Jain Radio
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio
nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here

देव

शास्त्र

गुरु

धर्म

तीर्थ

कल्याणक

महामंत्र

अध्यात्म

पं दौलतराम कृत

पं भागचंद कृत

पं द्यानतराय कृत

पं सौभाग्यमल कृत

पं भूधरदास कृत

पं बुधजन कृत

पं मंगतराय कृत

पं न्यामतराय कृत

पं बनारसीदास कृत

पं ज्ञानानन्द कृत

पं नयनानन्द कृत

पं मख्खनलाल कृत

पं बुध महाचन्द्र

सहजानन्द वर्णी

पर्व

चौबीस तीर्थंकर

बाहुबली भगवान

बधाई

दस धर्म

बच्चों के भजन

मारवाड़ी

selected

प्रारम्भ

नित्य पूजा

तीर्थंकर

पर्व पूजन

विसर्जन

पाठ

छहढाला

स्तोत्र

ग्रंथ

आरती

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

द्रव्यानुयोग

चरणानुयोग

करणानुयोग

प्रथमानुयोग

न्याय

इतिहास

Notes

Youtube -- शास्त्र गाथा

Youtube -- Animations

गुणस्थान

कर्म

बंध

प्रमाण

Other

Download

PDF शास्त्र

Jain Comics

Print Granth

Kids Games

Crossword Puzzle

Word Search

Exam

रत्नत्रय-पूजन
पं द्यानतरायजी कृत
चहुंगति-फनि-विष-हरन-मणि, दुख-पावक-जल-धार
शिव-सुख-सुधा-सरोवरी, सम्यक्-त्रयी निहार ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रय धर्म! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं

(अष्टक - सोरठा छन्द)
क्षीरोदधि उनहार, उज्ज्वल जल अति सोहनो
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय जन्म जरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा

चंदन-केशर गारि, परिमल-महा-सुगंध-मय
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा

तंदुल अमल चितार, वासमती-सुखदास के
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा

महके फूल अपार, अलि गुंजै ज्यों थुति करैं
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय कामबाणविध्वंसानाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा

लाडू बहु विस्तार, चीकन मिष्ट सुगंधयुत
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा

दीप रतनमय सार, जोत प्रकाशै जगत में
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा

धूप सुवास विथार, चंदन अगर कपूर की
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा

फल शोभा अधिकाय, लौंग छुहारे जायफल
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा

आठ दरब निरधार, उत्तम सों उत्तम लिये
जनम-रोग निरवार, सम्यक् रत्न-त्रय भजूं ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

सम्यक् दरशन ज्ञान, व्रत शिव-मग तीनों मयी
पार उतारन यान, 'द्यानत' पूजौं व्रत सहित ॥
ॐ ह्रीं सम्यक् रत्नत्रयाय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(इत्याशीर्वादः - पुष्पांजलिं क्षिपेत्)