+ पुद्गल द्रव्य की विभाव व्यंजन पर्यायें -
सद्दो बंधो सुहुमो, थूलो संठाणभेदतमछाया
उज्जोदादवसहिया, पुग्गल दव्वस्स पज्जाया ॥16॥
थूल सूक्षम बंध तम संस्थान आतप भेद अर ।
उद्योत छाया शब्द पुद्गल द्रव्य के परिणाम हैं ॥१६॥
अन्वयार्थ : [सदो] शब्द [बंधो] बन्ध [सुहुमो] सूक्ष्म [थूलो] स्थूल [संठाण-भेद-तमछाया] संस्थान, भेद, अन्धकार, छाया [उज्जोदादव-सहिया] उद्योत व आतप सहित [पुग्गलदव्वस्स पज्जाया] पुद्गल द्रव्य की पर्यायें हैं ।
Meaning : Sound, union, minuteness (fineness), grossness, form (shape), division, darkness, image (shadow etc.), cool light (moonlight), and warm light (sunshine), are the modes of matter.

  ब्रह्मदेव सूरि    आर्यिका ज्ञानमती 

ब्रह्मदेव सूरि : संस्कृत
शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत इन सहित पुद्गल द्रव्य की पर्यायें होती हैं । अब इसको विस्तार से बतलाते हैं -- भाषात्मक और अभाषात्मक ऐसे शब्द दो तरह के हैं । उनमें भाषात्मक शब्द अक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक रूप से दो तरह का है । उनमें भी अक्षरात्मक भाषा संस्कृत-प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओं के भेद से आर्य व म्लेच्छ मनुष्यों के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है । अनक्षरात्मक भाषा द्वीन्द्रिय आदि तिर्यञ्च जीवों में तथा सर्वज्ञ की दिव्यध्वनि में है ।अभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक और वैनसिक के भेद से दो तरह का है । उनमें वीणा आदि के शब्द को तत, ढोल आदि के शब्द को वितत, मंजीरे तथा ताल आदि के शब्द को घन और वंशी आदि के शब्द को सुषिर कहते हैं ॥१॥ इस श्लोक में कहे हुए क्रम से प्रायोगिक (प्रयोग से पैदा होने वाला) शब्द चार तरह का है; 'वित्रसा' अर्थात् स्वभाव से होने वाला वैनसिक शब्द बादल आदि से होता है वह अनेक तरह का है ।
विशेष - शब्द से रहित निज परमात्मा की भावना से छूटे हुए तथा शब्द आदि मनोज्ञअमनोज्ञ पंच इन्द्रियों के विषयों में आसक्त जीव ने जो सुस्वर तथा दुःस्वर नामकर्म का बन्ध किया उस कर्म के उदय के अनुसार यद्यपि जीव में शब्द दिखता है तो भी वह शब्द जीव के संयोग से उत्पन्न होने से व्यवहारनय की अपेक्षा 'जीव का शब्द' कहा जाता है; किन्तु निश्चयनय से तो वह शब्द पुद्गलमयी ही है । अब बन्ध को कहते हैं-मिट्टी आदि के पिंड रूप जो बहुत प्रकार का बन्ध है वह तो केवल पुद्गल बन्ध है । जो कर्म, नोकर्म रूप बन्ध है, वह जीव और पुद्गल के संयोग से होने वाला बन्ध है । विशेष यह है कि - कर्मबन्ध से भिन्न जो निज शुद्ध आत्मा की भावना से रहित जीव के अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से द्रव्य बन्ध है और उसी तरह अशुद्ध निश्चयनय से जो वह रागादिक रूप भावबन्ध कहा जाता है; यह भी शुद्ध निश्चयनय से पुद्गल का ही बन्ध है । बिल्वादि की अपेक्षा बेर आदि फलों में सूक्ष्मता है और परमाणु में साक्षात् सूक्ष्मता है (परमाणु की सूक्ष्मता किसी की अपेक्षा से नहीं है) । बेर आदि की अपेक्षा बिल्वादि में स्थूलता (बड़ापन) है; तीन