+ शरीर दुःख का कारण -
भवन्ति प्राप्य यत्सङ्गमशुचीनि शुचीन्यपि
स काय: सन्ततापायस्तदर्थं प्रार्थना वृथा ॥18॥
शुचि पदार्थ भी संग ते, महा अशुचि हो जाँय
विघ्‍न करण नित काय हित, भोगेच्‍छा विफलाय ॥१८॥
अन्वयार्थ : जिसके सम्‍बन्‍ध को पाकर -- जिसके साथ भिड़कर पवित्र भी पदार्थ अपवित्र हो जाते हैं, वह शरीर हमेशा अपायों, उपद्रवों, झंझटों, विघ्‍नों एवं विनाशों सहित हैं, अत: भोगोपभोगों को चाहना व्‍यर्थ है ।
Meaning : Knowing that on contact with the body even pure objects are rendered impure, and that the body is home to many afflictions and woes, to provide it with the objects of pleasure makes no sense.

  आशाधरजी 

आशाधरजी : संस्कृत
अन्‍वय - यत्‍संगं प्राप्‍य शुचोन्‍यपि अशुचीनि भवन्ति स काय: संततापाय: तदर्थं प्रार्थना वृथा ।
टीका - वर्तते । काअसौ, स: काय काय: शरीरं । किं विशिष्‍ट: संततापाय: नित्‍यक्षुधाद्युपताप: । स क इत्‍साह । यत्‍स येन कायेन सह संबंध प्राप्‍य लब्‍ध्‍वा शुची‍न्‍यपि पवित्राण्‍यपि भोजनवस्‍त्रादिवस्‍तून्‍यशु-चीनि भवन्ति । यतश्‍चैवं ततस्‍तदर्थ तं संततापायं कायं शुचिवस्‍तुभिरूपकर्तुं प्रार्थना आकांक्षा वृथा व्‍यर्था, केनचिदुपायेन निवारितेअपि एकस्मिन्‍नपाये क्षणे क्षणे परापरापायोपनिपातसम्‍भवात् ।
पुनरप्‍याह शिष्‍य: - तर्हि धनादिनाप्‍यात्‍मोपकारो भविष्‍यतीति । भगवन् संततापायतया कायस्‍य धनादिना यद्युपकारो न स्‍यातर्हि धनादिनापि न केवलमनशनादितपश्‍चरणेनेत्‍यपि शब्‍दार्थ: । आत्‍मनो जीवनस्‍योपकारोअनुग्रहो भविष्‍यतीत्‍यर्थ: । गुरूराह तन्‍नेति । यत्‍वया धनादिना आत्‍मोपकारभवनं संभाव्‍यते तननास्ति ॥ यत: -


जिस शरीर के साथ संबन्‍ध करके पवित्र एवं रमणीक भोजन वस्‍त्र आदिक पदार्थ अपवित्र घिनावने हो जाते हैं, ऐसा वह शरीर हमेशा भूख-प्‍यास आदि संतापोंकर सहित है । जब वह ऐसा है तब उसको पवित्र अच्‍छे-अच्‍छे पदार्थों से भला बनाने के लिये आकांक्षा करना व्‍यर्थ है, कारण कि किसी उपाय से यदि उसका एकाध ऊपाय दर भी किया जाय तो क्षण-क्षण में दूसरे-दूसरे अपाय आ खड़े हो सकते हैं ॥१८॥

फिर भी शिष्‍य का कहना है कि भगवन् काय के हमेशा अपायवाले होने से यदि धनादिक के द्वारा काय का उपकार नहीं हो सकता, तो आत्मा का उपकार तो केवल उपवास आदि तपश्‍चर्या से ही नहीं, बल्कि धनादि पदार्थों से भी हो जायगा ।

आचार्य उत्‍तर देते हुए बोले, ऐसी बात नहीं है । कारण कि --