दर्शनज्ञानचारित्रैस्त्रिभिः परिणतत्वतः ।
एकोऽपि त्रिस्वभावत्वाद् व्यवहारेण मेचकः ॥17॥
अन्वयार्थ : [एकः अपि] आत्मा एक है, तथापि [व्यवहारेण] व्यवहारदृष्टि से देखा जाय तो [त्रिस्वभावत्वात्] तीन-स्वभावरूपता के कारण [मेचकः] अनेकाकाररूप है, [दर्शन-ज्ञान-चारित्रैः त्रिभिः परिणतत्वतः] क्योंकि वह दर्शन, ज्ञान और चारित्र -- इन तीन भावोंरूप परिणमन करता है ।