श्री निर्वाण आदि तीर्थंकर भूतकाल के तुम्हें नमन । श्री वृषभादिक वीर जिनेश्वर वर्तमान के तुम्हें नमन ॥ महापद्म अनंतवीर्य तीर्थंकर भावी तुम्हें नमन । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को करूँ नमन ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकर समूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकर समूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकर समूह ! अत्र मम सभिहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं
सात तत्त्व श्रद्धा के जल से मिथ्या मल को दूर करूं । जन्म जरा भय मरण नाश हित पर विभाव चकचूर करूँ ॥ भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
नव पदार्थ को ज्यों का त्यों लख वस्तु तत्त्व पहचान करूँ । भव आताप नशाऊँ मैं निज गुण चंदन बहुमान करूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
षट्द्रव्यों से पूर्ण विश्व में आत्म द्रव्य का ज्ञान करूँ । अक्षय पद पाने को अक्षत गुण से निज कल्याण करूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
जानूँ मैं पंचास्ति काया को पंच महाव्रत शील धरूँ । काम-व्याधि का नाश करूँ निज आत्म पृष्प की सुरभि वरूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
शुद्ध भाव नैवेद्य ग्रहण कर क्षुधा रोग को विजय करूँ । तीन लोक चौदह राजु ऊँचे में मोहित अब न फिरूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो ्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं निर्वपामीति स्वाहा
ज्ञान दीप की विमल ज्योति से मोह तिमिर क्षय कर मानूँ । त्रिकालवर्ती सर्व द्रव्य गुण पर्यायें युगपत जानूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
निज समान सब जीव जानकर षट कायक रक्षा पालूँ । शुक्ल ध्यान की शुद्ध धूप से अष्ट कर्म क्षय कर डालूँ । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
पंच समिति त्रय गुप्ति पंच इन्द्रिय निरोध व्रत पंचाचार । अट्ठाईस मूल गुण पालूँ पंच लब्धि फल मोक्ष अपार । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो महामोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
छियालीस गुण सहित दोष अष्टादश रहित बनूँ अरहन्त । गुण अनन्त सिद्धों के पाकर लूँ अनर्घ पद हे भगवन्त । भूत भविष्यत् वर्तमान की चौबीसी को नमन करूँ । क्रोध लोभ मद माया हर कर मोह क्षोभ को शमन करूँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, भविष्य, वर्तमान जिनतीर्थंकरेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(श्री भूतकाल चौबीसी) जय निर्वाण, जयति सागर, जय महासाधु, जय विमल, प्रभो । जय शुद्धाभ, देव जय श्रीधर, श्रीदत्त सिद्धाभ, विभो ॥ जयति अमल प्रभु, जय उद्धार, देव जय अग्नि देव संयम । जय शिवगण, पुष्पांजलि, जय उत्साह, जयति परमेश्वर नम ॥ जय ज्ञानेश्वर, जय विमलेश्वर, जयति यशोधर, प्रभु जय जय जयति कृष्णमति, जयति ज्ञानमति, जयति शुद्धमति जय जय जय ॥ जय श्रीभद्र, अनंतवीर्य जय भूतकाल चौबीसी जय । जंबूद्वीप सुभरत क्षेत्र के जिन तीर्थंकर की जय जय ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूतकाल चतुर्विंशति जिनेन्द्राय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा
(श्री वर्तमान काल चौबीसी) ऋषभदेव, जय अजितनाथ, प्रभु संभव स्वामी, अभिनन्दन । सुमतिनाथ, जय जयति पद्मप्रभु, जय सुपार्श्व, चंदा प्रभु जिन ॥ पुष्पदंत, शीतल, जिन स्वामी जय श्रेयांस नाथ भगवान । वासुपूज्य, प्रभु विमल, अनंत, सु धर्मनाथ, जिन शांति महान ॥ कुनथुनाथ, अरनाथ, मल्लि, प्रभु मुनिसुव्रत, नमिनाथ जिनेश । नेमिनाथ, प्रभु पार्श्वनाथ, प्रभु महावीर, प्रभु महा महेश ॥ पूज्य पंच कल्याण विभूषित वर्तमान चौबीसी जय । जंबूद्वीप सुभरत क्षेत्र के तीर्थंकरेभ्यो प्रभु की जय जय ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी वर्तमान काल चतुर्विंशति जिनेन्द्राय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा
(श्री भविष्य काल चौबीसी) जय प्रभु महापद्म सुरप्रभ, जय सुप्रभ, जयति स्वयंप्रभु, नाथ । सर्वायुध, जयदेव, उदयप्रभ, प्रभादेव, जय उदंक नाथ ॥ प्रश्नकीर्ति, जयकीर्ति जयति जय पूर्ण बुद्धि, निःकषाय जिनेश । जयति विमल प्रभु जयति बहुल प्रभु, निर्मल, चित्र गुप्ति, परमेश ॥ जयति समाधि गुप्ति, जय स्वयंप्रभु, जय कंदर्प, देव जयनाथ । जयति विमल, जय दिव्यवाद, जय जयति अनंतवीर्य, जगन्नाथ ॥ जंबूद्वीप सुभरत क्षेत्र के तीर्थंकरेभ्यो प्रभु की जय जय । भूत, भविष्यत् वर्तमान त्रय चौबीसी की जय जय जय ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भविष्यकाल चतुर्विंशति जिनेन्द्राय अर्घं निर्वपामीति स्वाहा
(जयमाला) तीनकाल त्रय चौबीसी के नमूँ बहत्तर तीर्थंकर । विनयभक्ति से श्रद्धापूर्वक पाऊँ निज पद प्रभु सत्वर ॥ मैंने काल अनादि गंवाया पर-पदार्थ में रच पचकर । पर-भावों में मग्न रहा मैं निज भावों से बच बचकर ॥
इसीलिये चारों गतियों के कष्ट अनंत सहे मैंने । धर्म मार्ग पर द्वष्टि न डाली कर्म कुपंथ गहे मैंने ॥ आज पुण्य संयोग मिला प्रभु शरण आपकी मैं आया । भव-भव के अघ नष्ट हो गये मानों चितांमणि पाया ॥
हे प्रभु मुझको विमल ज्ञान दो सम्यक् पथ पर आ जाऊँ । रत्नत्रय की धर्म-नाव चढ़ भव सागर से तर जाऊँ ॥ सम्यक् दर्शन अष्ट अंग सह अष्टभेद सह सम्यक् ज्ञान । तेरह विध चारित्र धार लूँ द्वादश तप भावना प्रधान ॥
हे जिनवर ! आशीर्वाद दो निज स्वरूप में रम जाऊँ । निज स्वभाव अवलम्बन द्वारा शाश्वत निज-पद प्रगटाऊँ ॥ ॐ ह्रीं भरत क्षेत्र संबंधी भूत, वर्तमान, भविष्य काल चतुर्विंशति पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
तीनकाल की त्रय चौबीसी की महिमा है अपरम्पार । मन-वच-तन जो ध्यान लगाते वे हो जाते भव से पार ॥ (इत्याशिर्वादः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत ॥)