पिता मेघराजा सबै सिद्ध काजा, जपें नाम ता को सबै दुःखभाजा महासुर इक्ष्वाकुवंशी विराजे, गुणग्राम जाकौ सबै ठौर छाजै ॥ तिन्हों के महापुण्य सों आप जाये, तिहुँलोक में जीव आनन्द पाये सुनासीर ताही धरी मेरु धायो, क्रिया जन्म की सर्व कीनी यथा यों ॥
बहुरि तातकों सौंपि संगीत कीनों, नमें हाथ जोरी भलीभक्ति भीनों बिताई दशै लाख ही पूर्व बालै, प्रजा उन्तीस ही पूर्व पालै ॥ कछु हेतु तें भावना बारा भाये, तहाँ ब्रह्मलोकान्त देव आये गये बोधि ताही समै इन्द्र आयो, धरे पालकी में सु उद्यान ल्यायो ॥
नमः सिद्ध कहि केशलोंचे सबै ही, धर्यो ध्यान शुद्धं जु घाती हने ही लह्यो केवलं औ समोसर्न साजं, गणाधीश जु एक सौ सोल राजं ॥ खिरै शब्द ता में छहौं द्रव्य धारे, गुनौपर्ज उत्पाद व्यय ध्रौव्य सारे तथा कर्म आठों तनी थिति गाजं, मिले जासु के नाश तें मोच्छराजं ॥
धरें मोहिनी सत्तरं कोड़कोड़ी, सरित्पत्प्रमाणं थिति दीर्घ जोड़ी अवर्ज्ञान दृग्वेदिनी अन्तरायं, धरें तीस कोड़ाकुड़ि सिन्धुकायं ॥ तथा नाम गोतं कुड़ाकोड़ि बीसं, समुद्र प्रमाणं धरें सत्तईसं सु तैतीस अब्धि धरें आयु अब्धिं, कहें सर्व कर्मों तनी वृद्धलब्धिं ॥
जघन्यं प्रकारे धरे भेद ये ही, मुहूर्तं वसू नामं-गोतं गने ही तथा ज्ञान दृग्मोह प्रत्यूह आयं, सुअन्तर्मुहूर्त्तं धरें थित्ति गायं ॥ तथा वेदनी बारहें ही मुहुर्तं, धरैं थित्ति ऐसे भन्यो न्यायजुत्तं इन्हें आदि तत्वार्थ भाख्यो अशेसा, लह्यो फेरि निर्वाण मांहीं प्रवेसा ॥