+ सत्‍याणुव्रत के अतिचार -
मिथ्योपदेश-रहोभ्याख्यान-कूटलेखक्रिया-न्यासापहार-साकारमन्त्रभेदा: ॥26॥
अन्वयार्थ : मिथ्‍योपदेश, रहोभ्‍याख्‍यान, कूटलेखक्रिया, न्‍यासापहार और साकारमंत्रभेद ये सत्‍याणुव्रत के पॉंच अतिचार हैं ॥२६॥
Meaning : Perverted teaching, divulging what is done in secret, forgery, misappropriation, and proclaiming others’ thoughts.

  सर्वार्थसिद्धि    राजवार्तिक 

सर्वार्थसिद्धि :

अभ्‍युदय और मोक्ष की कारणभूत क्रियाओं में किसी दूसरे को विपरीत मार्ग से लगा देना या मिथ्‍या वचनों द्वारा दूसरों को ठगना मिथ्‍योपदेश है ।

स्‍त्री और पुरूष द्वारा एकान्‍त में किये गये आचरण विशेष का प्रकट कर देना रहोभ्‍याख्‍यान है।

दूसरे ने न तो कुछ कहा और न कुछ किया तो भी अन्य किसी की प्रेरणा से उसने ऐसा कहा है और ऐसा किया है इस प्रकार छल से लिखना कूटलेखक्रिया है ।

धरोहर में चाँदी आदि को रखने वाला कोई उसकी संख्या भूलकर यदि उसे कमती लेने लगा तो 'ठीक है' इस प्रकार स्वीकार करना न्यासापहार है । अर्थवश, प्रकरणवश, शरीर के विकारवश या भ्रूक्षेप आदि के कारण दूसरे के अभिप्राय को जान कर डाह से उसका प्रकट कर देना साकारमन्त्रभेद है ।

इस प्रकार ये सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार जानने चाहिए ।

राजवार्तिक :


  • अभ्युदय और निःश्रेयसार्थक क्रियाओं में उलटी प्रवृत्ति करा देना या अन्यथा बात कहना मिथ्योपदेश है।
  • स्त्री-पुरुष के एकान्त में किये गये रहस्य का उद्घाटन रहोभ्याख्यान है।
  • किसी के कहने से ठगने के लिए झूठी बात लिखना कूटलेखक्रिया है।
  • सुवर्ण आदि गहना रखने वाले के द्वारा भूल से कम माँगने पर जानते हुए भी 'जो तुम माँगते हो ले जाओ' इस तरह कम दे देना न्यासापहार है ।
  • प्रकरण और चेष्टा आदि से दूसरे के अभिप्राय को समझकर ईर्षावश उसे प्रकट कर देना साकारमन्त्रभेद है ।
ये सत्याणुव्रत के अतिचार हैं।