सर्वार्थसिद्धि :
विग्रह का अर्थ व्याघात या कुटिलता है जिस गति में विग्रह अर्थात् कुटिलता नहीं होती वह विग्रह-रहित गति है। शंका – यह किसके होती है ? समाधान – जीव के। शंका – किस प्रकार के जीव के ? समाधान – मुक्त जीव के । शंका – यह किस प्रमाण से जाना जाता है कि मुक्त जीव के विग्रहरहित गति होती है ? समाधान – अगले सूत्रमें 'संसारी' पदका ग्रहण किया है इससे ज्ञात होता है कि इस सूत्र में मुक्त जीव के विग्रहरहित गति ली गयी है। शंका – 'अनुश्रेणि गति:' इस सूत्र से ही यह ज्ञात हो जाता है कि एक श्रेणि से दूसरी श्रेणि में संक्रमण नहीं होता फिर इस सूत्रके लिखने से क्या प्रयोजन है ? समाधान – पूर्व सूत्र में कहीं पर विश्रेणिगति भी होती है इस बात का ज्ञान कराने के लिए यह सूत्र रचा है। शंका – पूर्व सूत्र की टीका में ही देशनियम और कालनियम कहा है ? समाधान – नहीं; क्योंकि उसकी सिद्धि इस सूत्र से होती हे। मुक्तात्मा की लोकपर्यन्त गति बिना प्रतिबन्ध के नियत समय के भीतर होती है यदि ऐसा आपका निश्चय है तो अब यह बतलाइए कि सदेह आत्मा की की गति क्या प्रतिबन्ध के साथ होती है या मुक्तात्मा के समान बिना प्रतिबन्ध के होती है, इसी बात का ज्ञान कराने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं – |
राजवार्तिक :
आगे के सूत्र में 'संसारी' का ग्रहण किया है, अत: यह सूत्र मुक्त के लिए है यह निश्चित हो जाता है। यद्यपि 'अनुश्रेणि गतिः' सूत्र से मुक्त की अविग्रह गति सिद्ध हो जाती है फिर भी जब वह सूत्र जीव-पुद्गल दोनों के लिए साधारण हो गया और वह भी इसी सूत्र के बल पर, तब इस सूत्र की आवश्यकता बनी ही रहती है । |