
अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
सकलपुद्गलविकल्पोपसंहारोऽयम् । इन्द्रियविषयाः स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दाश्च, द्रव्येन्द्रियाणि स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुः-श्रोत्राणि, कायाः औदारिकवैक्रियकाहारकतैजसकार्मणानि, द्रव्यमनः, द्रव्यकर्माणि, नोकर्माणि, विचित्रपर्यायोत्पत्तिहेतवोऽनन्ताः अनन्ताणुवर्गणाः, अनन्ता असंख्येयाणुवर्गणाः, अनन्ताः संख्येयाणुवर्गणाः द्वयणुकस्क न्धपर्यंताः, परमाणवश्च, यदन्यदपि मूर्तं तत्सर्वं पुद्गलविकल्पत्वेनोपसंहर्तव्यमिति ॥८१॥ - इति पुद्गलद्रव्यास्तिकायव्याख्यानं समाप्तम् । यह, सर्व पुद्गल भेदों का उपसंहार है । स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द रूप (पाँच) इंद्रिय-विषय, स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र रूप (पाँच) द्रव्येन्द्रियाँ, औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्माण रूप (पाँच) काया, द्रव्य-मन, द्रव्य-कर्म, नोकर्म, विचित्र पर्यायों की उत्पत्ति के हेतुभूत (अर्थात अनेक प्रकार की पर्यायें उत्पन्न होने के कारण-भूत) १अनन्त अनन्ताणुक वर्गणाएँ, अनन्त असंख्याताणुक वर्गणाएँ और द्वि-अणुक स्कंध तक की अनन्त संख्याताणुक वर्गणाएँ तथा परमाणु, तथा अन्य भी जो कुछ मूर्त हो वह सब पुद्गल के भेद रूप से समेटना । इस प्रकार पुद्गल द्रव्यास्तिकाय का व्याख्यान समाप्त हुआ ॥८१॥ अब धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय का व्याख्यान है । १लोक में अनन्त परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाएँ अनन्त हैं, असंख्यात परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाएँ भी अनन्त हैं और (द्वि-अणुक स्कंध, त्रि- अणुक स्कंध इत्यादि) संख्यात परमाणुओं की बनी हुई वर्गणाएँ भी अनन्त हैं । (अविभागी परमाणु भी अनंत है) । |
जयसेनाचार्य :
[उवभोज्जमिंदिएहिं] वीतराग अतीन्द्रिय-सुख के आस्वाद से रहित जीवों के जो
इस प्रकार पुद्गलास्तिकाय के उपसंहार-रूप से तृतीय स्थल में एक गाथा पूर्ण हुई । इस प्रकार पंचास्तिकाय षड्द्रव्य प्रतिपादक प्रथम महाधिकार में दश गाथा पर्यंत तीन स्थल द्वारा पुद्गलास्ति-काय नामक पाँचवाँ अन्तराधिकार पूर्ण हुआ । अब इसके बाद अनन्त केवल-ज्ञानादि रूप से उपादेय-भूत शुद्ध जीवास्ति-काय से भिन्न हेय-रूप धर्म-अधर्मास्तिकाय अधिकार में सात गाथायें हैं । उन सात गाथाओं में से
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