लोक में व्याप्त महास्कन्ध में सबसे अधिक स्थूलता है । समचतुरस्र, न्यग्रोध, सातिक, कुब्जक, वामन और हुंडक ये ६ प्रकार के संस्थान व्यवहारनय से जीव के होते हैं किन्तु संस्थान शून्य चेतन चमत्कार परिणाम से भिन्न होने के कारण निश्चयनय की अपेक्षा संस्थान पुद्गल का ही होता है जो जीव से भिन्न गोल, त्रिकोन, चौकोर आदि प्रकट, अप्रकट अनेक प्रकार के संस्थान हैं, वे भी पुद्गल के ही हैं । गेहूँ आदि के चून रूप से तथा घी, खांड आदि रूप से अनेक प्रकार का भेद (खण्ड) जानना चाहिए । दृष्टि को रोकने वाला अन्धकार है उसको तम कहते हैं । पेड़ आदि के आश्रय से होने वाली तथा मनुष्य आदि की परछाई रूप जो है उसे छाया जानना चाहिए । चन्द्रमा के विमान में तथा जुगनू आदि तिर्यञ्च जीवों में उद्योत होता है । सूर्य के विमान में तथा अन्यत्र भी सूर्यकांत विशेष मणि आदि पृथ्वीकाय में आतप जानना चाहिए ।
सारांश यह है कि जिस प्रकार शुद्ध निश्चयनय से जीव के निज-आत्मा की उपलब्धिरूप सिद्ध-स्वरूप में स्वभाव व्यंजन पर्याय विद्यमान है फिर भी अनादि कर्मबन्धन के कारण पुद्गल के स्निग्ध तथा रूक्ष गुण के स्थानभूत राग-द्वेष परिणाम होने पर स्वाभाविक-परमानन्दरूप एक स्वास्थ्य भाव से भ्रष्ट हुए जीव के मनुष्य, नारक आदि विभाव-व्यंजन-पर्याय होती हैं; उसी तरह पुद्गल में निश्चयनय की अपेक्षा शुद्ध परमाणु दशारूप स्वभाव-व्यंजन-पर्याय के विद्यमान होते हुए भी स्निग्धता तथा रूक्षता से बन्ध होता है । इस वचन से राग और द्वेष के स्थानीय बन्ध योग्य स्निग्ध तथा रूक्ष परिणाम के होने पर पहले बतलाये गये शब्द आदि के सिवाय अन्य भी शास्त्रोक्त लक्षणयुक्त सिकुड़ना, फैलना, दही, दूध आदि विभाव-व्यंजन-पर्यायें जाननी चाहिए । इस प्रकार अजीव अधिकार में अज्जीवो आदि पूर्व गाथा में कहे गये रूप-रसादि चारों गुणों से युक्त तथा यहाँ गाथा में कथित शब्द आदि पर्याय सहित अणु, स्कंध आदि पुद्गल द्रव्य का संक्षेप से निरूपण करने वाली दो गाथायें समाप्त हुईं ॥१६॥
अब धर्मद्रव्य का व्याख्यान करते हैं --


शब्द, बन्ध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत इन सहित पुद्गल द्रव्य की पर्यायें होती हैं । अब इसको विस्तार से बतलाते हैं -- भाषात्मक और अभाषात्मक ऐसे शब्द दो तरह के हैं । उनमें भाषात्मक शब्द अक्षरात्मक तथा अनक्षरात्मक रूप से दो तरह का है । उनमें भी अक्षरात्मक भाषा संस्कृत-प्राकृत और उनके अपभ्रंश रूप पैशाची आदि भाषाओं के भेद से आर्य व म्लेच्छ मनुष्यों के व्यवहार के कारण अनेक प्रकार की है । अनक्षरात्मक भाषा द्वीन्द्रिय आदि तिर्यञ्च जीवों में तथा सर्वज्ञ की दिव्यध्वनि में है । अभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक और वैश्रसिक के भेद से दो तरह का है । उनमें वीणा आदि के शब्द को तत, ढोल आदि के शब्द को वितत, मंजीरे तथा ताल आदि के शब्द को घन और वंशी आदि के शब्द को सुषिर कहते हैं ॥१॥ इस श्लोक में कहे हुए क्रम से प्रायोगिक (प्रयोग से पैदा होने वाला) शब्द चार तरह का है; 'विश्रसा' अर्थात् स्वभाव से होने वाला वैश्रसिक शब्द बादल आदि से होता है वह अनेक तरह का है ।

