(अनुष्टुभ्)
मोक्षहेतुतिरोधानाद्बन्धत्वात्स्वयमेव च।
मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्तन्निषिध्यते ॥108॥
अन्वयार्थ : [मोक्षहेतुतिरोधानात्]कर्म मोक्ष के कारण का तिरोधान करनेवाला है, और [स्वयम् एव बन्धत्वात्] वह स्वयं ही बन्धस्वरूप है [च] तथा [मोक्षहेतुतिरोधायिभावत्वात्] वह मोक्ष के कारण का तिरोधायिभावस्वरूप (तिरोधानकर्ता) है, इसीलिये [तत् निषिध्यते] उसका निषेध किया गया है ।