+ तीन इन्द्रिय -
जूगागुंभीमक्कणपिपीलिया विच्छियादिया कीडा । (113)
जाणंति रसं फासं गंधं तेइंदिया जीवा ॥123॥
यूकाकुम्भीमत्कुणपिपीलिका वृश्चिकादयः कीटाः ।
जानन्ति रसं स्पर्शं गन्धं त्रीन्द्रियाः जीवाः ॥११३॥
चीटि-मकड़ी-लीख-खटमल बिच्छु आदिक जंतु जो
फरस रस अरु गंध जाने तीन इन्द्रिय जीव वे ॥११३॥
अन्वयार्थ : यूका (जूँ), कुंभी, मत्कुण (खटमल), पिपीलिका (चींटी), बिच्छू आदि कीट (जन्तु) तीन इन्द्रिय जीव स्पर्श, रस और गंध को जानते हैं ।

  अमृतचंद्राचार्य    जयसेनाचार्य 

अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
त्रीन्द्रियप्रकारसूचनेयम् ।
एते स्पर्शनरसनघ्राणेन्द्रियावरणक्षयोपशमात् शेषेन्द्रियावरणोदये नोइन्द्रियावरणोदये चसति स्पर्शरसगन्धानां परिच्छेत्तारस्त्रीन्द्रिया अमनसो भवन्तीति ॥११३॥


यह, त्रीइंद्रिय जीवों के प्रकार की सूचना है।

स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय और घ्राणेन्द्रिय के आवरण के क्षयोपशम के कारण तथा शेष इंद्रियों के आवरण का उदय तथा मन के (-भावमन के) आवरण का उदय होने से स्पर्श, रस और गंध को जानने वाले यह (जू आदि) जीव मन-रहित त्रीइंद्रिय जीव हैं ॥११३॥
जयसेनाचार्य :

जूँ, खटमल, कुंभी, चींटी, पर्णबिच्छू गण कीटक आदि (आदि कीड़ों के समूह) रूप कर्ता, क्योंकि स्पर्श-रस-गंध तीन को जानते हैं; इसकारण तीन-इन्द्रिय हैं ।

वह इसप्रकार -- विशुद्ध ज्ञान-दर्शन स्वभावी आत्म-पदार्थ की संवित्ति से समुत्पन्न वीतराग परमानन्द एक-लक्षण सुखामृत रस के अनुभव से च्युत और स्पर्शन, रसना, घ्राण इन्द्रिय आदि के विषय-सुख में मूर्छित जीवों द्वारा जो बाँधा गया तीन इन्द्रिय जाति नामकर्म, उसके उदयाधीन होने के कारण; वीर्यान्तराय, स्पर्शन, रसना, घ्राण इन्द्रियावरण के क्षयोपशम का लाभ होने से तथा शेष इन्द्रियावरण का उदय और नोइन्द्रियावरण का उदय होने पर मन रहित तीन-इन्द्रिय होते हैं, ऐसा सूत्र अभिप्राय है ॥१२३॥