जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय तुम पद पूजौं प्रीति लाय के, जय जय त्रिभुवनराय ॥ मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी अरज सुनीजे ॥ ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(पंचकल्याणक अर्घ्यावली) नवमी तिथि कारी फागुन धारी, गरभ मांहिं थिति देवा जी तजि आरण थानं कृपानिधानं, करत शची तित सेवा जी ॥ रतनन की धारा परम उदारा, परी व्योम तें सारा जी मैं पूजौं ध्यावौं भगति बढ़ावौं, करो मोहि भव पारा जी ॥ ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णानवम्यां गर्भमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा मंगसिर सितपच्छं परिवा स्वच्छं, जनमे तीरथनाथा जी तब ही चवभेवा निरजर येवा, आय नये निज माथा जी ॥ सुरगिर नहवाये, मंगल गाये, पूजे प्रीति लगाई जी मैं पूजौं ध्यावौं भगत बढ़ावौं, निजनिधि हेतु सहाई जी ॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदायां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा सित मंगसिर मासा तिथि सुखरासा, एकम के दिन धारा जी तप आतमज्ञानी आकुलहानी, मौन सहित अविकारा जी ॥ सुरमित्र सुदानी के घर आनी, गो-पय पारन कीना जी तिन को मैं वन्दौं पाप निकंदौं, जो समता रस भीना जी ॥ ॐ ह्रीं मार्गशीर्षशुक्ला प्रतिपदायां तपोमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा सित कार्तिक गाये दोइज घाये, घातिकरम परचंडा जी केवल परकाशे भ्रम तम नाशे, सकल सार सुख मंडा जी ॥ गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरण वृषदाता जी हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूजें जगत्राता जी ॥ ॐ ह्रीं कार्तिकशुक्ला द्वितीयायां ज्ञानमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा भादव सित सारा आठैं धारा, गिरिसमेद निरवाना जी गुन अष्ट प्रकारा अनुपम धारा, जय जय कृपा निधाना जी ॥ तित इन्द्र सु आयौ, पूज रचायौ,चिह्न तहां करि दीना जी मैं पूजत हौं गुन ध्यान मणी सों, तुमरे रस में भीना जी ॥ ॐ ह्रीं भाद्रपद शुक्लाऽष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्त जिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
(जयमाला) लच्छन मगर सुश्वेत तन तुड्गं धनुष शत एक सुरनर वंदित मुकतिपति, नमौं तुम्हें शिर टेक ॥ पुहुपदन्त गुनवदन है, सागर तोय समान क्यों करि कर-अंजुलिनि कर, करिये तासु प्रमान ॥ (छन्द तामरस, नमन मालिनी तथा चण्डी - 16 मात्रा) पुष्पदन्त जयवन्त नमस्ते, पुण्य तीर्थंकर सन्त नमस्ते । ज्ञान ध्यान अमलान नमस्ते, चिद्विलास सुख ज्ञान नमस्ते ॥ भवभयभंजन देव नमस्ते, मुनिगणकृत पद-सेव नमस्ते । मिथ्या-निशि दिन-इन्द्र नमस्ते, ज्ञानपयोदधि चन्द्र नमस्ते ॥
भवदुःख तरु निःकन्द नमस्ते, राग दोष मद हनन नमस्ते । विश्वेश्वर गुनभूर नमस्ते, धर्म सुधारस पूर नमस्ते ॥ केवल ब्रह्म प्रकाश नमस्ते, सकल चराचरभास नमस्ते । विघ्नमहीधर विज्जु नमस्ते, जय ऊरधगति रिज्जु नमस्ते ॥
जय मकराकृत पाद नमस्ते, मकरध्वज-मदवाद नमस्ते । कर्मभर्म परिहार नमस्ते, जय जय अधम-उद्धार नमस्ते ॥ दयाधुरंधर धीर नमस्ते, जय जय गुन गम्भीर नमस्ते । मुक्ति रमनि पति वीर नमस्ते, हर्ता भवभय पीर नमस्ते ॥
व्यय उत्पति थितिधार नमस्ते, निजअधार अविकार नमस्ते । भव्य भवोदधितार नमस्ते, 'वृन्दावन' निस्तार नमस्ते ॥ (धत्ता) जय जय जिनदेवं हरिकृतसेवं, परम धरमधन धारी जी । मैं पूजौं ध्यावौं गुनगन गावौं, मेटो विथा हमारी जी ॥ ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
पुहुपदंत पद सन्त, जजें जो मनवचकाई नाचें गावें भगति करें, शुभ परनति लाई ॥ सो पावें सुख सर्व, इन्द्र अहिमिंद तनों वर अनुक्रम तें निरवान, लहें निहचै प्रमोद धर ॥ (इत्याशिर्वादः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत ॥)