-कर्म का उदय
वायुकायिक वायुकायिक (एकेंद्रिय जाति) नाम-कर्म का उदय
वनस्पतिकायिक वनस्पतिकायिक (एकेंद्रिय जाति) नाम-कर्म का उदय
त्रसकायिक त्रसकायिक नाम-कर्म का उदय
अकायिक क्षायिक लब्धि
योग मन, वचन, काय योगी क्षयोपशम लब्धि
अयोगी क्षायिक लब्धि
वेद स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेदी चारित्र-मोहनीय कर्म का उदय
अपगत वेदी औपशमिक व क्षायिक लब्धि
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ चारित्र-मोहनीय कर्म का उदय
अकषायी औपशमिक व क्षायिक लब्धि
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगावधि, मतिज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मन:पर्यय क्षायोपशमिक लब्धि
केवलज्ञानी क्षायिक लब्धि
संयम संयत, सामायिक, छेदोपस्थापना औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक लब्धि
परिहार-विशुद्धि, संयता-संयत क्षायोपशमिक लब्धि
सूक्ष्म-साम्परायिक, यथाख्यात औपशमिक व क्षायिक लब्धि
असंयत संयम-घाति कर्म का उदय
दर्शन चक्षु, अचक्षु, अवधि क्षायोपशमिक लब्धि
केवल क्षायिक लब्धि
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, पीत, पद्म, शुक्ल औदयिक भाव
अलेश्यिक क्षायिक लब्धि
भव्य भव्य-सिद्धिक, अभव्य-सिद्धिक पारिणामिक भाव
न भव्य-सिद्धिक, न अभव्य-सिद्धिक क्षायिक लब्धि
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक लब्धि
क्षायिक सम्यग्दृष्टि क्षायिक लब्धि
वेदक सम्यग्दृष्टि क्षायोपशमिक लब्धि
औपशमिक सम्यग्दृष्टि औपशमिक लब्धि
सासादन सम्यग्दृष्टि पारिणामिक भाव
सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक लब्धि
मिथ्यादृष्टि मिथ्यात्व कर्म का उदय
संज्ञी संज्ञी क्षायोपशमिक लब्धि
असंज्ञी औदयिक भाव
न संज्ञी नअसंज्ञी क्षायिक लब्धि
आहार आहारक औदयिक भाव
अनाहारक औदयिक भाव तथा क्षायिक लब्धि


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संख्यानुगम



+ मार्गणा में द्रव्य-प्रमाणानुगम -
मार्गणा में द्रव्य-प्रमाणानुगम

विशेष :

द्रव्य-प्रमाणानुगम
मार्गणा प्रमाण
गति नारकी सामान्य द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र असंख्यात जगत्श्रेणी
तिर्यंच सामान्य द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
पंचेन्द्रिय द्रव्य असंख्यात
काल असंख्याता-असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
मनुष्य सामान्य द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र जगत्श्रेणी का असंख्यातवां भाग
पर्याप्त द्रव्य > कोडाकोडाकोड़ी < कोड़ाकोडाकोडाकोड़ी, छठे और सातवें वर्ग के बीच
देव सामान्य द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र जगत्प्रतर / ( (२५६ अंगुल)^२)
भवनावासी द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र असंख्यात जगत्श्रेणी, जगत्प्रतर का असंख्यातवां भाग
व्यन्तर द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र जगत्प्रतर / ( (संख्यात सौ योजन)^२)
ज्योतिषी देवों के समान
सौधर्म-ईशान द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र असंख्यात जगत्श्रेणी, जगत्प्रतर का असंख्यातवां भाग
सनत्कुमार, माहेन्द्र ?
ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर ?
लान्तव, कापिष्ठ ?
शुक्र, महाशुक्र ?
शतार, सहस्रार ?
आनत-अपराजित द्रव्य पल्य के असंख्यातवें भाग
काल ?
सर्वार्थसिद्धि द्रव्य संख्यात
इन्द्रिय एकेन्द्रिय द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
दो, तीन, चार, पंचेन्द्रिय द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र ?
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, बादर वनस्पति प्रत्येक द्रव्य असंख्यात लोकप्रमाण
पृथ्वी, जल, प्रत्येक वनस्पति बादर, पर्याप्त द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र ?
अग्नि द्रव्य असंख्यात, ?
वायु द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र असंख्यात जगत्प्रतर, लोक का असंख्यातवां भाग
वनस्पति निगोद द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
त्रस द्रव्य असंख्यात
योग मनोयोगी, (सत्य, असत्य, उभय) वचनयोगी द्रव्य देवों का संख्यातवां भाग
वचनयोगी, अनुभय वचनयोगी द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र ?
काययोगी, (औदारिक, औदारिक-मिश्र, कार्मण) काययोगी द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
वैक्रियिक देव-राशि - (देव-राशि / संख्यात)
वैक्रियिक-मिश्र देव-राशि / संख्यात
आहारक 54
आहारक-मिश्र संख्यात
वेद स्त्री देवियों से कुछ अधिक
पुरुष देवों से कुछ अधिक
नपुंसक द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
अपगत-वेद अनन्त
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
अकषाय अनन्त
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी नपुंसक वेदी जीवों के समान, अनन्त
विभंगावधि देवों से कुछ अधिक
मति, श्रुत, अवधि द्रव्य पल्य के असंख्यातवें भाग
काल आवली का असंख्यातवां भाग, अंतर्मुहूर्त
मन:पर्यय संख्यात
केवल अनन्त
संयम संयत, सामायिक, छेदोपस्थापना पृथक्त्व कोटि
परिहार-विशुद्धि पृथक्त्व सहस्र
सूक्ष्म-साम्परायिक पृथक्त्व शत
यथाख्यात-विहार-शुद्धि पृथक्त्व शत सहस्र
संयातासंयत पल्य के असंख्यातवें भाग
असंयत मत्यज्ञानी के समान, अनन्त
दर्शन चक्षु-दर्शन द्रव्य असंख्यात
काल असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र ?
अचक्षु-दर्शन असंयतों के समान, अनन्त
केवल-दर्शन केवल-ज्ञानियों के समान, अनन्त
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत असंयतों के समान, अनन्त
पीत (तेजो) ज्योतिषी देवों के समान, असंख्यात
पद्म संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिनीयों के संख्यातवें भाग
शुक्ल पल्य के असंख्यातावें भाग
भव्य भव्यसिद्धिक द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण
अभव्यसिद्धिक अनन्त
सम्यक्त्व सम्यक्त्वी, उपशम, क्षायिक, वेदक, सासादन-सम्यक्त्वी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि पल्य के असंख्यातावें भाग
मिथ्यादृष्टि असंयमियों के समान, अनन्त
संज्ञी संज्ञी देवों से कुछ अधिक, असंख्यात
असंज्ञी असंयमियों के समान, अनन्त
आहार आहारक / अनाहारक द्रव्य अनन्त
काल > अनन्तानन्त अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
क्षेत्र अनन्तानन्त लोकप्रमाण


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+ वैमानिक देवों की संख्या -
वैमानिक देवों की संख्या

विशेष :

ऊर्ध्व लोक के वैमानिक देव
अल्प बहुत्व संख्या
5 अनुत्तर पल्य के असंख्यातवें भाग पल्य के असंख्यातवें भाग
9 अनुदिश ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
3 उपरिम ग्रैवेयक ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
3 मध्यम ग्रैवेयक ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
3 अधो ग्रैवेयक ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
आरण अच्युत ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
आनत प्राणत ऊपर से संख्यात गुणा पल्य के असंख्यातवें भाग
शतार सहस्रार ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 23(जगतश्रेणी)
शुक्र महाशुक्र ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 25(जगतश्रेणी)
लांतव कापिष्ठ ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 27(जगतश्रेणी)
ब्रह्म ब्रह्मोत्तर ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 29(जगतश्रेणी)
सानत्कुमार माहेन्द्र ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 211(जगतश्रेणी)
सौधर्म ईशान ऊपर से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी x 23(घनांगुल)
(आधार: श्री कार्तिकेयअनुप्रेक्षा, गाथा: 158, श्री गोम्मटसार, गाथा : 161,162)

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+ नारकियों की संख्या -
नारकियों की संख्या

विशेष :

अधोलोक में नारकियों की संख्या
अल्प बहुत्व संख्या
1 - धम्मा नीचे से असंख्यात गुणा (जगतश्रेणी x 22(घनांगुल - शेष नारकी
2 - वंशा नीचे से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 212(जगतश्रेणी)
3 - मेघा नीचे से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 210(जगतश्रेणी)
4 - अंजना नीचे से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 28(जगतश्रेणी)
5 - अरिष्टा नीचे से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 26(जगतश्रेणी)
6 - मघवा नीचे से असंख्यात गुणा जगतश्रेणी / 23(जगतश्रेणी)
7 - माधवी असंख्यात जगतश्रेणी / 22(जगतश्रेणी)
(आधार: श्री कार्तिकेयअनुप्रेक्षा, गाथा: 159, श्री गोम्मटसार, गाथा : 153,154)


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क्षेत्रानुगम



+ मार्गणा में क्षेत्रानुगम -
मार्गणा में क्षेत्रानुगम

विशेष :

क्षेत्रानुगम
मार्गणा क्षेत्र
गति नारकी सामान्य २ स्वस्थान, ४ समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
तिर्यंच सामान्य २ स्वस्थान, ४ समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
पंचेन्द्रिय लोक का असंख्यातवां भाग
मनुष्य पर्याप्त स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
पर्याप्त समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
अपर्याप्त स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
देव सामान्य स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
इन्द्रिय एकेन्द्रिय पर्याप्त / अपर्याप्त / सूक्ष्म स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
एकेन्द्रिय पर्याप्त / अपर्याप्त / बादर स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
दो, तीन, चार स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
पंचेन्द्रिय पर्याप्त स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
अपर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु सूक्ष्म / पर्याप्त / अपर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
पृथ्वी, जल, अग्नि, प्रत्येक वनस्पति बादर, अपर्याप्त स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
बादर, पर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
वायु बादर, अपर्याप्त स्वस्थान लोक के संख्यातवें भाग
समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
बादर, पर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक के संख्यातवें भाग
वनस्पति निगोद / पर्याप्त / अपर्याप्त / सूक्ष्म स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
बादर (निगोद / पर्याप्त / अपर्याप्त) स्वस्थान लोक के संख्यातवें भाग
समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
त्रस पर्याप्त स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
अपर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
योग पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
काययोगी, औदारिक-मिश्र काययोगी स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
औदारिक काययोगी स्वस्थान, समुद्घात सर्वलोक
वैक्रियिक स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
वैक्रियिक-मिश्र स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
आहारक स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
आहारक-मिश्र स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
कार्मण काययोग सर्वलोक
वेद पुरुष, स्त्री स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
नपुंसक स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
अपगत-वेद स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
अकषाय स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद नपुंसक वेदी जीवों के समान, अनन्त
विभंगावधि, मन:पर्यय स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
मति, श्रुत, अवधि स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
केवल स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
संयम संयत, यथाख्यात-विहार-शुद्धि स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहार-विशुद्धि, सूक्ष्म-साम्परायिक, संयातासंयत स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
असंयत स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
दर्शन चक्षु-दर्शन स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
कथंचित उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
अचक्षु-दर्शन स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
अवधि स्वस्थान, समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग
केवल-दर्शन स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
पीत (तेजो), पद्म स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
शुक्ल स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
भव्य भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
सम्यक्त्व सम्यक्त्वी, क्षायिक स्वस्थान, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
समुद्घात लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
उपशम, वेदक, सासादन-सम्यक्त्वी स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
सम्यग्मिथ्यादृष्टि स्वस्थान लोक का असंख्यातवां भाग
मिथ्यादृष्टि स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
संज्ञी संज्ञी स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद लोक का असंख्यातवां भाग
असंज्ञी सर्वलोक
आहार आहारक स्वस्थान, समुद्घात, उपपाद सर्वलोक
अनाहारक सर्वलोक


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+ जीवों का वर्तमान निवास-स्थान / अवस्था -
जीवों का वर्तमान निवास-स्थान / अवस्था

विशेष :

मार्गणा जीवों का वर्तमान निवास-स्थान / अवस्था
स्वस्थान समुद्घात उपपाद
स्व.स्व. वि.स्व. वेदना कषाय वैक्रियिक तैजस आहारक मारणा. केवली
नारकी, तिर्यंच (पंचेन्द्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त, योनिमती), देव, उपशम सम्यक्त्व, सासादन, स्त्रीवेद, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, लेश्या (कृष्ण, नील, कापोत), अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी X X X
पुरुषवेद, वेदक सम्यक्त्व, लेश्या (पीत, पद्म), क्रोध, मान, माया लोभ X
मनुष्यनी X X
अकषायी, अपगत वेद, यथाख्यात संयत X X X X X X
पर्याप्त (मनुष्य, पंचेंद्रिय, त्रस), शुक्ल लेश्या, क्षायिक सम्यक्त्व
वैक्रियिक काययोग, विभंगज्ञान X X X X
विकलत्रय पर्याप्त X X X X
त्रस लब्ध्यपर्याप्त, बादर पर्याप्त (पृथ्वी, जल), सप्रतिष्टित प्रत्येक वनस्पति पर्याप्त X X X X X
संयत X
सामायिक, छेदोपस्थापना X X
संयतासंयत, परिहारविशुद्धि X X X X
सम्यग्मिथ्यादृष्टि X X X X X
आहारक काययोग X X X X X X
आहारकमिश्र X X X X X X X X X
सूक्ष्मसांपराय X X X X X X X X
बादर एकेन्द्रीय पर्याप्त (तेजस्कायिक, वायुकायिक) X X X X
सूक्ष्म, निगोद, एकेन्द्रिय अपर्याप्त X X X X X
स्व.स्व. = स्वस्थान-स्वस्थान, वि.स्व. = विहारवत स्वस्थान, मारणा. = मारणांतिक

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स्पर्शानुगम



+ गुणस्थानों में स्पर्श -
गुणस्थानों में स्पर्श

विशेष :

गुणस्थानों (सामान्य/ओघ) में स्पर्श
गुणस्थान स्पर्श
मिथ्यादृष्टि सर्व-लोक
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, कुछ कम १२/१४ भाग
मिश्र, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
प्रमत्त, अप्रमत्त, चारों उपशमक, चारों क्षपक, अयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग, असंख्यातवां बहुभाग, सर्व-लोक

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+ मार्गणा में स्पर्शानुगम -
मार्गणा में स्पर्शानुगम

विशेष :

स्पर्शानुगम
मार्गणा गुणस्थान स्पर्श
गति नरक सामान्य मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ५/१४ भाग
मिथ्यादृष्टि से असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
२-६ मिथ्यादृष्टि, सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम १,२,३,४,५ भाग
मिश्र, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
सासादन, मिश्र, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
तिर्यंच मिथ्यादृष्टि सर्व-लोक
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ७/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग
असंयत, संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
लब्ध्यपर्याप्त लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
मनुष्य मनुष्य, मनुष्य-पर्याप्त, मनुष्यिनी मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
मनुष्य, मनुष्य-पर्याप्त, मनुष्यिनी सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ७/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
लब्ध्यपर्याप्त लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
देव सामान्य मिथ्यादृष्टि, सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, कुछ कम ९/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
भवनवासी, व्यंतर, ज्योतिष मिथ्यादृष्टि, सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, लोकनाली के साढ़े तीन, आठ, नौ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम ८/१४ भाग
सौधर्म, ईशान मिथ्यादृष्टि से असंयत ओघ के समान
सनत्कुमार से सहस्रार मिथ्यादृष्टि से असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
आनत से अच्युत मिथ्यादृष्टि से असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
नौ-ग्रैवेयक मिथ्यादृष्टि से असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
नौ-अनुदिश, पांच अनुत्तर असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
इन्द्रिय एकेंद्रिय पर्याप्त / अपर्याप्त, बादर / सूक्ष्म सर्व-लोक
२-४ इन्द्रिय पर्याप्त / अपर्याप्त सर्व-लोक
पंचेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
सासादन से अयोग-केवली ओघ के समान
लब्ध्यपर्याप्त लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
काय स्थावर पर्याप्त / अपर्याप्त (बादर / सूक्ष्म, (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु), बादर प्रत्येक वनस्पति) सर्व-लोक
बादर पर्याप्त (पृथ्वी, जल, अग्नि, प्रत्येक वनस्पति) लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
बादर पर्याप्त वायुकायिक लोक का असंख्यातवां भाग, सर्व-लोक
(बादर / सूक्ष्म / पर्याप्त / अपर्याप्त) वनस्पतिकायिक / निगोद सर्व-लोक
त्रस पर्याप्त मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के समान
योग पांच मन, पांच वचन मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, सर्व-लोक
सासादन से संयता-संयत ओघ के समान
प्रमत्त-संयत से सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
काय सामान्य मिथ्यादृष्टि ओघ के समान (सर्व-लोक)
सासादन से क्षीण-कषाय ओघ के समान
सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग / लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
औदारिक मिथ्यादृष्टि ओघ के समान (सर्व-लोक)
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ७/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग
असंयत, संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
प्रमत्त-संयत से सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
औदारिक-मिश्र मिथ्यादृष्टि ओघ के समान (सर्व-लोक)
सासादन, असंयत, सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
वैक्रियिक मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, कुछ कम १३/१४ भाग,
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत ओघ के समान
वैक्रियिक-मिश्र मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
आहारक, आहारक-मिश्र प्रमत्त-संयत लोक का असंख्यातवां भाग
कार्मण मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ११/१४ भाग
असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
सयोग-केवली लोक का असंख्यात बहुभाग / सर्वलोक
वेद स्त्री-पुरुष मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, कुछ कम ९/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
प्रमत्त-संयत से अनिवृत्तिकरण लोक का असंख्यातवां भाग
नपुंसक मिथ्यादृष्टि ओघ के समान (सर्व-लोक)
सासादन
लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम १२/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग
असंयत, संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
प्रमत्त-संयत से अनिवृत्तिकरण लोक का असंख्यातवां भाग
अपगत अनिवृत्तिकरण से अयोग-केवली ओघ के समान
सयोग-केवली ओघ के समान
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
लोभ सूक्ष्म-साम्पराय ओघ के समान
अकषायी उपशान्त-कषाय आदि ४ ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
सासादन ओघ के समान
विभंगज्ञानी मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, सर्वलोक
सासादन ओघ के समान
आभिनिबोधिक, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी असंयत से क्षीण-कषाय ओघ के समान
मन:पर्यय प्रमत्त-संयत से क्षीण-कषाय ओघ के समान
केवलज्ञानी सयोग-केवली ओघ के समान
अयोग-केवली ओघ के समान
संयम सामान्य प्रमत्त-संयत से अयोग-केवली ओघ के समान
सयोग-केवली ओघ के समान
सामायिक, छेदोपस्थापना प्रमत्त-संयत से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
परिहार-विशुद्धि प्रमत्त, अप्रमत्त-संयत लोक का असंख्यातवां भाग
सूक्ष्म-साम्पराय क्षपक / उपशम सूक्ष्म-साम्पराय ओघ के समान
यथाख्यात उपशान्त-कषाय आदि ४ ओघ के समान
संयता-संयत ओघ के समान
असंयत मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
दर्शन चक्षु मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, सर्वलोक
सासादन से क्षीण-कषाय ओघ के समान
अचक्षु मिथ्यादृष्टि से क्षीण-कषाय ओघ के समान
अवधि अवधि-ज्ञानियों के समान
केवल अयोग, सयोग-केवली केवल-ज्ञानियों के समान
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ५/१४,४/१४,२/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत लोक का असंख्यातवां भाग
पीत मिथ्यादृष्टि, सासादन लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४,९/१४ भाग
सम्यग्मिथ्यादृष्टि,असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम डेढ़/१४ भाग
प्रमत्त, अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
पद्म मिथ्यादृष्टि से असंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग
संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ५/१४ भाग
प्रमत्त, अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
शुक्ल मिथ्यादृष्टि से संयतासंयत लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ६/१४ भाग
प्रमत्त-संयत से सयोग केवली ओघ के समान
भव्य भव्य मिथ्यादृष्टि से अयोग केवली ओघ के समान
अभव्य सर्व-लोक
सम्यक्त्व सामान्य असंयत से अयोग केवली ओघ के समान
क्षायिक असंयत ओघ के समान
संयतासंयत से अयोग केवली लोक का असंख्यातवां भाग
सयोग केवली ओघ के समान
वेदक असंयत से अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
औपशमिक असंयत ओघ के समान
संयतासंयत से उपशान्त-कषाय लोक का असंख्यातवां भाग
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
संज्ञी संज्ञी मिथ्यादृष्टि लोक का असंख्यातवां भाग, कुछ कम ८/१४ भाग, सर्वलोक
सासादन से क्षीण-कषाय ओघ के समान
असंज्ञी सर्व-लोक
आहार आहारक मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
सासादन से संयतासंयत ओघ के समान
प्रमत्त-संयत से सयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग
अनाहारक मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत, सयोग-केवली कार्मण-काययोगी जीवों के समान
अयोग-केवली लोक का असंख्यातवां भाग


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कालानुगम



+ गुणस्थानों में काल -
गुणस्थानों में काल

विशेष :

गुणस्थान (सामान्य/ओघ) में काल
गुणस्थान नाना जीव अपेक्षा काल एक जीव अपेक्षा काल
जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट
मिथ्यादृष्टि सर्व-काल *अंतर्मुहूर्त *कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
सासादन एक समय पल्य का असंख्यातवां भाग एक समय छह आवली
मिश्र अंतर्मुहूर्त पल्य का असंख्यातवां भाग अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
असंयत सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि - ९ अंतर्मुहूर्त + ३३ सागर
संयतासंयत सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि - ३ अंतर्मुहूर्त
प्रमत्त-अप्रमत्तसंयत सर्व-काल एक समय अंतर्मुहूर्त
चारों उपशमक एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
चारों क्षपक, अयोग-केवली अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सयोग- केवली सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि - (८ वर्ष + ८ अंतर्मुहूर्त)
*सादि-सांत मिथ्यादृष्टि की अपेक्षा


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+ मार्गणा में कालानुगम -
मार्गणा में कालानुगम

विशेष :

मार्गणा गुणस्थान नाना जीव अपेक्षा काल एक जीव अपेक्षा काल
जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट
गति नरक सामान्य मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३३ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३३ सागर - ६ अंतर्मुहूर्त
१ से ७ मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त १,३,७,१०,१७,२२,३३ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ( (१,३,७,१०,१७,२२ सागर) - ३ समय), (३३ सागर - ६ समय)
तिर्यंच सामान्य मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त अनन्त (असंख्यात (आवली के असंख्यात भाग) पुद्गल परिवर्तन)
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त तीन पल्य
संयतासंयत सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पूर्व-कोटि - ३ अंतर्मुहूर्त
पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, पंचेन्द्रिय योनिनी मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व (९५, ४७, १५) पूर्व-कोटि + ३ पल्य
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३ पल्य, ३ पल्य, ३ पल्य - (२ मास + पृथक्त्व अंतर्मुहूर्त)
संयतासंयत ओघ के समान
पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
मनुष्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व (४७, २३, ७) पूर्व-कोटि + ३ पल्य
सासादन एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय छह आवली
सम्यग्मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहूर्त
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त साधिक (कुछ-कम १/३ पूर्व कोटि) ३ पल्य, साधिक ३ पल्य , ३ पल्य - (९ मास +
४९ दिन)
संयतासंयत से अयोग-केवली ओघ के समान
लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल पल्य का असंख्यातवां भाग क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
देव सामान्य मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३१ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३३ सागर
भवनवासी से सहस्रार मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त साधिक-सागर, साधिक-पल्य, साधिक २, ७, १०, १४, १६, १८ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
आनत से नव ग्रैवेयक मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त २०, २२, २३, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
नौ अनुदिश, चार अनुत्तर असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल ३१ सागर+१ समय, ३२ सागर+१ समय ३२ सागर, ३३ सागर
सर्वार्थसिद्धि असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल ३३ सागर
इन्द्रिय एकेंद्रिय सामान्य सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात (आवली के असंख्यात भाग) पुद्गल परिवर्तन)
बादर
सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल
बादर-पर्याप्त
सर्व-काल अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
बादर-लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल
क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
सूक्ष्म सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
सूक्ष्म-पर्याप्त सर्व-काल अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सूक्ष्म-लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
२,३,४ २,३,४ और २,३,४ पर्याप्तक सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल, अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
५ और ५ पर्याप्त मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व पूर्व-कोटी + (१००० सागर, पृथक्त्व सौ सागर)
सासादन से अयोग-केवली ओघ के समान
लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, प्रत्येक वनस्पति बादर सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल कर्म-स्तिथि प्रमाण
बादर पर्याप्त सर्व-काल अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, निगोद पर्याप्त, अपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
वनस्पति सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात (आवली के असंख्यात भाग) पुद्गल परिवर्तन)
निगोद सामान्य सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अढाई पुद्गल परिवर्तन
बादर सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल कर्म-स्तिथि प्रमाण
त्रस त्रस और पर्याप्त मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त २००० सागर + पृथक्त्व पूर्व-कोटि, २००० सागर
सासादन से अयोग-केवली ओघ के समान
लब्ध्यपर्याप्त सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
योग ५ मन, ५ वचन मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्त-संयत, अप्रमत्त-संयत, सयोग-केवली सर्व-काल एक समय एक समय
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि एक समय पल्य का असंख्यातवां भाग एक समय अंतर्मुहूर्त
चारों उपशमक और क्षपक एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
काय सामान्य मिथ्यादृष्टि सर्व-काल एक समय अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
सासादन से सयोग-केवली मनोयोगी के समान
औदारिक मिथ्यादृष्टि सर्व-काल एक समय कुछ कम २२ हजार वर्ष
औदारिक-मिश्र मिथ्यादृष्टि सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल - ३ समय अंतर्मुहूर्त
सासादन एक समय पल्य का असंख्यातवां भाग एक समय छह आवली - एक समय
असंयत सम्यग्दृष्टि अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सयोग-केवली एक समय संख्यात समय एक समय
वैक्रियिक मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल एक समय अंतर्मुहूर्त
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनोयोगी के समान
वैक्रियिक-मिश्र मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि अंतर्मुहूर्त पल्य का असंख्यातवां भाग अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सासादन एक समय पल्य का असंख्यातवां भाग एक समय छह आवली - एक समय
आहारक प्रमत्त-संयत एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
आहारक-मिश्र अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
कार्मण मिथ्यादृष्टि सर्व-काल एक समय तीन समय
सासादन, असंयत सम्यग्दृष्टि एक समय आवली का असंख्यातवां भाग एक समय दो समय
सयोग-केवली तीन समय संख्यात समय तीन समय
वेद स्त्री मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व सौ पल्य
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ५५ पल्य - ३ अंतर्मुहूर्त
संयतासंयत से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
पुरुष मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व सौ सागर
सासादन से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
नपुंसक मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३३ सागर - ६ सागर
संयतासंयत से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
अपगत अनिवृत्तिकरण के अवेद भाव से अयोग-केवली ओघ के समान
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ मिथ्यादृष्टि से अप्रमत्त-संयत मनोयोगी के समान
क्रोध, मान, माया लोभ / लोभ २ या ३ उपशामक एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
क्रोध, मान, माया लोभ / लोभ २ या ३ क्षपक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
अकषायी अंतिम चार गुणस्थान ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
सासादन ओघ के समान
मति-श्रुत-अवधि असंयत सम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
मन:पर्यय प्रमत्त-संयत से क्षीणकषाय ओघ के समान
केवल सयोग-केवली, अयोग-केवली ओघ के समान
संयम संयत प्रमत्त-संयत से अयोग-केवली ओघ के समान
सामायिक, छेदोपस्थापना प्रमत्त-संयत से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
परिहारिविशुद्धि प्रमत्त-संयत, अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
सूक्ष्म-साम्परायिक सुद्धि संयत सूक्ष्म-साम्पराय उपशामक / क्षपक ओघ के समान
यथाख्यात अंतिम चार गुणस्थान ओघ के समान
संयतासंयत ओघ के समान
असंयत मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
दर्शन चक्षु-दर्शन मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त २००० सागर
सासादन से क्षीणकषाय ओघ के समान
अचक्षु-दर्शन मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
अवधि ओघ के समान
केवल ओघ के समान
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त (३३ सागर, १७ सागर, ७ सागर ) + २ अंतर्मुहूर्त
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त ३३ सागर - ६ अंतर्मुहूर्त, १७ सागर - २ अंतर्मुहूर्त, ७ सागर - २ अंतर्मुहूर्त
तेज, पद्म मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त २ सागर + अंतर्मुहूर्त, कुछ अधिक १८ सागर
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
संयतासंयत से अप्रमत्त-संयत सर्व-काल एक समय अंतर्मुहूर्त
शुक्ल मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त कुछ अधिक ३१ सागर
सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
संयतासंयत से अप्रमत्त-संयत सर्व-काल एक समय अंतर्मुहूर्त
चारों उपशामक और क्षपक, सयोग-केवली ओघ के समान
भव्य भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
सासादन से अयोग-केवली ओघ के समान
अभव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अनादि-अनन्त
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंयत सम्यग्दृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
वेदक असंयत सम्यग्दृष्टि से अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
उपशम असंयत सम्यग्दृष्टि, संयतासंयत अंतर्मुहूर्त पल्य का असंख्यातवां भाग अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
प्रमत्त-संयत से उपशान्त-कषाय एक समय अंतर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
सासादन ओघ के समान
सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
संज्ञी संज्ञी मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व सौ सागर
सासादन से क्षीणकषाय ओघ के समान
असंज्ञी सर्व-काल क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
आहार आहारक मिथ्यादृष्टि सर्व-काल अंतर्मुहूर्त असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल
सासादन से सयोग-केवली ओघ के समान
अनाहारक मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत सम्यग्दृष्टि, सयोग-केवली कार्मण-काययोगी के समान
अयोग-केवली ओघ के समान

