
सर्वार्थसिद्धि :
इस सूत्र में 'यथासंख्य' पद का सम्बन्ध होता है। दर्शनमोह के सद्भाव में अदर्शन परीषह होता है और लाभान्तराय के सद्भाव में अलाभ परीषह होता है। कहते हैं - यदि आदि के मोहनीय के भेद के होने पर एक परीषह होता है तो दूसरे भेद के होने पर कितने परीषह होते हैं, इसलिए आगे का सूत्र कहते हैं- |
राजवार्तिक :
'दर्शनमोह' इस विशिष्ट कारण का निर्देश करने से अवधिदर्शन आदि का सन्देह नहीं रहता । अन्तराय सामान्य का निर्देश होने पर भी यहाँ सामर्थ्यात् लाभान्तराय ही विवक्षित है। अर्थात्, अदर्शन परीषह दर्शनमोह के उदय से और अलाभ परीषह लाभान्तराय के उदय से होती है। |