+ पुष्‍करार्द्ध द्वीप में क्षेत्र और पर्वत -
पुष्करार्द्धे च॥34॥
अन्वयार्थ : पुष्‍करार्द्ध में उतने ही क्षेत्र और पर्वत हैं ॥३४॥
Meaning : In the (nearest) half of Puskaradvîpa also.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

यहाँ 'द्वि' पदकी अनुवृत्ति होती है।

शंका – 'द्वि' इस पदकी किसकी अपेक्षा अनुवृत्ति होती है ?

समाधान –
जम्‍बूद्वीपके भरत आदि क्षेत्र और हिमवान् आदि पर्वतोंकी अपेक्षा 'द्विः' इस पदकी अनुवृत्ति होती है।

शंका – यह कैसे समझा जाता है ?

समाधान –
व्‍याख्‍यानसे। जिसप्रकार धातकीखण्‍ड द्वीपमें हिमवान् आदिका विस्‍तार कहा है उसी प्रकार पुष्‍करार्धमें हिमवान् आदिका विस्‍तार दूना बतलाया है। नाम वे ही हैं। दो इष्‍वाकार और दो मन्‍दर पर्वत पहलेके समान जानना चाहिए। जहाँ पर जम्‍बूद्वीपमें जम्‍बूवृक्ष है पुष्‍कर द्वीपमें वहाँ अपने परिवार वृक्षोंके साथ पुष्‍करवृक्ष हैं। इसीलिए इस द्वीपका पुष्‍करद्वीप यह नाम रूढ़ हुआ है।

शंका – इस द्वीपको पुष्‍करार्ध यह संज्ञा कैसे प्राप्‍त हुई ?

समाधान –
मानुषोत्‍तर पर्वतके कारण इस द्वीपके दो विभाग हो गये हैं अतः आधे द्वीपको पुष्‍करार्ध य‍ह संज्ञा प्राप्‍त हुई।

यहाँ शंकाकारका कहना है कि जम्‍बूद्वीपमें हिमवान् आदिकी जो संख्‍या है उससे हिमवान् आदिकी दूनी संख्‍या आधे पुष्‍करद्वीपमें क्‍यों कही जाती है पूरे पुष्‍कर द्वीपमें क्‍यों नहीं कही जाती ? अब इस शंकाका समाधान करनेके लिए आगेका सूत्र कहते हैं-
राजवार्तिक :

1. च शब्द से 'द्विः' इस संख्या को पूर्वसूत्र से अनुवृत्ति कर लेनी चाहिए। यह द्विगुणता जम्बूद्वीप के भरतादि की संख्या की अपेक्षा से है। यद्यपि धातकीखंड का वर्णन अनन्तर निकट है, फिर भी इच्छानुसार जम्बूद्वीप की संख्या से ही द्विगुणता लेनी चाहिये।

2-4. पुष्करार्ध के भरत का आभ्यन्तर विष्कम्भ-४१५७९ योजन और 73 भाग है। मध्यविष्कम्भ 53512 योजन और 199 भाग प्रमाण है । बाह्यविष्कम्भ 65442 योजन और 13 भाग प्रमाण है ।

5. विदेह तक एक क्षेत्र से दूसरा क्षेत्र चौगुने विस्तारवाला है। उत्तर के क्षेत्रों का विस्तार क्रमशः दक्षिण के क्षेत्रों के ही समान है। पर्वत, विजयार्ध, वृत्तवेदाढ्य आदि की संख्या और विस्तार भी दूना-दूना है । जम्बूद्वीप में जहाँ जम्बू-वृक्ष है वहाँ पुष्करद्वीप में पुष्कर है। इसी के कारण इस द्वीप को पुष्करवर द्वीप कहते हैं।

6. मानुषोत्तर पर्वत से अर्ध विभक्त होने के कारण इसे पुष्करार्ध कहते हैं। पुष्करद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। यह 1721 योजना ऊंचा 430 योजन गहरा 22 हजार योजन मूल में विस्तृत 1723 योजन मध्य में विस्तृत 424 योजन ऊपर विस्तृत है। यवराशि के समान यह पर्वत नीचे मुख किए हुए बैठे सिंह के सदृश मालूम होता है । उसके ऊपर चारों दिशाओं में 50 योजन लम्बे 25 योजन चौड़े और 37 1/2 योजन ऊंचे जिनायतन हैं। इसके ऊपर वैडूर्य आदि चौदह कूट हैं ।