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भावानुगम



+ मार्गणा में भावानुगम -
मार्गणा में भावानुगम

विशेष :

मार्गणा विशेष गुणस्थान भाव
गति नरक सामान्य मिथ्यादृष्टि औदयिक
सासादन पारिणामिक
सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशामिक
असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक
असंयतत्व औदयिक
सामान्य के समान
२ से ७ मिथ्यादृष्टि, सासादन, सम्यग्मिथ्यादृष्टि ओघ के समान
असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायोपशमिक
तिर्यंच पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त, पंचेन्द्रिय योनिनी मिथ्यादृष्टि से संयतासंयत ओघ के समान
पंचेन्द्रिय योनिनी असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायोपशमिक
असंयतत्व औदयिक
मनुष्य मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यिनी मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
देव सामान्य मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिष देव देवियाँ सौधर्म, ईशान देवियाँ असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायोपशमिक
सौधर्म से नव ग्रेवैयिक देव मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
अनुदिश से सर्वार्थसिद्धि असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक
इन्द्रिय पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
काय त्रस त्रस और पर्याप्त मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
योग काय औदारिक-मिश्र असंयत सम्यग्दृष्टि क्षायिक, क्षायोपशमिक
सयोग-केवली क्षायिक
आहारक, आहारक-मिश्र प्रमत्त-संयत क्षायोपशमिक
वेद स्त्री, पुरुष, नपुंसक मिथ्यादृष्टि से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
अपगत अनिवृत्तिकरण के अवेद भाव से अयोग-केवली ओघ के समान
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ मिथ्यादृष्टि से सूक्ष्म-साम्पराय, उपशमक / क्षपक ओघ के समान
अकषायी अंतिम चार गुणस्थान ओघ के समान
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुताज्ञानी, विभंग मिथ्यादृष्टि, सासादन ओघ के समान
मति-श्रुत-अवधि असंयत सम्यग्दृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
मन:पर्यय प्रमत्त-संयत से क्षीणकषाय ओघ के समान
केवल सयोग-केवली, अयोग-केवली ओघ के समान
संयम संयत प्रमत्त-संयत से अयोग-केवली ओघ के समान
सामायिक, छेदोपस्थापना प्रमत्त-संयत से अनिवृत्तिकरण ओघ के समान
परिहारिविशुद्धि प्रमत्त-संयत, अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
सूक्ष्म-साम्परायिक सुद्धि संयत सूक्ष्म-साम्पराय उपशामक / क्षपक ओघ के समान
यथाख्यात अंतिम चार गुणस्थान ओघ के समान
संयतासंयत ओघ के समान
असंयत मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
दर्शन चक्षु-दर्शन मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
अचक्षु-दर्शन मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
अवधि अवधि-ज्ञानियों के समान
केवल केवलज्ञानियों के समान
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत मिथ्यादृष्टि से असंयत सम्यग्दृष्टि ओघ के समान
तेज, पद्म मिथ्यादृष्टि, से अप्रमत्त-संयत ओघ के समान
शुक्ल मिथ्यादृष्टि से सयोग-केवली ओघ के समान
भव्य भव्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि से अयोग-केवली ओघ के समान
अभव्यसिद्धिक पारिणामिक
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि असंयत सम्यग्दृष्टि क्षायिक
संयतासंयत से अप्रमत्त-संयत क्षायोपशमिक
उपशामक औपशमिक
क्षपक, सयोग-केवली, अयोग-केवली क्षायिक
वेदक असंयत सम्यग्दृष्टि क्षायोपशमिक
संयतासंयत से अप्रमत्त-संयत क्षायोपशमिक
उपशम असंयत सम्यग्दृष्टि औपशमिक
संयतासंयत से अप्रमत्त-संयत औपशमिक
उपशामक औपशमिक
सासादन पारिणामिक
सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक
मिथ्यादृष्टि औदयिक
संज्ञी संज्ञी मिथ्यादृष्टि से क्षीणकषाय ओघ के समान
असंज्ञी औदयिक
आहार आहारक मिथ्यादृष्टि से सयोग-केवली ओघ के समान
अनाहारक मिथ्यादृष्टि, सासादन, असंयत सम्यग्दृष्टि, सयोग-केवली कार्मण-काययोगी के समान
अयोग-केवली क्षायिक

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अन्तरानुगम



+ गुणस्थानों में अंतर -
गुणस्थानों में अंतर

विशेष :

गुणस्थान (सामान्य/ओघ) में अन्तर
गुणस्थान नाना जीव अपेक्षा एक जीव अपेक्षा
जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट
मिथ्यादृष्टि निरंतर अंतर्मुहूर्त कुछ कम २*६६ सागर
सासादन १ समय पल्य का असंख्यातवां भाग पल्य का असंख्यातवां भाग अर्धपुद्गल परिवर्तन - (१४ अंतर्मुहूर्त - १ समय)
मिश्र १ समय पल्य का असंख्यातवां भाग अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (१४ अंतर्मुहूर्त)
असंयत निरंतर अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (११ अंतर्मुहूर्त)
संयतासंयत निरंतर अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (११ अंतर्मुहूर्त)
प्रमत्त निरंतर अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (१० अंतर्मुहूर्त)
अप्रमत्त निरंतर अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (१० अंतर्मुहूर्त)
चारों उपशमक १ समय पृथक्त्व वर्ष अंतर्मुहूर्त अर्धपुद्गल परिवर्तन - (२८, २६, २४, २२ अंतर्मुहूर्त)
चारों क्षपक, अयोग-केवली १ समय छह मास निरंतर
सयोग- केवली निरंतर

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+ मार्गणा में अन्तरानुगम -
मार्गणा में अन्तरानुगम

विशेष :

एक जीव की अपेक्षा अन्तरानुगम
मार्गणा जघन्य उत्कृष्ट
गति नरक अंतर्मुहर्त अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
तिर्यंच अंतर्मुहर्त (क्षुद्र-भव ग्रहण काल) पृथक्त्व सौ सागर
मनुष्य / पंचेन्द्रिय तिर्यंच अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
देव ईशान तक अंतर्मुहर्त
सनत्कुमार-माहेन्द्र पृथक्त्व मुहर्त
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर पृथक्त्व दिवस
शुक्र-महाशुक्र पृथक्त्व पक्ष
आनत-अच्युत पृथक्त्व मास
नौ-ग्रैवेयक पृथक्त्व वर्ष
अनुदिश-अपराजित साधिक दो सागर
सर्वार्थ-सिद्धि - -
इन्द्रिय एकेंद्रिय सामान्य अंतर्मुहर्त (क्षुद्र-भव ग्रहण काल) पृथक्त्व पूर्व-कोटि + दो हजार सागर
बादर असंख्यात लोकप्रमाण काल
सूक्ष्म असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल
दो-पांच इन्द्रिय अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु अंतर्मुहर्त (क्षुद्र-भव ग्रहण काल) अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
वनस्पति निगोदिया असंख्यात लोकप्रमाण काल
प्रत्येक ढाई पुद्गल परिवर्तन
त्रस अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
योग मन, वचन अंतर्मुहर्त अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
काय सामान्य एक समय अंतर्मुहर्त
औदारिक, औदारिक-मिश्र ९ अंतर्मुहर्त + २ समय + ३३ सागर
वैक्रियिक अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
वैक्रियिक-मिश्र साधिक १० हजार वर्ष
आहारक, आहारक-मिश्र अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
कार्मण तीन समय कम क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी
वेद स्त्री क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
पुरुष एक समय
नपुंसक अंतर्मुहर्त पृथक्त्व सौ सागर
अपगत-वेद उपशम अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
क्षपक - -
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ एक समय अंतर्मुहर्त
अकषायी अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी अंतर्मुहर्त कुछ कम १३२ सागर
विभंगावधि अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
मति-श्रुत-अवधि-मन:पर्यय कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
केवलज्ञान - -
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारिविशुद्धि अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
सूक्ष्म-साम्पराय, यथाख्यात उपशम श्रेणी
क्षपक - -
असंयत अंतर्मुहर्त कुछ कम पूर्व-कोटि
दर्शन चक्षु-दर्शन अंतर्मुहर्त अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
अचक्षु-दर्शन - -
अवधि अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
केवल - -
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत अंतर्मुहर्त कुछ-अधिक ३३ सागर
पीत, पद्म, शुक्ल अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
भव्य भव्य-सिद्धिक, अभव्य-सिद्धिक - -
सम्यक्त्व औपशमिक, वेदक, सम्यग्मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
क्षायिक - -
सासादन-सम्यक्त्वी पल्य का असंख्यातवां भाग कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहर्त कुछ कम १३२ सागर
संज्ञी संज्ञी अंतर्मुहर्त (क्षुद्र-भव ग्रहण काल) अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
असंज्ञी पृथक्त्व सौ सागर
आहार आहारक एक समय तीन समय
अनाहारक तीन समय कम क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी


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+ एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, २ वेदनीय, ४ संज्वलन, पुरुष-वेद, ६ नोकषाय, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस, कार्मण, समचतुरस्र-संस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, स्थिर आदि २ युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय १ समय अंतर्मुहूर्त
निद्रा, प्रचला अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अंतर्मुहूर्त कुछ कम १३२ सागर
प्रत्याख्यानावरण, अप्रत्याख्यानावरण अंतर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटि पूर्व
स्त्री-वेद १ समय कुछ अधिक १३२ सागर
नपुंसक-वेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र १ समय कुछ कम ३ पल्य अधिक १३२ सागर
३ आयु (नरक, देव, मनुष्य) अंतर्मुहूर्त असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
तिर्यंच आयु अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व १०० सागर
वैक्रियिक-षटक् १ समय असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
तिर्यंच-द्विक, उद्योत १ समय पृथक्त्व १६३ सागर
मनुष्य-द्विक, उच्च गोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
४ जाति, आतप, स्थावर-चतुष्क १ समय १२५ सागर
औदारिक-द्विक, वज्रऋषभनाराच-संहनन १ समय कुछ कम ३ पल्य
आहारक-द्विक अंतर्मुहूर्त कुछ कम अर्ध पुद्गलपरावर्तन
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)
*कोई एक तिर्यंच या मनुष्य चौदह सागर स्थितिवाले लान्तव, कापिष्ठ देवों में उत्पन्न हुआ। वहाँ एक सागरोपम काल बिताकर द्वितीय सागरोपम के आरम्भ में सम्यक्त्व को प्राप्त हुआ, तथा तेरह सागर काल सम्यक्त्व सहित व्यतीत कर मरा और मनुष्य हुआ। वहाँ संयम अथवा संयमासंयम का पालन कर इस मनुष्यभव सम्बन्धी आयु से कम बाईस सागरवाले आरण, अच्युत कल्प में उत्पन्न हुआ। वहाँ से मरकर पुनः मनुष्य हुआ। संयम को पालन कर उपरिम ग्रैवेयक में उत्पन्न हुआ और मनुष्य आयु से न्यून इकतीस सागर की आयु प्राप्त की। वहाँ अन्तर्मुहर्त कम छयासठ सागर काल के चरम समय में मिश्र गुणस्थानवाला हुआ । अन्तर्मुहूर्त विश्राम कर पुनः सम्यक्त्वी हुआ। विश्राम ले, चयकर मनुष्य हुआ। संयम या संयमासंयम को पालन कर इसे मनुष्य भव की आयु से न्यून बीस सागर की आयुवाले आनत-प्राणन देवों में उत्पन्न होकर पुनः यथाक्रम से मनुष्यायु से कम बाईस तथा चौबीस सागर के देवों में उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्त कम दो छयासठ सागर काल के अन्तिम समय में मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्त कम दो छयासठ सागर अर्थात् एक सौ बत्तीस सागर काल प्रमाण अन्तर हुआ। यह क्रम अव्युत्पन्न लोगों को समझाने को कहा है। परमार्थदृष्टि से किसी भी तरह छयासठ सागर का काल पूर्ण किया जा सकता है। (ध० टी० अन्तरा० पृ०६-७)

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+ गति-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
गति-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

गति-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
नरक-गति ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, पंचेंद्रिय जाति, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, औदारिकशरीर अंगोपांग, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, त्रस-चतुष्क, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अंतर्मुहूर्त कुछ कम अपनी आयु प्रमाण
साता-असाता वेदनीय, पुरुषवेद, हास्य-रति / शोक-अरति, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रवृषभसंहनन, प्रशस्त-विहायोगति, स्थिर-युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय एक समय अंतर्मुहूर्त
२ वेद (स्त्री,नपुंसक), ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, उद्योत, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय एक समय कुछ कम अपनी आयु प्रमाण
२ आयु (तिर्यञ्च, मनुष्य) अंतर्मुहूर्त कुछ कम छह माह
1-6 नरक मनुष्य-द्विक, तिर्यञ्च-द्विक, २ गोत्र एक समय कुछ कम अपनी आयु प्रमाण
७ नरक अंतर्मुहूर्त कुछ कम ३३ सागर
शेष प्रकृतियों में नारकियों के ओघ के समान है
तिर्यञ्च सामान्य ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ८ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण , वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अन्तर्मुहूर्त कुछ कम तीन पल्य
स्त्रीवेद एक समय कुछ कम तीन पल्य
साता-असाता वेदनीय, ५ नोकषाय, पंचेन्द्रिय जाति, समचतुरस्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिर-युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय एक समय अन्तर्मुहूर्त
नपुंसकवेद, तियचगति, जाति-चतुष्क, औदारिक-शरीर, ५ संस्थान, औदारिक-अंगोपांग, ६ संहनन, तियचानुपूर्वी, आताप, उद्योत, अप्रशस्त-विहायोगति, स्थावरचतुष्क, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय, नीचगोत्र एक समय कुछ कम एक कोटिपूर्व
४ अप्रत्याख्यानावरण अन्तर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटिपूर्व
३ आयु (नरक, मनुष्य, देव) अन्तर्मुहूर्त एक कोटि पूर्व के तीन भागों में से कुछ कम एक भाग
तिर्यञ्चायु अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक एक कोटिपूर्व
मनुष्य-द्विक, उच्चगोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
वैक्रियिकषट्क एक समय अनन्तकाल, असंख्यात पुदगलपरिवर्तन
पंचेंद्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त, पंचेंद्रिय योनिमति ध्रुव-बंधी प्रकृतियाँ - -
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अन्तर्मुहूर्त कुछ कम 3 पल्य
स्त्रीवेद १ समय
साता-असाता वेदनीय, ५ नोकषाय, सुर-चतुष्क, पंचेन्द्रिय जाति, समचतुरस्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिर-युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र एक समय अन्तर्मुहूर्त
४ अप्रत्याख्यानावरण अन्तर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटिपूर्व
नपुंसकवेद, ३ गति / आनुपूर्वी (नरक,तिर्यञ्च, मनुष्य), ४ जाति, औदारिक-द्विक, ५ संस्थान, ६ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, आताप, उद्योत, स्थावर-चतुष्क, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र एक समय कुछ कम एक कोटिपूर्व
लब्ध्यपर्याप्तक-सभी ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजस-कार्माण शरीर, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय - -
२ वेदनीय, ७ नोकषाय, मनुष्य-द्विक, तिर्यञ्च-द्विक, ५ जाति, ६ संस्थान, औदारिक-अंगोपांग, ६ संहनन, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रसादि-दस-युगल, २ गोत्र एक समय अन्तर्मुहूर्त
मनुष्य / तिर्यञ्च आयु अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
मनुष्य सामान्य, पर्याप्तक, मनुष्यिनी ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस-कार्मण, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, 5 अंतराय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अन्तर्मुहूर्त कुछ कम 3 पल्य
स्त्रीवेद १ समय
साता-असाता वेदनीय, ५ नोकषाय, सुर-चतुष्क, पंचेन्द्रिय जाति, समचतुरस्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिर-युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र एक समय अन्तर्मुहूर्त
नपुंसकवेद, ३ गति / आनुपूर्वी (नरक,तिर्यञ्च, मनुष्य), ४ जाति, औदारिक-द्विक, ५ संस्थान, ६ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, आताप, उद्योत, स्थावर-चतुष्क, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र एक समय कुछ कम एक कोटिपूर्व
२ आयु (नरक, देव) अन्तर्मुहूर्त एक कोटि पूर्व के तीन भागों में से कुछ कम एक भाग
मनुष्य आयु अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक एक कोटिपूर्व
तिर्यञ्चायु अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक एक कोटिपूर्व
आहारक शरीर, आहारक अंगोपांग अंतर्मुहूर्त पूर्वकोटि पृथ्क्त्व
देव ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, ३ शरीर (औदारिक-तैजस-कार्मण), वर्णचतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, बादर, पर्याप्तक, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबंधी अंतर्मुहूर्त ?
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, ५ संस्थान एक समय साधिक 18 सागर
एकेन्द्रिय, आताप, स्थावर एक समय कुछ अधिक दो सागर
२ आयु (तिर्यञ्च, मनुष्य) अंतर्मुहूर्त कुछ कम 6 माह
तिर्यंच-द्विक, उद्योत एक समय साधिक 18 सागर
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ इंद्रिय और काय मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
इंद्रिय और काय मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

इंद्रिय और काय मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
एकेन्द्रिय ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण 4, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय - -
२ वेदनीय, ७ नोकषाय, तिर्यंचगति, ५ जाति, ६ संस्थान, औदारिक शरीरांगोपांग, ६ संहनन, तिर्यंचानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आताप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रसादि दसयुगल, नीचगोत्र एक समय अंतर्मुहूर्त
पृथ्वीकाय तिर्यंचायु अंतर्मुहूर्त कुछ अधिक 22 हजार वर्ष
अपकाय साधिक सात हजार वर्ष
वनस्पतिकाय साधिक दस हजार वर्ष
निगोद अंतर्मुहूर्त
तेजकाय साधिक तीन रात्रि-दिन
वायुकाय साधिक तीन हजार वर्ष
पृथ्वीकाय मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त कुछ अधिक 7 हजार वर्ष
अपकाय साधिक दो हजार वर्ष
वनस्पतिकाय साधिक तीन हजार वर्ष
निगोद अंतर्मुहूर्त
बादर मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, उच्चगोत्र एक समय अंगुल का असंख्यातवाँ भाग
बादर पर्याप्त संख्यात हजार वर्ष
सूक्ष्म असंख्यात लोक
सूक्ष्मपर्याप्तक अंतर्मुहूर्त
तेजकाय, वायुकाय में एकेन्द्रिय के समान अन्तर जानना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ मनुष्यगतिचतुष्क को नहीं ग्रहण करना चाहिए। यहाँ तिर्यंचगति त्रिक का ध्रुव भंग जानना चाहिए।
विकलत्रय एकेन्द्रिय के समान अन्तर
मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी, उच्चगोत्र एक समय अंतर्मुहूर्त
दो-इंद्रिय तिर्यंचायु अंतर्मुहूर्त साधिक बारह वर्ष
तीन-इंद्रिय साधिक उनचास रात्रि-दिन
चार-इंद्रिय साधिक छह मास
दो-इंद्रिय मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त देशोन चार वर्ष
तीन-इंद्रिय कुछ अधिक सोलह रात्रि-दिन
चार-इंद्रिय कुछ कम दो माह
पंचेन्द्रिय, त्रसकाय तथा उनके पर्याप्तक ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, २ वेदनीय, ४ संज्वलन, ७ नोकषाय, पंचेन्द्रियजाति, तैजस, कार्मण, समचतुरस्र-संस्थान, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरयुगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय एक समय अंतर्मुहूर्त
निद्रा, प्रचला अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अन्तर्मुहूर्त साधिक दो छयासठ सागर में किंचित् न्यून
स्त्रीवेद १ समय
८ कषाय (अप्रत्याख्यानावरणी, प्रत्याख्यानावरणी) अन्तर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटिपूर्व
नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र एक समय साधिक दो छयासठ सागर कुछ कम तीन पल्य
३ आयु अन्तर्मुहूर्त सागर शतपृथक्त्व
मनुष्यायु अन्तर्मुहूर्त दो हजार सागरोपम पूर्वकोटि पृथक्त्वसे अधिक
पर्याप्तक दो हजार सागरोपम में कुछ कम
नरक-द्विक, ४ जाति, आताप, स्थावर-चतुष्क एक समय एकसौ पचासी सागरोपम
तिर्यंच-द्विक, उद्योत एकसौ त्रेसठ सागरोपम
मनुष्य-द्विक, उच्चगोत्र, सुरचतुष्क एक समय, उत्कृष्ट साधिक तेंतीस सागर
औदारिक-द्विक, वज्रवृषभ-संहनन साधिक तीन पल्य
आहारकद्विक अन्तर्मुहूर्त अपनी स्थिति प्रमाण
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ योग-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
योग-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

योग-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
पाँच मन, पाँच वचन ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, ४ आयु, तैजस, कार्मण, आहारकद्विक, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
शेष (संभव) एक समय अंतर्मुहूर्त
काययोग सामान्य ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, २ वेदनीय, ४ संज्वलन, ६ नोकषाय, ३ गति-आनुपूर्वी, ५ जाति, ४ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, आताप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रसादि 10 युगल, निर्माण, तीर्थंकर, नीचगोत्र, पाँच अन्तराय एक समय अंतर्मुहूर्त
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, १२ कषाय, देव-नरकायु, आहारद्विक - -
तिर्यंचायु अन्तर्मुहूर्त साधिक बाईस हजार वर्ष
मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
मनुष्य गति, मनुष्य आनुपूर्वी, उच्च गोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
औदारिक ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, देव-नरकायु, आहार द्विक, तैजस, कार्मण , वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
तिर्यञ्च/मनुष्य आयु अंतर्मुहूर्त साधिक सात हजार वर्ष
शेष (संभव) एक समय अंतर्मुहूर्त
औदारिकमिश्र ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, देव-चतुष्क, औदारिक, तैजस, कार्मण , वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
मनुष्यायु, तिर्यञ्चायु अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
शेष (संभव) एक समय अंतर्मुहूर्त
वैक्रियिक ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक, तैजस, कार्मण शरीर, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
शेष (संभव) एक समय अंतर्मुहूर्त
वैक्रियिकमिश्र वेक्रियिक के समान, आयु का बंध नहीं है
आहारक, आहारकमिश्र ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, तैजस / कार्मण शरीर, देवायु, सुर-चतुष्क, पंचेन्द्रिय जाति, समचतुरस्र संस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्च गोत्र, ५ अन्तराय - -
साता-असातावेदनीय, ४ नोकषाय, स्थिरादि तीन युगल एक समय अंतर्मुहूर्त
कार्मण-काययोग ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, ३ वेद, भय, जुगुप्सा, ३ गति-आनुपूर्वी (तिर्यञ्च,मनुष्य,देव), ५ जाति, ४ शरीर, ६ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, २-विहायोगति, सस्थावरादि ४ युगल, शुभादि 3 युगल, निर्माण, तीर्थकर, २ गोत्र, ५ अन्तराय - -
२ वेदनीय, ४ नोकषाय, आताप, उद्योत, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ (?), यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति एक समय एक समय
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ वेद-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
वेद-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

