महावीर की मूंगावरणी मूरत मनहारी - २ कलशा ढारो रे, ढारो रे, ढारो भर झारी
कुंडलपुर के वीर की हो रही जय-जयकारी कलशा ढारो रे, ढारो रे, ढारो भर झारी ॥
न्हवन कराओ माता त्रिशला के लाल का, त्रिशला के लाल का, सिद्धार्थ के गोपाल का मां त्रिशला के लाल के देखो कैसे लगे हैं ठाठ एक हजार आठ कलशों से न्हावें जग-सम्राट ढारो रे, कलशा ढारो, कमा लो रे पुण्य भारी कलशा ढारो रे, ढारो रे, ढारो भर झारी ॥
सरस दरस पा लो वीर जिनचंद्र का ले लो आशीष पूज्य गुरुवरों का स्वर्ण कलश, नवरत्न कलश, हर कलश का है कुछ मोल पर जिसका अभिषेक करोगे, वो तो है अनमोल ढारो रे, कलशा ढारो, कमा लो रे पुण्य भारी कलशा ढारो रे, ढारो रे, ढारो भर झारी ॥