+ मिथ्यात्वादि अपध्यान मेरा परिग्रह नहीं -
मज्झं परिग्गहो जइ तदो अहमजीवदं तु गच्छेज्ज । (208)
णादेव अहं जह्मा तह्मा ण परिग्गहो मज्झ ॥215॥
मम परिग्रहो यदि ततोऽहमजीवतां तु गच्छेयम्
ज्ञातैवाहं यस्मात्तस्मान्न परिग्रहो मम ॥२०८॥
यदि परिग्रह मेरा बने तो मैं अजीव बनूँ अरे ।
पर मैं तो ज्ञायकभाव हूँ इसलिए पर मेरे नहीं ॥२०८॥
अन्वयार्थ : [जदि] यदि [मज्झं परिग्गहो] परिग्रह मेरा हो [तदो] तो [अहमजीवदं] मैं अजीवपने को [गच्छेज्ज] प्राप्त हो जाऊँगा [तु जम्हा] तो चूंकि [अहं] मैं [णादेव] ज्ञाता ही हूं [तम्हा] इस कारण [ण परिग्गहो मज्झ] कुछ भी परिग्रह मेरा नहीं है ।
Meaning : If the alien substance is mine, then, I (having the attribute of consciousness) will become inanimate; because I am a knowing Self, therefore, no alien substance can belong to me.

  अमृतचंद्राचार्य    जयसेनाचार्य    notes 

अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
अतोऽहमपि न तत् परिगृह्णामि -
यदि परद्रव्यमजीवमहं परिगृह्णीयां तदावश्यमेवाजीवो ममासौ स्व: स्यात्‌, अहमप्यवश्यमेवा-जीवस्यामुष्य स्वामी स्याम्‌ । अजीवस्य तु य: स्वामी, स किलाजीव एव । एवमवशेनापि ममाजीवत्व-मापद्येत । मम तु एको ज्ञायक एव भाव: य: स्व:, अस्यैवाहं स्वामी; ततो मा भून्ममाजीवत्वं, ज्ञातैवाहं भविष्यामि, न परद्रव्यं परिगृह्णामि ॥२०८॥


'इसलिये मैं भी पर-द्रव्य का परिग्रहण नहीं करूँगा' इसप्रकार अब (मोक्षाभिलाषी जीव) कहता है -

यदि मैं अजीव पर-द्रव्य को ग्रहण करूं तो यह अजीव मेरा स्व अवश्य हो जाय और मैं भी उस अजीव का अवश्य स्वामी ठहरूं । परन्तु अजीव का जो स्वामी है वह निश्चय से अजीव ही होता है इस तरह मेरे विवशपने से अजीवना आ पड़ेगा । किन्तु मेरा तो एक ज्ञायक-भाव ही स्व है, उसी का मैं स्वामी हूं, इस कारण मेरे अजीवपना मत होओ, मैं तो ज्ञाता ही होऊँगा पर-द्रव्य को नहीं ग्रहण करूँगा यह मेरा निश्चय है ।
जयसेनाचार्य :

[मज्झं परिग्गहो जइ तदो अहमजीवदं तु गच्छेज्ज] मैं तो सहज-शुद्ध-केवल-ज्ञान और दर्शन स्वभाव-वाला हूँ । अत: मिथ्यात्व व रागादिक-रूप पर-द्रव्य मेरा परिग्रह हो जाये तो मैं अजीवपने को अर्थात् जड़पने को प्राप्त हो जाऊँ, परन्तु मैं अजीव नहीं हूँ । [णादेव अहं जह्मा तह्मा ण परिग्गहो मज्झं] मैं तो परमात्म-स्वरूप-शुद्ध-ज्ञानमयी हूँ, इसलिये यह शरीरादिक पर-द्रव्य मेरा परिग्रह नहीं है ॥२१५॥