वेद-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
स्त्री ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अन्तर्मुहूर्त कुछ कम 55 पल्य
२ वेदनीय, ५ नोकषाय, पंचेन्द्रियजाति, समचतुरस्र-संस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रसचतुष्क, स्थिरादि तीन युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त एक समय अंतर्मुहूर्त
आठ कषाय अन्तर्मुहूर्त कुछ कम पूर्वकोटि
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय जाति, ५ संस्थान, ५ संहनन, आताप, उद्योत, अप्रशस्त-विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच गोत्र एक समय कुछ कम 55 पल्य
नरकायु अन्तमहूर्त कुछ कम कोटिपूर्व का त्रिभाग
तिर्यंचायु, मनुष्यायु अन्तर्मुहूर्त पल्यशत पृथक्त्व
कोई 8 मोह की प्रकृतियों की सत्तावाला जीव स्त्रीवेदी था। मरणकर देवों में उत्पन्न हुआ। छहों पर्याप्तियों को पूर्ण कर (1) विश्राम ले (2) विशुद्ध हो (3) वेदकसम्यक्त्वी हुआ,(४) पश्चात् मिथ्यात्वी हो गया। तिर्यंच आयु अथवा मनुष्यायु का बन्ध कर मरण किया और पल्यशत पृथक्त्व कालप्रमाण परिभ्रमण कर तिर्यञ्चायु या मनुष्यायु का बन्ध कर सम्यक्त्वसहित हो मरण किया। इस प्रकार असंयत सम्यकदृष्टि स्त्रीवेदी जीवकी अपेक्षा पल्यशत पृथक्त्व प्रमाण अन्तर होता है। (ध०टी०,अन्तरा० पृ०१६)
देवायु अन्तर्मुहूर्त 58 पल्योपम पूर्वकोटि पृथक्त्व
दो गति, तीन जाति, वैक्रियिक शरीर, वैक्रियिक अंगोपांग, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म, अपर्याप्तक, साधारण एक समय कुछ अधिक 55 पल्य
मनुष्य-द्विक, औदारिक-द्विक, वज्र-वृषभसंहनन एक समय कुछ कम तीन पल्य
आहारक-द्विक अन्तर्मुहूर्त पल्यशत पृथक्त्व
पुरुष ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्ज्वलन, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अंतर्मुहूर्त कुछ कम १३२ सागर
८ कषाय अंतर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटि पूर्व
स्त्रीवेद, नरकायु १ समय कुछ अधिक १३२ सागर
निद्रा, प्रचला अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
२ वेदनीय, ७ नोकषाय, पंचेन्द्रिय-जाति, तैजस / कार्मण शरीर, समचतुरस्र-संस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्च-गोत्र १ समय अंतर्मुहूर्त
नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र १ समय कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागर
मनुष्य,तिर्यञ्चायु अंतर्मुहूर्त सागरोपम शत-पृथक्त्व
देवायु अंतर्मुहूर्त साधिक तेंतीस सागर
नरक-द्विक, ४ जाति, आताप, उद्योत, स्थावर-चतुष्क, तिर्यञ्च-द्विक १ समय 63 सागरोपम
मनुष्यगतिपंचक १ समय साधिक तीन पल्य
सुर-चतुष्क १ समय साधिक तेंतीस सागर
आहारकद्विक अंतर्मुहूर्त सागर शत-पृथक्त्व
नपुंसक ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धित्रिक , मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी 4, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिथंचगति, 5 संस्थान, 5 संहनन, तिर्यचानुपूर्वी, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्रका जघन्य अन्तर्मुहूर्त अथवा एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अथवा एक समय कुछ कम तेंतीस सागर
२ वेदनीय, ५ नोकषाय, पंचेन्द्रिय-जाति, समचतुरस्र-संस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय १ समय अंतर्मुहूर्त
८ कषाय अंतर्मुहूर्त कुछ कम एक कोटि पूर्व
२ आयु (नरक, मनुष्य) अंतर्मुहूर्त असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
तिर्यञ्चायु अंतर्मुहूर्त सागर शतपृथक्त्व
देवायु अंतर्मुहूर्त कुछ कम पूर्वकोटिका त्रिभाग
वैक्रियिक-षट्क १ समय असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
मनुष्य गति, मनुष्य आनुपूर्वी, उच्च गोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
जाति-चतुष्क, आताप, स्थावर-चतुष्क १ समय साधिक तेंतीस सागर
औदारिक-द्विक, वज्र-वृषभसंहनन १ समय कुछ कम पूर्वकोटि
आहारकद्विक अंतर्मुहूर्त कुछ कम अर्ध पुद्गलपरावर्तन
तीर्थंकर अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
अपगत-वेद ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, यश:कीर्ति, उच्चगोत्र, ५ अन्तराय अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
साता वेदनीय - -
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ कषाय-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
कषाय-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

कषाय-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
क्रोध ५ ज्ञानावरण, ७ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय,४ आयु, आहारकद्विक, ५ अन्तराय - -
निद्रा, प्रचला अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
शेष एक समय अंतर्मुहूर्त
मान ३ संज्वलन - -
शेष प्रकृतियों में क्रोध के समान
माया २ संज्वलन - -
शेष प्रकृतियों में क्रोध के समान
लोभ ५ ज्ञानावरण, ७ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १२ कषाय, ४ आयु, आहारकद्विक, ५ अन्तराय - -
शेष एक समय अंतर्मुहूर्त
अकषायी साता वेदनीय - -
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ ज्ञान-दर्शन-संयम-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
ज्ञान-दर्शन-संयम-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

ज्ञान-दर्शन-संयमभव्य-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
मत्यज्ञान, श्रुताज्ञान, अभव्य, मिथ्यादृष्टि ५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, तेजस, कार्मण, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय - -
२ वेदनीय, ६ नोकषाय, पंचेन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि 2 युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय एक समय अंतर्मुहूर्त
नपुंसकवेद, औदारिक-द्विक, ५ संस्थान, ६ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र एक समय कुछ कम तीन पल्य
३ आयु (देव, नर, नरक) अंतर्मुहूर्त अनन्तकाल / असंख्यात पुद्गल परावर्तन
तिर्यञ्च आयु अंतर्मुहूर्त सागर शत-पृथक्त्व
वैक्रियिक षटक एक समय अनन्तकाल / असंख्यात पुद्गल परावर्तन
तिर्यंच-द्विक, उद्योत, जाति-चतुष्क, आताप, स्थावर-चतुष्क एक समय साधिक 31 सागर
मनुष्य-द्विक, उच्च गोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
विभंगावधि ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, नरक, देवायु, तेजस, कार्मण, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तराय - -
तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त कुछ कम 6 माह
शेष प्रकृतियां १ समय अंतर्मुहूर्त
मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, अवधिदर्शन, सम्यक्त्व ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, साता-असाता वेदनीय, ७ नोकषाय, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस-कार्मण, समचतुरस्रसंस्थान, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थकर, उच्चगोत्र, ५ अन्तराय १ समय अंतर्मुहूर्त
८ कषाय अन्तर्मुहूर्त कुछ कम पूर्व कोटि
दो आयु (नरक, देव), सुर-चतुष्क अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक 33 सागर
मनुष्य गतिपंचक वर्षपृथक्त्व पूर्वकोटि
आहारकद्विक अन्तर्मुहूर्त साधिक 66 सागर
मनःपर्ययज्ञान ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, ४ शरीर, समचतुरस्र-संस्थान, दो अंगोपांग, वर्ण-चतुष्क, देवानुपूर्वी, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रसचतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्चगोत्र, ५ अन्तराय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
२ वेदनीय, ४ नोकषाय, स्थिरादि 3 युगल १ समय अंतर्मुहूर्त
देवायु का जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कुछ कम पूर्वकोटि का त्रिभाग
सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, संयतासंयत मन:पर्ययज्ञान के समान, ध्रुव प्रकृतियों में अंतर नहीं
सूक्ष्मसाम्पराय अन्तर नहीं
असंयत ध्रुव प्रकृतियों में अंतर नहीं
२ वेद (स्त्री, नपुंसक), तिर्यञ्च-द्विक, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, उद्योत, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र एक समय कुछ कम 33 सागर
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अन्तर्मुहूर्त कुछ कम 33 सागर
३ आयु (नरक, देव, मनुष्य) अंतर्मुहूर्त असंख्यात पुद्गलपरावर्तन
तिर्यंच आयु अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व १०० सागर
मनुष्य-द्विक, उच्च गोत्र १ समय असंख्यात लोक प्रमाण
जाति-चतुष्क, आताप, स्थावर-चतुष्क १ समय साधिक तेंतीस सागर
चक्षुदर्शन त्रस पर्याप्तकों के समान भंग
अचक्षुदर्शन ओघवत्
भव्य ओघ के समान
केवलज्ञान, केवलदर्शन, यथाख्यात-संयम साता वेदनीय - -
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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+ लेश्या-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम -
लेश्या-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम

विशेष :

लेश्या-मार्गणा में एक जीव की अपेक्षा प्रकृतिबंध अंतरानुगम
कर्म अन्तर
जघन्य उत्कृष्ट
कृष्ण,नील,कापोत ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्मण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय, २ आयु (नरक, देव) - -
स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अंतर्मुहूर्त कुछ कम 33 सागर
२ वेद (स्त्री, नपुंसक), तिर्यञ्च-द्विक, मनुष्य-द्विक, ५ संस्थान, ५ संहनन, उद्योत, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, २ गोत्र एक समय
२ आयु (मनुष्य, तिर्यञ्च) अंतर्मुहूर्त कुछ कम 6 माह
नील,कापोत मनुष्य-द्विक, उच्च-गोत्र १ समय अंतर्मुहूर्त
कृष्ण वैक्रियिक-द्विक (?) एक समय 22 सागर
नील 17 सागर
कापोत 7 सागर
शेष एक समय अंतर्मुहूर्त
पीत ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, ४ शरीर (औदारिक,आहारक,तैजस,कार्मण), आहारक-अंगोपांग, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, बादर, पर्याप्तक, प्रत्येक, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
स्त्यानगृद्धि-त्रिक, मिथ्यात्व, ४ अनन्तानुबन्धी अंतर्मुहूर्त साधिक दो सागर
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यञ्च-द्विक, एकेन्द्रिय जाति, ५ संस्थान, ५ संहनन, आताप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच-गोत्र एक समय
२ वेदनीय, ५ नोकषाय, मनुष्य-द्विक, पंचेन्द्रिय-जाति, समचतुरस्र-संस्थान, औदारिक-अंगोपांग, वज्रवृषभ-संहनन, प्रशस्तविहायोगति, त्रस, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्र एक समय अंतर्मुहूर्त
तिर्यञ्चायु, मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त कुछ कम 6 माह
सुर-चतुष्क दस हजार वर्ष अथवा साधिक पल्यप्रमाण कुछ अधिक दो सागर
देवायु का अन्तर नहीं
पद्म ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय-जाति, ४-शरीर, औदारिक-अंगोपांग, आहारक-द्विक, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, त्रस-चतुष्क, निर्माण, तीर्थंकर, ५ अन्तराय - -
सुर-चतुष्क साधिक दो सागर साधिक 18 सागर
शेष का पीत-लेश्या के समान, अपनी-अपनी स्थितिप्रमाण
एकेन्द्रिय, आताप तथा स्थावर का अन्तर नहीं
शुक्ल ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, २ वेदनीय, ४ संज्वलन, ७ नोकषाय, पंचेन्द्रियजाति, तैजस-कार्मण शरीर, समचतुरस्र-संस्थान, वज्रवृषभ-संहनन, वर्ण-चतुष्क, अगुरुलघु-चतुष्क, प्रशस्त-विहायोगति, त्रस-चतुष्क, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्चगोत्र, ५ अन्तराय एक समय अंतर्मुहूर्त
निद्रा, प्रचला अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
स्त्यानगृद्धि त्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ अंतर्मुहूर्त कुछ कम 31 सागर
स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त-विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीचगोत्र का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट एक समय
८ कषाय, देवायु, मनुष्य-द्विक, औदारिक-द्विक - -
मनुष्यायु अंतर्मुहूर्त कुछ कम 6 माह
सुर-चतुष्क अंतर्मुहूर्त साधिक 33 सागर
आहारकद्विक अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
महबंधो - 1 (अंतराणुगमपरूवणा)

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अल्प-बहुत्व



+ जीवों में अल्प-बहुत्व -
जीवों में अल्प-बहुत्व
गर्भज पर्याप्त मनुष्य < मनुष्यिनि < सर्वार्थसिद्धि देव << बादर पर्याप्त तेजस्कायिक << अनुत्तर (विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित) < अनुदिश < नवें ग्रैवेयक देव < आठवें ग्रैवेयक देव < सातवें ग्रैवेयक देव < छठे ग्रैवेयक देव < पांचवें ग्रैवेयक देव < चौथे ग्रैवेयक देव < तीसरे ग्रैवेयक देव < दूसरे ग्रैवेयक देव < पहले ग्रैवेयक देव < आरण-अच्युत देव < आनत-प्राणत देव << सप्तम-पृथिवी नारकी << छठी पृथिवी नारकी << शतार-सहस्रार देव << शुक्र-महाशुक्र देव << पंचम-पृथिवी नारकी << लान्तव-कापिष्ठ देव << चतुर्थ पृथिवी नारकी << ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर देव << तृतीय-पृथिवी नारकी << माहेन्द्र देव << सानत्कुमार देव << द्वितीय पृथिवी नारकी << अपर्याप्त मनुष्य << ईशान देव < ईशान देवियाँ < सौधर्म देव < सौधर्म देवियाँ << प्रथम पृथिवी नारकी << भवनवासी देव < भवनवासी देवियाँ << पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिनी << व्यंतर देव < व्यंतर देवियाँ < ज्योतिष देव < ज्योतिष देवियाँ < चतुरिंद्रिय पर्याप्त << पंचेन्द्रिय पर्याप्त << द्विन्द्रिय पर्याप्त << त्रीन्द्रिय पर्याप्त << पंचेन्द्रिय अपर्याप्त << चतुरिंद्रिय अपर्याप्त << त्रीन्द्रिय अपर्याप्त << द्विन्द्रिय अपर्याप्त << बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक << बादर पर्याप्त निगोदप्रतिष्ठित << बादर पर्याप्त पृथिविकायिक << बादर पर्याप्त जलकायिक << बादर पर्याप्त वायुकायिक << बादर अपर्याप्त अग्निकायिक << बादर अपर्याप्त प्रत्येक वनस्पति << बादर अपर्याप्त प्रतिष्ठित << बादर अपर्याप्त पृथिवीकायिक << बादर अपर्याप्त जलकायिक << बादर अपर्याप्त वायुकायिक << सूक्ष्म अपर्याप्त अग्निकायिक << सूक्ष्म अपर्याप्त पृथिवीकायिक << सूक्ष्म अपर्याप्त जलकायिक << सूक्ष्म अपर्याप्त वायुकायिक << सूक्ष्म पर्याप्त अग्निकायिक << सूक्ष्म पर्याप्त पृथिवीकायिक << सूक्ष्म पर्याप्त वायुकायिक << सूक्ष्म पर्याप्त जलकायिक <<< सिद्ध जीव <<< बादर पर्याप्त वनस्पतिकायिक << बादर अपर्याप्त वनस्पतिकायिक << बादर वनस्पतिकायिक << सूक्ष्म अपर्याप्त वनस्पतिकायिक < सूक्ष्म पर्याप्त वनस्पतिकायिक < सूक्ष्म वनस्पतिकायिक < वनस्पतिकायिक < निगोद जीव'<' = संख्यात अधिक
'<<' = असंख्यात अधिक
'<<<' = अनंत अधिक

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+ अद्धापरिमाण में अल्प-बहुत्व -
अद्धापरिमाण में अल्प-बहुत्व
अनाकार (दर्शनोपयोग) का ज. [सं. आवली] < चक्षु-इंद्रियावग्रह का ज. < श्रोतावग्रह का ज. < घ्राणावग्रह का ज. < जीह्वाग्रह का ज. < मनोयोग का ज. < वचनयोग का ज. < काययोग का ज. < स्पर्शनेन्द्रियावग्रह का ज. < इंद्रियज अवाय ज्ञान का ज. < इंद्रियज ईहाज्ञान का ज. < श्रुतज्ञान का ज. < श्वासोच्छ्वास का ज. < तद्भवस्थ केवली के केवलज्ञान और केवलदर्शन का तथा सकषाय जीव के शुक्ल लेश्या का ज. < एकत्ववितर्कअवीचार ध्यान का ज. < पृथक्त्ववीतर्कअवीचार ध्यान का ज. < उपशम श्रेणी से गिरे हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < उपशम श्रेणी पर चढ़ते हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < क्षपक श्रेणीगत सूक्ष्म-सांपरायिक का ज. < मान का ज. < क्रोध का ज. < माया का ज. < लोभा का ज. < क्षुद्रभवग्रहण का ज. < कृष्टिकरण का ज. < संक्रामण का ज. < अपवर्तन का ज. < उपशांत कषाय का ज. < क्षीणमोह का ज. < उपशामक का ज. < क्षपक का ज. < चक्षुदर्शनोपयोग का उ. <: चक्षुज्ञानोपयोग का उ. < श्रोत ज्ञानोपयोग का उ. < घ्राणेन्द्रियज ज्ञानोपयोग का उ. < जिह्वाइंद्रियज ज्ञानोपयोग < मनोयोग का उ. < वचनयोग का उ. < काययोग का उ. < स्पर्शनेन्द्रियज ज्ञानोपयोग का उ. < अवायज्ञान का उ. < ईहाज्ञानोपयोग का उ. <: श्रुतज्ञान का उ. < श्वासोच्छ्वास का उ. < तद्भवस्थ केवली के केवलज्ञान और केवलदर्शन का तथा सकषाय जीव के शुक्ल लेश्या का उ. < एकत्ववितर्कअवीचार ध्यान का उ. <: पृथक्त्ववीतर्कअवीचार ध्यान का उ. < उपशम श्रेणी से गिरे हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. < उपशम श्रेणी पर चढ़ते हुए सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. < क्षपक श्रेणीगत सूक्ष्म-सांपरायिक का उ. <: मान का उ. < क्रोध का उ. < माया का उ. < लोभ का उ. < क्षुद्रभव ग्रहण का उ. < कृष्टिकरण का उ. < संक्रामण का उ. < अपवर्तन का उ. < उपशांत कषाय का उ. < क्षीणमोह का उ. <: उपशामक का उ. < क्षपक का उ.
ज. = जघन्य
उ. = उत्कृष्ट
'<' = विशेष (संख्यात आवली) अधिक
'<:' = दूना अधिक
* व्याघात से रहित काल की अपेक्षा है

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+ योग-स्थान में अल्प-बहुत्व -
योग-स्थान में अल्प-बहुत्व
सू. एकेन्द्रिय अप. का ज. << बा. एकेन्द्रिय अप. का ज. << दो इंद्रिय अप. का ज. << ३ इंद्रिय अप. का ज. << ४ इंद्रिय अप. का ज. << असंज्ञी पंचेंद्रिय अप. का ज. << संज्ञी पंचेंद्रिय अप. का ज. << सू. एकेन्द्रिय अप. का उ. << बा. एकेन्द्रिय लब्धअप. का उ. << सू. एकेन्द्रिय प. का ज. << बा. एकेन्द्रिय प. का ज. << सू. एकेन्द्रिय प. का उ. << बा. एकेन्द्रिय प. का उ. << दो इंद्रिय अप. का उ. << ३ इंद्रिय अप. का उ. << ४ इंद्रिय अप. का उ. << असंज्ञी पंचेंद्रिय अप. का उ. << संज्ञी पंचेंद्रिय अप. का उ << दो इंद्रिय प. का ज. << ३ इंद्रिय प. का ज. << ४ इंद्रिय प. का ज. << असंज्ञी पंचेंद्रिय प. का ज. << संज्ञी पंचेंद्रिय प. का ज. << दो इंद्रिय प. का उ. << ३ इंद्रिय प. का उ. << ४ इंद्रिय प. का उ. << असंज्ञी पंचेंद्रिय प. का उ. << संज्ञी पंचेंद्रिय प. का उ.
<< = पल्य / असंख्यात
ज. = जघन्य, उ. = उत्कृष्ट
प. = पर्याप्त, अप. = अपर्याप्त
सू. = सूक्ष्म, बा. = बादर

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+ योग-स्थान -
योग-स्थान

विशेष :


योगस्थान >> स्पर्धक की वर्गणायें >> अंतर-निरंतर-ध्वान > स्पर्धक >> नाना-स्पर्धक वर्गणा >> जीव-प्रदेश >> अविभाग प्रतिच्छेद

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+ योग-स्थान अल्प-बहुत्व -
योग-स्थान अल्प-बहुत्व

विशेष :


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+ जीव-समास में योगस्थान -
जीव-समास में योगस्थान

विशेष :


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मोहनीय-विभक्ति



+ मोहनीय प्रकृति-स्थान विभक्ति -- स्थान आदि -
प्रकृति-स्थान विभक्ति -- स्थान आदि समुत्कीर्तना अनुयोग द्वार

विशेष :

प्रकृति-स्थान विभक्ति (स्थान और स्वामित्व समुत्कीर्तना अनुयोग द्वार)
सत्व स्वामित्व काल अंतर भंग
उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य
1 प्रकृति संज्वलन लोभ क्षपक मनुष्य और मनुष्यनि अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर नहीं कभी हैं कभी नहीं
2 प्रकृति + संज्वलन माया
3 प्रकृति + संज्वलन मान
4 प्रकृति + संज्वलन क्रोध
5 प्रकृति + पुरुष वेद 2 आवली - एक समय
11 प्रकृति + 6 नोकषाय अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
12 प्रकृति + स्त्री वेद 1 समय
13 प्रकृति + नपुंसक वेद अंतर्मुहूर्त
21 प्रकृति + 8 कषाय क्षायिक सम्यक्त्वी (चारों गति में) अंतर्मुहूर्त साधिक 33 सागर नियम से हैं
22 प्रकृति + सम्यक प्रकृति क्षायिक सम्यक्त्व सन्मुख कृतकृत्य वेदक
अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त कभी हैं कभी नहीं
23 प्रकृति + सम्यगमिथ्यात्व क्षायिक सम्यक्त्व सन्मुख मिथ्यात्व का क्षय करने वाले मनुष्य और मनुष्यनि
24 प्रकृति + मिथ्यात्व अनंतानुबंधी विसंयोजक (चारों गति में) सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहूर्त साधिक 132 सागर अंतर्मुहूर्त कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन* नियम से हैं
26 प्रकृति 28 - (सम्यकप्रकृति, सम्यगमिथ्यात्व) मिथ्यादृष्टि 1 समय* कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन* पल्य / असंख्यात साधिक 132 सागर
27 प्रकृति 28 - सम्यगमिथ्यात्व मिथ्यादृष्टि 1 समय* पल्य / असंख्यात कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन*
28 प्रकृति मोहनीय की 28 प्रकृतियाँ सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहूर्त साधिक 132 सागर 1 समय कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन*
* सादि-सांत भेद की अपेक्षा

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+ मोहनीय विभक्ति-स्थान में अल्प-बहुत्व -
मोहनीय विभक्ति-स्थान में अल्प-बहुत्व

विशेष :
1 <2 <3 <11 <12 <4 <13 <22 <23 <<27 <<21 <<24 <<28 <<<26

'<' = विशेष / संख्यात अधिक
'<<' = असंख्यात अधिक
'<<<' = अनंत अधिक

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+ एक जीव अपेक्षा मोहनीय-विभक्ति का काल -
एक जीव अपेक्षा मोहनीय-विभक्ति का काल

विशेष :