विशेष - शब्द से रहित निज परमात्मा की भावना से छूटे हुए तथा शब्द आदि मनोज्ञअमनोज्ञ पंच इन्द्रियों के विषयों में आसक्त जीव ने जो सुस्वर तथा दुःस्वर नामकर्म का बन्ध किया उस कर्म के उदय के अनुसार यद्यपि जीव में शब्द दिखता है तो भी वह शब्द जीव के संयोग से उत्पन्न होने से व्यवहारनय की अपेक्षा 'जीव का शब्द' कहा जाता है; किन्तु निश्चयनय से तो वह शब्द पुद्गलमयी ही है । अब बन्ध को कहते हैं- मिट्टी आदि के पिंड रूप जो बहुत प्रकार का बन्ध है वह तो केवल पुद्गल बन्ध है । जो कर्म, नोकर्म रूप बन्ध है, वह जीव और पुद्गल के संयोग से होने वाला बन्ध है । विशेष यह है कि - कर्मबन्ध से भिन्न जो निज शुद्ध आत्मा की भावना से रहित जीव के अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय से द्रव्य बन्ध है और उसी तरह अशुद्ध निश्चयनय से जो वह रागादिक रूप भावबन्ध कहा जाता है; यह भी शुद्ध निश्चयनय से पुद्गल का ही बन्ध है । बेल आदि की अपेक्षा बेर आदि फलों में सूक्ष्मता है और परमाणु में साक्षात् सूक्ष्मता है (परमाणु की सूक्ष्मता किसी की अपेक्षा से नहीं है) । बेर आदि की अपेक्षा बेल आदि में स्थूलता (बड़ापन) है; तीन लोक में व्याप्त महास्कन्ध में सबसे अधिक स्थूलता है । समचतुरस्र, न्यग्रोध, सातिक, कुब्जक, वामन और हुंडक ये ६ प्रकार के संस्थान व्यवहारनय से जीव के होते हैं किन्तु संस्थान शून्य चेतन चमत्कार परिणाम से भिन्न होने के कारण निश्चयनय की अपेक्षा संस्थान पुद्गल का ही होता है जो जीव से भिन्न गोल, त्रिकोन, चौकोर आदि प्रकट, अप्रकट अनेक प्रकार के संस्थान हैं, वे भी पुद्गल के ही हैं । गेहूँ आदि के चून रूप से तथा घी, खांड आदि रूप से अनेक प्रकार का 'भेद' (खण्ड) जानना चाहिए । दृष्टि को रोकने वाला अन्धकार है उसको 'तम' कहते हैं । पेड़ आदि के आश्रय से होने वाली तथा मनुष्य आदि की परछाई रूप जो है उसे 'छाया' जानना चाहिए । चन्द्रमा के विमान में तथा जुगनू आदि तिर्यञ्च जीवों में 'उद्योत' होता है । सूर्य के विमान में तथा अन्यत्र भी सूर्यकांत विशेष मणि आदि पृथ्वीकाय में 'आतप' जानना चाहिए ।

