ब्रह्मदेव सूरि : संस्कृत
[अट्ठ चदुणाण सण सामण्णं जीवलक्खणं भणियं] आठ प्रकार का ज्ञान तथा चार प्रकार का दर्शन सामान्य रूप से जीव का लक्षण कहा गया है । यहाँ पर 'सामान्य' इस कथन का यह तात्पर्य है कि इस लक्षण में संसारी तथा मुक्त जीव की विवक्षा नहीं है, अथवा शुद्ध अशुद्ध ज्ञान दर्शन की भी विवक्षा नहीं है । सो कैसे? इस शंका का उत्तर यह है कि 'विवक्षा का अभाव ही सामान्य का लक्षण है' ऐसा कहा है । किस अपेक्षा से जीव का सामान्य लक्षण कहा है? इसका उत्तर यह है कि [ववहारा] अर्थात् व्यवहारनय की अपेक्षा से कहा है । यहाँ
अब, अमूर्तिक तथा अतीन्द्रिय निज आत्मा के ज्ञान से रहित होने के कारण मूर्त जो पाँचों इन्द्रियों के विषय हैं उनमें आसक्ति के द्वारा जीव ने जो मूर्तिक उपार्जित किये हैं उनके उदय से व्यवहार नय की अपेक्षा से जीव मूर्तिक है तथापि निश्चयनय से अमूर्तिक है, ऐसा उपदेश देते हैं -- [अट्ठ चदुणाण सण सामण्णं जीवलक्खणं भणियं] आठ प्रकार का ज्ञान तथा चार प्रकार का दर्शन सामान्य रूप से जीव का लक्षण कहा गया है । यहाँ पर 'सामान्य' इस कथन का यह तात्पर्य है कि इस लक्षण में संसारी तथा मुक्त जीव की विवक्षा नहीं है, अथवा शुद्ध अशुद्ध ज्ञान दर्शन की भी विवक्षा नहीं है । सो कैसे? इस शंका का उत्तर यह है कि 'विवक्षा का अभाव ही सामान्य का लक्षण है' ऐसा कहा है । किस अपेक्षा से जीव का सामान्य लक्षण कहा है? इसका उत्तर यह है कि [ववहारा] अर्थात् व्यवहारनय की अपेक्षा से कहा है । यहाँ
अब, अमूर्तिक तथा अतीन्द्रिय निज आत्मा के ज्ञान से रहित होने के कारण मूर्त जो पाँचों इन्द्रियों के विषय हैं उनमें आसक्ति के द्वारा जीव ने जो मूर्तिक उपार्जित किये हैं उनके उदय से व्यवहार नय की अपेक्षा से जीव मूर्तिक है तथापि निश्चयनय से अमूर्तिक है, ऐसा उपदेश देते हैं -- |
आर्यिका ज्ञानमती :
प्रश्न – शुद्ध निश्चयनय किसे कहते हैं? उत्तर – वस्तु के शुद्धस्वरूप का कथन करने की प्रक्रिया को शुद्ध निश्चयनय कहते हैं। प्रश्न – शुद्ध निश्चयनय से जीव किसे कहते हैं? उत्तर – जिसमें शुद्ध दर्शन और ज्ञान पाया जाता है, शुद्ध निश्चयनय से वह जीव है। प्रश्न – व्यवहारनय से (सामान्य) जीव का लक्षण क्या है? उत्तर – व्यवहारनय से आठ प्रकार का ज्ञान और चार प्रकार का दर्शन जीव का लक्षण है। प्रश्न – सामान्य किसको कहते हैं ? उत्तर – जिसमें संसारी, मुक्त, एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय आदि जीवों की विवक्षा न हो, उसको सामान्य जीव कहते हैं। |