मार्गणा एक जीव अपेक्षा मोहनीय-विभक्ति का काल
जघन्य उत्कृष्ट
गति नरक सामान्य दस हजार वर्ष 33 सागर
1 नरक दस हजार वर्ष एक सागर
2 नरक साधिक एक सागर 3 सागर
3 नरक साधिक तीन सागर 7 सागर
4 नरक साधिक सात सागर 10 सागर
5 नरक साधिक दस सागर 17 सागर
6 नरक साधिक सत्रह सागर 22 सागर
7 नरक साधिक बाईस सागर 33 सागर
तिर्यंच सामान्य क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
पंचेन्द्रिय खुद्दाभवगहण *पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
पंचेन्द्रिय पर्याप्त अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व (47) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
पंचेन्द्रिय योनिनी अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व (15) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
*पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य = कोई एक जीव तिर्यञ्चों में उत्पन्न हुआ ->
24 पूर्वकोटि (संज्ञी स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में क्रमश: आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +
24 पूर्वकोटि (असंज्ञी स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +
अन्तर्मुहूर्त (लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में उत्पन्न हुआ) +
24 पूर्वकोटि (असंज्ञी पर्याप्त होकर वहां स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेद के साथ क्रमशः आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +
23 पूर्वकोटि (संज्ञी स्त्री-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि और पुरुषवेदियों में सात पूर्वकोटि काल तक रह कर) +
तीन पल्य (उत्तम भोगभूमि में रहकर देव हो जाता है)
सभी लब्ध्यपर्याप्त का काल तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के समान देखना चाहिए
मनुष्य पंचेन्द्रिय खुद्दाभवगहण पृथक्त्व (47) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
पंचेन्द्रिय पर्याप्त अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व (23) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
पंचेन्द्रिय योनिनी अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व (7) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य
*पृथक्त्व (95) पूर्वकोटि अधिक तीन पल्य = कोई एक जीव मनुष्य में उत्पन्न हुआ ->
24 पूर्वकोटि (स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदियों में क्रमश: आठ-आठ पूर्वकोटि काल तक परिभ्रमण करके) +
अन्तर्मुहूर्त (लब्ध्यपर्याप्त में उत्पन्न हुआ) +
23 पूर्वकोटि (स्त्री-नपुंसकवेदियों में आठ-आठ पूर्वकोटि और पुरुषवेदियों में सात पूर्वकोटि काल तक रह कर) +
तीन पल्य (उत्तम भोगभूमि में रहकर देव हो जाता है)
लब्ध्यपर्याप्त मनुष्य का काल तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के समान देखना चाहिए
उक्त तीनों प्रकार के मनुष्यों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टकाल देशोन पूर्वकोटि है
देव सामान्य अंतर्मुहूर्त 33 सागर
भवनवासी दस हजार वर्ष साधिक एक सागर
व्यंतर दस हजार वर्ष साधिक पल्य
ज्योतिष पल्य के आठवें भाग प्रमाण साधिक पल्य
सौधर्म-ऐशान साधिक पल्य साधिक 2 सागर
सनत्कुमार-माहेन्द्र साधिक 2 सागर साधिक 7 सागर
ब्रह्म-ब्रह्मोत्तर साधिक 7 सागर साधिक 10 सागर
लान्तव-कापिष्ठ साधिक 10 सागर साधिक 14 सागर
शुक्र-महाशुक्र साधिक 14 सागर साधिक 16 सागर
सतार-सहस्रार साधिक 16 सागर साधिक 18 सागर
आनत-प्राणत साधिक 18 सागर 20 सागर
आरण-अच्युत साधिक 20 सागर 22 सागर
नौ ग्रेवेयक क्रमश: साधिक 22,23,24,25,26,27,28,29,30 सागर क्रमश: 23,24,25,26,27,28,29,30,31 सागर
नव अनुदिश साधिक 31 सागर 32 सागर
चार अनुत्तर साधिक 32 सागर 33 सागर
सर्वार्थ-सिद्धि 33 सागर 33 सागर
इन्द्रिय एकेंद्रिय सामान्य क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात [आवली के असंख्यात भाग] पुद्गल परिवर्तन)
बादर
क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल
बादर-पर्याप्त
अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
बादर-लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
सूक्ष्म क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
सूक्ष्म-पर्याप्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सूक्ष्म-लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
विकलत्रय २,३,४ और २,३,४ पर्याप्तक क्षुद्र-भव ग्रहण काल, अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
पंचेंद्रिय पंचेंद्रिय क्षुद्र-भव ग्रहण काल पृथक्त्व पूर्व-कोटी + १००० सागर
पर्याप्त अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व पूर्व-कोटी + पृथक्त्व सौ सागर
लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
काय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, प्रत्येक वनस्पति बादर क्षुद्र-भव ग्रहण काल कर्म-स्तिथि प्रमाण (70 कोड़कोड़ी सागर)
बादर पर्याप्त अंतर्मुहूर्त संख्यात हजार वर्ष
लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, निगोद पर्याप्त, अपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यात लोकप्रमाण काल
वनस्पति क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात (आवली के असंख्यात भाग) पुद्गल परिवर्तन)
निगोद सामान्य क्षुद्र-भव ग्रहण काल अढाई पुद्गल परिवर्तन
बादर क्षुद्र-भव ग्रहण काल कर्म-स्तिथि प्रमाण
त्रस त्रस और पर्याप्त अंतर्मुहूर्त २००० सागर + पृथक्त्व पूर्व-कोटि, २००० सागर
लब्ध्यपर्याप्त क्षुद्र-भव ग्रहण काल अंतर्मुहूर्त
योग 5 मन, 5 वचन एक समय अंतर्मुहूर्त
काय सामान्य एक समय अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
औदारिक एक समय कुछ कम २२ हजार वर्ष
औदारिक-मिश्र क्षुद्र-भव ग्रहण काल - ३ समय अंतर्मुहूर्त
वैक्रियिक एक समय अंतर्मुहूर्त
वैक्रियिक-मिश्र अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
आहारक एक समय अंतर्मुहूर्त
आहारक-मिश्र अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
कार्मण एक समय तीन समय
काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्य एक समय और उत्कृष्ट काल अंतर्मुहूर्त है
औदारिक-मिश्र काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है
कार्मण-काय-योगियों के मोहनीय अविभक्ति का काल जघन्य और उत्कृष्ट दोनों तीन समय है
वेद स्त्री *एक समय पृथक्त्व सौ पल्य
पुरुष अंतर्मुहूर्त पृथक्त्व सौ सागर
नपुंसक *एक समय अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
अपगत एक समय अंतर्मुहूर्त
*जो पहले स्त्री वेदी या नपुंसकवेदी था वह उपशम श्रेणी से उतरते समय सवेदी हुआ और दूसरे समय में मरकर पुरुष वेद के साथ देव हुआ
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ *अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
एक मत के अनुसार क्रोधादि कषाय एक समय रहकर भी मरणादिक के निमित्त से बदली जा सकती हैं। और दूसरे मत के अनुसार क्रोधादि का जघन्य काल भी अन्तमुहूर्त से कम नहीं होता है।
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी अनादि-अनन्त अनंत
अनादि-सान्त अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन
सादि-सान्त अन्तर्मुहूर्त अर्द्ध पुद्गल परिवर्तन
विभंगावधि एक समय देशोन 33 सागर
उपशम् सम्यग्दृष्टि देव या नारकी जीव उपशम सम्यक्त्व के काल में एक समय शेष रहने पर सासादन सम्यग्दृष्टि होकर द्वितीय समय में मरकर जब तिर्यंच या मनुष्य हो
मति-श्रुत-अवधि अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक छियासठ सागर
मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है
मन:पर्यय अन्तमुहूर्त देशोन पूर्वकोटि
संयम संयत अन्तर्मुहूर्त देशोन पूर्वकोटि
मोहनीय अविभक्ति का जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल देशोन पूर्वकोटि
सामायिक, छेदोपस्थापना एक समय देशोन पूर्वकोटि
परिहारिविशुद्धि अन्तमुहूर्त देशोन (अडतीस वर्ष कम) पूर्वकोटि
सूक्ष्म-साम्परायिक सुद्धि संयत एक समय अन्तमुहूर्त
यथाख्यात एक समय अन्तमुहूर्त
संयतासंयत अन्तमुहूर्त देशोन (अन्तर्मुहूर्त पृथक्त्व कम) पूर्वकोटि
असंयत मत्यज्ञानियों के समान
दर्शन चक्षु-दर्शन अंतर्मुहूर्त २००० सागर
मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है
अचक्षु-दर्शन - अनंत
अवधि अन्तर्मुहूर्त कुछ अधिक छियासठ सागर
लेश्या कृष्ण अंतर्मुहूर्त 33 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त
नील 17 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त
कापोत 7 सागर + 2 अंतर्मुहूर्त
तेज 2 सागर + अंतर्मुहूर्त
पद्म कुछ अधिक 18 सागर
शुक्ल कुछ अधिक 33 सागर
भव्य भव्यसिद्धिक अंतर्मुहूर्त कुछ कम अर्ध-पुद्गल-परिवर्तन
अभव्यसिद्धिक अनादि-अनन्त
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि अंतर्मुहूर्त साधिक 33 सागर
वेदक अंतर्मुहूर्त 66 सागर
उपशम अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
सासादन एक समय 6 आवली
सम्यग्मिथ्यादृष्टि अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
मिथ्यादृष्टि मत्यज्ञानियों के समान
संज्ञी संज्ञी क्षुद्र-भव ग्रहण काल पृथक्त्व सौ सागर
मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है
असंज्ञी क्षुद्र-भव ग्रहण काल अनन्त (असंख्यात पुद्गल परिवर्तन)
आहार आहारक 3 समय कम क्षुद्र-भव ग्रहण काल असंख्यातासंख्यात (अंगुल के असंख्यात भाग) अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल
मोहनीय अविभक्ति का जघन्य और उत्कृष्ट काल मनुष्यों के समान
अनाहारक मोहनीय विभक्ति का काल कार्मण-काययोगियों के समान
मोहनीय अविभक्तिका काल ओघ के समान है। इतनी विशेषता है कि मोहनीय अविभक्ति का जघन्य काल तीन समय है
कसायपाहुड़ - पुस्तक 2, मूल-प्रकृति विभक्ति में कालानुगम

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+ मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- समुत्कीर्तन -
मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- समुत्कीर्तन

विशेष :
मार्गणा मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- समुत्कीर्तन
दर्शन मोहनीय कषाय नोकषाय वेद
मि. स.मि. सम्य. अनं. अप्र. / प्रत्या. सं. क्रोध सं. मान सं. माया सं. लोभ हास्यादिक-6 पुरुष स्त्री नपुंसक
गति नरक सामान्य ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
1 नरक ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
2-7 नरक ✓|x ✓|x ✓|x
तिर्यंच सामान्य ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
पंचेन्द्रिय, पंचेंद्रिय पर्याप्त ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
पंचेन्द्रिय योनिनी ✓|x ✓|x ✓|x
लब्ध्यपर्याप्त ✓|x ✓|x
मनुष्य सामान्य, पर्याप्त, योनिनि ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
लब्ध्यपर्याप्त ✓|x ✓|x
देव सामान्य ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
भवनत्रिक ✓|x ✓|x ✓|x
वैमानिक ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
इन्द्रिय एकेंद्रिय, विकलेंद्रिय, लब्ध्यपर्याप्त ✓|x ✓|x
पंचेंद्रिय पर्याप्त ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
काय स्थावर ✓|x ✓|x
त्रस ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
योग 5 मन, 5 वचन ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
काय औदारिक / औदारीक मिश्र ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
वैक्रियिक / वैक्रियिक-मिश्र ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
आहारक / आहारक-मिश्र ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
कार्मण ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
वेद स्त्री ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
पुरुष ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
नपुंसक ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
अपगत ✓|x ✓|x ✓|x x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
कषाय क्रोध ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
मान ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
माया ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
लोभ ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
अकषायी ✓|x ✓|x ✓|x x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी-विभंगावधि ✓|x ✓|x
मति-श्रुत-अवधि, मन:पर्यय ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
संयम संयत (सामान्य) ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
सामायिक, छेदोपस्थापना ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
परिहारिविशुद्धि ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
सूक्ष्म-साम्परायिक ✓|x ✓|x ✓|x x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
यथाख्यात ✓|x ✓|x ✓|x x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
संयतासंयत ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
असंयत ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
दर्शन चक्षु, अचक्षु, अवधि ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
लेश्या कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
शुक्ल ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
भव्य भव्यसिद्धिक ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
अभव्यसिद्धिक x x
सम्यक्त्व सम्यग्दृष्टि क्षायिकसम्यग्दृष्टि x x x x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
वेदक ✓|x ✓|x ✓|x
उपशम ? ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
सासादन
सम्यग्मिथ्यादृष्टि x ✓|x
मिथ्यादृष्टि ✓|x ✓|x
संज्ञी संज्ञी ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
असंज्ञी ✓|x ✓|x
आहार आहारक, अनाहारक ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x ✓|x
कसायपाहुड़ - प्रकृति-समुत्कीर्तना अधिकार पृष्ठ 108 से
✓|x मोहनीय विभक्ति (सत्त्व) या अविभक्ति (असत्त्व) वाले जीव
मोहनीय विभक्ति (सत्त्व) वाले ही जीव
x मोहनीय अविभक्ति (असत्त्व) वाले ही जीव

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+ मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- कालानुगम -
मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- कालानुगम

विशेष :
मार्गणा मोहनीय की उत्तर प्रकृति में विभक्ति -- कालानुगम
दर्शन मोहनीय कषाय नोकषाय नोकषाय-वेद
मि. स.मि. सम्य. अनं. अप्र. / प्रत्या. सं. क्रोध सं. मान सं. माया सं. लोभ हास्यादिक-6 पुरुष स्त्री नपुंसक
गति नरक जघन्य दस हजार वर्ष एक समय एक समय दस हजार वर्ष दस हजार वर्ष दस हजार वर्ष
उत्कृष्ट तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर
विशेष जघन्य और उत्कृष्ट काल कहते समय प्रथमादि नरकों में जहां जितनी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति हो वहां उतना जघन्य और उत्कृष्ट काल कहना चाहिये किन्तु छह प्रकृतियोंका जघन्य काल एक समय है तथा उत्कृष्ट काल प्रथमादि नरकोंमें अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण है
सातवीं पृथिवीमें अनन्तानुबन्धी चतुष्क का जघन्य काल अन्तमुहूर्त है, क्योंकि, अनन्तानुबन्धी का पुन: संयोजन होने पर अन्तर्मुहूर्त काल हुए बिना दूसरे समय में ही मरण नहीं होता
तिर्यंच सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) कुछ अधिक तीन पल्योपम अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
पंचेन्द्रिय जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम
पंचेंद्रिय पर्याप्त / योनिनी जघन्य अंतर्मुहूर्त एक समय एक समय अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम
लब्ध्यपर्याप्त जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
मनुष्य सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम
पंचेंद्रिय पर्याप्त / योनिनी जघन्य अंतर्मुहूर्त एक समय एक समय अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक तीन पल्योपम
लब्ध्यपर्याप्त जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त अंतर्मुहूर्त
देव जघन्य दस हजार वर्ष एक समय एक समय दस हजार वर्ष दस हजार वर्ष दस हजार वर्ष
उत्कृष्ट तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर तेतीस सागर
विशेष विशेष की अपेक्षा भवनवासियों से लेकर उपरिम ग्रैवेयक तक प्रत्येक स्थान में बाईस प्रकृतियों की विभक्ति का काल उनकी जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण कहना चाहिये।
तथा सम्यक्त्वप्रकृति, सम्यमिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी चतुष्क का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अपनी अपनी उत्कृष्ट स्थिति प्रमाण कहना चाहिये।
नौ अनुदिशों से लेकर सर्वार्थसिद्धि तक प्रत्येक स्थान में मिथ्यात्व, सम्यगमिथ्यात्व बारह कषाय और नौ नोकषाय का जघन्य काल अपनी-अपनी जघन्य स्थिति प्रमाण कहना चाहिये।
सम्यक्त्वप्रकृति और अनन्तानुबन्धी चतुष्क का जघन्यकाल क्रम से एक समय और अन्तर्मुहूर्त कहना चाहिये। और सभी प्रकृतियों का उत्कृष्ट काल सर्वत्र अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति-प्रमाण कहना चाहिये।
इन्द्रिय एकेंद्रिय सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) पल्योपम के असंख्यातवें भाग अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
बादर जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग (असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी) पल्योपम के असंख्यातवें भाग अंगुल के असंख्यातवें भाग (असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी) अंगुल के असंख्यातवें भाग (असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी) अंगुल के असंख्यातवें भाग (असंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी)
बादर पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
सूक्ष्म जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट असंख्यात लोक पल्योपम के असंख्यातवें भाग असंख्यात लोक असंख्यात लोक असंख्यात लोक
सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
विकलेंद्रिय सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
पंचेंद्रिय सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक हजार सागर पल्योपम के तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एकसौ बत्तीस सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक हजार सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक हजार सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक हजार सागर
पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट पृथक्त्व सौ सागर पल्योपम के तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एकसौ बत्तीस सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर
सभी लब्ध्यपर्याप्त जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
काय स्थावर पृथ्वी,जल,अग्नि,वायु सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट असंख्यात लोकप्रमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग असंख्यात लोकप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण
बादर जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण
बादर पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
सूक्ष्म जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट असंख्यात लोकप्रमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग असंख्यात लोकप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण असंख्यात लोकप्रमाण
सूक्ष्म जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
वनस्पति सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) पल्योपम के असंख्यातवें भाग अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
बादर / प्रत्येक जघन्य खुद्दाभवग्रहण प्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण
बादर / प्रत्येक पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
सूक्ष्म जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट असंख्यात लोक पल्योपम के असंख्यातवें भाग असंख्यात लोक असंख्यात लोक असंख्यात लोक
सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
निगोद सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट अढाई पुद्गल परावर्तन पल्योपम के असंख्यातवें भाग अढाई पुद्गल परावर्तन अढाई पुद्गल परावर्तन अढाई पुद्गल परावर्तन
बादर जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट कर्मस्थितिप्रमाण पल्योपम के असंख्यातवें भाग कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण कर्मस्थितिप्रमाण
बादर पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष संख्यात हजार वर्ष
सूक्ष्म जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण खुद्दाभवग्रहण प्रमाण
उत्कृष्ट असंख्यात लोक पल्योपम के असंख्यातवें भाग असंख्यात लोक असंख्यात लोक असंख्यात लोक
सूक्ष्म पर्याप्त जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त पल्योपम के असंख्यातवें भाग अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
त्रस सामान्य जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण
उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागर पल्योपम के तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एक सौ बत्तीस सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागर पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक दो हजार सागर
पर्याप्त जघन्य एक समय एक समय अन्तर्मुहुर्त अन्तर्मुहुर्त अन्तर्मुहुर्त
उत्कृष्ट दो हजार सागर पल्योपम के तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एक सौ बत्तीस सागर दो हजार सागर दो हजार सागर दो हजार सागर
योग पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिककाययोगी जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
काययोगी सामान्य जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) पल्योपम का असंख्यातवां भाग अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
औदारिक जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट कुछ कम बाईस हजार वर्ष कुछ कम बाईस हजार वर्ष कुछ कम बाईस हजार वर्ष कुछ कम बाईस हजार वर्ष कुछ कम बाईस हजार वर्ष
औदारिक-मिश्र जघन्य तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
आहारक जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
आहारक-मिश्र जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
कार्मण जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट तीन समय तीन समय तीन समय तीन समय तीन समय
वेद स्त्री जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट सौ पल्यपृथक्त्व साधिक पचपन पल्य सौ पल्यपृथक्त्व सौ पल्यपृथक्त्व सौ पल्यपृथक्त्व
पुरुष जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट सौ सागर पृथक्त्व साधिक एक सौ बत्तीस सागर सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व
नपुंसक जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) साधिक तेतीस सागर अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन) अनन्तकाल (असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन)
अपगत जघन्य एक समय एक समय -na- एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त -na- अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
कषाय क्रोध, मान, माया, लोभ जघन्य एक समय एक समय एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
अकषायी जघन्य एक समय एक समय -na- एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त -na- अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
ज्ञान मत्यज्ञानी-श्रुतअज्ञानी सादिसान्त भंग जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण
विभंगावधि जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट कुछ कम तेतीस सागर पल्योपम का असंख्यातवां भाग कुछ कम तेतीस सागर कुछ कम तेतीस सागर कुछ कम तेतीस सागर
मति-श्रुत-अवधि जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक छयासठ सागर कुछ कम छयासठ सागर कुछ कम छयासठ सागर साधिक छयासठ सागर साधिक छयासठ सागर साधिक छयासठ सागर
मन:पर्यय जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि
संयम सामायिक, छेदोपस्थापना जघन्य एक समय एक समय अन्तर्मुहूर्त एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि
परिहारिविशुद्धि जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि
सूक्ष्म-साम्परायिक / यथाख्यात जघन्य एक समय एक समय -na- एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त -na- अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि कुछ कम पूर्वकोटि
असंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कुछ अधिक तेतीस सागर कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण
दर्शन चक्षु जघन्य एक समय एक समय अन्तर्मुहुर्त अन्तर्मुहुर्त अन्तर्मुहुर्त
उत्कृष्ट दो हजार सागर पल्योपम के तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एक सौ बत्तीस सागर दो हजार सागर दो हजार सागर दो हजार सागर
अचक्षु सादिसान्त भंग जघन्य अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त
उत्कृष्ट पल्यके तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एक सौ बत्तीस सागर कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण
लेश्या कृष्ण जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक तेतीस सागर पल्योपम का असंख्यातवां भाग साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर
नील जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक सत्रह सागर पल्योपम का असंख्यातवां भाग साधिक सत्रह सागर साधिक सत्रह सागर साधिक सत्रह सागर
कापोत जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक सात सागर पल्योपम का असंख्यातवां भाग साधिक सात सागर साधिक सात सागर साधिक सात सागर
पीत जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक दो सागर साधिक दो सागर साधिक दो सागर साधिक दो सागर साधिक दो सागर
पद्म जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक अठारह सागर साधिक अठारह सागर साधिक अठारह सागर साधिक अठारह सागर साधिक अठारह सागर
शुक्ल जघन्य अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर
भव्य अभव्यसिद्धिक अनादि-अनन्त -na- अनादि-अनन्त अनादि-अनन्त अनादि-अनन्त
भव्यसिद्धिक सादिसान्त भंग जघन्य अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त अनादि-अनन्त / अनादि-सान्त
उत्कृष्ट पल्यके तीन असंख्यातवें भागों से अधिक एक सौ बत्तीस सागर कुछ कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण
सम्यक्त्व क्षायिकसम्यग्दृष्टि जघन्य -na- -na- -na- अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर साधिक तेतीस सागर
वेदक जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तमुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तमुहूर्त अन्तमुहूर्त अन्तमुहूर्त
उत्कृष्ट देशोन छ्यासठ सागर देशोन छ्यासठ सागर छ्यासठ सागर देशोन छ्यासठ सागर छ्यासठ सागर छ्यासठ सागर छ्यासठ सागर
उपशम, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त
सासादन जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट छह आवली छह आवली छह आवली छह आवली छह आवली
मिथ्यादृष्टि सादिसान्त भंग जघन्य अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त एक समय अन्तर्मुहूर्त
उत्कृष्ट कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण अन्तर्मुहूर्त कम अर्द्धपुद्गल परिवर्तन प्रमाण
संज्ञी संज्ञी जघन्य खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय एक समय खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण खुद्दाभवग्रहणप्रमाण
उत्कृष्ट सौ सागर पृथक्त्व साधिक एक सौ बत्तीस सागर सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व सौ सागर पृथक्त्व
असंज्ञी एकेन्द्रियों के समान
आहार आहारक जघन्य तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण एक समय एक समय तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण तीन समय कम खुद्दाभवग्रहणप्रमाण
उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुल के असंख्यातवें भाग अंगुलके असंख्यातवें भाग अंगुलके असंख्यातवें भाग
अनाहारक जघन्य एक समय एक समय एक समय एक समय एक समय
उत्कृष्ट तीन समय तीन समय तीन समय तीन समय तीन समय
कसायपाहुड़ 2 - कालानुगम अधिकार पृष्ठ 99 से

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विविध विषय



+ मूल संघ पट्टावली -
मूल संघ पट्टावली

विशेष :

मूल संघ पट्टावली
केवल ज्ञानी 0-12 वर्ष गौतम स्वामी
13-24 वर्ष सुधर्मा स्वामी / लोहार्य
24-62 वर्ष जम्बू स्वामी
द्वादशांग धारी 62-76 विष्णु
76-92 नन्दिमित्र
92-114 अपराजित
114-133 गोवर्धन
133-162 भद्रबाहु
10 पूर्व धारी 162-172 विशाखाचार्य
172-191 प्रोष्ठिल
191-208 क्षत्रिय
208-229 जयसेन
229-247 नागसेन
247-264 सिद्धार्थ
264-282 घृतसेण
282-295 विजय
295-315 बुद्धिलिंग
315-329 देव
329-345 धर्मसेन
11 अंग 345-363 क्षत्र
11 अंग 363-383 जयपाल
11 अंग 383-422 पांडु
11 अंग 422-436 ध्रुवसेन
11 अंग 436-468 कंस
11 अंग 468-474 सुभद्र
10 अंग 474-492 यशोभद्र
9 अंग 492-515 भद्रबाहु
8 अंग 515-565 लोहाचार्य
1 अंग 565-585 विनयदत्त
1 अंग 565-585 श्रीदत्त
1 अंग 565-585 शिवदत्त
1 अंग 565-585 अर्हदत्त
अंगांशधारी 565-593 अर्हद्वालि
अंगांशधारी 593-614 माघनन्दि
अंगांशधारी 610-633 धरसेन
अंगांशधारी 633-663 पुष्पदंत षट्-खण्डागम
अंगांशधारी 614-683 भूतबलि महा-बंधो
अंगांशधारी 645-654 जिनचंद
अंगांशधारी 654-706 कुंदकुंद समयसार
अंगांशधारी 600-660 आर्यमंक्षु
अंगांशधारी 620-687 नागहस्ति
अंगांशधारी 650-700 यतिवृषभ
अंगांशधारी 706-770 उमास्वामी तत्त्वार्थ-सूत्र
अंगांशधारी 700-740 रविषेण स्वामी
ईश्वी संवत 120-185 समंतभद्र रत्न-करण्ड-श्रावकाचार
220-231 लोहाचार्य
231-289 यशकीर्ति
289-386 यशोनन्दि
336-386 देवनन्दि
386-436 जयनन्दि
436-442 गुणनन्दि
422-464 ब्रजनन्दि
464-505 कुमारनन्दि
505-531 लोकचंद्र
531-556 प्रभाचंद्र
556-565 नेमिचंद्र
565-586 भानुनन्दि
586-603 सिंहनन्दि
603-609 वसुनन्दि
609-639 वीरनन्दि
639-663 रत्ननन्दि
663-679 माणिक्यनन्दि
679-705 मेघचंद्र
705-720 शान्तिकीर्ति
720-758 मेरुकीर्ति
770-860 वादिभसिंह
770-860 सोमसेन
770-860 गुणभद्र
770-860 जिनसेन
770-860 समंतभद्र
818-878 जिनसेन
820-878 दशरथ
820-878 पद्मसेन
820-878 देवसेन
820-898 धर्मसेन
870-898 गुणभद्र उत्तरपुराण, आदिपुराण
905-955 अमृतचंद्र आत्मख्याति टीका
923-960 माघवचंद त्रिलोकसार टीका
923-960 नेमिचन्द सि. चक्र गोम्मटसार, लब्धिसार, त्रिलोकसार
923-963 अमितगति योगसार प्राभृत
930-950 अभयनन्दि जैनेद्र महावृति
930-1023 पद्मनन्दि आविद्धकरण
931 हरिषेण वृहत्कथा
933-955 देवसेन दर्शनसार रचना
935-999 मेघचन्द्र ज्वालामालिनी
937 कुलभद्र सारसमुच्च्य
939 इन्द्रनन्दि श्रुतावतार
939 कनकनन्दि सत्वत्रिभंगी
970 पोन्न शान्तिपुराण
960-993 रत्न अजितनाथ पुराण
950-990 रविभद्र आराधनासार
950-990 वीरनन्दि आचारसार
950-1020 प्रभाचन्द्र प्रमेय कमल मार्तण्ड
974 महासेन प्रघुम्न चरित्र
978 चामुण्डराय चारित्रसार
981 नेमिचन्द्र सि. द्रव्य संग्रह
923-1023 अमितगति श्रावकाचार
987 हरिषेण धम्म परिरक्खा
1023-1028 माणिक्यनन्दि परिक्षामुख
1010-1065 वादिराज एकीभाव स्तोत्र
1018 वीर कवि जम्बू स्वामी चरित्र
1047 मल्लिषेण महापुराण
1047 धवलचार्य हरिवंशपुराण
उत्तरार्ध ईश्वी पद्मनन्दि पंच वंशतिका
1066 श्री चन्द पुराण संग्रह
1068 नेमिचन्द द्रव्य संग्रह
1068-1118 वसुनन्दि प्रतिष्ठा पाठ
1089 अग्गल कवि चन्द्र प्रभा चारित्र
अन्तिम पाद ई. वृत्तिविलास धर्म परीक्षा
1100 नामचन्द्र मल्लिनाथ पुराण
ई.श. 11-12 जयसेन कुन्द्कुन्द त्रयी टीका
ई.श. 11-12 वसुनन्दि श्रावकाचार
1103 वादिभ सिंह स्याद्वाद सिद्धि
1123 नयसेन धर्मामृत
मध्यपाद योगचन्द्र दोहासार
मध्यपाद अनन्तवीर्य प्रमेय रत्नमाला
मध्यपाद पद्मप्रभ मल्ल्धारी नियमसार टीका
1132 गुणधरकीर्ती अध्यात्म टीका
1151 श्रीधर सुकुमाल चरित्र
1173-1243 पं आशाधर सागार / अनगार धर्मामृत
1185-1243 प्रभाचन्द क्रियाकलाप
1189 अग्गल चन्द्र प्रभ पुराण
अंतिमपाद नेमिचन्द्र कर्म प्रकृति
1193-1260 माघनन्दि शास्त्रसार समुच्च
1200 बन्धुवर्मा हरिवंश पुराण
1200 शुभचन्द्र नर पिंगल
ई.श. 12-13 रविचंद्र आराधना सार
पूर्वपाद गुणभद्र धन्य कुमार चरित
1213 माघव चन्द्र क्षपणसार
मध्यपाद रामचन्द मुमुक्षु पुण्यास्रव कथा कोश
उत्तरार्ध अर्हदास गुरुदेव चम्पू
1393-1468 जिनदास जम्बू स्वामी चरित
1387 धनपाल बाहुबलि चरित
मध्यपाद प. योगदेव वारस अणुवेक्खा
1448-1515 तारण स्वामी उपदेश शुद्ध सार
1468-1498 ज्ञान भूषण तत्वज्ञान तरंगिनी
1604 अकलंक शब्दानुशासान
1605 चन्द्रप्रभ गोमटेश्वर चरित्र
1602 ज्ञानकीर्ति यशोधर चरित्र
1623-1643 पं बनारसीदास समयसार नाटक
1623-1643 पं भगवतीदास दंडनासार
मध्यपाद हेमराज पाण्डेय प्रवचनसार वचनिका
मध्यपाद पं हीराचन्द पंचास्तिकाय टीका
1642-1646 पं. जगन्नाथ सुख निधान
1696 महीचन्द आदिपुराण
1697 बुलकीदास पाण्डव पुराण
ई.श. 17-18 संतलाल सिद्धचक्र विधान
ई.18 पूर्वार्ध खुशालचन्द्र व्रतकथा कोष
1716-1728 किशनसिंह क्रिया कोष
1718 पं ज्ञानचंद्र पंचास्तिकाय टीका
1718 पं मनोहरलाल धर्म परीक्षा
1719-1766 पं टोडरमल सम्यकज्ञान चंद्रिका
1720-1772 पं दौलतराम क्रिया कोष
1721-1729 देवेंद्रकीर्ति विषायाहार पूजा
1721-1740 जिनदास हरिवंश पुराण
1722 दीपचंदशाह चिदविलास
1724-1744 जिनसागर जिनकथा
1724-1732 भूधरदास जिनशतक
1730-1733 नरेन्द्र सेन प्रमाण प्रमेय
1741 पं रूपचंद पाण्डेय स. ना. टीका
1761 पं शिवलाल चर्चा संग्रह
1770-1840 पं पन्नालाल राजवार्तिक टीका
1780 पं गुमानीराम समाधिमरण
1795-1867 सदासुख दास रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका
1798-1866 दौलतराम छहढाला

