(दोहा) बानी एक नमों सदा, एक दरब आकाश । एक धर्म अधर्म दरब, 'पड़िवा' शुद्धि प्रकाश । (चौपाई) दोज दु भेद सिद्ध संसार, संसारी त्रस-थावर धार । स्व-पर दया दोनों मन धरो, राग-दोष तजि समता करो ॥2॥
तीज त्रिपात्र दान नित भजो, तीन काल सामायिक सजो । व्यय-उत्पाद-धौव्य पद साध, मन-वच-तन थिर होय समाध ॥३॥
चौथ चार विधि दान विचार, चारयो आराधना सभार । मैत्री आदि भावना चार, चार बंध सों भिन्न निहार ॥4॥