(पं. जुगल किशोर) शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव, सुरपति चक्री करें हम सारिखे लघु पुरुष कैसे, यथाविधि पूजा करें ॥ धन-क्रिया-ज्ञान रहित न जाने, रीत पूजन नाथजी हम भक्तिवश तुम चरण आगै, जोड़ लीने हाथजी ॥१॥
दु:ख-हरन मंगलकरन, आशा-भरन जिन पूजा सही यह चित्त में श्रद्धान मेरे, शक्ति है स्वयमेव ही ॥ तुम सारिखे दातार पाये, काज लघु जाचूँ कहा मुझ आप-सम कर लेहु स्वामी, यही इक वांछा महा ॥२॥
संसार भीषण विपिन में, वसु कर्म मिल आतापियो तिस दाहतैं आकुलित चिरतैं, शान्तिथल कहुँ ना लियो ॥ तुम मिले शान्तिस्वरूप, शान्ति सुकरन समरथ जगपती वसु कर्म मेरे शान्त कर दो, शान्तिमय पंचमगती ॥३॥
जबलौं नहीं शिव लहूँ, तबलौं देह यह नर पावना सत्संग शुद्धाचरण श्रुत अभ्यास आतम भावना ॥ तुम बिन अनंतानंत काल गयो रुलत जगजाल में अब शरण आयो नाथ युग कर, जोर नावत भाल मैं ॥४॥
कर प्रमाण के मान तैं, गगन नपै किहि भंत त्यों तुम गुण वर्णन करत, कवि पावे नहिं अंत ॥५ ॥