सारांश यह है कि जिस प्रकार शुद्ध निश्चयनय से जीव के निज-आत्मा की उपलब्धिरूप सिद्ध-स्वरूप में स्वभाव व्यंजन पर्याय विद्यमान है फिर भी अनादि कर्मबन्धन के कारण पुद्गल के स्निग्ध तथा रूक्ष गुण के स्थानभूत राग-द्वेष परिणाम होने पर स्वाभाविक-परमानन्दरूप एक स्वास्थ्य भाव से भ्रष्ट हुए जीव के मनुष्य, नारक आदि विभाव-व्यंजन-पर्याय होती हैं; उसी तरह पुद्गल में निश्चयनय की अपेक्षा शुद्ध परमाणु दशारूप स्वभाव-व्यंजन-पर्याय के विद्यमान होते हुए भी स्निग्धता तथा रूक्षता से बन्ध होता है । इस वचन से राग और द्वेष के स्थानीय बन्ध योग्य स्निग्ध तथा रूक्ष परिणाम के होने पर पहले बतलाये गये शब्द आदि के सिवाय अन्य भी शास्त्रोक्त लक्षणयुक्त सिकुड़ना, फैलना, दही, दूध आदि विभाव-व्यंजन-पर्यायें जाननी चाहिए । इस प्रकार अजीव अधिकार में अज्जीवो आदि पूर्व गाथा में कहे गये रूप-रसादि चारों गुणों से युक्त तथा यहाँ गाथा में कथित शब्द आदि पर्याय सहित अणु, स्कंध आदि पुद्गल द्रव्य का संक्षेप से निरूपण करने वाली दो गाथायें समाप्त हुईं ॥१६॥

अब धर्मद्रव्य का व्याख्यान करते हैं --

आर्यिका ज्ञानमती :

प्रश्न – शब्द किसे कहते हैं ?

उत्तर –
द्रव्य कर्ण (कान) इन्द्रिय के आधार से भाव कर्णेन्द्रिय के द्वारा जो ध्वनि सुनी जाती है, उसे शब्द कहते हैं।

प्रश्न – शब्द के भेद बताइये?

उत्तर –
शब्द के दो भेद हैं—१-भाषारूप और २-अभाषारूप।

प्रश्न – बन्ध पर्याय के भेद बताइये?

उत्तर –
बन्ध पुद्गल पर्याय के २ भेद हैं—१-वैस्रसिक और २-प्रायोगिक।

प्रश्न – सूक्ष्मता के कितने भेद है?

उत्तर –
सूक्ष्मता दो प्रकार की होती है—१-अन्त्य और २-आपेक्षिक।

प्रश्न – स्थौल्य किसे कहते है? उसके भेद बताइये।

उत्तर –
स्थूलता को स्थौल्य कहते हैं। यह भी दो प्रकार का है—१-अन्त्य और २-आपेक्षिक।

प्रश्न – संस्थान किसे कहते हैं?

उत्तर –
आकृति को संस्थान कहते हैं। त्रिकोण, चतुष्कोण आदि आकार संस्थान हैं।

प्रश्न – भेद किसे कहते हैं?

उत्तर –
वस्तु को अलग-अलग चूर्णादि करना भेद है।

प्रश्न – तम किसे कहते हैं?

उत्तर –
जिससे दृष्टि में प्रतिबंध होता है और जो प्रकाश का विरोधी-अंधकार है वह तम कहलाता है।

प्रश्न – छाया किसे कहते हैं?

उत्तर –
प्रकाश को रोकने वाले पदार्थों के निमित्त से जो पैदा होती है वह छाया कहलाती है। अर्थात् किसी की परछाई को छाया कहते हैं।

प्रश्न – आतप किसे कहते हैं?

उत्तर –
जो सूर्य के निमित्त से उष्ण प्रकाश होता है उसे आतप कहते हैं।

प्रश्न – उद्योत किसे कहते हैं?

उत्तर –
चंद्रकांतमणि और जुगनू आदि के निमित्त से जो प्रकाश होता है उसे उद्योत कहते हैं।

प्रश्न – शब्द आदि पुद्गल की पर्याय स्वभाव पर्याय है कि विभाव पर्याय?

उत्तर –
शब्दादि विभाव पर्याय हैं, क्योंकि ये स्कन्ध के संयोग से उत्पन्न होती हैं, शुद्ध परमाणु से नहीं।