
सर्वार्थसिद्धि :
सूत्रमें 'च' शब्द आया है। उससे वैक्रियिक शरीरका सम्बन्ध करना चाहिए। तपविशेषसे प्राप्त होनेवाली ऋद्धिको लब्धि कहते हैं। इस प्रकारकी लब्धिसे जो शरीर उत्पन्न होता है वह लब्धिप्रत्यय कहलाता है।वैक्रियिक शरीर लब्धिप्रत्यय भी होता है ऐसा यहाँ सम्बन्ध करना चाहिए। क्या यही शरीर लब्धिकी अपेक्षासे होता है या दूसरा शरीर भी होता हे। अब इसी बातका ज्ञान करानेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं – |
राजवार्तिक :
1-2. प्रत्यय शब्द के ज्ञान, सत्यता, कारण आदि अनेक अर्थ हैं किन्तु यहाँ कारण अर्थ विवक्षित है। विशेष तप से जो ऋद्धि प्राप्त होती है वह लब्धि है। लब्धिकारणक भी वैक्रियिक शरीर होता है। 3. उपपाद तो निश्चित है, पर लब्धि अनिश्चित है, किसी के ही विशेष तप धारण करने पर होती है। 4. विक्रिया का अर्थ विनाश नहीं है, जिससे प्रतिसमय न्यूनाधिक रूप से सभी शरीरों का विनाश होने से सबको वैक्रियिक कहा जाय किन्तु नाना आकृतियों को उत्पन्न करना है । विक्रिया दो प्रकार की है - १ एकत्व विक्रिया, २ पृथक्त्व विक्रिया।
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