जैसे निज की देह में, आत्म-कल्पना होय । वैसे ही पर-देह में, चेतनता संजोय ॥१०॥
अन्वयार्थ : [मूढ:] अज्ञानी बहिरात्मा, [परात्माधिष्ठित] अन्य के आत्मा के साथ रहनेवाले, [अचेतन] अचेतन-चेतनारहित, [परदेह] दूसरे के शरीर को, [स्वदेह सदृशं] अपने शरीर समान [दृष्ट्वा] देखकर, [परत्वेन] अन्य के आत्मारूप से, [अध्यवस्यति] मानता है ।
Meaning : Because the bahirAtmA believes that his body is his soul, he looks at the body of another, which is similar to his own, and thinks of the body of another person to be his (another's) soul.
व्यापार, व्याहार (वाणी-वचन) आकारादि द्वारा परदेह को अपने देह समान देखकर; कैसा (देखकर)? कर्मवशात् अन्य के आत्मा से अधिष्ठित / स्वीकृत अचेतन (पर के देह को) चेतनायुक्त देखकर, बहिरात्मा उसे (देह को) परपने रूप से अर्थात् पर के आत्मारूप मानता है ॥१०॥