+ अजीव-तत्त्व प्रतिपादन -
आगासकालपुग्गलधम्माधम्मेसु णत्थि जीवगुणा । (122)
तेसिं अचेदणत्तं भणिदं जीवस्स चेदणदा ॥132॥
आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु न सन्ति जीवगुणाः ।
तेषामचेतनत्वं भणितं जीवस्य चेतनता ॥१२२॥
जीव के गुण हैं नहीं जड़ पुद्गलादि पदार्थ में
उनमें अचेतनता कही चेतनपना है जीव में ॥१२२॥
अन्वयार्थ : आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म में जीव के गुण नहीं हैं । उनके अचेतनता कही गई है तथा जीव के चेतनता है ।

  अमृतचंद्राचार्य    जयसेनाचार्य 

अमृतचंद्राचार्य : संस्कृत
आकाशादीनामेवाजीवत्वे हेतूपन्यासोऽयम् ।
आकाशकालपुद्गलधर्माधर्मेषु चैतन्यविशेषरूपा जीवगुणा नो विद्यन्ते, आकाशादीनांतेषामचेतनत्वसामान्यत्वात् । अचेतनत्वसामान्यञ्चाकाशादीनामेव, जीवस्यैव चेतनत्व-सामान्यादिति ॥१२२॥


यह, आकाशादि का ही अजीवपना दर्शाने के लिये हेतु का कथन है ।

आकाश, काल, पुद्‍गल, धर्म और अधर्म में चैतन्य-विशेषों रूप जीव-गुण विद्यमान नहीं है, क्योंकि उन आकाशादि को अचेतनत्व-सामान्य है । और अचेतनत्व सामान्य आकाशादि को ही है, क्योंकि जीव को ही चेतनत्व-सामान्य है ॥१२२॥
जयसेनाचार्य :

आकाश, काल, पुद्गल, धर्म, अधर्म में अनन्त ज्ञान-दर्शन आदि जीव के गुण नहीं हैं; उस कारण उनके अचेतनता कही गई है । उनके जीवगुण किस कारण नहीं हैं ? यदि ऐसा प्रश्न हो तो कहते हैं एक साथ तीन लोक, तीन कालवर्ती समस्त पदार्थों का परिच्छेदक / ज्ञायक होने से जीव के ही चेतकता होने के कारण उनमें जीव के गुण नहीं हैं ऐसा सूत्र का अभिप्राय है ॥१३२॥