
सर्वार्थसिद्धि :
हैमवत क्षेत्रमें उत्पन्न हुए हैमवतक कहलाते हैं। यहाँ हैमवत शब्दसे 'वुञ्' प्रत्यय करके हैमवतक शब्द बना है जिससे मनुष्योंका ज्ञान होता है। इसी प्रकार आगेके हारिवर्षक और दैवकुरवक इन दो शब्दोंमें जान लेना चाहिए। हैमवतक आदि तीन हैं और एक आदि तीन हैं। यहाँ इनका क्रमसे सम्बन्ध करते हैं जिससे यह अर्थ हुआ कि हैमवत क्षेत्रके मनुष्योंकी स्थिति एक पल्योपम है। हरिवर्ष क्षेत्रके मनुष्योंकी स्थिति दो पल्योपम है और देवकुरुक्षेत्रके मनुष्योंकी स्थिति तीन पल्योपम है। ढाई द्वीपमें जो पाँच हैमवत क्षेत्र हैं उनमें सदा सुषमदुष्षमा काल है। वहाँ मनुष्योंकी आयु एक पल्योपम है, शरीरकी ऊँचाई दो हजार धनुष हैं, उनका आहार एक दिनके अन्तरालसे होता है और शरीरका रंग नील कमलके समान है। पाँच हरिवर्ष नाम के क्षेत्रोंमें सदा सुषमा काल रहता है। वहाँ मनुष्योंकी आयु दो पल्योपम है, शरीरकी ऊँचाई चार हजार धनुष है, उनका आहार दो दिनके अन्तरालसे होता है और शरीर का रंग शंखके समान सफेद है। पाँच देवकुरु नामके क्षेत्रमें सदा सुषमसुषमा काल है। वहाँ मनुष्योंकी आयु तीन पल्योपम है, शरीरकी ऊँचाई छह हजार धनुष है। उनका भोजन तीन दिनके अन्तरालसे होता है और शरीरका रंग सोनेके समान पीला है। उत्तर दिशावर्ती क्षेत्रोंमें क्या अवस्था है इसके बतलानेके लिए अब आगेका सूत्र कहते हैं- |
राजवार्तिक :
हैमवतक, हारिवर्षक और देवकुरुवक का अर्थ है इन क्षेत्रों में रहनेवाले मनुष्य ।
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