
प्रभाचन्द्र :
जाति और लिङ्गरूप विकल्प, अर्थात् भेद - उससे जो शैवादि को समय का आग्रह, अर्थात् आगम का आग्रह है, अर्थात् उत्तम जातिविशिष्ट लिङ्ग ही मुक्ति का कारण है - ऐसा आगम में प्रतिपादन किया है; इसलिए उसमात्र से ही मुक्ति है - ऐसा जिनको आगम का अभिनिवेश (आग्रह) है, वे भी आत्मा के परमपद को प्राप्त कर ही नहीं सकते ॥८९॥ उस पद की प्राप्ति के लिए, जाति आदि विशिष्ट शरीर में निर्ममत्व की सिद्धि के लिए, भोगों से व्यावृत्त होकर (पराड्मुख होकर) भी, पुन: मोहवश शरीर में ही अनुबन्ध ( अनुराग ) करता है, वह कहते हैं :-- |