nikkyjain@gmail.com

🙏
श्री
Click Here
आलोचना-पाठ
श्री जौहरीलालजी कृत

(दोहा)
वंदो पांचो परम - गुरु, चौबिसों जिनराज
करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धि करन के काज ॥१॥

(सखी छन्द)
सुनिए जिन अरज हमारी, हम दोष किये अति भारी
तिनकी अब निवृति काजा, तुम शरण लही जिनराजा ॥२॥

इक बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित सहित जे जीवा
तिनकी नहि करुणा धारी, निरदई हो घात विचारी ॥३॥

समरम्भ समारंभ आरम्भ, मन वच तन कीने प्रारम्भ
कृत कारित मोदन करिके, क्रोधादि चतुष्टय धरिके ॥४॥

शत आठ जु इमि भेदनतै, अघ कीने परिछेदन तै
तिनकी कहुं कोलो कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी ॥५॥

विपरीत एकान्त विनय के, संशय अज्ञान कुनय के
वश होय घोर अघ कीने, वचतै नहि जाय कहीने ॥६॥

कुगुरुन की सेवा किनी, केवल अदया करि भीनी
या विधि मिथ्यात भ्रमायो, चहुँ गति मधि दोष उपायों ॥७॥

हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, पर वनिता सो द्रग जोरी
आरम्भ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो ॥८॥

सपरस रसना घ्रानन को, द्रग कान विषय सेवन को
बहु करम किये मनमाने, कछु न्याय अन्याय न जाने ॥९॥

फल पञ्च उदम्बर खाये, मधु मांस मद्य चित चाये
नहि अष्ट मूलगुण धारे, सेये कुव्यसन दुखकारे ॥१०॥

दुइबीस अभख जिन गाये, सो भी निशदिन भुंजाये
कछु भेदाभेद न पायो, ज्यो त्यों करि उदर भरायो ॥११॥

अनन्तानुबन्धी सो जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो
संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश गुनिये ॥१२॥

परिहास अरति रति शोक, भय ग्लानि त्रिवेद संयोग
पनबीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम ॥१३॥

निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई
फिर जागी विषय वन धायो, नाना विध विष फल खायो ॥१४॥

आहार विहार निहारा, इनमे नहि जतन विचारा
बिन देखि धरी उठाई, बिन शोधी वस्तु जु खाई ॥१५॥

तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकल्प उपजायो
कछु सुधि बुधि नाहि रही है, मिथ्यामति छाय गई हैं ॥१६॥

मरजादा तुम ढिग लीनी, ताहू में दोष जु कीनी
भिन भिन अब कैसे कहिये, तुम ज्ञान विषै सब पइये ॥१७॥

हा हा ! मैं दुठ अपराधी, त्रस जीवन राशि विराधी
थावर की जतन न कीनी, उर में करुणा नहि लीनी ॥१८॥

पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागाँ चिनाई
पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो, पंखातैं पवन बिलोल्यो ॥१९॥

हा हा ! मैं अदयाचारी, बहु हरित काय जु विदारी
तामधि जीवन के खंदा, हम खाए धरी आनंदा ॥२०॥

हा हा ! परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई
तामध्य जीव जे आये, ते हू परलोक सिधाये ॥२१॥

बीध्यो अन राति पिसायो, ईंधन बिन सोधि जलायो
झाड़ू ले जागाँ बुहारी, चींटी आदिक जीव बिदारी ॥२२॥

जल छानि जिवानी कीनी, सो हू पुनि डारि जु दीनी
नहिं जल थानक पहुँचाई, किरिया बिन पाप उपाई ॥२३॥

जल मल मोरिन गिरवायो, क्रमि कुल बहु घात करायो
नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव मराये ॥२४॥

अन्नादिक शोध कराई, तातें जु जीव निसराई
तिनका नहिं जतन कराया, गलियारे धूप डराया ॥२५॥

पुनि द्रव्य कमावन काजै, बहु आरम्भ हिंसा साजै
किये तिसनावश अघ भारी, करुणा नहिं रंच विचारी ॥२६॥

इत्यादिक पाप अनन्ता, हम कीने श्री भगवंता
संतति चिरकाल उपाई, वाणी तै कहिय न जाई ॥२७॥

ताको जु उदय अब आयो, नाना विध मोहि सतायो
फल भुंजत जिय दुःख पावै, वचतै कैसे करि गावै ॥२८॥

तुम जानत केवलज्ञानी, दुःख दूर करो शिवथानी
हम तो तुम शरण लहि है, जिन तारन विरद सही हैं ॥२९॥

इक गाँवपति जो होवे, सो भी दुखिया दुःख खोवै
तुम तीन भुवन के स्वामी, दुःख मेटहु अंतरजामी ॥३०॥

द्रोपदी को चीर बढायो, सीता प्रति कमल रचायो
अंजन से किये अकामी, दुःख मेटो अंतरजामी ॥३१॥

मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनों विरद सम्हारो
सब दोष रहित करि स्वामी, दुःख मेटहु अंतरजामी ॥३२॥

इन्द्रादिक पद नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊँ
रागादिक दोष हरिजे, परमातम निज पद दीजे ॥३३॥

(दोहा)
दोष रहित जिनदेव जी, निज पद दीज्यो मोय
सब जीवन के सुख बढ़े, आनन्द मंगल होय ॥
अनुभव माणिक पारखी, जौहरी आप जिनन्द
येही वर मोहि दीजिये, चरण शरण आनन्द ॥
Close

Play Jain Bhajan / Pooja / Path

Radio Next Audio

देव click to expand contents

शास्त्र click to expand contents

गुरु click to expand contents

कल्याणक click to expand contents

अध्यात्म click to expand contents

पं दौलतराम कृत click to expand contents

पं भागचंद कृत click to expand contents

पं द्यानतराय कृत click to expand contents

पं सौभाग्यमल कृत click to expand contents

पं भूधरदास कृत click to expand contents

पं बुधजन कृत click to expand contents

पर्व click to expand contents

चौबीस तीर्थंकर click to expand contents

दस धर्म click to expand contents

selected click to expand contents

नित्य पूजा click to expand contents

तीर्थंकर click to expand contents

पाठ click to expand contents

स्तोत्र click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

द्रव्यानुयोग click to expand contents

loading