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+ पुराण-पुरुष -
पुराण-पुरुष

विशेष :
दशरथ, कौशल्या, कैकई, सुमित्रा, सुप्रभा, जनक, -- 13 वें स्वर्ग

भामण्डल -- देवकुरु भोग भूमि

राम, भरत, शत्रुघ्न, लव-कुश, कुम्भकरण, विभीषण, मेघनाथ, इंद्रजीत, बालि, हनुमान, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, क्रष्ण के पुत्र -- (भानु कुमार, शम्भू कुमार, प्रधुम्न कुमार), कीचक, गजकुमार, सुकौशल, सुदर्शन, श्रीपाल -- मोक्ष

लक्ष्मण -- वर्तमान में नरक, पुष्कर द्वीप के महाविदेह में तीर्थंकर

सीता -- 16 वें स्वर्ग में प्रतीन्द्रदेव , रावण के जीव का गणधर बनके उसी भव से मोक्ष

रावण -- तीसरे नरक में , भरत क्षेत्र में कई भव बाद पञ्च कल्यांकधारी तीर्थंकर

मन्दोदरी, सुभद्रा -- स्वर्ग

नकुल, सहदेव, सुकमाल,चारुदत्त -- सर्वार्थसिद्धि , एक भवधारी

कृष्ण, जरत्कुमार, द्वीपायनमुनि -- नरक

कंस -- नरक, रौद्र परिणामी होने से बहुत अत्याचार किये अंत में क्रष्ण के हाथों मारा गया

जरासंध -- नरक ।

देवकी और क्रष्ण की 8 रानियाँ (रुक्मणी, सत्यभामा, आदि), द्रोपदी, चेलना, मैनासुन्दरी -- स्वर्ग

श्रेणिक -- नरक में, क्षायिक सम्यकदर्शन, भरत-क्षेत्र की अगली चौबीसी में श्री महापद्म नामक प्रथम तीर्थंकर

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+ जीव-समास (98 भेद) -
जीव-समास (98 भेद)

विशेष :



अंतिम-भेद 2 = पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त
अंतिम-भेद 3 = लब्ध्यपर्याप्त, पर्याप्त और निर्वृत्यपर्याप्त

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+ नरक संबंधी जानकारी -
नरक संबंधी जानकारी

विशेष :

नरक संबंधी जानकारी कुल
पृथ्वी प्रथम द्वितीय तृतीय चौथी पाँचवीं छठी सातवीं
भूमि का नाम रत्नप्रभा शर्कराप्रभा बालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमःप्रभा महातमःप्रभा
रूढ़ि नाम धम्मा वंशा मेघा अंजना अरिष्टा मघवी माघवी
पृथ्वी की मोटाई (यो.) ८०,००० ३२,००० २८,००० २४,००० २०,००० १६,००० ८,०००
बिल इन्द्रक १३ ११ ४९
श्रेणीबद्ध ४४२० २६८४ १४७६ ७०० २६० ६० ९६०४
प्रकीर्णक २९,९५,५६७ २४,९७,३०५ १४,९८,५१५ ९,९९,२९३ २,९९,७३५ ९९,९३२ ८३,९०,३४७
संख्यात यो. वाले ६ लाख ५ लाख ३ लाख २ लाख ६० हजार १९ हजार ९९९ १६,८०,०००
असंख्यात यो. वाले २४ लाख २० लाख १२ लाख ८ लाख २४ लाख ७९ हजार ९९६ ६७,२०,०००
कुल ३० लाख २५ लाख १५ लाख १० लाख ३ लाख पाँच कम 1 लाख ८४ लाख
इन्द्रक की मोटाई १ कोस १ १/२ कोस २ कोस २ १/२ कोस ३ कोस ३ १/२ कोस ४ कोस
इन्द्रक बिलों के अंतराल (यो.) ६४९९-३५/४८ २९९९-४७/८० ३२४९-७/१६ ३६६५-४५/४८ ४४९९-१/१६ ६९९८-११/१६ -
वातावरण उष्ण उष्ण उष्ण उष्ण ३/४ उष्ण, १/४ शीत शीत शीत
अवधिज्ञान का क्षेत्र ४ कोस ३ १/२ कोस ३ कोस २ १/२ कोस २ कोस १ १/२ कोस १ कोस
अवगाहना प्रथम पटल ३ हाथ ८ धनुष २ हाथ २४/११ अंगुल १७ धनुष ३४ २/३ अंगुल ३५ धनुष २ हाथ २० ४/७ अंगुल ७५ धनुष १६६ धनुष २ हाथ १६ अंगुल ५००
अंतिम पटल ७ धनुष ३ हाथ ६ अंगुल १५ धनुष २ हाथ १२ अंगुल ३१ धनुष १ हाथ ६२ धनुष २ हाथ १२५ धनुष २५० धनुष
लेश्या कापोत कापोत कापोत / नील नील नील / कृष्ण कृष्ण परम-कृष्ण
आयु जघन्य १० हजार वर्ष १ सागर ३ सागर ७ सागर १० सागर १७ सागर २२ सागर
उत्कृष्ट १ सागर ३ सागर ७ सागर १० सागर १७ सागर २२ सागर ३३ सागर
नारकियों के जन्म में उत्कृष्ट अंतर २४ मुहूर्त ७ दिन १५ दिन १ माह २ माह ४ माह ६ माह

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+ नरक के 49 पटलों में आयु -
नरक के 49 पटलों में आयु

विशेष :
(आयु में जहां कोई इकाई नहीं दी हो, वहाँ 'सागर' ले लेना, त्रि.सा.2-202)

नरक-गति के पटलों में जघन्य / उत्कृष्ट आयु
पटल संख्या प्रथम पृथ्वी द्वितीय पृथ्वी तृतीय पृथ्वी चतुर्थ पृथ्वी पंचम पृथ्वी षष्ट पृथ्वी सप्तम पृथ्वी
जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य 10,000 वर्ष 1 सागर 1 3 3 7 7 10 10 17 17 22 22 33
1 10,000 वर्ष 90,000 वर्ष 1 13/11 3 31/9 7 52/7 10 57/5 17 56/3 22 33
2 90,000 वर्ष 90,00,000 वर्ष 13/11 15/11 31/9 35/9 52/7 55/7 57/5 64/5 56/3 61/3
3 90,00,000 वर्ष असं. कोटि पूर्व 15/11 17/11 35/9 39/9 55/7 58/7 64/5 71/5 61/3 22
4 असं. कोटि पूर्व 1/10 सागर 17/11 19/11 39/9 43/9 58/7 61/7 71/5 78/5
5 1/10 सागर 1/5 सागर 19/11 21/11 43/9 47/9 61/7 64/7 78/5 17
6 1/5 सागर 3/10 सागर 21/11 23/11 47/9 51/9 64/7 67/7
7 3/10 सागर 2/5 सागर 23/11 25/11 51/9 55/9 67/7 10
8 2/5 सागर 1/2 सागर 25/11 27/11 55/9 59/9
9 1/2 सागर 3/5 सागर 27/11 29/11 59/9 7
10 3/5 सागर 7/10 सागर 29/11 31/11
11 7/10 सागर 4/5 सागर 31/11 3-0
12 4/5 सागर 9/10 सागर
13 9/10 सागर 1 सा

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+ तिर्यञ्च-गति में जघन्य / उत्कृष्ट आयु -
तिर्यञ्च-गति में जघन्य / उत्कृष्ट आयु

विशेष :

तिर्यञ्च-गति में जघन्य / उत्कृष्ट आयु
मार्गणा विशेष आयु
उत्कृष्ट जघन्य
एकेन्द्रिय पृथ्वी-कायिक शुद्ध 12,000 वर्ष अन्तर्महुर्त
पृथ्वी-कायिक खर 22,000 वर्ष
अप-कायिक 7,000 वर्ष
तेज-कायिक 3 दिन रात
वायु-कायिक 3,000 वर्ष
वनस्पति साधारण 10,000 वर्ष
विकलेन्द्रिय द्वीन्द्रिय 12 वर्ष
त्रीन्द्रिय 49 दिन रात
चतुरिंद्रिय 6 महीने
पंचेन्द्रिय जलचर मत्स्यादि 1 कोड पूर्व
परिसर्ग गोह ,नेवला ,सरी-सृपादि 9 पूर्वांग
उरग सर्प 42,000 वर्ष
पक्षी कर्म भूमिज भैरुंड आदि 72,000 वर्ष
चौपाये कर्म भूमिज 1 पल्य
असंज्ञी पंचेन्द्रिय कर्म भूमिज 1 कोड पूर्व
भोग भूमिज उत्तम भोगभूमिज देव कुरु -उत्तर कुरु 3 पल्य
मध्यम भोगभूमिज हरि व् रम्यक क्षेत्र 2 पल्य
जघन्य भोगभूमिज हेमवत -हैरण्यवत 1 पल्य
कुभोगभूमिज (अंतर्द्वीप ) 1 पल्य
कर्म भूमिज 1 पल्य

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+ एक अंतर्महुर्त में लब्ध्यपर्याप्तक के संभव निरंतर क्षुद्र भव -
एक अंतर्महुर्त में लब्ध्यपर्याप्तक के संभव निरंतर क्षुद्र भव

विशेष :

एक अंतर्महुर्त मे लब्ध्यपर्याप्तक के संभव निरंतर क्षुद्र भव
क्रम मार्गणा एक अंतर्महुर्त के भव
नाम सूक्ष्म / बादर प्रत्येक मे योग (जोड़)
स्थावर 1 पृथ्वी कायिक सूक्ष्म 6012 66132
2 बादर 6012
3 अप कायिक सूक्ष्म 6012
4 बादर 6012
5 तेज कायिक सूक्ष्म 6012
6 बादर 6012
7 वायु कायिक सूक्ष्म 6012
8 बादर 6012
9 वनस्पति साधारण सूक्ष्म 6012
10 बादर 6012
11 वनस्पति अप्रति प्रत्येक बादर 6012
विकलेंद्रिय 12 द्वीन्द्रिय बादर 80 180
13 त्रीन्द्रिय बादर 60
14 चतुरिंद्रिय बादर 40
पंचेंद्रिय 15 असंज्ञी बादर 8 24
16 संज्ञी बादर 8
17 मनुष्य बादर 8
कुल योग 66336

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+ मनुष्य-गति मार्गणा में आयु -
मनुष्य-गति मार्गणा में आयु

विशेष :

मनुष्य-गति मार्गणा में आयु
अपेक्षा विशेष (ति.प. गा) जघन्य आयु (ति.प. गा) उत्कृष्ट आयु
क्षेत्र भरत-एरावत क्षेत्र सुषमा सुषमा काल 2 पल्य 3 पल्य
सुषमा काल 1 पल्य 2 पल्य
सुषमा दुषमा काल 1 कोटि पूर्व 1 पल्य
दुषमा सुषमा काल 120 वर्ष 1 कोटि पूर्व
दुषमा काल 20 वर्ष 120 वर्ष
दुषमा दुषमा काल 12 वर्ष 20 वर्ष
विदेह क्षेत्र 2255 अंतमहूर्त 2255 1 कोटि पूर्व
हेमवत-हैरण्यवत 1 कोटि पूर्व 1 पल्य
हरि रम्यक 404 1 पल्य 396 2 पल्य
देव-उत्तर कुरु 2 पल्य 335 3 पल्य
अंतर्द्वीपज म्लेच्छ 1 कोटि पूर्व 2513 1 पल्य
(ति.प. गा) जघन्य आयु (ति.प. गा) उत्कृष्ट आयु
काल अवसर्पिणी सुषमा सुषमा काल 2 पल्य 335 3 पल्य
सुषमा काल 1 पल्य 396 2 पल्य
सुषमा दुषमा काल 1 कोटि पूर्व 404 1 पल्य
दुषमा सुषमा काल 120 वर्ष 1277 1 कोटि पूर्व
दुषमा काल 20 वर्ष 1475 120 वर्ष
दुषमा दुषमा काल 1554 15 या 16 वर्ष 1536 20 वर्ष
उत्सर्पिणी सुषमा सुषमा काल 1564 15 या 16 वर्ष 20 वर्ष
सुषमा काल 1568 20 वर्ष 120 वर्ष
सुषमा दुषमा काल 1576 120 वर्ष 1595 1 कोटि पूर्व
दुषमा सुषमा काल 1596 1 कोटि पूर्व 1598 1 पल्य
दुषमा काल 1600 1 पल्य 2 पल्य
दुषमा दुषमा काल 1602 2 पल्य 1604 3 पल्य
(ति.प. गा) जघन्य आयु (ति.प. गा) उत्कृष्ट आयु
भोग-भूमि उत्तम भोग भूमि 290 2 पल्य 290 3 पल्य
मध्यम भोग भूमि 289 1 पल्य 289 2 पल्य
जघन्य भोग भूमि 288 1 कोटि पूर्व 288 1 पल्य

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+ देव-गति में व्यन्तर देव संबंधी आयु -
देव-गति में व्यन्तर देव संबंधी आयु

विशेष :

देव-गति में व्यन्तर देव संबंधी आयु
प्रमाण - 1 (मू.आ. १११६-१७); 2 (त.सू. ४/३८-३९); 3 (ति.प. ४,५,६/गा),
4 (त्रि.सा. २४०-२९३), 5 (द्र.सं./टी. ३५/१४२)
ति.प.गा अन्य प्रमाण नाम आयु
उत्कृष्ट जघन्य
83 1,2 व्यंतर सामान्य 1 पल्य 10,000 वर्ष
84 4,5 किन्नर आदि आठों इंद्र 1 पल्य
84 4,5 प्रतींद्र 1 पल्य
समानिक 1 पल्य
महत्तर देव 1/2 पल्य
शेष देव यथायोग्य
85 4 नीचोपपाद 10,000 वर्ष
दिग्वासी 20,000 वर्ष
अंतर निवासी 30,000 वर्ष
कूषमांड 40,000 वर्ष
उत्पन्न 50,000 वर्ष
अनुत्पन्न 60,000 वर्ष
प्रमाणक 70,000 वर्ष
गंध 80,000 वर्ष
महागंध 84,000 वर्ष
भुजंग (जुगल) 1/8 पल्य
प्रातिक 1/4 पल्य
आकाशोत्पन्न 1/2 पल्य
जंबू द्वीप के रक्षक
ति.प.४ गा. ति.प.५ गा. नाम आयु
उत्कृष्ट जघन्य
76 महोराग 1 पल्य 10,000 वर्ष
276 वृषभ देव
1712 शाली देव
51 अन्य सर्व द्वीप समुद्रों के अधिपति देव
देवियाँ
ति.प.४ गा. ति.प.५ गा. नाम आयु
उत्कृष्ट जघन्य
1672 श्री देवी 1 पल्य 10,000 वर्ष
1728 ह्रीं देवी
1762 धृति देवी
209 बला देवी
258 लवणा देवी
इसी प्रकार अन्य सब देवियों की जानना

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+ देव गति में भवनवासी संबंधी आयु -
देव गति में भवनवासी संबंधी आयु

विशेष :

देव गति में भवनवासी संबंधी आयु
क्रम नाम आयु सामान्य मूल भेद प्रतींद्र / त्रायस्त्रिंश / लोकपाल / सामानिक आत्मरक्ष परिषद् सेनापति आरोहक वाहन या अनीक
देव सामान्य इंद्र जघन्य उत्कृष्ट इंद्र इंद्राणी देव देवी अभ्यंतर माध्यम बाह्य
1 असुर कुमार चमरेन्द्र
सर्वत्र 10,000 वर्ष
इंद्रवत
1 सागर 2 1/2 पल्य स्व स्व इंद्रवत 1 पल्य
कथन नष्ट हो गया है (ति.प,6/161,174)
2 1/2 पल्य 2 पल्य 1 1/2 पल्य 1 पल्य 1/2 पल्य
वैरोचन साधिक 1 सागर 3 पल्य साधिक 1 पल्य 3 पल्य 2 1/2 पल्य 2 पल्य साधिक 1 पल्य साधिक 1/2 पल्य
2 नाग कुमार भूतानन्द 3 पल्य 1/8 पल्य 1 कोटि पूर्व 1/8 पल्य 1/16 पल्य 1/32 पल्य 1 कोटि पूर्व 1 कोटि वर्ष
धरणानन्द साधिक 3 पल्य साधिक 1/8 पल्य साधिक 1 कोटि पूर्व साधिक 1/8 पल्य साधिक 1/16 पल्य साधिक 1/32 पल्य साधिक 1 कोटि पूर्व साधिक 1 कोटि वर्ष
3 सुपर्ण कुमार वेणु 2 1/2 पल्य 3 कोटि पूर्व 1 कोटि वर्ष 3 कोटि पूर्व 2 कोटि पूर्व 1 कोटि पूर्व 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष
वेणुधारी साधिक 2 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि पूर्व साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 3 कोटि पूर्व साधिक 2 कोटि पूर्व साधिक 1 कोटि पूर्व साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष
4 द्वीप कुमार पूर्ण 2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
विशिष्ट साधिक 2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
5 उदधि कुमार जल प्रभ 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
जल कान्त साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
6 स्तनित कुमार घोष 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
महा घोष साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
7 विद्युत कुमार हरिषेण 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
हरिकान्त साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
8 दिक्कुमार अमित गति 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
अमित वाहन साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
9 अग्नि कुमार अग्नि शिखा 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
अग्नि वाहन साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष
10 वायु कुमार विलम्ब 1 1/2 पल्य 3 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 3 कोटि वर्ष 2 कोटि वर्ष 1 कोटि वर्ष 1 लाख वर्ष 50,000 वर्ष
प्रभज्जन साधिक 1 1/2 पल्य साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 3 कोटि वर्ष साधिक 2 कोटि वर्ष साधिक 1 कोटि वर्ष साधिक 1 लाख वर्ष साधिक 50,000 वर्ष


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+ देव गति में ज्योतिष संबंधी आयु -
देव गति में ज्योतिष संबंधी आयु

विशेष :

देव गति मे ज्योतिष देव सम्बन्धी
प्रमाण सं नाम आयु
जघन्य (प्रमाण नं 5) उत्कृष्ट
1-7 चन्द्र 1/8 पल्य 1 पल्य+1 लाख वर्ष
1-7 सूर्य 1/8 पल्य 1 पल्य+1000 वर्ष
1-7 शुक्र 1/8 पल्य 1 पल्य+100 वर्ष
2,3,4,6,7 वृहस्पति 1/8 पल्य 1 पल्य
1 बृहस्पति 1/8 पल्य 1 पल्य+100 वर्ष
5 बृहस्पति 1/8 पल्य 3/4 पल्य
1-7 बुध, मंगल 1/8 पल्य 1/2 पल्य
1-7 शनि 1/8 पल्य 1/2 पल्य
1-7 नक्षत्र 1/8 पल्य 1/2 पल्य
1-7 तारे 1/8 पल्य 1/4 पल्य
त्रि.सा 449 सर्व देवियाँ स्व-स्व देवों से आधी
घातायुष्क की अपेक्षा : ध. 7/2,२,30/129; त्रि.सा,541, सम्यक दृष्टि : स्व स्व उत्कृष्ट + 1/2 पल्य, मिथ्यादृष्टि : स्व स्व उत्कृष्ट + पल्य /अ सं
प्रमाण : 1=(मू.आ. 1122-1123), 2=(त.सू. 4/40-41), 3=(ति.प. 7/617-625), 4=(रा.वा. 4/40-41/249), 5=(हरि.पु. 6/89), 6=(जं.प. 12/95-96), 7=(त्रि.सा. 446)

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+ देव गति मे सौधर्म-ईशान देव सम्बन्धी आयु -
देव गति मे सौधर्म-ईशान देव सम्बन्धी आयु

विशेष :

देव गति मे सौधर्म-ईशान देव सम्बन्धी आयु
नाम आयु बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 1 पल्य साधिक 2 सागर
घातायुष्क सम्यक दृष्टि 1 पल्य + 1/2 पल्य 2 सागर + 1/2 सागर
मिथ्या दृष्टि 1 पल्य + पल्य /अ सं 2 सागर + पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल ऋजु 3/2 पल्य 1/2 सागर 666,666,666,666,66 2/3 पल्य स्व स्व उत्कृष्ट आयुवत
विमल 1/2 सागर 17/30 सागर 1,333,333,333,333,33 1/3 पल्य
चन्द्र 17/30 सागर 19/30 सागर 20,000,000,000,000,00 पल्य
वल्गु 19/30 सागर 21/30 सागर 266,666,666,666,66 2/3 पल्य
वीर 21/30 सागर 23/30 सागर 333,333,333,333,333 1/3 पल्य
अरुण 23/30 सागर 25/30 सागर 400,000,000,000,000 पल्य
नंदन 25/30 सागर 27/30 सागर 466,666,666,666,666 2/3 पल्य
नलिन 27/30 सागर 29/30 सागर 533,333,333,333,333 1/3 पल्य
कांचन 29/30 सागर 31/30 सागर 600,000,000,000,000 पल्य
रुधिर 31/30 सागर 33/30 सागर 666,666,666,666,666 2/3 पल्य
चचू 33/30 सागर 35/30 सागर 733,333,333,333,333 1/3 पल्य
मरुत 35/30 सागर 37/30 सागर 800,000,000,000,000 पल्य
ऋद्धीश 37/30 सागर 39/30 सागर 866,666,666,666,666 2/3 पल्य
वैडूर्य 39/30 सागर 41/30 सागर 933,333,333,333,333 पल्य
रुचक 41/30 सागर 43/30 सागर 1,000,000,000,000,000 पल्य
रुचिर 43/30 सागर 45/30 सागर 1,066,666,666,666,666 2/3 पल्य
अंक 45/30 सागर 47/30 सागर 1,133,333,333,333,333 1/3 पल्य
स्फटिक 47/30 सागर 49/30 सागर 1,200,000,000,000,000 पल्य
तपनीय 49/30 सागर 51/30 सागर 1,266,666,666,666,666 पल्य
मेघ 51/30 सागर 53/30 सागर 1,333,333,333,333,333 पल्य
अभ्र 53/30 सागर 55/30 सागर 1,400,000,000,000,000 पल्य
हरित 55/30 सागर 57/30 सागर 1,466,666,666,666,666 2/3 पल्य
पद्म 57/30 सागर 59/30 सागर 1,533,333,333,333,333 1/3 पल्य
लोहितांक 59/30 सागर 61/30 सागर 1,600,000,000,000,000 पल्य
वरिष्ट 61/30 सागर 63/30 सागर 1,666,666,666,666,666 2/3 पल्य
नन्दावर्त 63/30 सागर 65/30 सागर 1,73,3333,333,333,333 1/3 पल्य
प्रभंकर 65/30 सागर 67/30 सागर 1,800,000,000,000,000 पल्य
पिश्टाक (पृष्ठक) 67/30 सागर 69/30 सागर 1,866,666,666,666,666 2/3 पल्य
गज 69/30 सागर 71/30 सागर 1,933,333,333,333,333 1/22 पल्य
मित्र 71/30 सागर 73/30 सागर 20,000,000,000,000,000 पल्य
प्रभा 73/30 सागर 5/2 सागर साधिक 2 सागर

