अछुधा अतृषा अभयातम हो, अमदा अगदा अवदातम हो अविरुद्ध अक्रुद्ध अमानधुना, अतलं असलं अनअन्त गुना अरसं सरसं अकलं सकलं, अवचं सवचं अमचं सबलं इन आदि अनेक प्रकार सही, तुमको जिन सन्त जपें नित ही
अब मैं तुमरी शरना पकरी, दुख दूर करो प्रभुजी हमरी हम कष्ट सहे भवकानन में, कुनिगोद तथा थल आनन में तित जामन मर्न सहे जितने, कहि केम सकें तुम सों तितने सुमुहूरत अन्तरमाहिं धरे, छह त्रै त्रय छः छहकाय खरे
छिति वहि वयारिक साधरनं, लघु थूल विभेदनि सों भरनं परतेक वनस्पति ग्यार भये, छ हजार दुवादश भेद लये सब द्वै त्रय भू षट छः सु भया, इक इन्द्रिय की परजाय लया जुग इन्द्रिय काय असी गहियो, तिय इन्द्रिय साठनि में रहियो
चतुरिंद्रिय चालिस देह धरा, पनइन्द्रिय के चवबीस वरा सब ये तन धार तहाँ सहियो, दुखघोर चितारित जात हियो अब मो अरदास हिये धरिये, दुखदंद सबै अब ही हरिये मनवांछित कारज सिद्ध करो, सुखसार सबै घर रिद्ध भरो (धत्ता) जय विमलजिनेशा नुतनाकेशा, नागेशा नरईश सदा भवताप अशेषा, हरन निशेशा, दाता चिन्तित शर्म सदा ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा
श्रीमत विमल जिनेशपद, जो पूजें मनलाय पूरें वांछित आश तसु, मैं पूजौं गुनगाय ॥ (इत्याशिर्वादः ॥ पुष्पांजलिं क्षिपेत ॥)