ब्रह्मदेव सूरि : संस्कृत
[तिक्काले चदुपाणा] तीन काल में जीव के चार प्राण होते हैं। वे कौन से? [इंदियबलमाउआणपाणो य] इन्द्रियों के अगोचर जो शुद्ध चैतन्य प्राण है उसके प्रतिपक्षभूत क्षायोपशमिक (क्षयोपशम से होने वाले) इन्द्रिय प्राण है, अनन्तवीर्यरूप जो बलप्राण है उसके अनन्तवें भाग के प्रमाण मनोबल, वचनबल और कायबल प्राण हैं, अनादि, अनन्त तथा शुद्ध जो चैतन्य प्राण है, उससे विपरीत एवं विलक्षण सादि (आदि सहित) और सान्त (अन्त सहित) आयु प्राण है, श्वासोच्छ्वास के आने जाने से उत्पन्न खेद से रहित जो शुद्ध चित्-प्राण है उससे विपरीत श्वासोच्छ्वास प्राण है। [ववहारा सो जीवो] व्यवहारनय से, इस प्रकार के चार द्रव्य व भाव प्राणों से जो जीता है, जीवेगा या पहले जी चुका है, वह जीव है। अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय की अपेक्षा द्रव्येन्द्रिय आदि द्रव्य प्राण हैं और अशुद्ध निश्चयनय से भावेन्द्रिय आदि क्षायोपशमिक भावप्राण हैं और निश्चयनय से सत्ता, चैतन्य, बोध आदि शुद्धभाव जीव के प्राण हैं। [णिच्छयणयदो दुचेदणा जस्स] शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा उपादेयभूत यानि ग्रहण करने योग्य शुद्ध चेतना जिसके हो वह जीव है। वच्छक्खभवसारिच्छ सग्गणिरय पियराय । चुल्लय हंडिय पुण मडउणव दिटुंता जाय ॥
अब तीन गाथा पर्यंत ज्ञान तथा दर्शन इन दो उपयोगों का वर्णन करते हैं?। उनमें भी पहली गाथा में मुख्य रूप से दर्शनोपयोग का व्याख्यान करते हैं। जहाँ पर यह कथन हो कि 'अमुक विषय का मुख्यता से वर्णन करते हैं', वहाँ पर 'गौण रूप से अन्य विषय का भी यथासंभव कथन प्राप्त होता है' यह जानना चाहिए -- [तिक्काले चदुपाणा] तीन काल में जीव के चार प्राण होते हैं। वे कौन से? [इंदियबलमाउआणपाणो य] इन्द्रियों के अगोचर जो शुद्ध चैतन्य प्राण है उसके प्रतिपक्षभूत क्षायोपशमिक (क्षयोपशम से होने वाले) इन्द्रिय प्राण है, अनन्तवीर्यरूप जो बलप्राण है उसके अनन्तवें भाग के प्रमाण मनोबल, वचनबल और कायबल प्राण हैं, अनादि, अनन्त तथा शुद्ध जो चैतन्य प्राण है, उससे विपरीत एवं विलक्षण सादि (आदि सहित) और सान्त (अन्त सहित) आयु प्राण है, श्वासोच्छ्वास के आने जाने से उत्पन्न खेद से रहित जो शुद्ध चित्-प्राण है उससे विपरीत श्वासोच्छ्वास प्राण है। [ववहारा सो जीवो] व्यवहारनय से, इस प्रकार के चार द्रव्य व भाव प्राणों से जो जीता है, जीवेगा या पहले जी चुका है, वह जीव है। अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय की अपेक्षा द्रव्येन्द्रिय आदि द्रव्य प्राण हैं और अशुद्ध निश्चयनय से भावेन्द्रिय आदि क्षायोपशमिक भावप्राण हैं और निश्चयनय से सत्ता, चैतन्य, बोध आदि शुद्धभाव जीव के प्राण हैं। [णिच्छयणयदो दुचेदणा जस्स] शुद्ध निश्चयनय की अपेक्षा उपादेयभूत यानि ग्रहण करने योग्य शुद्ध चेतना जिसके हो वह जीव है। वच्छक्खभवसारिच्छ सग्गणिरय पियराय ।
चुल्लय हंडिय पुण मडउणव दिटुंता जाय ॥
अब तीन गाथा पर्यंत ज्ञान तथा दर्शन इन दो उपयोगों का वर्णन करते हैं?। उनमें भी पहली गाथा में मुख्य रूप से दर्शनोपयोग का व्याख्यान करते हैं। जहाँ पर यह कथन हो कि 'अमुक विषय का मुख्यता से वर्णन करते हैं', वहाँ पर 'गौण रूप से अन्य विषय का भी यथासंभव कथन प्राप्त होता है' यह जानना चाहिए -- |
आर्यिका ज्ञानमती :
प्रश्न – व्यवहारनय किसे कहते हैं? उत्तर – वस्तु के अशुद्ध स्वरूप को ग्रहण करने वाले ज्ञान को व्यवहारनय कहते हैं। प्रश्न- व्यवहारनय से जीव का लक्षण बताइये? उत्तर – जिसमें तीनों कालों में चार प्राण पाये जाते हैं, व्यवहारनय से वह जीव है। प्रश्न – चार प्राण कौन से हैं ? उत्तर – इन्द्रिय, बल, आयु और स्वासोच्छ्वास। प्रश्न – निश्चयनय किसे कहते हैं? उत्तर – वस्तु के शुद्ध स्वरूप का कथन करने वाले नय को निश्चयनय कहते हैं। प्रश्न – निश्चयनय से जीव का लक्षण बताइये? उत्तर – जिसमें चेतना पायी जाती है, निश्चयनय से वह जीव है। प्रश्न – एकेन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर – एकेन्द्रिय जीव के चार प्राण होते हैं-स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास। प्रश्न – द्वीन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर – १. स्पर्शन इन्द्रिय २. रसना इन्द्रिय ३. वचनबल ४. कायबल ५. आयु ६. श्वासोच्छ्वास ये कुल ६ प्राण द्वीन्द्रिय जीव के होते हैं। प्रश्न – तीन इन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर – तीन इन्द्रिय जीव के सात प्राण होते हैं-स्पर्शन, रसना, घ्राण ये तीन इन्द्रियाँ, वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास। प्रश्न – चार इन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर – स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु ये चार इन्द्रियाँ, वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास इस प्रकार कुल ८ प्राण चार इन्द्रिय जीव के होते हैं। प्रश्न – असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं। उत्तर – स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कर्ण ये पाँच इन्द्रियाँ, वचनबल, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये कुल ९ प्राण असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के होते हैं। प्रश्न – संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के कितने प्राण होते हैं? उत्तर – संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव के दस प्राण होते हैं-पाँचों इन्द्रियाँ, तीनों बल, आयु और श्वासोच्छ्वास। प्रश्न – एक मात्र चेतना प्राण किनके होता है? उत्तर – सिद्ध भगवान के दस प्राणों में से कोई भी प्राण नहीं है। उनको मात्र एक चेतना प्राण माना है। |