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+ सानतकुमार / महेंद्र युगल में आयु -
सानतकुमार / महेंद्र युगल में आयु

विशेष :

सानतकुमार / महेंद्र युगल में आयु
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 2 सागर साधिक 7 सागर स्व स्व उत्कृष्ट आयुवत
घातायुष्क सम्यग्दृष्टि 5/2 सागर 7/2 सागर
मिथ्यादृष्टि 2 सागर + पल्य /अ सं 7 सागर + पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल अंजन 5/2 सागर 45/14 सागर 19/7 सागर
वनमाला 45/14 सागर 43/14 सागर 24/7 सागर
नाग 55/14 सागर 63/14 सागर 29/7 सागर
गरुण 65/14 सागर 75/14 सागर 34/7 सागर
लांगल 75/14 सागर 85/14 सागर 39/7 सागर
बलभद्र 85/14 सागर 95/14 सागर 45/7 सागर
चक्र 95/14 सागर 15/2 सागर साधिक 7 सागर

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+ ब्रह्म-कापिष्ठ युगल संबंधी आयु -
ब्रह्म-कापिष्ठ युगल संबंधी आयु

विशेष :

ब्रह्म ब्रह्मोत्तर युगल संबंधी आयु
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 7 सागर साधिक 10 सागर उत्कृष्ट आयु सामन्य् वत
घातायुष्क सम्यक दृष्टि 7+1/2 सागर 10+1/2 सागर
मिथ्या दृष्टि 7 सागर + पल्य /अ सं 10सागर +पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल अरित 15/2 सागर 33/4 सागर 31/4 सागर
देव समित 33/4 सागर 9 सागर 34/4 सागर
ब्रह्म 9 सागर 39/4 सागर 37/4 सागर
ब्रह्मोत्तर 39/4 सागर 21/2सागर साधिक 10 सागर
लौकंतिक देव 8 सागर 8 सागर 8 सागर
लान्तव-कापिष्ट युगल संबंधी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 10 सागर साधिक 14सागर उत्कृष्ट आयु सामन्य् वत
घातायुष्क सम्यक दृष्टि 10+1/2 सागर 14+1/2 सागर
मिथ्या दृष्टि 10 सागर + पल्य /अ सं 14सागर +पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल ब्रह्मा निलय 21/2 सागर 25/2 सागर साधिक 12सागर
लान्तव 25/2 सागर 29/2 सागर साधिक 14सागर

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+ शुक्र से अच्युत स्वर्ग सम्बन्धी आयु -
शुक्र से अच्युत स्वर्ग सम्बन्धी आयु

विशेष :

शुक्र से प्राणत युगल सम्बन्धी आयु
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 14 सागर साधिक 1 सागर उत्कृष्ट आयुवत
घातायुष्क सम्यग्दृष्टि 15/2 सागर 33/2 सागर
मिथ्या दृष्टि 14 सागर - पल्य /अ सं 16 सागर + पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल महा शुक्र 15/2 सागर 33/2 सागर साधिक 16 सागर
शतार सहस्त्रार युगल सम्बन्धी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य साधिक 16 सागर साधिक 18 सागर उत्कृष्ट आयुवत
घातायुष्क सम्यग्दृष्टि 33/2 सागर 37/2 सागर
मिथ्या दृष्टि 16 सागर + पल्य /अ सं 18 सागर + पल्य /अ सं
प्रत्येक पटल सहस्त्रार 33/2 सागर 37/2 सागर साधिक 18 सागर
आनत प्राणत युगल सम्बन्धी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य 18 सागर 20 सागर उत्कृष्ट आयुवत
घातायुष्क उत्पत्ति का अभाव (त्रि .सा 533)
प्रत्येक पटल आनत 37/2 सागर 19 सागर 112/6 सागर
प्राणत 19 सागर 39/2 सागर 59/3 सागर
पुष्पक 39/2 सागर 20 सागर 20 सागर

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+ आरण से सर्वार्थ-सिद्धि तक आयु -
आरण से सर्वार्थ-सिद्धि तक आयु

विशेष :

आरण से सर्वार्थ-सिद्धि तक आयु
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य 20 सागर 22 सागर उत्पत्ति का अभाव
घातायुष्क उत्पत्ति का अभाव (त्रि .सा 533)
प्रत्येक पटल सातंकर 20 सागर 62/3 सागर 124/6 सागर
आरण 62/3 सागर 64/3 सागर 128/6 सागर
अच्युत 64/3 सागर 22 सागर 22 सागर
नव ग्रैवेयिक संबंधी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य 22 सागर 31 सागर उत्पत्ति का अभाव
घातायुष्क उत्पत्ति का अभाव (त्रि .सा 533)
अधो
प्रत्येक पटल सुदर्शन 21 सागर 23 सागर
अमोघ 23 सागर 24 सागर
सुप्रबद्ध 24 सागर 25 सागर
मध्यम
यशोधर 25 सागर 26 सागर
सुभद्र 26 सागर 27 सागर
सुविशाल 27 सागर 28 सागर
उर्ध्व
सुमनस 28 सागर 29 सागर
सौमनस 29 सागर 30 सागर
प्रीतिकर 30 सागर 31 सागर
नव अनुदिश संबंधी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य 31 सागर 32 सागर उत्पत्ति का अभाव
घातायुष्क उत्पत्ति का अभाव (त्रि .सा 533)
प्रत्येक पटल आदित्य
9 के 9 सर्व
विमान 31 सागर 32 सागर
पञ्च अनुत्तर संबंधी
नाम आयु सामान्य बद्धायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट घातायुष्क की अपेक्षा उत्कृष्ट
जघन्य उत्कृष्ट
सामान्य स्वर्ग सामान्य 32 सागर 33 सागर उत्पत्ति का अभाव
घातायुष्क उत्पत्ति का अभाव (त्रि .सा 533)
प्रत्येक विमान विजय 32 सागर 33 सागर
वैजयंत 32 सागर 33 सागर
जयन्त 32 सागर 33 सागर
अपराजित 32 सागर 33 सागर
सर्वार्थ सिद्धि 33 सागर 33 सागर

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+ वैमानिक परिवार में आयु -
वैमानिक परिवार में आयु

विशेष :

वैमानिक परिवार में आयु
नाम स्वर्ग इन्द्रादिक लोकपालादिक आत्मरक्ष परिषद अनीक प्रकीर्णक
इंद्र इन्द्रत्रिक यम-सोम कुबेर वरुण लो. चतु. अभ्यंतर मध्यम बाह्य
सौधर्म
स्व-स्व स्वर्ग की उत्कृष्ट आयु
स्व-स्व इंद्रवत्
5/2 पल्य 3 पल्य ऊन 3 पल्य स्व स्व स्वामिवत 5/2 पल्य 3 पल्य 4 पल्य 5 पल्य 1 पल्य
कथन नष्ट हो गया है
ईशान 3 पल्य ऊन 3 पल्य साधिक 3 पल्य 5/2 पल्य 3 पल्य 4 पल्य 5 पल्य 1 पल्य
सनत्कुमार 7/2 पल्य 4 पल्य ऊन 4 पल्य 7/2 पल्य 4 पल्य 5 पल्य 6 पल्य 2 पल्य
माहेन्द्र 4 पल्य ऊन 4 पल्य साधिक 4 पल्य 7/2 पल्य 4 पल्य 5 पल्य 6 पल्य 2 पल्य
ब्रह्म 9/2 पल्य 5 पल्य ऊन 5 पल्य 9/2 पल्य 5 पल्य 6 पल्य 7 पल्य 3 पल्य
ब्रह्मोत्तर 5 पल्य ऊन 5 पल्य साधिक 5 पल्य 9/2 पल्य 5 पल्य 6 पल्य 7 पल्य 3 पल्य
लान्तव 11/2 पल्य 6 पल्य ऊन 6 पल्य 11/2 पल्य 6 पल्य 7 पल्य 8 पल्य 4 पल्य
कापिष्ट 6 पल्य ऊन 6 पल्य साधिक 6 पल्य 11/2 पल्य 6 पल्य 7 पल्य 8 पल्य 4 पल्य
शुक्र 13/2 पल्य 7 पल्य ऊन 7 पल्य 13/2 पल्य 7 पल्य 8 पल्य 9 पल्य 5 पल्य
महाशुक्र 7 पल्य ऊन 7 पल्य साधिक 7 पल्य 13/2 पल्य 7 पल्य 8 पल्य 9 पल्य 5 पल्य
शतार 15/2 पल्य 8 पल्य ऊन 8 पल्य 15/2 पल्य 8 पल्य 9 पल्य 10 पल्य 6 पल्य
सहस्त्रार 8 पल्य ऊन 8 पल्य साधिक 8 पल्य 15/2 पल्य 8 पल्य 9 पल्य 10 पल्य 6 पल्य
आनत 17/2 पल्य 9 पल्य ऊन 9 पल्य 17/2 पल्य 9 पल्य 10 पल्य 11 पल्य 7 पल्य
प्राणत 9 पल्य ऊन 9 पल्य साधिक 9 पल्य 17/2 पल्य 9 पल्य 10 पल्य 11 पल्य 7 पल्य
आरण 19/2 पल्य 10 पल्य ऊन 10 पल्य 19/2 पल्य 10 पल्य 11 पल्य 12 पल्य 8 पल्य
अच्युत 10 पल्य ऊन 10 पल्य साधिक 10 पल्य 19/2 पल्य 10 पल्य 11 पल्य 12 पल्य 8 पल्य

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+ वैमानिक इंद्राणि / देवियों संबंधी आयु -
वैमानिक इंद्रों अथवा देवों की देवियों संबंधी आयु

विशेष :

वैमानिक इंद्रों अथवा देवों की देवियों संबंधी आयु
नं स्वर्ग इंद्र की देवियाँ इन्द्रत्रिक की देवियाँ लोकपाल परिवार की देवियाँ आत्मरक्षकों की देवियाँ पारिषद की देवियाँ अनीकों की देवियाँ प्रकी. त्रिक की देवियाँ
द्रष्टि नं 1 द्रष्टि नं 2 द्रष्टि नं 3 सोम-यम कुबेर वरुण लो. त्रिक
1 सौधर्म 5 पल्य 5 पल्य 5 पल्य स्व-स्व इन्द्रों की देवियोंवत् 5/4 पल्य 3/2 पल्य ऊन 3/2 पल्य स्व-स्व स्वामिवत् कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है कथन नष्ट हो गया है
2 ईशान 7 पल्य 7 पल्य 7 पल्य 3/2 पल्य 3/2 पल्य साधिक 3/2 पल्य
3 सनत्कुमार 9 पल्य 9 पल्य 17 पल्य 9/4 पल्य 5/2 पल्य ऊन 5/2 पल्य
4 माहेन्द्र 11 पल्य 11 पल्य 17 पल्य 5/2 पल्य 5/2 पल्य साधिक 5/2 पल्य
5 ब्रह्म 13पल्य 13पल्य 25 पल्य 13/4 पल्य 7/2 पल्य ऊन 7/2 पल्य
6 ब्रह्मोत्तर 15 पल्य 15 पल्य 25 पल्य 7/2 पल्य 7/2 पल्य साधिक 7/2 पल्य
7 लान्तव 17पल्य 17पल्य 35 पल्य 17/4 पल्य 9/2 पल्य ऊन 9/2 पल्य
8 कापिष्ट 19 पल्य 19 पल्य 35 पल्य 1/2 पल्य 9/2 पल्य साधिक 9/2 पल्य
9 शुक्र 21 पल्य 21 पल्य 40 पल्य 21/4 पल्य 11/2 पल्य ऊन 11/2 पल्य
10 महाशुक्र 23 पल्य 23 पल्य 40 पल्य 11/2 पल्य 11/2 पल्य साधिक 11/2 पल्य
11 शतार 25 पल्य 25 पल्य 45 पल्य 25/4 पल्य 13/2 पल्य ऊन 13/2 पल्य
12 सहस्त्रार 27 पल्य 27 पल्य 45 पल्य 13/2 पल्य 13/2 पल्य साधिक 13/2 पल्य
13 आनत 34 पल्य 29 पल्य 50 पल्य 29/4 पल्य 15/2 पल्य ऊन 15/2 पल्य
14 प्राणत 41 पल्य 31 पल्य 50 पल्य 15/2 पल्य 15/2 पल्य साधिक 15/2 पल्य
15 आरण 48 पल्य 33 पल्य 55 पल्य 33/4 पल्य 17/2 पल्य ऊन 17/2 पल्य
16 अच्युत 55 पल्य 35 पल्य 55 पल्य 17/2 पल्य 17/2 पल्य साधिक 17/2 पल्य

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+ चौबीस तीर्थंकर निर्देश -
चौबीस तीर्थंकर निर्देश

विशेष :

ऋषभनाथ अजितनाथ संभवनाथ अभिनंदन सुमतिनाथ पद्मप्रभु सुपार्श्व चंद्रप्रभ पुष्पदंत शीतलनाथ श्रेयांसनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ अरहनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ नेमिनाथ पार्श्वनाथ वर्द्धमान
वर्तमान भव जन्म नगरी म.पु. अयोध्या अयोध्या श्रावस्ती अयोध्या अयोध्या कौशांबी काशी चंद्रपुर काकंदी भद्रपुर सिंहपुर चंपा कांपिल्य अयोध्या रत्नपुर हस्तनागपुर हस्तनागपुर हस्तनागपुर मिथिला राजगृह मिथिला द्वारावती बनारस कुंडलपुर
ति.प. विनीता साकेता साकेता साकेता वाराणसी शौरीपुर वाराणसी कुंडपुर
प.पु. अयोध्या अयोध्या वत्स काशी विनीता कुशाग्रनगर द्वारावती बनारस कुंडलपुर
ह.पु. अयोध्या अयोध्या कौशांबी भद्रिल सिंहनादपुर अयोध्या शौरीपुर वाराणसी कुंडपुर
चिह्न ति.प. बैल गज अश्व बंदर चकवा कमल नंद्यावर्त अर्धचंद्र मगर स्वस्तिक गैंडा भैंसा शूकर सेही वज्र हरिण छाग मत्स्य कलश कूर्म उत्पल (नीलकमल) शंक सर्प सिंह
यक्ष ति.प. गोवदन महायक्ष त्रिमुख यक्षेश्वर तुंबुरव मातंग विजय अजित ब्रह्म ब्रह्मेश्वर कुमार शन्मुख पाताल किन्नर किंपुरुष गरुड गंधर्व कुबेर वरुण भुकुटि गोमेध पार्श्व मातंग गुह्यक
यक्षिणी ति.प. चक्रेश्वरी रोहिणी प्रज्ञप्ति वज्रशृंखल वज्रांकुशा अप्रतिचक्रेश्वरी पुरुषदत्ता मनोवेगा काली ज्वालामालिनी महाकाली गौरी गांधारी वैरोटी सोलसा (अनंत.) मानसी महामानसी जया विजया अपराजिता बहुरूपिणी कूष्मांडी पद्मा सिद्धयिनी
पिता म.पु. नाभिराय जितशत्रु दृढराज्य स्वयंवर मेघरथ धरण सुप्रतिष्ठ महासेन सुग्रीव दृढरथ विष्णु वसुपूज्य कृतवर्मा सिंहसेन भानु विश्वसेन सूरसेन सुदर्शन कुंभ सुमित्र विजय समुद्रविजय विश्वसेन सिद्धार्थ
ति.प. जितारि संवर मेघप्रभ अश्वसेन
म.पु. दृढराज्य स्वयंवर मेघरथ भानुराज विश्वसेन
ह.पु. जितारि संवर मेघप्रभ भानु सूर्य अश्वसेन
माता म.पु. मरुदेवी विजयसेना सुषैणा सिद्धार्था मंगला सुसीमा पृथ्वीषैणा लक्ष्मणा जयरामा सुनंदा सुनंदा जयावती जयश्यामा जयश्यामा सुप्रभा ऐरा श्रीकांता मित्रसेना प्रजावती सोमा महादेवी शिवदेवी ब्राह्मी प्रियकारिणी
ति.प. सेना लक्ष्मीमती रामा नंदा वेणुश्री विजया सर्वश्यामा सुव्रता श्रीमती प्रभावती पद्मावती वप्रिला वर्मिला
म.पु. सुषैणा सुमंगला लक्ष्मणा जयरामा सुनंदा विष्णुश्री जयावती शर्मा जयश्यामा सुप्रभा श्रीकांता रक्षिता सोमा वप्रा वर्मा
ह.पु. सेना सुमंगला रामा विष्णुश्री शर्मा सर्वश्यामा सुव्रता श्रीमती रक्षिता पद्मावती वप्रा वर्मा
वंश ति.प. इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु कुरु इक्ष्वाकु कुरु कुरु इक्ष्वाकु यादव इक्ष्वाकु यादव उग्र नाथ
त्रि.सा. इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु इक्ष्वाकु हरिवंश हरिवंश
गर्भ-तिथि म.पु. आषाढ कृ.2 ज्येष्ठ कृ.15 फा.शु.8 वैशा.शु.6 श्रा.शु.2 माघ कृ.6 भाद्र शु.6 चैत्र कृ.5 फा.कृ.9 चैत्र कृ.8 ज्येष्ठ कृ.6 आषा.कृ.6 ज्येष्ठ कृ.10 कार्ति.कृ.1 वैशा.शु.13 भाद्र कृ.7 श्रा.कृ.10 फा.कृ.3 चैत्र शु.1 श्रा.कृ.2 आश्वि.कृ.2 कार्ति.शु.6 वैशा.कृ.2 आषा.शु.6
गर्भ-नक्षत्र म.पु. उत्तराषाढा रोहिणी मृगशिरा पुनर्वसु मघा चित्रा विशाखा ... मूल पूर्वाषाढा श्रवण शतभिषा उत्तरभाद्रपदा रेवती रेवती भरणी कृत्तिका रेवती अश्विनी श्रवण अश्विनी उत्तराषाढा विशाखा उत्तराषाढा
गर्भ-काल म.पु. ब्रह्ममुहूर्त प्रात: प्रात: पिछली रात्रि प्रभात अंतिम रात्रि प्रात: अंतिम रात्रि प्रात: अंतिम रात्रि अंतिम रात्रि अंतिम रात्रि प्रात: अंतिम रात्रि अंतिम रात्रि प्रात: अंतिम रात्रि
जन्म तिथि म.पु. चैत्रकृ.9 माघशु.10 कार्ति.शु.15 माघशु.12 चैत्र शु.11 कार्ति.कृ.13 ज्येष्ठशु.12 पौषकृ.11 मार्ग.शु.1 माघकृ.12 फा.कृ.11 फा.कृ.14 माघ शु.4 माघ शु.14 ज्येष्ठकृ.12 माघशु.13 ज्येष्ठ कृ.14 वैशा.शु.1 मार्ग.शु.14 मार्ग.शु.11 वैशाखकृष्णा दशम्यां आषा.कृ.10 श्रा.शु.6 पौषकृ.11 चैत्रशु.13
ति.प. मार्ग.शु.15 श्रा.शु.11 आश्वि.कृ.13 माघ शु.14 ज्येष्ठ शु.12 आश्वि.शु.12 माघ कृ.12 आषा.शु.10 वैशा.शु.13
ह.पु. मार्ग.शु.15 श्रा.शु.11 कार्ति.कृ.13 माघ शु.14 ज्येष्ठ कृ.14 आश्वि.शु.12 माघ कृ.12 आषा.कृ.10 वैशा.शु.13
जन्म नक्षत्र ति.प. उत्तराषाढा रोहिणी ज्येष्ठा पुनर्वसु मघा चित्रा विशाखा अनुराधा मूल पूर्वाषाढा श्रवण विशाखा पूर्वभाद्रपदा रेवती पुष्य भरणी कृत्तिका रोहिणी अश्चिनी श्रवण अश्विनी चित्रा विशाखा उत्तरा-फाल्गुनी
प.पु. पूर्वाषाढा,मृगशिरा शतभिषा उत्तरा भाद्रपदा
ह.पु. ज्येष्ठा शतभिषा उत्तरा भाद्रपदा
म.पु. पूर्वाषाढा,मृगशिरा चित्रा विशाखा पुष्य स्वाति
योग म.पु. प्रजेशयोग साम्ययोग अदितियोग पितृ त्वष्ट्रयोग अग्निमित्र शक्र जैत्र विश्व विष्णु वारुण अहिर्बुध्न पूषा गुरु याम्य आग्नेय ब्रह्म अनिल अर्यमा
ऊंचाई 500 ध. 450 ध. 400 ध. 350 ध. 300 ध. 250 ध. 200 ध. 150 ध. 100 ध. 90 ध. 80 ध. 70 ध. 60 ध. 50 ध. 45 ध. 40 ध. 35 ध. 30 ध. 25 ध. 20 ध. 15 ध. 10 ध. 9 हाथ 7 हाथ
वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण रक्त हरित धवल धवल स्वर्ण स्वर्ण रक्त स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण स्वर्ण नील स्वर्ण नील हरित स्वर्ण
नाम निर्देश म.पु. ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पद्मप्रभु सुपार्श्व चंद्रप्रभु सुविधि शीतलनाथ श्रेयान्सनाथ वासुपूज्य विमलनाथ अनंतनाथ धर्मनाथ शांतिनाथ कुंथुनाथ अरनाथ मल्लिनाथ मुनिसुव्रत नमिनाथ नेमिनाथ पार्श्वनाथ वर्द्धमान
ति.प. पुष्पदंत सुव्रतनाथ
प.पु. सुविधि महावीर
ह.पु. श्रेयोनाथ अनंतजित मुनिसुव्रत
वैराग्य कारण ति.प. नीलांजना मरण उल्कापात मेघ गंधर्व नगर जातिस्मरण जातिस्मरण पतझड़ तड़िद् उल्कापात हिमनाश पतझड़ जातिस्मरण मेघ उल्कापात उल्कापात जातिस्मरण जातिस्मरण मेघ तड़िद् जातिस्मरण जातिस्मरण जातिस्मरण जातिस्मरण जातिस्मरण
म.पु. मेघ ऋतु परिवर्तन ऋतु परि. हिम बसंत-वि. चिंतवन हिम दर्पण जातिस्मरण हाथी का संयम पशुक्रंदन
दीक्षा तिथि म.पु. चैत्र कृ.9 माघ शु.9 माघ शु.12 वैशा.शु.9 कार्ति कृ.13 ज्येष्ठ शु.12 पौष कृ.11 मार्ग.शु.1 मार्ग.कृ.12 फा.कृ.11 फा.कृ.14 माघ शु.4 ज्येष्ठ कृ.12 माघ शु.13 ज्येष्ठ कृ.14 वैशा.शु.1 मार्ग.शु.10 मार्ग.शु.11 वैशा.कृ.10 आषा.कृ.10 श्रा.शु.6 पौष कृ.11 मार्ग.कृ.10
ति.प. मार्ग.शु.15 भाद्र शु.13 माघ शु.11
ह.पु. मार्ग.शु.15 माघ शु.13 ज्येष्ठ कृ.13 मार्ग.शु.1 वैशा.कृ.9 श्रा.शु.7 16+56 श्रा.शु.4 श्रा.शु.6
दीक्षा नक्षत्र ति.प. उत्तराषाढा रोहिणी ज्येष्ठा पुनर्वसु मघा चित्रा विशाखा अनुराधा अनुराधा मूल श्रवण विशाखा उ.भाद्रपदा रेवती पुष्य भरणी कृत्तिका रेवती अश्विनी श्रवण अश्विनी चित्रा विशाखा उत्तरा फा.
म.पु. उत्तराषाढा रोहिणी पूर्वाषाढा
दीक्षा काल ति.प. अपराह्न अपराह्न अपराह्न पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न
ह.पु. अपराह्न सायंकाल संध्या अपराह्न पूर्वाह्न
म.पु. सायंकाल सायंकाल अपराह्न सायंकाल प्रात: अपराह्न संध्या सायंकाल सायंकाल प्रात: सायंकाल सायंकाल सायंकाल सायंकाल सायंकाल संध्या सायंकाल सायंकाल सायंकाल सायंकाल प्रात: संध्या
दीक्षोपवास ति.प. षष्ठोपवास अष्ट भक्त तृतीय उप. तृतीय उप. तृतीय उप. तृतीय भक्त तृतीय भक्त तृतीय उप. तृतीय भक्त तृतीय उप. तृतीय भक्त एक उप. तृतीय उप. तृतीय भक्त तृतीय भक्त तृतीय उप. तृतीय भक्त तृतीय भक्त षष्ठ भक्त तृतीय उप. तृतीय भक्त तृतीय भक्त षष्ठ भक्त तृतीय भक्त
ह.पु. बेला बेला बेला बेला तेला बेला बेला बेला बेला बेला बेला 1 उपवास बेला बेला बेला बेला बेला बेला तेला बेला बेला बेला एक उपवास बेला
दीक्षा वन ति.प. सिद्धार्थ सहेतुक सहेतुक उग्र सहेतुक मनोहर सहेतुक सर्वार्थ पुष्प सहेतुक मनोहर मनोहर सहेतुक सहेतुक शालि आम्रवन सहेतुक सहेतुक शालि नील चैत्र सहकार अश्वत्थ नाथ
म.पु. अग्रोद्यान सुवर्तक पुष्पक शाल सहस्राम्र श्वेत नीलोद्यान चैत्रोद्यान सहस्रार अश्ववन षंडवन
दीक्षा वृक्ष प.पु. वट सप्तवर्ण शाल सरल प्रियंगु प्रियंगु श्रीष नाग साल प्लक्ष तेंदु पाटला जंबू पीपल दधिपर्ण नंद तिलक आम्र अशोक चंपक बकुल मेषशृंग धव साल
म.पु. शाल्मलि असन नाग बेल तुंबुर कदंब अश्वत्थ सप्तच्छद नंद्यावर्त बांस देवदारु
सह दीक्षित 4000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 1000 606 1000 1000 1000 1000 1000 1000 300 2000 2000 2000 300 एकाकी
केवलज्ञान तिथि ति.प. फा.कृ.11 पौष शु.14 का.कृ.5 का.शु.5 पौष शु.15 वैशा.शु.10 फा.कृ.7 फा.कृ.7 का.शु.3 पौष कृ.14 माघ कृ.15 माघ शु.2 पौष शु.10 चैत्र कृ.15 पौष शु.15 पौष शु.11 चैत्र शु.3 का.शु.12 फा.कृ.12 फा.कृ.6 चैत्र शु.3 आश्वि.शु.1 चैत्र कृ.4 वै.शु.10
ह.पु. फा.कृ.11 पौष शु.15 चैत्र शु.10 चैत्र शु.10 मार्ग.शु.5
म.पु. फा.कृ.11 पौष शु.11 का.कृ.4 पौष शु.14 चैत्र शु.11 चैत्र शु.15 फा.कृ.6 का.शु.2 माघ शु.6 पौष शु.10 मार्ग.शु.11 चैत्र कृ.10 मार्ग.शु.11 आश्वि.कृ.1 चैत्र कृ.13
केवलज्ञान नक्षत्र ति.प. उत्तराषाढा रोहिणी ज्येष्ठा पुनर्वसु हस्त चित्रा विशाखा अनुराधा मूल पूर्वाषाढा श्रवण विशाखा उत्तराषाढा रेवती पुष्य भरणी कृत्तिका रेवती अश्विनी श्रवण अश्विनी चित्रा विशाखा मघा
म.पु. मृगशिरा उत्तराभाद्रा हस्त व उत्तराफागुनी
केवलोत्पत्ति काल ति.प. पूर्वाह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न
ह.पु. पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न अपराह्न
म.पु. संध्या संध्या संध्या सूर्यास्त सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं सायं प्रात: सायं सायं प्रात: प्रात:
निर्वाण निर्वाण तिथि म.पु. माघ. कृ.14 चैत्र शु.5 चैत्र शु.6 वै.शु.7 चैत्र शु.10 फा.कृ.4 फा.कृ.6 भाद्र.शु.7 आश्वि.शु.8 का.शु.5 श्रा.शु.15 फा.कृ.5 आषा.शु.8 चैत्र कृ.15 ज्येष्ठकृ.14 ज्येष्ठकृ.14 वै.शु.1 चैत्र कृ.15 फा.कृ.5 फा.कृ.12 वै.कृ.14 आषा.कृ.8 श्रा.शु.7 का.कृ.14
ति.प. भाद्र.शु.8 आश्वि.शु.5 ज्येष्ठ शु.4 माघ शु.13
ह.पु. वै.शु.6 चै.शु.11 फा.शु.7 फा.शु.7 आश्वि.शु.8 भाद्र.शु.14 फा.शु.7 माघ शु.13 आषा.शु.7
निर्वाण नक्षत्र ति.प. उत्तराषाढ़ा भरणी ज्येष्ठा पुनर्वसु मघा चित्रा अनुराधा ज्येष्ठा मूल पूर्वाषाढा धनिष्ठा अश्विनी पूर्व भाद्रपद रेवती पुष्य भरणी कृत्तिका रोहिणी भरणी श्रवण अश्विनी चित्रा विशाखा स्वाति
ह.पु. रोहिणी उत्तराभाद्र पुष्य
म.पु. अभिजित् रोहिणी मृगशिरा विशाखा विशाखा उत्तराषाढा रेवती
निर्वाण काल ति.प. पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न पूर्वाह्न पूर्वाह्न अपराह्न सायं सायं प्रात: सायं सायं प्रात: सायं सायं प्रात: सायं सायं प्रात:
ह.पु. अपराह्न
म.पु. सूर्योदय प्रात: सूर्यास्त प्रात: संध्या सूर्योदय सायंकाल सायंकाल सायंकाल सायंकाल सायंकाल प्रात: अंतिम रात्रि पूर्व रात्रि अपर रात्रि अंतिम रात्रि प्रात: अंतिम रात्रि
निर्वाण क्षेत्र कैलास सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद चंपापुर सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद सम्मेद उर्जयंत सम्मेद पावापुरी
सह मुक्त ति.प. 10,000 1000 1000 1000 1000 324 500 1000 1000 1000 1000 601 600 7000 801 900 1000 1000 500 1000 1000 536 36 एकाकी
ह.पु. 3800 6000 536 36
म.पु. अनेक 1000 1000 94 8600 6100 900 9000 5000 533 36
संघ पूर्वधारी ति.प. 4750 3750 2150 2500 2400 2300 2030 4000 1500 1400 1300 1200 1100 1000 900 800 700 610 550 500 450 400 350 300
ह.पु. 2000 5000 750
म.पु. 2000 1500 550
शिक्षक ति.प. 4150 21600 129300 230050 254350 269000 244920 210400 155500 59200 48200 39200 38500 39500 40700 41800 43150 35835 29000 21000 12600 11800 10900 9900
ह.पु. 200400
म.पु.
अवधिज्ञानी ति.प. 9000 9400 9600 9800 11000 10000 9000 2000 8400 7200 6000 5400 4800 4300 3600 3000 2500 2800 2200 1800 1600 1500 1400 1300
ह.पु. 8000
म.पु. 8000
केवली ति.प. 20000 20000 15000 16000 13000 12000 11000 18000 7500 7000 6500 6000 5500 5000 4500 4000 3200 2800 2200 1800 1600 1500 1000 700
ह.पु. 11300 10000 7500 2650
म.पु. 12000 11000 7000 2200
विक्रियाधारी ति.प. 20600 20400 19800 19000 18400 16800 15300 600 13000 12000 11000 10000 9000 8000 7000 6000 5100 4300 2900 2200 1500 1100 1000 900
ह.पु. 20450 19850 16300 15150 10400 1400
म.पु. 20400 19800 16800 15300 14000 2900
पूर्व भव नं.2 (देवगति से पूर्व) नाम म.पु. वज्रनाभि विमलवाहन विमलवाहन महाबल रतिषेण अपराजित नंदिषेण पद्मनाभ महापद्म पद्मगुल्म नलिनप्रभ पद्मोत्तर पद्मसेन पद्मरथ दशरथ मेघरथ सिंहरथ धनपति वैश्रवण हरिवर्मा सिद्धार्थ सुप्रतिष्ठ आनंद नंद
प.पु. वज्रनाभि विमलवाहन विपुलख्याति विपुलवाहन महाबल अतिबल अपराजित नंदिषेण पद्म महापद्म पद्मोत्तर पंकजगुल्म नलिनगुल्म पद्मासन पद्मरथ दृढरथ महामेघरथ सिंहरथ वैश्रवण श्रीधर्म सुरश्रेष्ठ सिद्धार्थ आनंद सुनंद
ह.पु. वज्रनाभि विमल विपुलवाहन महाबल अतिबल अपराजित नंदिषेण पद्म महापद्म पद्मगुल्म नलिनगुल्म पद्मोत्तर पद्मासन पद्म दशरथ मेघरथ सिंहरथ धनपति वैश्रवण श्रीधर्म सिद्धार्थ सुप्रतिष्ठ आनंद नंदन
क्या थे म.पु. चक्रवर्ती मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर मंडलेश्वर
पिता का नाम प.पु. वज्रसेन महातेज रिपुंदम स्वयंप्रभ विमलवाहन सीमंधर पिहितास्रव अरिंदम युगंधर सर्वजनानंद अभयानंद वज्रदंत वज्रनाभि सर्वगुप्ति गुप्तिमान् चिंतारक्ष (घनरथ तीर्थंकर) विपुलवाहन घनरव धीर संवर त्रिलोकीय सुनंद डामर प्रौष्ठिल
ह.पु. वज्रसेन अरिंदम स्वयंप्रभ विमलवाहन सीमंधर पिहितास्रव अरिंदम युगंधर सर्वजनानंद उभयानंद वज्रदत्त वज्रनाभि सर्वगुप्त त्रिगुप्त चित्तरक्ष विमलवाहन घनरथ संवर वरधर्म सुनंद नंद व्यतीतशोक दामर प्रौष्ठिल
देश व नगर म.पु. जंबू-द्वीप,विदेह-क्षेत्र, पुंडरीकिणी जंबू-द्वीप, विदेह-क्षेत्र, सुसीमा जंबू-द्वीप, विदेह-क्षेत्र, क्षेमपुरी जंबू-द्वीप, विदेह-क्षेत्र, रत्नसंचय धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,पुंडरीकिणी धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,सुसीमा धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,क्षेमपुरी धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,रत्नसंचय पुष्कर.वि.पुंडरीकिणी पुष्करवर-द्वीप,.विदेह-क्षेत्र,सुसीमा पुष्करवर-द्वीप,.विदेह-क्षेत्र,क्षेमपुरी पुष्करवर-द्वीप,.विदेह-क्षेत्र,रत्नसंचय धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,महानगर धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,अरिष्टा धातकी-खण्ड,विदेह-क्षेत्र,सुसीमा जंबू-द्वीप,विदेह-क्षेत्र,पुंडरीकिणी जंबू-द्वीप, विदेह-क्षेत्र,सुसीमा जंबू-द्वीप,विदेह-क्षेत्र,क्षेमपुरी जंबू-द्वीप,विदेह-क्षेत्र,वीतशोका जंबू-द्वीप,भरत-क्षेत्र, चंपापुरी जंबू-द्वीप,भरत-क्षेत्र, कौशांबी जंबू-द्वीप, भरत-क्षेत्र, हस्तनागपुर जंबू-द्वीप,भरत-क्षेत्र,अयोध्या जंबू-द्वीप,भरत-क्षेत्र, छत्रपुर
प.पु. ह.पु. पुंडरीकिणी 1. ” सुसीमा सुसीमा क्षेमा क्षेमा रत्नसंचयपुरी रत्नसंचयपुरी 1.सुमाद्रिका 2.मद्रिलपुर रत्नसंचय नागपुर
पूर्व भव (देव) स्थान म.पु. सर्वार्थसिद्धि विजय अ.ग्रैवेयक विजय वैजयंत ऊ.ग्रैवेयक म.ग्रैवेयक वैजयंत प्राणत आरण पुष्पोत्तर महाशुक्र सहस्रार पुष्पोत्तर सर्वार्थसि. सर्वार्थसि. सर्वार्थसि. जयंत अपराजित प्राणत अपराजित जयंत प्राणत पुष्पोत्तर
ति.प. जयंत आरण अच्युत शतार अपारजित अपराजित आनत अपराजित
प.पु. वैजयंत वैजयंत वैजयंत अपराजित आरण कापिष्ठ महाशुक्र सहस्रार पुष्पोत्तर सर्वार्थसिद्धि विजय अपराजित सहस्रार प्राणत आनत वैजयंत
ह.पु. विजय विजय आरण अच्युत महाशुक्र शतार पुष्पोत्तर जयंत अपराजित अपराजित सहस्रार अपराजित जयंत सहस्रार


