श्रीब्रह्मदेव : संस्कृत
अथ योऽसौ वेदादिविषयो न भवति परमात्मा समाधिविषयो भवति पुनरपि तस्यैवस्वरूपं व्यक्तं करोति - केवलोऽसहायः ज्ञानदर्शनाभ्यां निर्वृत्तः केवलदर्शनज्ञानमयः केवलानन्तसुखस्वभावःकेवलानन्तवीर्यस्वभाव इति यस्तमात्मानं मन्यस्व जानीहि । पुनश्च कथंभूतः य एव । यः परापरः परेभ्योऽर्हत्परमेष्ठिभ्यः पर उत्कृष्टो मुक्तिगतः शुद्धात्मा भावः पदार्थः स एव सर्वप्रकारेणोपादेय इति तात्पर्यार्थः ॥२४॥ आगे कहते हैं कि जो परमात्मा वेद-शास्त्र गम्य तथा इन्द्रिय-गम्य नहीं, केवल परमसमाधिरूप निर्विकल्प-ध्यान द्वारा ही गम्य है, इसिलिए उसी का स्वरूप फिर कहते हैं - परमात्मा के दो भेद हैं, पहला सकल-परमात्मा दूसरा निष्कल-परमात्मा उनमें से कल अर्थात् शरीर-सहित जो अरहंत भगवान् हैं, वे साकार हैं, और जिनके शरीर नहीं, ऐसे निष्कल परमात्मा निराकार-स्वरूप सिद्ध-परमेष्ठी हैं, वे सकल परमात्मा से भी उत्तम हैं, वही सिद्धरूप शुद्धात्मा ध्यान करने योग्य है ॥२४॥ |