+ तैजस-कार्मण शरीरों के प्रदेश -
अनन्तगुणे परे ॥39॥
अन्वयार्थ : परवर्ती दो शरीर प्रदेशों की अपेक्षा उत्तरोत्तर अनन्‍तगुणे हैं ॥३९॥
Meaning : The last two have infinite fold (space-points).

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

पूर्व सूत्रसे 'प्रदेशत: इस पद की अनुवृत्ति होती है। जिससे इसका सम्‍बन्ध करना चाहिए कि आहारक शरीरसे तैजस शरीर के प्रदेश अनन्‍तगुणे हैं और तैजस शरीर से कार्मण शरीर के प्रदेश अनन्‍तगुणे हैं।

शंका – गुणकार क्‍या है ?

समाधान –
अभव्‍योंसे अनन्‍तगुणा और सिद्धोंका अनन्‍तवाँ भाग गुणकार है।

शंका – जिस प्रकार कील आदि के लग जानेसे कोई भी प्राणी इच्छित स्‍थानको नहीं जा सकता उसी प्रकार मूर्तिक द्रव्‍यसे उपचित होनेके कारण संसारी जीवकी इच्छित गतिके निरोधका प्रसंग प्राप्‍त होता है ?

समाधान –
यह कोई दोष नहीं है, क्‍योंकि ये दोनों शरीर -
राजवार्तिक :

1-2. अनन्तगुणें अर्थात् अभव्यों के अनन्तगुणें से गुणित और सिद्धों के अनन्तवें भाग से गुणित । अनन्त के अनन्त ही विकल्प होते हैं, अतः उत्तरोत्तर अनन्तगुणता समझनी चाहिए। पूर्व सूत्र से 'परं परं' को अनुवृत्ति होती है अतः आहारक से तैजस अनन्तगुणा तथा तैजस से कार्मण अनन्तगुणा समझना चाहिए।

3-5. प्रश्न – पर तो कार्मण हुआ और तैजस अपर, अतः 'परापरे' यह पद रखना चाहिए ?

उत्तर –
शब्दोच्चारण की दृष्टि से यहाँ 'पर' व्यवहार अपेक्षित नहीं है किन्तु ज्ञान की दृष्टि से । बुद्धि में आहारक से आगे रखे गये तैजस और कार्मण दोनों ही 'पर' कहे जाते हैं। जैसे 'पटना से मथुरा परे है' यहां काशी आदि देशों का व्यवधान होने पर भी व्यवहित मथुरा में पर शब्द का प्रयोग हो जाता है उसी तरह आहारक से पर तैजस और तेजस से पर कार्मण में भी पर शब्द का प्रयोग उचित है।

6. यद्यपि तैजस और कार्मण में परमाणु अधिक हैं फिर भी उनका अतिसघन संयोग और सूक्ष्म परिणमन होने से इन्द्रियों के द्वारा उपलब्धि नहीं हो सकती।