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+ द्वादश चक्रवर्ती निर्देश -
द्वादश चक्रवर्ती निर्देश

विशेष :

द्वादश चक्रवर्ती निर्देश
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
नाम भरत सगर मघवा सनत्कुमार शांति कुंथु अर सुभौम पद्म हरिषेण जयसेन ब्रह्मदत्त
पूर्वभव सर्वार्थ सिद्धि | अच्युत विजय वि. ग्रैवेयक माहेंद्र | अच्युत सर्वार्थ सिद्धि सर्वार्थ सिद्धि जयंत | अपराजित | स.सि. जयंत | महाशुक्र ब्रह्मस्वर्ग | अच्युत माहेंद्र | सनत्कुमार ब्रह्मस्वर्ग | महाशुक्र कमलगुल्म
पूर्व भव नं. 2 नाम राजा पीठ विजय | जयसेन शशिप्रभ | नरपति धर्मरुचि मेघरथ सिंहरथ धनपति कनकाभ | भूपाल चिंत | प्रजापाल महेंद्रदत्त अमितांग | वसुंधर संभूत
नगर पुंडरीकिणी पृथिवीपुर पुंडरीकिणी महापुरी जंबू वि.पुंडरीकिणी जंबू वि.सुसीमा जंबू वि.क्षेमपुरी - वीतशोका | श्रीपुर विजय राजपुर | श्रीपुर काशी
दीक्षागुरु कुशसेन यशोधर विमल सुप्रभ - - - विचित्रगुप्त | संभूत सुप्रभ | शिवगुप्त नंदन सुधर्ममित्र | वररुचि स्वतंत्रलिंग
वर्तमान नगर सामान्य अयोध्या अयोध्या श्रावस्ती हस्तिनापुर हस्तनागपुर हस्तनागपुर हस्तनागपुर दृशावती हस्तिनापुर कांपिल्य कांपिल्य कांपिल्य
विशेष - - अयोध्या अयोध्या - - - अयोध्या वाराणसी भोगपुर कौशांबी -
वर्तमान पिता सामान्य ऋषभ विजय सुमित्र विजय विश्वसेन सूरसेन सुदर्शन कीर्तिवीर्य पद्मरथ पद्मनाभ विजय ब्रह्मरथ
विशेष - समुद्रविजय - अनंतवीर्य - - - सहस्रबाहु पद्मनाभ हरिकेतु - ब्रह्मा
वर्तमान माता सामान्य यशस्वती सुमंगला भद्रवती सहदेवी ऐरा श्रीकांता मित्रसेना तारा मयूरी वप्रा यशोवती चूला
विशेष मरुदेवी सुबाला भद्रा - - - - चित्रमती - एरा प्रभाकरी चूड़ादेवी
शरीरोत्सेध तिलोयपण्णत्ति 500 450 42 1/2 42 40 35 30 28 22 20 15 7
त्रिलोकसार - - - 41 1/2 - - - - - - - -
हरिवंशपुराण - - - - - - - - - - 14 -
महापुराण - - - 42 1/2 - - - - - 24 - 60
आयु तिलोयपण्णत्ति 84 लाख पूर्व 72 लाख पूर्व 5 लाख पूर्व 3 लाख पूर्व 1,00,000 वर्ष 95,000 वर्ष 84,000 वर्ष 60,000 वर्ष 30,000 वर्ष 10,000 वर्ष 3,000 वर्ष 700 वर्ष
हरिवंशपुराण - - - - - - - 68,000 वर्ष - 26,000 वर्ष - -
महापुराण - 70 लाख पूर्व - - - - - - - - - -
कुमारकाल 77,000 वर्ष 50,000 वर्ष 25,000 वर्ष 50,000 वर्ष - - - 5,000 वर्ष 500 वर्ष 325 वर्ष 300 वर्ष 28 वर्ष
मंडलीक 1,000 वर्ष 50,000 वर्ष 25,000 वर्ष 50,000 वर्ष - - - 5,000 वर्ष 500 वर्ष 325 वर्ष 300 वर्ष 56 वर्ष
दिग्विजय 60,000 वर्ष 30,000 वर्ष 10,000 वर्ष 10,000 वर्ष - - - 500 वर्ष 300 वर्ष 150 वर्ष 100 वर्ष 16 वर्ष
राज्य काल सामान्य 6 लाख पूर्व 61000 वर्ष 70लाख पूर्व 30000 वर्ष 39000 वर्ष 90000 वर्ष - - - 49500 वर्ष 18700 वर्ष 8850 वर्ष 1900 वर्ष 600 वर्ष
विशेष 6 लाख पूर्व 1 पूर्व 6970000पूर्व +99999 पूर्वांग+83 लाख वर्ष - - - - - 62500 वर्ष - 25175 वर्ष - -
संयम काल 1 लाख पूर्व 1 लाख पूर्व 50000 वर्ष 1 लाख वर्ष - - - - 10000 वर्ष 350 वर्ष 400 वर्ष -
निर्गमन तिलोयपण्णत्ति मोक्ष - सनत्कुमार स्वर्ग सनत्कुमार स्वर्ग मोक्ष मोक्ष मोक्ष 7वें नरक मोक्ष मोक्ष मोक्ष 7वें नरक
महापुराण - - मोक्ष मोक्ष - - - - - सर्वार्थ सिद्धि जयंत -
सभी का वर्ण स्वर्ण, सम-चतुरस्र संस्थान, वज्रऋषभनाराच संहनन

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+ नव बलदेव निर्देश -
नव बलदेव निर्देश

विशेष :

नव बलदेव निर्देश
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वर्तमान-भव नाम विजय अचल धर्म / भद्र सुप्रभ सुदर्शन नन्दीषेण / नन्दिमित्र नन्दिमित्र / नन्दिषेण राम / पद्म पद्म / बल
नगर पोदनपुर द्वारावती खगपुर चक्रपुर बनारस / अयोध्या मथुरा
पिता प्रजापति ब्रह्म / ब्रह्मभूति भद्र / रौद्रनाद सोमप्रभ / सोम सिंहसेन / प्रख्‍यात वरसेन / शिवाकर अग्निशिख / सममूर्धाग्निनाद दशरथ वसुदेव
माता भद्राम्भोजा / जयवती सुभद्रा सुवेषा / सुभद्रा सुदर्शना / जयवन्ती सुप्रभा / विजया विजया / वैजयन्ती वैजयन्ती / अपराजिता अपराजिता / काशिल्या / सुबाला रोहिणी
गुरु सुवर्णकुम्भ सत्कीर्ति सुधर्म मृगांक श्रुतिकीर्ति सुमित्र / शिवघोष भवनश्रुत सुव्रत सुसिद्धार्थ
शरीर स्वर्णवत् / सफ़ेद, समचतुरस्र संस्‍थान, वज्रऋषभ नाराच संहनन
उत्‍सेध ८० धनुष ७० धनुष ६० धनुष ५० धनुष ४५ धनुष २९ धनुष २२ धनुष १६ धनुष १० धनुष
आयु ८७ लाख वर्ष ७७ लाख ६७ लाख ३७ लाख १७ लाख ६७००० वर्ष ३७००० वर्ष १७००० वर्ष १२००० वर्ष
निर्गमन मोक्ष ब्रह्म-स्वर्ग
प्रथम पूर्व भव स्वर्ग अनुत्तर विमान / महाशुक्र सहस्रार ब्रह्म / सौधर्म ब्रह्म / सनत्कुमार महाशुक्र
द्वितीय पूर्व भव नाम बल / विशाखभूति मारुतवेग नन्दिमित्र महाबल पुरुषर्षभ सुदर्शन वसुन्धर श्रीचन्द्र / विजय सखिसज्ञ
नगर पुण्डरीकिणी पृथ्वीपुरी आनन्दपुर नन्दपुरी वीतशोका विजयपुर सुसीमा क्षेमा / मलय हस्तिनापुर
दीक्षा गुरु अमृतसर महासुव्रत सुव्रत ऋषभ प्रजापाल दमवर सुधर्म अर्णव विद्रुम


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+ नव नारायण निर्देश -
नव नारायण निर्देश

विशेष :

नव नारायण निर्देश
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वर्तमान-भव नाम त्रिपृष्ठ द्विपृष्ठ स्वयंभू पुरुषोत्तम पुरुषसिंह पुरुषपंडरीक दत्त / पुरुषदत्त नारायण / लक्ष्मण कृष्ण
नगर पोदनपुर द्वापुरी / द्वारावती हस्तिनापुर / द्वारावती चक्रपुर / खगपुर कुशाग्रपुर / चक्रपुर मिथिला / बनारस अयोध्‍या / बनारस मथुरा
पिता प्रजापति ब्रह्म / ब्रह्मभूति भद्र / रौद्रनाद सोमप्रभ / सोम सिंहसेन / प्रख्‍यात वरसेन / शिवाकर अग्निशिख / सममूर्धाग्निनाद दशरथ वसुदेव
माता मृगावती माधवी (ऊषा) पृथिवी सीता अम्बिका लक्ष्‍मी कोशिनी कैकेयी देवकी
पटरानी सुप्रभा रूपिणी प्रभवा मनोहरा सुनेत्रा विमलसुन्‍दरी आनन्‍दवती प्रभावती रुक्‍मिणी
शरीर स्वर्णवत् / नील व कृष्ण, समचतुरस्र संस्‍थान, वज्रऋषभ नाराच संहनन
उत्‍सेध ८० धनुष ७० धनुष ६० धनुष ५० धनुष ४५ धनुष २९ धनुष २२ धनुष १६ धनुष १० धनुष
आयु ८४ लाख वर्ष ७२ लाख वर्ष ६० लाख वर्ष ३० लाख वर्ष १० लाख वर्ष ६५००० /
५६००० वर्ष
३२००० वर्ष १२००० वर्ष १००० वर्ष
कुमार काल २५००० वर्ष २५००० वर्ष १२५०० वर्ष ७०० वर्ष ३०० वर्ष २५० वर्ष २०० वर्ष १०० वर्ष १६ वर्ष
मण्‍डलीक काल २५००० २५००० १२५०० १३०० १२५० २५० ५० ३०० ५६
विजय काल १००० वर्ष १०० वर्ष ९० वर्ष ८० वर्ष ७० वर्ष ६० वर्ष ५० वर्ष ४० वर्ष ८ वर्ष
राज्‍य काल ८३४९००० ७१४९९०० ५९७४९१० २९९७९२० ९९८३८० ६४४४० ३१७०० ११५६० ९२०
*निर्गमन सप्तम नरक षष्ठ नरक षष्ठ नरक षष्ठ नरक षष्ठ नरक षष्ठ नरक पंचम नरक चतुर्थ नरक तृतीय नरक
प्रथम पूर्व भव स्वर्ग महाशुक्र प्राणत लान्तव सहस्रार ब्रह्म (२ माहेन्द्र) माहेन्द्र (२ सौधर्म) माहेन्द्र (२ सौधर्म) सनत्कुमार महाशुक्र
द्वितीय पूर्व भव नाम विश्वनन्दी पर्वत धनमित्र सागरदत्त विकट प्रियमित्र मानसचेष्टित पुनर्वसु गंगदेव
नगर हस्तिनापुर अयोध्या श्रावस्ती कौशाम्बी पोदनपुर शैलनगर सिंहपुर कौशाम्बी हस्तिनापुर
दीक्षा गुरु सम्भूत सुभद्र वसुदर्शन श्रेयांस सुभूति वसुभूति घोषसेन पराम्भोधि द्रुमसेन
*म.पु./की अपेक्षा सभी सप्तम नरक में गये हैं ।

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+ नव प्रतिनारायण निर्देश -
नव प्रतिनारायण निर्देश

विशेष :

नव प्रतिनारायण निर्देश
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वर्तमान-भव नाम अश्वग्रीव तारक मेरक / मधु मधुकैटभ / मधुसूदन निशुम्भ / मधुक्रीड़ बलि / निशुम्भ प्रहरण / प्रह्लाद / बलीद्र रावण / दशानन जरासंघ
नगर अलका विजयपुर / भोगवर्धन नन्दनपुर / रत्नपुर पृथ्वीपुर / वाराणसी हरिपुर / हस्तिनापुर सूर्यपुर / चक्रपुर सिंहपुर / मन्दरपुर लंका राजगृह
शरीर स्वर्णवत्, समचतुरस्र संस्‍थान, वज्रऋषभ नाराच संहनन
उत्‍सेध ८० धनुष ७० धनुष ६० धनुष ५० धनुष ४५ धनुष २९ धनुष २२ धनुष १६ धनुष १० धनुष
आयु ८४ लाख वर्ष ७२ लाख ६० लाख ३० लाख १० लाख ६५००० ३२००० १२००० १०००
निर्गमन सप्तम नरक षष्टम नरक षष्ठ / सप्तम नरक षष्ठम नरक पंचम नरक चतुर्थ नरक तृतीय नरक
कई भव पहिले नाम विशाखनन्दि विन्ध्यशक्ति चण्डशासन राजसिंह मन्त्री नरदेव
नगर राजगृह मलय श्रावस्ती मलय सारसमुच्चय

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+ एकादश रूद्र निर्देश -
एकादश रूद्र निर्देश

विशेष :

एकादश रूद्र निर्देश
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11
नाम अश्वग्रीव जितशत्रु रुद्र वैश्वानर / विशालनयन सुप्रतिष्ठ अचल / बल पुण्डरीक अजितंधर अजीतनाभि / जितनाभि पीठ सात्यकि पुत्र
उत्‍सेध ५०० धनुष ४५० धनुष १०० धनुष ९० धनुष ८० धनुष ७० धनुष ६० धनुष ५० धनुष २८ धनुष २४ धनुष ७ हाथ
आयु ८३ लाख पूर्व ७१ लाख पूर्व २ लाख पूर्व १ लाख पूर्व ८४ लाख वर्ष ६० लाख वर्ष ५० लाख वर्ष ४० लाख वर्ष २० लाख वर्ष १० लाख वर्ष (२-१ लाख वर्ष) ६९ वर्ष
निर्गमन सप्तम नरक षष्ठ नरक पंचम नरक चतुर्थ नरक तृतीय नरक
कुमारकाल २७६६६६६ पूर्व २३६६६६६ पूर्व ६६६६६ पूर्व ३३३३३ पूर्व २८ लाख वर्ष २० लाख वर्ष १६६६६६६ वर्ष (ह.पु.१६६६६६८ वर्ष) १३३३३३३ वर्ष ६६६६६६ वर्ष (ह.पु.६६६६६८ वर्ष) ३३३३३३ वर्ष ७ वर्ष
संयमकाल २७६६६६८ पूर्व २३६६६६८ पूर्व ६६६६८ पूर्व ३३३३४ पूर्व २८ लाख वर्ष २० लाख वर्ष १६६६६६८ वर्ष (ह.पु.१६६६६६ वर्ष) १३३३३३४ वर्ष ६६६६६८ वर्ष (ह.पु.६६६६६६ वर्ष) ३३३३३४ वर्ष ३४ वर्ष (ह.पु.२८ वर्ष)
तप भंगकाल २७६६६६६ पूर्व २३६६६६६ पूर्व ६६६६६ पूर्व ३३३३३ पूर्व २८ लाख वर्ष २० लाख वर्ष १६६६६६६ वर्ष १३३३३३३ वर्ष ६६६६६६ वर्ष ३३३३३३ वर्ष २८ वर्ष (ह.पु./३४ वर्ष)

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+ चक्रवर्ती के 14 रत्न -
चक्रवर्ती के 14 रत्न

विशेष :

