
सर्वार्थसिद्धि :
यहाँ जघन्य शब्द का अर्थ निकृष्ट है और गुण शब्द का अर्थ भाग है। जिनमें जघन्य गुण होता है अर्थात् जिनका शक्त्यंश निकृष्ट होता है वे जघन्य गुणवाले कहलाते हैं। उन जघन्य गुणवालों का बन्ध नहीं होता। यथा - एक स्निग्ध शक्त्यंशवाले का एक स्निग्ध शक्त्यंशवाले के साथ या दो से लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त शक्त्यंशवालों के साथ बन्ध नहीं होता। उसी प्रकार एक स्निग्ध शक्त्यंशवाले का एक रूक्ष शक्त्यंशवाले के साथ या दो से लेकर संख्यात, असंख्यात और अनन्त रूक्ष शक्त्यंशवालों के साथ बन्ध नहीं होता। उसी प्रकार एक रूक्ष शक्त्यंशवाले की भी योजना करनी चाहिए। इन जघन्य स्निग्ध और रूक्ष शक्त्यंशवालों के सिवा अन्य स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का परस्पर बन्ध सामान्य रीति से प्राप्त हुआ, इसलिए इनमें भी जो बन्धयोग्य नहीं हैं वे प्रतिषेध के विषय हैं यह बतलाने के लिए आगे का सूत्र कहते हैं – |
राजवार्तिक :
1-2. जैसे शरीर में जघन-जाँघ सबसे निकृष्ट है उसी प्रकार जघन की तरह निकृष्ट अवयव को जघन्य कहते हैं । गुण शब्द के अनेक अर्थ हैं - जैसे
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