
ज्ञानमात्मानमर्थं च परिच्छित्ते स्वभावत: ।
दीप उद्योतयत्यर्थं स्वस्मिन्नान्यमपेक्षते ॥24॥
अन्वयार्थ : ज्ञानं स्वभावतः आत्मानं अर्थं च परिच्छित्ते दीपः अर्थं उद्योतयति स्वस्मिन् अन्यं न अपेक्षते ।
ज्ञान अपने को और पदार्थ को स्वभाव से जानता है । जैसे - दीपक पदार्थ को प्रकाशित करता है, उसे अपने को प्रकाशित करने में भी किसी अन्य की अपेक्षा नहीं होती है ।