चक्रवर्ती के 14 रत्न
कार्य उत्पत्ति स्थान संज्ञा
जीव रत्न गज सवारी वैताढ्य पर्वत के मूल में विजयगिरि
अश्व सवारी वैताढ्य पर्वत के मूल में पवनंजय
सेनापति देशों को विजय करते हैं राजधानी आयोध्य
पुरोहित दैवी उपद्रवों की शांति के अर्थ अनुष्ठान करना राजधानी बुद्धिसागर
स्त्री उपभोग का विषय विद्याधरों की श्रेणी में सुभद्रा
वार्धिक भूमि, महल, सड़क आदि का निर्माण करते हैं राजधानी कामवृष्टि
गृहपति राजभवन की समस्त व्यवस्था का संचालन और हिसाब रखना राजधानी भद्रमुख
अजीव रत्न छत्र सेना के ऊपर 12 योजन तक छत्र बनना आयुध-शाला सूर्यप्रभ
असि शत्रु का संहार आयुध-शाला भद्रमुख
दण्ड वैताढ्य पर्वत की दोनों गुफाओं के द्वार खोलना आयुध-शाला प्रवृद्धवेग
चक्र छह खण्ड साधने का रास्ता बताना आयुध-शाला सुदर्शन
कांकिणी गुफाओं में सूर्य के समान प्रकाश करना लक्ष्मी / श्री गृह चिंता जननी
चिंतामणि इच्छित पदार्थों को प्रदान करना लक्ष्मी / श्री गृह चूड़ामणि
चर्म नदी आदि जलाशयों में नाव-रूप हो जाना लक्ष्मी / श्री गृह
हरिवंशपुराण 11/109 -- इन रत्नों में से प्रत्येक की एक-एक हजार देव रक्षा करते थे।
तिलोयपण्णत्ति/4/ 1382 किन्हीं आचार्यों के मत से इनकी उत्पत्ति का नियम नहीं। यथायोग्य स्थानों में उत्पत्ति।

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+ भगवान महावीर के पूर्व भव -
भगवान महावीर के पूर्व भव

विशेष :

भगवान महावीर के पूर्व भव
क्षेत्र नाम स्त्री पिता-माता विशेष
जंबूद्वीप -> पूर्व-विदेह -> पुष्कलावती -> पुंडरीकिणी पुरुरवा कालिका
सौधर्म-स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> कोशल -> अयोध्या मरीचि भरत-चक्रवर्ती / धारिणी त्रिदण्डी वेष, परिव्राजक शास्त्र की रचना, शिष्य कपिल
ब्रह्म-स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> अयोध्या जटिल कपिल-ब्राह्मण / काली वेद-मति
सौधर्म-स्वर्ग
अयोध्या -> स्थूणागार पुष्पमित्र भारद्वाज-ब्राह्मण / पुष्पदंता सांख्य-मत का प्रचार
सौधर्म-स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> श्वेतिक अग्निसह अग्निभूति ब्राह्मण / गौतमी एकांत मत के शास्त्र का ज्ञाता, परिव्राजक
सानत्कुमार-स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> मंदिर अग्निमित्र गौतम-ब्राह्मण त्रिदण्डी
माहेन्द्र-स्वर्ग (५वें स्वर्ग?)
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> मंदिर भारद्वाज सायंकायन-ब्राह्मण / मंदिरा त्रिदण्डी
ब्रह्म-स्वर्ग
असंख्यात त्रस-स्थावर योनियों में जन्म
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> मगध -> राजगृह स्थावर शांडिलि-ब्राह्मण / पारासिरी वेद-मति / परिव्राजक दीक्षा
माहेन्द्र-स्वर्ग (५वें स्वर्ग?)
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> मगध -> राजगृह विश्वनंदी विश्व-भूति राजा / जैनी विश्वभूति का छोटा भाई विशाखभूति (आगे दसवें स्वर्ग में देव) के बेटे विशाखनंद के मायाचार के बदले दीक्षा धारण की और निदान पूर्वक मरण
महाशुक्र-स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> सुरम्य-देश -> पोदनपुर त्रिपृष्ट स्वयंप्रभा (ज्वलनजटी / वायुवेगा की पुत्री) प्रजापति / मृगावती विजय-बलभद्र (विशाखभूति का जीव, जयावती रानी द्वारा), मुक्त हुआ; अश्वग्रीव (विशाखनन्द का जीव) विजयार्ध-पर्वत की उत्तर श्रेणी में अलका नगरी (मयूरग्रीव राजा, नीलांजना रानी का पुत्र), सातवें नरक में गया
सातवें नरक
वनिसिंह-पर्वत क्रूर सिंह
पहला नरक
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> हिमवान पर्वत के ऊपर सिंह चारण-ऋद्धि धारी अजितञ्जय और अमितगुण मुनि द्वारा सम्बोधन
सौधर्म-स्वर्ग
धातकी-खंड -> पूर्व-विदेह -> मंगलावती देश -> विजयार्ध पर्वत -> कनकप्रभ कनकोज्वल कनकावती कनकपुंख / कनकमाला जिनदीक्षा
लान्तव (७) स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> कौशल देश -> अयोध्या हरिषेण वज्रसेन राजा / शीलवती रानी मुनिव्रत
महाशुक्र (१०) स्वर्ग
धातकी-खंड -> पूर्व-विदेह -> पुष्कलावती देश -> पुण्डरीकिणि प्रियमित्र चक्रवर्ती सुमित्र / सुव्रता जिनदीक्षा
सहस्रार (१२) स्वर्ग
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> छत्राकार नन्द नंदिवर्धन राजा / वीरवती रानी जिनदीक्षा, तीर्थंकर प्रकृति का बंध
अच्युत (16) स्वर्ग में इन्द्र
जंबूद्वीप -> भरत-क्षेत्र -> कुंडलपुर वर्धमान सिद्धार्थ राजा / त्रिशला रानी भगवान महावीर

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+ भवनवासी देवों में इंद्र परिवार -
भवनवासी देवों में इंद्र परिवार

विशेष :

भवनवासी देवों में इंद्र परिवार
असुरकुमार नागकुमार सुपर्णकुमार द्वीपकुमार उदधिकुमार स्तनित कुमार विद्युत कुमार दिक्कुमार अग्निकुमार वायुकुमार
दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर दक्षिण उत्तर
इन्द्र चमर वैरोचन भूतानंद धरणानंद वेणु वेणुधारी पूर्ण वशिष्ठ जलप्रभ जलकांत घोष महाघोष हरिषेण हरिकांत अमितगती अमितवाहन अग्निशिखी अग्निवाहन वेलंब प्रभंजन कुल
भवन 34 लाख 30 लाख 34 लाख 40 लाख 38 लाख 34 लाख 40 लाख 36 लाख 40 लाख 36 लाख 40 लाख 36 लाख 40 लाख 36 लाख 40 लाख 36 लाख 40 लाख 36 लाख 50 लाख 46 लाख 7,72,00,000
मुकुट चूडामणि सर्प गरुड हाथी मगर वर्धमान वज्र सिंह कलश घोडा
वर्ण कृष्ण काल श्याम श्याम श्याम काल श्याम काल श्याम बिजलीवत् श्यामल अग्निज्वालावातवत् नीलकमल
चैत्यवृक्ष अश्वत्थ सप्तवर्ण शाल्मली जामुन वेतस कदंब प्रियंगु शिरीष पलाश राजद्रुम
इंद्र आहार का अंतराल 1000 वर्ष साढ़े 12 दिन साढ़े 12 दिन साढ़े 12 दिन 12 दिन 12 दिन 12 दिन साढ़े 7 दिन साढ़े 7 दिन साढ़े 7 दिन
श्वासोच्छ्वास का अंतराल 15 दिन साढ़े 12 मुहूर्त साढ़े 12 मुहूर्त साढ़े 12 मुहूर्त 12 मुहूर्त 12 मुहूर्त 12 मुहूर्त 7 मुहूर्त 7 मुहूर्त 7 मुहूर्त
आयु 1 सागर 3 पल्य ढाई पल्य 2 पल्य 1 पल्य 1 पल्य 1 पल्य 1 पल्य 1 पल्य 1 पल्य
प्रतीन्द्र 1 20
सामानिक 64k 60k 53k 50k 10,30,000
त्रायस्त्रिंशत 33 660
पारिषद अभ्यंतर 'समित' 28k 26k 6k 4k 1,28,000
मध्य 'चंद्रा' 30k 28k 8k 6k 1,68,000
बाह्य 'युक्त' 32k 30k 10k 8k 2,08,000
आत्मरक्ष 256k 240k 224k 200k 41,20,000
लोकपाल 4 80
7 अनीक में से प्रत्येक 8128k 7320k 7112k 6350k
प्रकीर्णक असंख्यात
अभियोग्य और किल्विषक प्रमाण उपलब्ध नहीं है
देवियाँ इन्द्र, प्रतीन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंशत पटदेवी 5
परिवार देवी 5 * 8k = 40k
वल्लभा देवी 16k 10k 40k 20k
कुल 56k 50k 44k 32k
पारिषद अभ्यंतर 'समित' 250 300 200 200 160 160 140
मध्य 'चंद्रा' 200 250 160 160 140 140 120
बाह्य 'युक्त' 150 200 140 140 120 120 100
आत्मरक्ष 100
सैनासुर 50
किल्विषक 100
आभियोग्य 32
प्रत्येक इंद्र के सोम, यम, वरुण और कुबेर नामक, चार-चार रक्षक लोकपाल होते है जो क्रम से पूर्व, पश्चिम आदि दिशाओं में होते है । ये परिवार में तंत्रपालो के समान होते है ।
दस हजार वर्ष वाली जघन्य आयु वाले देवों का आहार दो दिन में तो पल्योपम की आयु वालो का पाँच दिन में भोजन का अवसर आता है.
दस हजार वर्ष वाली आयु वाले देव ७ श्वासोच्छ्वास प्रमाण काल के बाद, और पल्योपम की आयु वाले पाँच मुहुर्त के बाद उच्छवास लेते है
तत्त्वार्थ राजवार्तिक -- 4/10

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+ तीर्थकरों का धर्म-तीर्थकाल -
तीर्थकरों का धर्म-तीर्थकाल

विशेष :

तीर्थंकर तीर्थ-काल विच्छेद
आदिनाथ 50 लाख कोटी सागर नहीं
अजितनाथ 30 लाख कोटी सागर नहीं
संभवनाथनाथ 10 लाख कोटी सागर नहीं
अभिनंदननाथ 9 लाख कोटी सागर नहीं
सुमतिनाथ 90 हजार कोटी सागर नहीं
पद्मनाथ नौ हजार कोटि सागर नहीं
सुपार्श्वनाथ नौ सौ कोटि सागर नहीं
चंद्रप्रभनाथ नब्बे कोटि सागर नहीं
पुष्पदंतनाथ नौ करोड़ सागर 1/4 पल्य
शीतलनाथ 3,373,900 सागर 1/2 पल्य
श्रेयांसनाथ 54 सागर 3/4 पल्य
वासुपूज्यनाथ 30 सागर 1 पल्य
विमलनाथ 9 सागर 1 पल्य
अनंतनाथ 4 सागर 3/4 पल्य
धर्मनाथ 3 सागर 1/2 पल्य
शांतिनाथ 1/2 पल्य नहीं
कुन्थुनाथ 1/4 पल्य - 1000 कोटी नहीं
अरहनाथ 1000 कोटी नहीं
मल्लिनाथ 54 लाख नहीं
मुनिसुव्रतनाथ 6 लाख नहीं
नमिनाथ 5 लाख नहीं
नेमीनाथ 83750 नहीं
पार्श्वनाथ 250 वर्ष नहीं
महावीर

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+ द्वादशाङ्ग निर्देश -
द्वादशाङ्ग निर्देश

विशेष :

श्रुत-ज्ञान निर्देश
श्रुत क्रम नाम पद संख्या वस्तु संख्या विषय
अंग-प्रविष्ट 1 आचारांग 18000 चर्या का विधान आठ शुद्धि, पाँच समिति, तीन गुप्ति आदि रूप से वर्णित
2 सूत्रकृतांग 36000 ज्ञान-विनय, क्या कल्प्य है क्या अकल्प्य है, छेदोपस्थापनादि, व्यवहारधर्म की क्रियाओं का निरूपण
3 स्थानांग 42000 एक-एक दो-दो आदि के रूप से अर्थों का वर्णन
4 समवायांग 164000 सब पदार्थों की समानता रूप से समवाय का विचार
5 व्याख्या प्रज्ञप्ति
(श्वे.भगवतीसूत्र)
228000
84000
'जीव है कि नहीं' आदि साठ हज़ार प्रश्नों के उत्तर
6 ज्ञातृधर्मकथा 556000 अनेक आख्यान और उपाख्यानों का निरूपण
7 उपासकाध्ययन 1170000 श्रावकधर्म का विशेष विवेचन
8 अंतकृद्दशांग 2328000 प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश अंतकृत केवलियों का वर्णन है जिनने भयंकर उपसर्गों को सहकर मुक्ति प्राप्त की
9 अनुत्तरोपपादिकदशांग 9244000 प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले उन दश-दश मुनियों का वर्णन है जिनने दारुण उपसर्गों को सहकर ...पाँच अनुत्तर विमानों में जन्म लिया
10 प्रश्न व्याकरण 9316000 युक्ति और नयों के द्वारा अनेक आक्षेप और विक्षेप रूप प्रश्नों का उत्तर
11 विपाक सूत्र 18400000 पुण्य और पाप के विपाक का विचार
12 दृष्टिवाद परिकर्म चंद्रप्रज्ञप्ति 3605000 चंद्रमा की आयु, परिवार, ऋद्धि, गति और बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन
सूर्यप्रज्ञप्ति 303000 सूर्य की आयु, भोग, उपभोग, परिवार, ऋद्धि, गति, बिंब की ऊँचाई आदि का वर्णन
जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति 325000 जंबूद्वीपस्थ भोगभूमि और कर्मभूमि में उत्पन्न हुए नाना प्रकार के मनुष्य तथा दूसरे तिर्यंच आदि का पर्वत, द्रह, नदी आदि का वर्णन
द्वीपसागरप्रज्ञप्ति 5236000 द्वीप और समुद्रों के प्रमाण का तथा द्वीपसागर के अंतर्भूत नानाप्रकार के दूसरे पदार्थों का वर्णन
व्याख्याप्रज्ञप्ति 8436000 पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल भव्यसिद्ध और अभव्यसिद्ध जीव, इन सबका वर्णन
सूत्र 8800000 जीव अबंधक ही है, अवलेपक ही है, अकर्ता ही है, अभोक्ता ही है, इत्यादि रूप से 363 मतों का पूर्वपक्ष रूप से वर्णन
प्रथमानुयोग 5000 पुराणों का वर्णन
पूर्वगत उत्पाद पूर्व 10000000 10 जीव पुद्गलादि का जहाँ जब जैसा उत्पाद होता है उस सबका वर्णन
अग्रायणीय पूर्व 9600000 14 क्रियावाद आदि की प्रक्रिया और स्वसमय का विषय । (दूसरे अग्रायणीय पूर्व के चयनलब्धि नामक अधिकार के चतुर्थ पाहुड कर्मप्रकृति आदि से षट्खण्डागम की रचना की गई ।)
वीर्यानुवाद पूर्व 7000000 8 छद्मस्थ और केवली की शक्ति सुरेंद्र असुरेंद्र आदि की ऋद्धियाँ नरेंद्र चक्रवर्ती बलदेव आदि की सामर्थ्य द्रव्यों के लक्षण आदि का निरूपण
अस्तिनास्तिप्रवाद 6000000 18 पाँचों अस्तिकायों का और नयों का अस्ति-नास्ति आदि अनेक पर्यायों द्वारा विवेचन
ज्ञानप्रवाद 9999999 12 पाँचों ज्ञानों और इंद्रियों का विभाग आदि निरूपण । (ज्ञानप्रवाद नामक पांचवे पूर्व की दसवीं वस्तु में तीसरा पेज्जप्राभृत है उससे कषायप्राभृत की उत्पत्ति हुई है)
सत्यप्रवाद 10000006 12 वाग्गुप्ति, वचन संस्कार के कारण, वचन प्रयोग बारह प्रकार की भाषाएँ, दस प्रकार के सत्य, वक्ता के प्रकार आदि का विस्तार विवेचन
आत्मप्रवाद 260000000 16 आत्म द्रव्य का और छह जीव निकायों का अस्ति-नास्ति आदि विविध भंगों से निरूपण
कर्मप्रवाद 18000000 20 कर्मों की बंध उदय उपशम आदि दशाओं का और स्थिति आदि का वर्णन
प्रत्याख्यानप्रवाद 8400000 30 व्रत-नियम, प्रतिक्रमण, तप, आराधना आदि तथा मुनित्व में कारण द्रव्यों के त्याग आदि का विवेचन
विद्यानुवाद 11000000 15 समस्त विद्याएँ आठ महानिमित्त, रज्जुराशिविधि, क्षेत्र, श्रेणी, लोक प्रतिष्ठा, समुद्घात आदि का विवेचन
कल्याणवाद 260000000 10 सूर्य, चंद्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारागणों के चार क्षेत्र, उपपादस्थान, गति, वक्रगति तथा उनके फलों का, पक्षी के शब्दों का और अरिहंत अर्थात् तीर्थंकर, बलदेव, वासुदेव और चक्रवर्ती आदि के गर्भावतार आदि महाकल्याणकों का वर्णन
प्राणावाद 130000000 10 शरीर चिकित्सा आदि अष्टांग आयुर्वेद, भूतिकर्म, जांगुलिकक्रम (विषविद्या) और प्राणायाम के भेद-प्रभेदों का विस्तार से वर्णन
क्रियाविशाल 90000000 10 लेखन कला आदि बहत्तर कलाओं का, स्त्री संबंधी चौंसठ गुणों का, शिल्पकला का, काव्य संबंधी गुण-दोष विधि का और छंद निर्माण कला का विवेचन
त्रिलोकबिंदुसार 125000000 10 आठ व्यवहार, चार बीज, राशि परिकर्म आदि गणित तथा समस्त श्रुतसंपत्ति का वर्णन
चूलिका जलगता 20979205 जल में गमन, जलस्तंभन के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चर्या रूप अतिशय आदि का वर्णन
स्थलगता 20979205 पृथिवी के भीतर गमन करने के कारणभूत मंत्र तंत्र और तपश्चरणरूप आश्चर्य आदि का तथा वास्तु विद्या और भूमि संबंधी दूसरे शुभ-अशुभ कारणों का वर्णन
आकाशगता 20979205 इंद्रजाल आदि के कारणभूत मंत्र और तपश्चरण का वर्णन
रूपगता 20979205 सिंह, घोड़ा और हरिण आदि के स्वरूप के आकार रूप से परिणमन करने के कारणभूत मंत्र-तंत्र और तपश्चरण तथा चित्र-काष्ठ- लेप्य-लेन कर्म आदि के लक्षण का वर्णन
मायागता 20979205 आकाश में गमन करने के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन
कुल पद 112835805
अंग-बाह्य 1 सामायिक समता भाव के विधान का वर्णन
2 चतुर्विंशतिस्तव चौबीस तीर्थंकरों की वंदना करने की विधि, उनके नाम, संस्थान, उत्सेध, पाँच महाकल्याणक, चौंतीस अतिशयों के स्वरूप और तीर्थंकरों की वंदना की सफलता का वर्णन
3 वंदना एक जिनेंद्र देव संबंधी और उन एक जिनेंद्र देव के अवलंबन से जिनालय संबंधी वंदना का वर्णन
4 प्रतिक्रमण सात प्रकार के प्रतिक्रमणों का वर्णन
5 वैनयिक पाँच प्रकार की विनयों का वर्णन
6 कृतिकर्म अरहंत, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधु की पूजाविधि का वर्णन
7 दशवैकालिक दश वैकालिकों का वर्णन तथा मुनियों की आचार विधि और गोचरविधि का भी वर्णन
8 उत्तराध्ययन अनेक प्रकार के उत्तर
9 कल्पव्यवहार साधुओं के योग्य आचरण का और अयोग्य आचरण के होने पर प्रायश्चित्त विधि का वर्णन
10 कल्प्याकल्प्य द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा मुनियों के लिए यह योग्य है और यह अयोग्य है' इस तरह इन सबका वर्णन
11 महाकल्प्य काल और संहनन का आश्रय कर साधु के योग्य द्रव्य और क्षेत्रादि का वर्णन
12 पुंडरीक भवनवासी आदि चार प्रकार के देवों में उत्पत्ति के कारण रूप, दान, पूजा, तपश्चरण आदि अनुष्ठानों का वर्णन
13 महापुंडरीक समस्त इंद्र और प्रतींद्रों में उत्पत्ति के कारणरूप तपों विशेष आदि आचरण का वर्णन
14 निषिद्धका बहुत प्रकार के प्रायश्चित्त के प्रतिपादन
कुल अक्षर 80108175

कुल 64 अक्षर

पद इस प्रकार पद तीन प्रकार का कहा गया है। उनमें से मध्यमपद के द्वारा पूर्व और अङ्गों के पदों के विभाग का कथन किया है

कुल अक्षर = 2^64 - 1 = 184466744073709551615

सकल श्रुतज्ञान = 112,83,58,005 मध्यम पद ।

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अलौकिक गणित



+ क्षेत्र प्रमाण -
क्षेत्र प्रमाण

विशेष :

क्षेत्र प्रमाण
द्रव्य का अविभागी अंश = परमाणु
अनन्तानन्त परमाणु = 1 अवसन्नासन्न
8 अवसन्नासन्न = 1 सन्नासन्न
8 सन्नासन्न = 1 त्रुटरेण(व्यवहाराणु)
8 त्रुटरेणु = 1 त्रसरेणु (त्रस जीव के पाँव से उड़नेवाला अणु)
8 त्रसरेणु = 1 रथरेणु (रथ से उड़ने वाली धूल का अणु)
8 रथरेणु = उत्तम भोगभूमिज का बालाग्र
8 उ. भोगभूमिज का बालाग्र = मध्यम भोगभूमिज का बालाग्र
8 म. भोगभूमिज का बालाग्र = जघन्य भोगभूमिज का बालाग्र
8 ज. भोगभूमिज का बालाग्र = कर्मभूमिज का बालाग्र
8 कर्मभूमिज का बालाग्र = 1 लिक्षा (लीख)
8 लीख = 1 जूं
8 जूं = 1 यव
8 यव = 1 उत्सेधांगुल / सूच्‍यंगुल / व्यवहारांगुल
6 सूच्‍यंगुल = 1 पाद
2 पाद = 1 वितस्ति
2 वितस्ति = 1 हस्त
2 हस्त = 1 किष्कु
2 किष्कु = 1 दंड / युग / धनुष / मूसल / नाली / नाड़ी
2000 धनुष = 1 कोश
4 कोश = 1 योजन
-
सात राजू लंबे आकाश प्रदेश = जगतश्रेणी
अनंत राजू लंबे आकाश प्रदेश = आकाशश्रेणी
सूच्‍यंगुल ^ 2 = प्रतरांगुल
सूच्‍यंगुल ^ 3 = घनांगुल
जगतश्रेणी ^ 2 = जगतप्रतर
जगतश्रेणी ^ 3 = घनलोक / जगतघन
आकाशश्रेणी ^ 2 = आकाशप्रतर
आकाशश्रेणी ^ 3 = अलोकाकाश
-
व्यवहार राशि x 500 = 'प्रमाण' राशि
500 उत्सेधांगुल = 1 प्रमाणांगुल
500 योजन = 1 प्रमाण योजन / महायोजन / दिव्ययोजन
आत्मांगुल = भरत ऐरावत क्षेत्र के चक्रवर्ती का अंगुल

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+ संख्या प्रमाण -
संख्या प्रमाण
256 = 2 ^ 8
256 का अर्धच्छेद = 8
8 का अर्धच्छेद = 3
256 की वर्ग-शलाका = 3
अर्धच्छेद का अर्धच्छेद = वर्ग-शलाका

विशेष :

संख्या प्रमाण
एक = 1
दस = 10
शत = 100
सहस्र = 1000
दस सह. = 10,000
शत सह. = 100,000
दसशत सहस्र = 10,000,000
कोटि = 10,000,000
पकोटि = (10,000,000)^2
कोटिप्पकोटि = (10,000,000)^3
नहुत = (10,000,000)^4
निन्नहुत = (10,000,000)^5
अखोभिनी = (10,000,000)^6
बिन्दु = (10,000,000)^7
अब्बुद = (10,000,000)^8
निरब्बुद = (10,000,000)^9
अहह = (10,000,000)^10
अबब = (10,000,000)^11
अटट = (10,000,000)^12
सोगन्धिक = (10,000,000)^13
उप्पल = (10,000,000)^14
कुमुद = (10,000,000)^15
पुंडरीक = (10,000,000)^16
पदुम = (10,000,000)^17
कथान = (10,000,000)^18
महाकथान = (10,000,000)^19
असंख्येय = (10,000,000)^20
पणट्ठी = =(256)^2=65536
बादाल = =पणट्ठी^2
एकट्ठी = =बादाल^2

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आहार-संबंधी



+ आहार संबंधी -
आहार संबंधी

विशेष :

  1. उदराग्नि शमन -- जितने आहार से उदर की अग्नि शान्त हो जाए उतना ही आहार लेना ।
  2. अक्षम्रक्षण -- जिस प्रकार गाड़ी चलाने के उसकी धुरी पर तेल (ग्रीस) तेल डालते हैं उसी प्रकार शरीर रूपी गाड़ी को मोक्ष नगर पहुँचाने के लिए आहार लेना ।
  3. गोचरी - जैसे गाय के चारा डालने पर गाय की दृष्टि चारे पर रहती है। चारा डालने वाले की सुन्दरता या आभूषण पर नहीं, वैसे ही जिस चर्या में मुनि की दृष्टि आहार पर रहती है, देने वाले के सौन्दर्य, आभूषण, गरीबी, अमीरी पर नहीं ।
  4. श्वभ्रपूरण - जैसे गड्ढे को मिट्टी, कूड़ा-कचरा आदि किसी से भी भरा जाता है वैसे उदर (पेटरूपी गड्डे) को सरस / नीरस चाहे जैसे भी शुद्ध आहार से भर देना ।
  5. भ्रामरी - जैसे भ्रमर फूलों को कष्ट न देते हए रस ग्रहण करता है वैसे ही साधु, गृहस्थ को कष्ट न देते हुए आहार ग्रहण करते हैं ।

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+ अष्टांग योग -
अष्टांग योग

विशेष :


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+ प्रतिक्रमण -
प्रतिक्रमण

विशेष :


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+ सम्यक्त्व -
सम्यक्त्व

विशेष :


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