भरत क्षेत्र की वर्तमान जिन चौबीसी को करूँ नमन । वृषभादिक श्री वीर जिनेश्वर के पद पंकज में वन्दन ॥ भक्ति भाव से नमस्कार कर विनय सहित करता पूजन। भव सागर से पार करो प्रभु यही प्रार्थना है भगवन ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॐ ह्रीं श्री वृषभादि महावीर पर्यन्त चतुर्विंशति जिनसमूह ! अत्र मम सभिहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं
आत्मज्ञान वैभव के जल से यह भव तृषा बुझाऊँगा । जन्मजरा हर चिदानन्द चिन्मयकी ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव के चन्दन से भवताप नशाऊँगा । भवबाधा हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो भवातापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव के अक्षत से अक्षय पद पाऊँगा। भवसमुद्र तिर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव के पुष्पों से मैं काम नशाऊँगा। शीलोदधि पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव के चरु ले क्षुधा व्याधि हर पाऊँगा । पूर्ण तृप्ति पा चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो क्षुधारोगविनाशनाय नेवैद्यं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव दीपक से भेद ज्ञान प्रगटाऊँगा । मोहतिमिर हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो मोहान्धकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव को निज में शुचिमय धूप चढ़ाऊँगा । अष्टकर्म हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव के फल से शुद्ध मोक्ष फल पाऊँगा । राग-द्वेष हर चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो महामोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा
आत्मज्ञान वैभव का निर्मल अर्घ्य अपूर्व बनाऊँगा । पा अनर्घ्य पद चिदानन्द चिन्मय की ज्योति जलाऊँगा ॥ वृषभादिक चौबीस जिनेश्वर के नित चरण पखारुंगा । पर-द्रव्यों से दृष्टि हटाकर अपनी ओर निहारुंगा ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(जयमाला) भव्य दिगम्बर जिन प्रतिमा नासाग्र दृष्टि निज ध्यानमयी । जिन दर्शन पूजन अघ-नाशक भव-भव में कल्याणमयी ॥ वृषभदेव के चरण पखारूं मिथ्या तिमिर विनाश करूँ । अजितनाथ पद वन्दन करके पंच पाप मल नाश करूँ ॥
सम्भव जिन का दर्शन करके सम्यक्दर्शन प्राप्त करूँ । अभिनन्दन प्रभु पद अर्चन कर सम्यक्ज्ञान प्रकाश करूँ ॥ सुमतिनाथ का सुमिरण करके सम्यकचारित हृदय धरूँ । श्री पदम प्रभु का पूजन कर रत्नत्रय का वरण करूँ ॥
श्री सुपार्श्व की स्तुति करके मैं मोह ममत्व अभाव करूँ । चन्दाप्रभु के चरण चित्त धर चार कषाय अभाव करूँ ॥ पुष्पदंत के पद कमलों में बारम्बार प्रणाम करूँ । शीतल जिनका सुयशगान कर शाश्वत शीतल धाम वरूँ ॥
प्रभु श्रेयांसनाथ को बन्दू श्रेयस पद की प्राप्ति करूँ । वासुपूज्य के चरण पूज कर मैं अनादि की भ्रांति हरूँ ॥ विमल जिनेश मोक्षपद दाता पंच महाव्रत ग्रहण करूँ । श्री अनन्तप्रभु के पद बन्दू पर परणति का हरण करूँ ॥
धर्मनाथ पद मस्तक धर कर निज स्वरूप का ध्यान करूँ। शांतिनाथ की शांत मूर्ति लख परमशांत रस पान करूँ ॥ कुंथनाथ को नमस्कार कर शुद्ध स्वरूप प्रकाश करूँ । अरहनाथ प्रभु सर्वदोष हर अष्टकर्म अरि नाश करूँ ॥
मल्लिनाथ की महिमा गाऊँ मोह मल्ल को चूर करूँ । मुनिसुव्रत को नित प्रति ध्याऊं दोष अठारह दूर करूँ ॥ नमि जिनेश को नमन करूँ मैं निजपरिणति में रमण करूँ । नेमिनाथ का नित्य ध्यान धर भाव शुभा-शुभ शमन करूँ ॥
पार्श्वनाथ प्रभु के चरणाम्बुज दर्शन कर भव भार हरूँ । महावीर के पथ पर चलकर मैं भव सागर पार करूँ ॥ चौबीसों तीर्थंकर प्रभु का भाव सहित गुणगान करूँ । तुम समान निज पद पाने को शुद्धातम का ध्यान करूँ ॥ ॐ ह्रीं श्री वृषभादि वीरांतेभ्यो पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
श्री चौबीस जिनेश के चरण कमल उर धार । मन, वच, तन, जो पूजते वे होते भव पार ॥ (इत्याशिर्वादः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत ॥)