(जयमाला) प्रथम सुदर्शन-स्वामि, विजय अचल मंदर कहा विद्युन्माली नामि, पंच मेरु जग में प्रगट ॥
प्रथम सुदर्शन मेरु विराजे, भद्रशाल वन भू पर छाजे चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वंदना हमारी ॥१॥ ऊपर पंच-शतकपर सोहे, नंदन-वन देखत मन मोहे चैत्यालय चारों सुखकारी, मन वच तन वंदना हमारी ॥२॥