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श्री
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अक्षय-तृतीया
(श्री राजमलजी पवैया कृत)

अक्षय-तृतीया पर्व दान का, ऋषभदेव ने दान लिया
नृप श्रेयांस दान-दाता थे, जगती ने यशगान किया ॥
अहो दान की महिमा, तीर्थंकर भी लेते हाथ पसार
होते पंचाश्चर्य पुण्य का, भरता है अपूर्व भण्डार ॥
मोक्षमार्ग के महाव्रती को, भावसहित जो देते दान
निजस्वरूप जप वह पाते हैं, निश्चित शाश्वत पदनिर्वाण ॥
दान तीर्थ के कर्ता नृप श्रेयांस हुए प्रभु के गणधर
मोक्ष प्राप्त कर सिद्ध लोक में, पाया शिवपद अविनश्वर ॥
प्रथम जिनेश्वर आदिनाथ प्रभु! तुम्हें नमन हो बारम्बार
गिरि कैलाश शिखर से तुमने, लिया सिद्धपद मंगलकार ॥
नाथ आपके चरणाम्बुज में, श्रद्धा सहित प्रणाम करूँ
त्यागधर्म की महिमा पाऊँ, मैं सिद्धों का धाम वरूँ
शुभ वैशाख शुक्ल तृतिया का, दिवस पवित्र महान हुआ
दान धर्म की जय-जय गूँजी, अक्षय पर्व प्रधान हुआ ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठः स्थापनं
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधि करणं

कर्मोदय से प्रेरित होकर, विषयों का व्यापार किया
उपादेय को भूल हेय तत्त्वों, से मैंने प्यार किया ॥
जन्म-मरण दुख नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ
अक्षय-तृतीया पर्व दान का, नृप श्रेयांस सुयश गाऊँ ॥टेक ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा

मन-वच-काया की चंचलता, कर्म आस्रव करती है
चार कषायों की छलना ही, भवसागर दु:ख भरती है ॥
भवाताप के नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ
अक्षय-तृतिया पर्व दान का, नृप श्रेयांस सुयश गाऊँ ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामीति स्वाहा

इन्द्रिय विषयों के सुख क्षणभंगुर, विद्युत-सम चमक अथिर
पुण्य-क्षीण होते ही आते, महा असाता के दिन फिर ॥
पद अखण्ड की प्राप्ति हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा

शील विनय व्रत तप धारण, करके भी यदि परमार्थ नहीं
बाह्य क्रियाओं में उलझे तो, वह सच्चा पुरुषार्थ नहीं ॥
कामबाण के नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा

विषय लोलुपी भोगों की, ज्वाला में जल-जल दुख पाता
मृग-तृष्णा के पीछे पागल, नर्क-निगोदादिक जाता ॥
क्षुधा व्याधि के नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा

ज्ञानस्वरूप आत्मा का, जिसको श्रद्धान नहीं होता
भव-वन में ही भटका करता, है निर्वाण नहीं होता ॥
मोह-तिमिर के नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा

कर्म फलों का वेदन करके, सुखी दुखी जो होता है
अष्ट प्रकार कर्म का बन्धन, सदा उसी को होता है ॥
कर्म शत्रु के नाश हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मविध्वंसनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा

जो बन्धन से विरक्त होकर, बन्धन का अभाव करता
प्रज्ञाछैनी ले बन्धन को, पृथक् शीघ्र निज से करता ॥
महामोक्ष-फल प्राप्ति हेतु, मैं आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ
अक्षय-तृतिया पर्व दान का, नृप श्रेयांस सुयश गाऊँ ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा

पर मेरा क्या कर सकता है, मैं पर का क्या कर सकता
यह निश्चय करनेवाला ही, भव-अटवी के दुख हरता ॥
पद अनर्घ्य की प्राप्ति हेतु मैं, आदिनाथ प्रभु को ध्याऊँ ॥टेक॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

जयमाला

चार दान दो जगत में, जो चाहो कल्याण
औषधि भोजन अभय अरु, सद् शास्त्रों का ज्ञान ॥

पुण्य पर्व अक्षय तृतीया का, हमें दे रहा है यह ज्ञान
दान धर्म की महिमा अनुपम, श्रेष्ठ दान दे बनो महान ॥
दान धर्म की गौरव गाथा, का प्रतीक है यह त्यौहार
दान धर्म का शुभ प्रेरक है, सदा दान की जय-जयकार ॥
आदिनाथ ने अर्ध वर्ष तक, किये तपस्या-मय उपवास
मिली न विधि फिर अन्तराय, होते-होते बीते छह मास ॥
मुनि आहारदान देने की, विधि थी नहीं किसी को ज्ञात
मौन साधना में तन्मय हो, प्रभु विहार करते प्रख्यात ॥
नगर हस्तिनापुर के अधिपति, सोम और श्रेयांस सुभ्रात
ऋषभदेव के दर्शन कर, कृतकृत्य हुए पुलकित अभिजात ॥
श्रेयांस को पूर्वजन्म का, स्मरण हुआ तत्क्षण विधिकार
विधिपूर्वक पड़गाहा प्रभु को, दिया इक्षुरस का आहार ॥
पंचाश्चर्य हुए प्रांगण में, हुआ गगन में जय-जयकार
धन्य-धन्य श्रेयांस दान का, तीर्थ चलाया मंगलकार ॥
दान-पुण्य की यह परम्परा, हुई जगत में शुभ प्रारम्भ
हो निष्काम भावना सुन्दर, मन में लेश न हो कुछ दम्भ ॥
चार भेद हैं दान धर्म के, औषधि-शास्त्र-अभय-आहार
हम सुपात्र को योग्य दान दे, बनें जगत में परम उदार ॥
धन वैभव तो नाशवान हैं, अत: करें जी भर कर दान
इस जीवन में दान कार्य कर, करें स्वयं अपना कल्याण ॥
अक्षय तृतिया के महत्त्व को, यदि निज में प्रकटायेंगे
निश्चित ऐसा दिन आयेगा, हम अक्षय-फल पायेंगे ॥
हे प्रभु आदिनाथ! मंगलमय, हम को भी ऐसा वर दो
सम्यग्ज्ञान महान सूर्य का, अन्तर में प्रकाश कर दो ॥
ॐ ह्रीं श्री आदिनाथजिनेन्द्राय जयमालापूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा

अक्षय तृतिया पर्व की, महिमा अपरम्पार
त्याग धर्म जो साधते, हो जाते भव पार ॥
(पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत्)

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