ऋषभदेव कल्याणकराय, अजित जिनेश्वर निर्मल थाय । स्वस्ति करें संभव जिनराय, अभिनंदन के पूजों पाय ॥१॥ स्वस्ति करें श्री सुमति जिनेश, पद्मप्रभ पद-पद्म विशेष । श्री सुपार्श्व स्वस्ति के हेतु, चन्द्रप्रभ जन तारन सेतु ॥२॥ पुष्पदंत कल्याण सहाय, शीतल शीतलता प्रकटाय । श्री श्रेयांस स्वस्ति के श्वेत, वासुपूज्य शिवसाधन हेत ॥३॥ विमलनाथ पद विमल कराय, श्री अनंत आनंद बताय । धर्मनाथ शिव शर्म कराय, शांति विश्व में शांति कराय ॥४॥ कुंथु और अरजिन सुखरास, शिवमग में मंगलमय आश । मल्लि और मुनिसुव्रत देव, सकल कर्मक्षय कारण एव ॥५॥ श्री नमि और नेमि जिनराज, करें सुमंगलमय सब काज । पार्श्वनाथ तेवीसम ईश, महावीर वन्दों जगदीश ॥६॥ ये सब चौबीसों महाराज, करें भव्यजन मंगल काज । मैं आयो पूजन के काज, राखो श्री जिन मेरी लाज ॥७॥