+ त्रिविध चेतना के स्वामी -
सव्वे खलु कम्मफलं थावरकाया तसा हि कज्जजुदं । (38)
पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा ॥39॥
सर्वे खलु कर्मफलं स्‍थावरकायास्‍त्रसा हि कार्यंयुतम् ।
प्राणित्‍वमतिक्रांता: ज्ञानं विंदन्ति ते जीवा: ॥३८॥
थावर करम फल भोगते, त्रस कर्मफल युत अनुभवें
प्राणित्व से अतिक्रान्त जिनवर वेदते हैं ज्ञान को ॥३९॥
अन्वयार्थ : सभी स्थावर जीवसमूह कर्मफल का, त्रस कर्म सहित कर्मफल का वेदन करते हैं तथा प्राणित्व का अतिक्रमण कर गए वे जीव (सर्वज्ञ भगवान) ज्ञान का वेदन करते हैं।

  अमृतचंद्राचार्य    जयसेनाचार्य 

अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
अत्र क: किं चेत्‍यत् इत्‍युक्तम् ।
चेतयंते अनुभवन्ति उपलंभते विंदंतीत्‍येकार्थाश्‍चेतनानुभृत्‍युपलब्धिवेदनानामेकार्थत्‍वात् । तत्र स्‍थावरा: कर्मफलं चेतयंते, केवलज्ञानिनो ज्ञानं चेतयंत इति ॥३८॥
अथोपयोगगुणव्‍याख्‍यानम् ।


यहाँ, कौन क्या चेतता है (अर्थात् किस जीव को कौनसी चेतना होती है) वह कहा है ।

चेतता है, अनुभव करता है, उपलब्ध करता है और वेदता है -- ये एकार्थ हैं (अर्थात् यह सब शब्द एक अर्थ-वाले हैं), क्योंकि चेतना, अनुभूति, उपलब्धि और वेदना का एक अर्थ है । वहाँ, स्थावर कर्म-फल को चेतते हैं, त्रस कार्य को चेतते हैं, केवल-ज्ञानी ज्ञान को चेतते हैं ॥३८॥
जयसेनाचार्य :

अब यहाँ कौन क्या चेतता है ? इसका निरूपण करते हैं । प्रश्न – निरूपण करते हैं इसका क्या अर्थ है? उत्तर – तत्सम्बन्धी प्रश्न होने पर उसका उत्तर देते हैं यह उसका अर्थ है। इसप्रकार प्रश्नोत्तररूप पातनिका के प्रस्ताव में सर्वत्र 'इति' शब्द का अर्थ जानना चाहिए --

[सव्वे खलु कम्मफलं थावर काया विंदन्ति] वे सभी प्रसिद्ध पाँच प्रकार के स्थावर-काय जीव अव्यक्त सुख-दु:ख अनुभव-रूप शुभाशुभ कर्म-फल का वेदन करते हैं, अनुभव करते हैं; [तहा हि कज्जजुदं] दो इन्द्रिय आदि त्रस जीव निर्विकार परमानंद-रूप एक स्वभाव-मय आत्म-सुख को प्राप्त नहीं करते हुए विशेष राग-द्वेष रूप जो कार्य चेतना है, उससे सहित उसी कर्म-फल का अनुभव करते हैं । [पाणित्तमदिक्कंता णाणं विंदंति ते जीवा] तथा जो विशिष्ट शुद्धात्मानुभूति भावना से समुत्पन्न परमानन्द एक सुखामृत-रूप समरसी भाव के बल से दस प्रकार के प्राणों से रहित सिद्ध जीव हैं, वे केवल ज्ञान का अनुभव करते हैं । इसप्रकार इन दोनों गाथाओं में केवल ज्ञान चेतना साक्षात् उपादेय-भूत जानना चाहिए -- ऐसा तात्पर्य है ॥३९॥

इसप्रकार त्रिविध चेतना के व्याख्यान की मुख्यता से दो गाथायें पूर्ण हुईं । (इसप्रकार पाँच अधिकारों के समूहरूप से तेरह गाथायें पूर्ण हुईं ।)